नई दिल्ली। मेडिकल की पढ़ाई करने वालों के लिए एक ऐसी खबर आई है, जो आपको राहत भी दे सकती है और परेशानी भी। क्योंकि अगर सुप्रीम कोर्ट याची के हक में फैसला सुनाता है, तो कई MBBS स्टूडेंट्स इससे खुश होंगे, तो कई दुखी। दरअसल, ये मामला एमबीबीएस की पढ़ाई के बाद ग्रामीण क्षेत्रों में अनिवार्य रूप से सेवा देने से जुड़ा है।
देश का विकास प्राइवेट कॉलेज से पढ़ने वालों की जिम्मेदारी नहीं?
सर्वोच्च न्यायालय ने याचिकाकर्ता से पूछा है कि ‘क्या गलत है? क्या देश के विकास के प्रति प्राइवेट संस्थानों से पढ़ने वालों की कोई जिम्मेदारी नहीं बनती? सिर्फ इसलिए कि आपने एक प्राइवेट अस्पताल या प्राइवेट लॉ कॉलेज से पढ़ाई की है, आपको ग्रामीण क्षेत्रों में काम करने से छूट मिल जानी चाहिए?’
कोर्ट ने याचिकाकर्ता से पूछा, ‘वो क्या चीज है जो आपको इस बात की छूट देती है कि क्योंकि आपने प्राइवेट मेडिकल कॉलेज से पढ़ाई की है, तो आप रूरल एरिया में काम नहीं कर सकते?’
मेडिकल फीस में छूट नहीं
शीर्ष अदालत के सवाल के जवाब में याचिकाकर्ता के वकील ने कहा कि ‘स्टूडेंट को मेडिकल कोर्स फीस में वो छूट नहीं मिली है जो सरकारी मेडकल कॉलेज की फीस में छात्रों को दी जाती है। इसलिए उसे इस अनिवार्य सेवा से राहत दी जानी चाहिए।’
जस्टिस पीएस नरसिंहा और जस्टिस संजय करोल की बेंच मामले की सुनवाई कर रही थी। याचिका कर्नाटक सरकार के फैसले के खिलाफ एक मेडिकल छात्र द्वारा लगाई गई है। इस फैसले में कर्नाटक सरकार ने सभी मेडिकल स्टूडेंट्स के लिए एक साल की कंपलसरी पब्लिक रूरल सर्विस लागू की है। इसके बिना डिग्री पूरी होने के बावजूद कर्नाटक मेडिकल काउंसिल में परमानेंट रजिस्ट्रेशन नहीं करा सकते।