नई दिल्ली : उप राज्यपाल ने गुजरात प्रिवेंशन ऑफ एंटी सोशल एक्टिविटीज एक्ट, 1985 को दिल्ली में लागू करने की मंजूरी दे दी है।
दिल्ली पुलिस (Delhi Police) को ऐसी शक्तियां मिलने जा रही हैं, जिससे वह पहले के मुकाबले कहीं ज्यादा ताकतवर हो जाएगी। दिल्ली के उपराज्यपाल (LG) वीके सक्सेना ने गृह विभाग के उस प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है, जिसमें गुजरात के प्रिवेंशन ऑफ एंटी सोशल एक्टिविटीज एक्ट, 1985 (Gujarat Prevention of Anti-Social Activities Act, 1985) को राष्ट्रीय राजधानी में लागू करने की मांग की गई थी। एलजी की मंजूरी के बाद अब प्रस्ताव केंद्रीय गृह मंत्रालय को भेज दिया गया है।
अधिकारियों का कहना है कि कुछ वक्त पहले ही दिल्ली पुलिस ने एलजी को पत्र लिखकर चैन स्नेचर और ड्रग माफिया जैसे अपराधियों पर लगाम के लिए कड़े कानून की मांग की थी।
क्या है गुजरात का यह कानून?
गुजरात प्रिवेंशन ऑफ एंटी सोशल एक्टिविटीज एक्ट, 1985 के तहत शराब -ड्रग्स तस्कर, मानव तस्कर, आदतन अपराधी और खतरनाक व्यक्ति, प्रॉपर्टी हड़पने वालों, बार-बार जानबूझकर ट्रैफिक नियम तोड़ने वालों को कानून व्यवस्था बनाए रखने के लिए एहतियातन हिरासत में रखने का प्रावधान है। यह एक्ट 2 अगस्त 1985 को गुजरात सरकार के गजट में प्रकाशित हुआ था, लेकिन इससे पहले 27 मई 1985 को ही लागू हो गया था।
क्या है PASA एक्ट का सेक्शन 3
गुजरात प्रिवेंशन ऑफ एंटी सोशल एक्टिविटीज एक्ट के सेक्शन 3 में कहा गया है कि यदि राज्य सरकार को लगता है और वह संतुष्ट है कि कानून व्यवस्था बनाए रखने के लिए किसी शख्स को हिरासत में लेना जरूरी है, तो उसे डिटेन कर सकती है। इस सेक्शन में कहा गया है कि आरोपी को गुजरात की किसी भी जगह से हिरासत में लिया जा सकता है और राज्य किसी दूसरे इलाके में भी रिलीज किया जा सकता है।
इस कानून में कहा गया है कि संबंधित आरोपी पर राज्य के किसी भी पुलिस स्टेशन में कम से कम एक एफआईआर दर्ज होनी जरूरी है। एक्ट के तहत अपराधी पर सिर्फ वही पुलिस अधिकारी मामला दर्ज कर सकता है, जिसके क्षेत्राधिकार में वह रहता है या उसका मकान है।
विवादों में भी रहा है यह कानून
गुजरात सरकार का यह कानून विवादों में भी रहा है। उदाहरण के तौर पर इस कानून का सेक्शन 6 सरकार को शक्ति देता है कि वह किसी व्यक्ति को मल्टीपल ग्राउंड यानी अलग-अलग आधार पर हिरासत में ले सकती है। प्रत्येक ग्राउंड के लिए अलग-अलग हिरासत आदेश भी दे सकती है। ऐसे में यदि न्यायालय में कोई एक आधार खारिज हो जाता है, तब भी उस व्यक्ति को हिरासत में लेने का आदेश कायम रह सकता है।
हाईकोर्ट रद्द कर चुका है 60 प्रतिशत आदेश
गुजरात हाई कोर्ट भी इस मसले पर कई बार अधिकारियों को फटकार लगा चुका है और कह चुका है कि अधिकारी दिमाग का इस्तेमाल नहीं करते। साल 2020 में गुजरात हाई कोर्ट के तत्कालीन चीफ जस्टिस विक्रम नाथ ने इस कानून के तहत हिरासत में लेने से जुड़ी विस्तृत गाइडलाइन जारी की थी। वहीं, सितंबर 2021 में गुजरात विधानसभा में जो डाटा पेश किया गया था, उसके मुताबिक पिछले 2 वर्षों के दौरान सरकार ने इस कानून के तहत 5402 लोगों को हिरासत में लेने का आदेश दिया था। लेकिन इनमें से 3447 आदेश गुजरात हाईकोर्ट ने रद्द कर दिए, जो 60% है।