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Home राजनीति

बिहार में SIR पर सियासी संग्राम… काले कपड़ों में विधायकों का हंगामा, विपक्ष ने उठाए सवाल

पहल टाइम्स डेस्क by पहल टाइम्स डेस्क
July 22, 2025
in राजनीति, राज्य
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स्पेशल डेस्क/पटना: बिहार में विधानसभा चुनाव 2025 से पहले मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (Special Intensive Revision – SIR) को लेकर सियासी घमासान चरम पर है। विपक्षी दलों ने इस प्रक्रिया को लेकर कड़ा विरोध जताया है, जिसका असर सड़कों से लेकर विधानसभा और सुप्रीम कोर्ट तक देखने को मिल रहा है।

मंगलवार 22 जुलाई को बिहार विधानसभा के मॉनसून सत्र के दूसरे दिन विपक्षी विधायकों ने काले कपड़े पहनकर और “SIR वापस लो” जैसे नारे लगाते हुए विधानसभा के बाहर और अंदर जमकर प्रदर्शन किया। इस हंगामे के कारण विधानसभा की कार्यवाही बाधित हुई और इसे दोपहर 2 बजे तक स्थगित करना पड़ा। आइए इस मुद्दे पर विशेष विश्लेषण में एग्जीक्यूटिव एडिटर प्रकाश मेहरा से समझते हैं।

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SIR क्या है और क्यों हो रहा है विवाद?

चुनाव आयोग ने बिहार में 1 जुलाई 2025 से मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) की प्रक्रिया शुरू की है। इसका उद्देश्य मतदाता सूची को शुद्ध और पारदर्शी बनाना है, जिसमें मृत, डुप्लिकेट, या स्थानांतरित मतदाताओं के नाम हटाने और नए पात्र वोटरों को जोड़ने का काम शामिल है। इस प्रक्रिया में 77,895 बूथ लेवल अधिकारियों (BLO) और 20,603 अतिरिक्त BLO के साथ-साथ 4 लाख स्वयंसेवकों और 1.5 लाख बूथ लेवल एजेंटों की मदद ली जा रही है।

हालांकि, विपक्ष का आरोप है कि “यह प्रक्रिया “लोकतंत्र विरोधी” है और इसका इस्तेमाल आर्थिक रूप से कमजोर, प्रवासी, दलित, और अल्पसंख्यक समुदायों, खासकर मुस्लिम और बंगाली मूल के लोगों, को वोटर लिस्ट से हटाने के लिए किया जा रहा है। विपक्षी नेताओं, जैसे राहुल गांधी, तेजस्वी यादव और अखिलेश यादव ने इसे “छिपा हुआ NRC” करार दिया है और दावा किया है कि यह प्रक्रिया सत्तारूढ़ बीजेपी-जेडीयू गठबंधन को लाभ पहुंचाने की साजिश है।

विपक्ष का विरोध और विधानसभा में हंगामा

21 जुलाई से शुरू हुए बिहार विधानसभा के मॉनसून सत्र में SIR का मुद्दा छाया रहा। 22 जुलाई को विपक्षी विधायकों ने काले कपड़े पहनकर और प्लेकार्ड्स के साथ विधानसभा के मुख्य द्वार पर धरना दिया। हंगामे के कारण उपमुख्यमंत्री सम्राट चौधरी और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को वैकल्पिक गेट से सदन में प्रवेश करना पड़ा। विपक्षी विधायकों ने सदन की वेल में नारेबाजी की और मार्शलों ने उनके प्लेकार्ड छीन लिए।

दिल्ली में संसद भवन के मकर द्वार पर कांग्रेस, समाजवादी पार्टी, और अन्य विपक्षी दलों ने धरना दिया। राहुल गांधी और अखिलेश यादव ने इस प्रक्रिया को “लोकतंत्र के खिलाफ” बताया। राज्यसभा में AAP सांसद संजय सिंह और अखिलेश प्रसाद सिंह ने SIR पर चर्चा के लिए कार्य स्थगन नोटिस दिया।

सुप्रीम कोर्ट में याचिका

विपक्षी दलों (RJD, कांग्रेस, और अन्य) और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने सुप्रीम कोर्ट में SIR के खिलाफ याचिकाएं दायर कीं।याचिकाकर्ताओं ने दावा किया कि यह प्रक्रिया मनमानी है और लाखों मतदाताओं, खासकर हाशिए पर रहने वाले समुदायों, को मतदान के अधिकार से वंचित कर सकती है। विधानसभा चुनाव से कुछ महीने पहले SIR क्यों शुरू किया गया? विपक्ष का दावा है कि जून 2024 में ही वार्षिक समीक्षा (Summary Revision) हो चुकी थी, फिर इसकी जरूरत क्यों पड़ी?

विपक्ष ने लगाए आरोप !

विपक्ष का आरोप है कि 11 अनिवार्य दस्तावेजों की मांग से गरीब और प्रवासी मतदाता प्रभावित होंगे, क्योंकि उनके पास आधार, वोटर आईडी, या राशन कार्ड जैसे दस्तावेज हमेशा उपलब्ध नहीं होते। विपक्ष का कहना है कि सीमांचल जैसे मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में विशेष रूप से नाम हटाए जा रहे हैं। पूर्णिया में 400 मुस्लिम मतदाताओं के नाम गायब होने की शिकायत सामने आई है। विपक्ष ने आरोप लगाया कि चुनाव आयोग केंद्र सरकार के दबाव में काम कर रहा है और यह प्रक्रिया NRC को लागू करने का छिपा प्रयास है। विपक्ष का कहना है कि कई मतदाताओं के नाम बिना सूचना के हटाए गए हैं, और BLO के जवाब विरोधाभासी हैं।

सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई

10 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस सुधांशु धूलिया और जॉय माल्या बागची की पीठ ने SIR को लेकर सुनवाई की। कोर्ट ने प्रक्रिया पर रोक लगाने से इनकार कर दिया, लेकिन कई सवाल उठाए:कोर्ट ने कहा कि आधार कार्ड, वोटर आईडी, और राशन कार्ड को पहचान के लिए स्वीकार करना चाहिए। चुनाव आयोग ने दलील दी कि आधार कार्ड नागरिकता का प्रमाण नहीं है, जिस पर कोर्ट ने टिप्पणी की कि नागरिकता तय करना गृह मंत्रालय का काम है, न कि चुनाव आयोग का। कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं से कहा कि वे साबित करें कि प्रक्रिया में क्या गलत है। अगली सुनवाई 28 जुलाई को निर्धारित की गई है।

सत्तापक्ष और चुनाव आयोग का पक्ष

आयोग ने कहा कि “SIR एक नियमित प्रक्रिया है, जो जनप्रतिनिधित्व कानून, 1950 के तहत है। इसका मकसद फर्जी और अवैध मतदाताओं, जैसे मृत, स्थानांतरित, या विदेशी नागरिकों, को हटाना है। आयोग ने यह भी स्पष्ट किया कि 2003 की वोटर लिस्ट में शामिल लोगों को कोई अतिरिक्त दस्तावेज देने की जरूरत नहीं है।

सत्तापक्ष ने विपक्ष के आरोपों को “राजनीतिक स्टंट” करार दिया। बीजेपी सांसद संजय जायसवाल ने कहा कि विपक्ष को हार का डर है, इसलिए वे इस मुद्दे को तूल दे रहे हैं। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने हंगामे के बीच ताली बजाकर अपनी प्रतिक्रिया दी, जिसे सियासी कटाक्ष के रूप में देखा गया। हालांकि, बीजेपी को भी डर है कि इस प्रक्रिया से उनके समर्थक वोटरों के नाम न कट जाएं। पार्टी ने 52,000 से अधिक बूथ लेवल कार्यकर्ताओं को सक्रिय किया है और हेल्पलाइन व वेबसाइट शुरू की है।

SIR का प्रगति और प्रभाव वोटर सत्यापन

अब तक 80% से अधिक मतदाताओं ने अपने दस्तावेज जमा कर दिए हैं, और प्रक्रिया 25 जुलाई तक पूरी होने की उम्मीद है। चुनाव आयोग ने 43.92 लाख मतदाताओं को “लापता” या संदिग्ध माना है, जिन्हें चार श्रेणियों में बांटा गया है: मृत, स्थानांतरित, डुप्लिकेट, और अज्ञात। इनके नाम ड्राफ्ट लिस्ट में शामिल नहीं होंगे, लेकिन नोटिस और जांच के बाद ही अंतिम फैसला होगा। सीमांचल क्षेत्र, जो बांग्लादेश और नेपाल की सीमा से सटा है, में SIR को लेकर सबसे ज्यादा विवाद है। विपक्ष का दावा है कि यहां मुस्लिम और बंगाली मूल के मतदाताओं को निशाना बनाया जा रहा है।

राष्ट्रीय स्तर पर क्या पड़ेगा प्रभाव!

चुनाव आयोग ने अब सभी राज्यों में SIR जैसी प्रक्रिया शुरू करने का निर्देश दिया है, जिसका फोकस 2026 के विधानसभा चुनाव वाले राज्यों पर होगा। यह कदम देशभर में मतदाता सूची को शुद्ध करने की दिशा में है, लेकिन बिहार का विवाद इसे राष्ट्रीय चर्चा का विषय बना रहा है।

बिहार में SIR को लेकर सियासी तूफान थमने का नाम नहीं ले रहा। विपक्ष इसे लोकतंत्र के खिलाफ साजिश बता रहा है, जबकि सत्तापक्ष और चुनाव आयोग इसे नियमित और पारदर्शी प्रक्रिया करार दे रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट की अगली सुनवाई और 30 सितंबर 2025 को अंतिम वोटर लिस्ट के प्रकाशन से इस विवाद का भविष्य तय होगा। तब तक बिहार की सियासत में यह मुद्दा गर्म बना रहेगा, और विधानसभा चुनाव में इसका असर साफ दिख सकता है।

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