स्पेशल डेस्क/मथुरा : मथुरा का श्रीकृष्ण जन्मभूमि-शाही ईदगाह मस्जिद विवाद एक लंबे समय से चला आ रहा धार्मिक और कानूनी विवाद है, जो उत्तर प्रदेश के मथुरा में श्रीकृष्ण जन्मभूमि मंदिर और उसके पास स्थित शाही ईदगाह मस्जिद के बीच 13.37 एकड़ जमीन को लेकर है। इस विवाद का केंद्र यह है कि हिंदू पक्ष का दावा है कि शाही ईदगाह मस्जिद का निर्माण मुगल शासक औरंगजेब ने 1669-70 में कटरा केशवदेव मंदिर को तोड़कर करवाया था, जो भगवान श्रीकृष्ण का जन्मस्थान माना जाता है। वहीं, मुस्लिम पक्ष इस दावे को खारिज करता है और मस्जिद को वैध धार्मिक स्थल बताता है। आइए इस मामले को विस्तार से एग्जीक्यूटिव एडिटर प्रकाश मेहरा से समझते हैं।
मामले का सार और हाल का फैसला !
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हिंदू पक्ष की उस याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें शाही ईदगाह मस्जिद को “विवादित ढांचा” घोषित करने की मांग की गई थी। यह याचिका हिंदू पक्षकार, अधिवक्ता महेंद्र प्रताप सिंह ने 5 मार्च 2025 को दायर की थी। कोर्ट ने जस्टिस राम मनोहर नारायण मिश्रा की एकल पीठ के तहत यह फैसला सुनाया, जिसमें कहा गया कि ऐतिहासिक किताबों या संदर्भों के आधार पर किसी मौजूदा धार्मिक स्थल को विवादित ढांचा घोषित नहीं किया जा सकता।
हिंदू पक्ष ने दलील दी थी कि मस्जिद के स्थान पर पहले मंदिर था और मस्जिद के पक्ष में कोई ठोस दस्तावेजी साक्ष्य जैसे खसरा-खतौनी, नगर निगम रिकॉर्ड, या टैक्स भुगतान का प्रमाण नहीं है। उन्होंने मासरे आलम गिरी और मथुरा के पूर्व कलेक्टर एफएस ग्राउस की ऐतिहासिक किताबों का हवाला दिया था। इसके बावजूद, कोर्ट ने इन दलीलों को पर्याप्त नहीं माना और याचिका खारिज कर दी, जिससे हिंदू पक्ष को झटका लगा और मुस्लिम पक्ष को कानूनी राहत मिली।
विवाद और ऐतिहासिक दावा !
हिंदू पक्ष का कहना है कि शाही ईदगाह मस्जिद का निर्माण औरंगजेब ने श्रीकृष्ण जन्मभूमि पर स्थित प्राचीन केशवदेव मंदिर को तोड़कर करवाया था। उनका दावा है कि यह स्थान भगवान श्रीकृष्ण का जन्मस्थान है और पूरी 13.37 एकड़ जमीन मंदिर की है।
मुस्लिम पक्ष इस दावे को खारिज करता है और कहता है कि “मस्जिद का निर्माण वैध था। वे 1968 के समझौते का हवाला देते हैं, जिसके तहत 13.37 एकड़ जमीन को श्रीकृष्ण जन्मस्थान सेवा संघ और शाही ईदगाह मस्जिद ट्रस्ट के बीच बांटा गया था। इसमें मंदिर को लगभग 11 एकड़ और मस्जिद को 2.37 एकड़ जमीन दी गई।
क्या है 1968 का समझौता ?
1968 में श्रीकृष्ण जन्मस्थान सेवा संघ और शाही ईदगाह मस्जिद ट्रस्ट के बीच एक समझौता हुआ था, जिसके तहत जमीन का बंटवारा किया गया। हिंदू पक्ष अब इस समझौते को अवैध बताता है, क्योंकि उनका दावा है कि समझौता करने वाली संस्था को ऐसा करने का अधिकार नहीं था। इस विवाद में कुल 18 याचिकाएं इलाहाबाद हाईकोर्ट में लंबित हैं, जिनमें हिंदू पक्ष ने मस्जिद को हटाने और पूरी जमीन को श्रीकृष्ण जन्मभूमि ट्रस्ट को सौंपने की मांग की है।
मुस्लिम पक्ष का तर्क है कि “यह मामला 1991 के पूजा स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम, वक्फ अधिनियम, और सीमा अधिनियम (लिमिटेशन एक्ट) के तहत बाधित है। उनका कहना है कि 15 अगस्त 1947 की स्थिति में धार्मिक स्थलों को बदला नहीं जा सकता।” 14 दिसंबर 2023 को हाईकोर्ट ने मस्जिद परिसर के सर्वेक्षण के लिए एडवोकेट कमिश्नर नियुक्त करने की मांग स्वीकार की थी, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इस सर्वे पर रोक लगा दी।
क्या है हिंदू पक्ष की रणनीति
हाईकोर्ट के फैसले से निराश हिंदू पक्ष अब सुप्रीम कोर्ट में अपील करने की योजना बना रहा है। अधिवक्ता महेंद्र प्रताप सिंह ने कहा कि वे कोर्ट के विस्तृत आदेश का अध्ययन करेंगे और अगली कानूनी रणनीति तय करेंगे। मुस्लिम पक्ष ने इस फैसले को “कानूनी और ऐतिहासिक सत्य की पुष्टि” बताया और कहा कि मस्जिद एक वैध धार्मिक स्थल है।
शाही ईदगाह को विवादित ढांचा घोषित करने की मांग वाली याचिका खारिज होने के बावजूद, अन्य 18 याचिकाओं पर सुनवाई जारी है। अगली सुनवाई 2 अगस्त को होगी।
“हिंदू चेतना यात्राओं” पर मुस्लिम पक्ष की आपत्ति
विवाद का सामाजिक और राजनीतिक प्रभावयह मामला अयोध्या के राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद की तर्ज पर देखा जाता है। हिंदू पक्ष ने अयोध्या मामले में बाबरी मस्जिद को “विवादित ढांचा” घोषित किए जाने का हवाला दिया था। इस फैसले ने न केवल मथुरा बल्कि पूरे देश में धार्मिक और सामाजिक चर्चाओं को फिर से हवा दी है। श्रीकृष्ण जन्मभूमि मुक्ति न्यास द्वारा निकाली जा रही “हिंदू चेतना यात्राओं” पर भी मुस्लिम पक्ष ने आपत्ति जताई थी, जिसे हिंदू पक्ष ने संवैधानिक धार्मिक स्वतंत्रता का हिस्सा बताया।
दस्तावेजी और ऐतिहासिक साक्ष्य
इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले ने शाही ईदगाह मस्जिद को विवादित ढांचा घोषित करने की हिंदू पक्ष की मांग को खारिज कर दिया, जिससे इस लंबे समय से चले आ रहे विवाद में एक नया मोड़ आया है। हालांकि, अन्य याचिकाओं पर सुनवाई जारी है, और यह मामला सुप्रीम कोर्ट तक जा सकता है। यह विवाद ऐतिहासिक, धार्मिक और कानूनी दृष्टिकोण से जटिल है, जिसमें दोनों पक्ष अपने-अपने दावों को मजबूत करने के लिए दस्तावेजी और ऐतिहासिक साक्ष्य पेश कर रहे हैं।