नई दिल्ली: भारत ने चंद्रयान-3 (Chandrayaan-3) को सफलता पूर्वक लॉन्च कर इतिहास रच दिया. चांद के साउथ पोल (South Pool) पर पहुंचने वाला पहला देश भी बन गया है. भारत के बाद अब अमेरिकी स्पेस एजेंसी नासा (NASA) भी साउथ पोल पर मिशन भेजने की तैयारी कर रही है. नासा के मुताबिक उसके मून मिशन का सबसे बड़ा उद्देश्य वैज्ञानिक खोज (Scientific Discovery) है. तो आखिर ऐसा क्या है जो नासा इस साइंटिफिक डिस्कवरी के जरिये हासिल करना चाहता है? क्यों तमाम देशों के बीच चांद पर पहुंचने की होड़ है? इसका जवाब है हीलियम-3 (Helium-3)
हीलियम-3 आखिर है क्या? हीलियम -3 (3He) हीलियम गैस का एक स्टेबल आइसोटोप (समस्थानिक) है, जिसमें न्यूट्रॉन से ज्यादा प्रोटॉन पाए जाते हैं. इसीलिये यह ऊर्जा का महत्वपूर्ण सोर्स हो सकता है. सबसे बड़ी और महत्वपूर्ण बात यह है कि हीलियम 3 से न तो किसी तरह का रेडिएशन निकलता है और न ही वेस्टेज. यानी इससे पैदा हुई ऊर्जा पूरी तरह क्लीन और पर्यावरण के अनुकूल होगी. वैज्ञानिकों के मुताबिक महज 1 ग्राम हीलियम-3 से 165 मेगावॉट आवर्स की बिजली पैदा हो सकती है, जो उत्तर प्रदेश जैसे राज्य को करीबन 16 घंटे बिजली देने के लिए काफी है.
हीलियम-3, धरती की सबसे महंगी चीजों में से एक है. वैज्ञानिकों ने एक किलो हीलियम-3 की कीमत 1.5 मिलियन डॉलर आंकी है. रुपये में यह राशि तकरीबन 12.5 करोड़ के आसपास है. अनुमान के मुताबिक चांद पर 1.1 मिलियन टन के आसपास हीलियम-3 मौजूद है और बड़ा हिस्सा साउथ पोल पर ही है. लेकिन ऐसा भी नहीं है कि हीलियम-3 सिर्फ और सिर्फ चांद पर मौजूद है.
हीलियम 3, धरती के कोर में मौजूद है.
हीलियम-3 पृथ्वी पर कहां है? चंद्रमा से जिस हीलियम-3 को हासिल करने की होड़ मची है, वो हमारी धरती पर भी है, लेकिन ऐसी जगह जहां से उसे निकालना, चांद पर पहुंचने से कम कठिन नहीं है. मात्रा भी बहुत सीमित है. वैज्ञानिकों के मुताबिक हमारी पृथ्वी के कोर यानी सबसे अंदरूनी हिस्से में हीलियम 3 मौजूद है. अमेरिकन ज्योग्राफिकल यूनियन के जर्नल में कुछ वक्त पहले एक रिपोर्ट प्रकाशित हुई, जिसमें कहा गया कि पृथ्वी के कोर से हीलियम-3 का रिसाव हो रहा है.
वैज्ञानिकों के मुताबिक जब उन्होंने जिओ केमिकल एविडेंस के जरिए शोध किया तो पता लगा कि धरती के कोर से हीलियम 3 का रिसाव हो रहा है, लेकिन उसकी वास्तविक जगह कहां है, यह अभी तक साफ नहीं है? रिसर्च पेपर के लेखकों में से एक, यूनिवर्सिटी ऑफ न्यू मैक्सिको के भूगर्भ-विज्ञानी पीटर ऑल्सोन (Peter Olson) forbes से बातचीत में कहते हैं कि ‘बिग बैंग’ के बाद जब पृथ्वी का निर्माण हुआ तो हीलियम 3, पृथ्वी के कोर में समा गया. चूंकि पृथ्वी के कोर में टेक्टॉनिक जैसा इंपैक्ट नहीं पड़ता, यही कारण है कि कोर में हीलियम 3 अभी भी लीक्विड फॉर्म में सुरक्षित है.
धरती पर कितना हीलियम 3… वैज्ञानिकों के मुताबिक धरती की कोर से हर साल तकरीबन 2 किलो तक हीलियम 3 लीक हो रहा है. वे कहते हैं कि ‘बिग बैंग’ के बाद धरती से हीलियम 3 का अधिकांश हिस्सा खत्म हो गया था, लेकिन अब दोबारा रिसाव हो रहा है. हालांकि यह अभी भी अबूझ पहेली है कि आखिर 4.56 बिलियन साल बाद धरती के कोर से हीलियम 3 छन क्यों रहा है?