शूरवीर नेगी
स्पेशल डेस्क/नई दिल्ली: ईरान के विदेश मंत्री अब्बास अराघची 23 जून को मॉस्को पहुंचे और रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से मुलाकात की। यह दौरा अमेरिका और इजरायल द्वारा ईरान के परमाणु ठिकानों पर हमलों के बाद हुआ। हालांकि, पुतिन ने इजरायल-ईरान संघर्ष में सीधे हस्तक्षेप करने से परहेज किया है।
इजरायल में रूसी मूल की आबादी का प्रभाव
पुतिन ने बताया कि इजरायल में लगभग 20 लाख रूसी भाषी लोग रहते हैं, जो पूर्व सोवियत संघ और रूस से पलायन कर गए हैं। इजरायल को पुतिन ने “लगभग रूसी भाषी देश” करार दिया है। इस कारण रूस इजरायल के खिलाफ खुलकर सैन्य कार्रवाई से बच रहा है, ताकि अपनी डायस्पोरा आबादी के हितों को नुकसान न पहुंचे।
मध्य पूर्व में संतुलन की नीति
रूस लंबे समय से मध्य पूर्व में इजरायल और ईरान, दोनों के साथ संतुलित संबंध बनाए रखने की कोशिश कर रहा है। रूस का ईरान के साथ मजबूत आर्थिक और रक्षा सहयोग है, जैसे कि बुशहर परमाणु संयंत्र का निर्माण। साथ ही, इजरायल के साथ भी रूस के सकारात्मक संबंध हैं। इस संतुलन को बनाए रखने के लिए पुतिन सीधे तौर पर किसी एक पक्ष का साथ देने से बच रहे हैं।
रणनीतिक साझेदारी में सीमाएं
रूस और ईरान के बीच हाल ही में हुई रणनीतिक साझेदारी सैन्य गठबंधन नहीं है। रूसी विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव ने स्पष्ट किया कि यह समझौता क्षेत्रीय और अंतरराष्ट्रीय शांति के लिए सहयोग पर केंद्रित है, न कि सैन्य दायित्वों पर। पुतिन ने भी कहा कि ईरान ने रूस से सैन्य सहायता, जैसे कि वायु रक्षा प्रणाली, स्वीकार नहीं की थी।
यूक्रेन युद्ध और आर्थिक दबाव
रूस वर्तमान में यूक्रेन युद्ध में उलझा हुआ है और अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंधों का सामना कर रहा है। एक और बड़े क्षेत्रीय संघर्ष में शामिल होना रूस के संसाधनों और वैश्विक स्थिति को और कमजोर कर सकता है। पुतिन ने सेंट पीटर्सबर्ग इंटरनेशनल इकोनॉमिक फोरम में कहा कि रूस की प्राथमिकता अपनी रणनीतिक स्थिरता बनाए रखना है।
कूटनीतिक समाधान पर जोर
पुतिन ने इजरायल-ईरान संघर्ष को समाप्त करने के लिए मध्यस्थता की पेशकश की है, जिसमें ईरान को शांतिपूर्ण परमाणु कार्यक्रम जारी रखने और इजरायल की सुरक्षा चिंताओं को दूर करने का प्रस्ताव शामिल है। यह दर्शाता है कि रूस सैन्य हस्तक्षेप के बजाय कूटनीति के जरिए प्रभाव बनाए रखना चाहता है।
रूस ने अमेरिका और इजरायल के हमलों की निंदा की है, लेकिन वह अमेरिका के साथ सीधे टकराव से बचना चाहता है। पुतिन ने अमेरिकी हमलों को गैर-जिम्मेदाराना और अंतरराष्ट्रीय कानून का उल्लंघन बताया, लेकिन सैन्य समर्थन देने के बजाय संयुक्त राष्ट्र जैसे मंचों पर अपनी बात रखना पसंद किया।
पुतिन की स्थिति और अराघची का दौरा
ईरानी विदेश मंत्री ने अमेरिकी हमलों के बाद रूस से समर्थन मांगा। पुतिन ने इस दौरान ईरान के प्रति रूस की प्रतिबद्धता दोहराई और कहा कि रूस “इतिहास के सही पक्ष” पर है। हालांकि, यह समर्थन मुख्य रूप से नैतिक और कूटनीतिक है, न कि सैन्य।
पुतिन ने इजरायल और अमेरिका की आक्रामकता की निंदा की, लेकिन सैन्य सहायता देने से इनकार कर दिया। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि अगर इजरायल ईरान के सर्वोच्च नेता अयातुल्ला अली खामेनेई को निशाना बनाता है, तो वह इस पर चर्चा नहीं करना चाहते, जिससे उनकी तटस्थता का संकेत मिलता है।
रूस-ईरान संबंधों की मजबूती !
पुतिन इजरायल-ईरान संघर्ष में सीधे उलझने से बच रहे हैं क्योंकि रूस की प्राथमिकताएं मध्य पूर्व में संतुलन बनाए रखना, अपनी आर्थिक और सैन्य सीमाओं का ध्यान रखना, और इजरायल में रूसी मूल की आबादी के हितों की रक्षा करना हैं। इसके बजाय, रूस कूटनीति और मध्यस्थता के जरिए अपनी भूमिका निभाना चाहता है, ताकि क्षेत्रीय प्रभाव बनाए रखते हुए बड़े पैमाने पर युद्ध के जोखिम से बचा जा सके। अराघची का दौरा रूस-ईरान संबंधों की मजबूती को दर्शाता है, लेकिन यह सैन्य समर्थन तक सीमित नहीं है।