स्पेशल डेस्क/नई दिल्ली: ईरान और इसराइल के बीच बढ़ते संघर्ष में अमेरिका की सैन्य भागीदारी ने मध्य पूर्व में तनाव को नई ऊंचाइयों पर पहुंचा दिया है। अमेरिका ने 22 जून 2025 को ईरान के तीन परमाणु ठिकानों—फोर्डो, नतांज़, और इस्फ़हान—पर हमले किए, जिसके बाद भारत और अरब देशों के रुख पर वैश्विक ध्यान केंद्रित हो गया है। इस घटनाक्रम के बाद विभिन्न देशों ने कूटनीति, संयम, और क्षेत्रीय स्थिरता को प्राथमिकता देने की अपील की है। आइए भारत और प्रमुख अरब देशों के रुख पर एक्जीक्यूटिव एडिटर प्रकाश मेहरा की खास रिपोर्ट से समझते हैं।
क्या है भारत का रुख !
भारत ने इस संकट में संतुलित और कूटनीतिक रुख अपनाया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 22 जून 2025 को ईरान के राष्ट्रपति मसूद पेजेशकियन से फोन पर बातचीत की और तनाव कम करने, बातचीत और कूटनीति के माध्यम से समाधान निकालने का आह्वान किया। भारत के लिए यह स्थिति जटिल है क्योंकि उसके इसराइल और ईरान दोनों के साथ रणनीतिक और आर्थिक हित जुड़े हैं।
भारत और इसराइल के बीच रक्षा, प्रौद्योगिकी और सुरक्षा सहयोग मजबूत है। 2023 में हमास के हमले के बाद भारत ने आतंकवाद की निंदा की थी और गाजा में सीजफायर प्रस्ताव पर वोटिंग से दूरी बनाई थी, जिसे इसराइल के प्रति समर्थन के रूप में देखा गया।
ईरान के साथ भारत के ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और आर्थिक रिश्ते हैं। भारत अपनी ऊर्जा जरूरतों का करीब 40% तेल और आधा गैस होर्मुज जलडमरूमध्य के रास्ते आयात करता है, जिसे ईरान ने बंद करने की धमकी दी है। इसके अलावा, ईरान के चाबहार बंदरगाह में भारत का निवेश क्षेत्रीय कनेक्टिविटी के लिए महत्वपूर्ण है।
क्या हैं भारत की चिंताएं
भारत ने दोनों देशों में रहने वाले अपने नागरिकों (इजराइल में ~18,000 और ईरान में ~10,000) की सुरक्षा के लिए सतर्कता बरती है। ऑपरेशन सिंधु के तहत कुछ नागरिकों को निकाला गया है। इसके साथ ही, तेल की कीमतों में उछाल (6-7% की वृद्धि) और लाल सागर मार्ग में बाधा भारत के व्यापार और महंगाई पर असर डाल सकती है। भारत ने वाणिज्य मंत्रालय के साथ आपात बैठक बुलाई है।
भारत ने रूस के साथ मिलकर क्षेत्रीय स्थिरता के लिए काम करने का संकेत दिया है। विश्लेषकों का मानना है कि भारत का रुख तटस्थ और संतुलनवादी रहेगा, जिसमें वह किसी एक पक्ष का खुलकर समर्थन करने से बचेगा।
अरब देशों का रुख
अरब देशों ने इस संकट में मिली-जुली प्रतिक्रियाएं दी हैं। कुछ देशों ने अमेरिकी हमलों की निंदा की, जबकि अन्य ने संयम और मध्यस्थता की वकालत की। प्रमुख अरब देशों का रुख नीचे दिए है।
सऊदी अरब ने अमेरिकी हमलों को अंतरराष्ट्रीय कानून का उल्लंघन करार दिया और गंभीर चिंता जताई। विदेश मंत्रालय ने सभी पक्षों से संयम बरतने और शांतिपूर्ण समाधान की अपील की। सऊदी अरब, जो तेल निर्यात के लिए होर्मुज जलडमरूमध्य पर निर्भर है, क्षेत्रीय अस्थिरता से बचना चाहता है। हालांकि, अमेरिका के साथ उसके रणनीतिक संबंध इसे जटिल बनाते हैं।
संयम और समझदारी दिखाने की अपील
कतर ने अमेरिकी हमलों की कड़ी निंदा की और चेतावनी दी कि यह कार्रवाई अंतरराष्ट्रीय शांति और सुरक्षा के लिए गंभीर खतरा है। कतर ने मध्यस्थता की भूमिका निभाने की कोशिश की है, लेकिन इसराइल के साथ उसके औपचारिक संबंध न होने से उसकी स्थिति सीमित है। ओमान, जो ईरान-अमेरिका परमाणु वार्ता में मध्यस्थ रहा है, ने अमेरिकी हमलों की निंदा की और इसे क्षेत्रीय स्थिरता के लिए खतरा बताया। ओमान ने सभी पक्षों से संयम और समझदारी दिखाने की अपील की।
संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) यूएई ने सतर्क रुख अपनाया है और खुले तौर पर अमेरिकी हमलों की निंदा करने से बचा है। अमेरिका के साथ मजबूत सैन्य संबंधों के कारण यूएई ने क्षेत्र में अपने 40,000 अमेरिकी सैनिकों को हाई अलर्ट पर रखा है।
इराक ने अमेरिकी हमलों को पश्चिम एशिया की शांति के लिए गंभीर खतरा बताया। इराकी अधिकारियों ने आशंका जताई कि ईरान जवाबी कार्रवाई के तहत इराक में अमेरिकी ठिकानों को निशाना बना सकता है।
पाकिस्तान ने अमेरिकी हमलों को अंतरराष्ट्रीय कानून का उल्लंघन बताया, लेकिन हाल ही में डोनाल्ड ट्रंप को नोबेल शांति पुरस्कार के लिए नामित करने के बाद उसका रुख असंगत दिखाई देता है। पाकिस्तान ने ईरान के साथ अपनी साझा सीमा के कारण सतर्कता बरती है।
भारत के लिए चुनौतियां ?
भारत को ऊर्जा सुरक्षा, व्यापार मार्गों, और अपने नागरिकों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए सावधानीपूर्वक कदम उठाने होंगे। पाकिस्तान की बढ़ती रणनीतिक भूमिका भारत के लिए चिंता का विषय हो सकती है। परमाणु ठिकानों पर हमलों से रेडिएशन का खतरा बढ़ सकता है, जिसकी चेतावनी अरब देशों ने दी है।
भारत और अरब देश इस संकट में संयम, कूटनीति, और क्षेत्रीय स्थिरता को प्राथमिकता दे रहे हैं। भारत अपनी तटस्थ नीति के तहत दोनों पक्षों के साथ संवाद बनाए रखने की कोशिश कर रहा है, जबकि अरब देशों का रुख उनकी अमेरिका और ईरान के साथ संबंधों पर निर्भर है। यह संघर्ष वैश्विक ऊर्जा बाजार, व्यापार, और सुरक्षा के लिए गंभीर चुनौतियां पैदा कर सकता है, जिसके लिए अंतरराष्ट्रीय समुदाय को तत्काल कदम उठाने की जरूरत है।