स्पेशल डेस्क/ नई दिल्ली : डोनाल्ड ट्रंप की टैरिफ नीतियों ने वैश्विक व्यापार और भू-राजनीतिक समीकरणों को हिलाकर रख दिया है, जिसके परिणामस्वरूप भारत और चीन के बीच संभावित निकटता की चर्चा हो रही है। ट्रंप ने भारत पर 25% से लेकर कुल 50% तक टैरिफ लगाए हैं, जिसका मुख्य कारण भारत द्वारा रूस से तेल खरीद को बताया गया है। उनका दावा है कि यह खरीद यूक्रेन युद्ध को बढ़ावा दे रही है। दूसरी ओर, भारत ने इस कदम को “अकारण और तर्कहीन” करार दिया है, यह इंगित करते हुए कि अमेरिका और यूरोपीय देश भी रूस से व्यापार कर रहे हैं।
टैरिफ का प्रभाव और भारत की स्थिति
ट्रंप द्वारा भारत पर लगाए गए 26% टैरिफ से भारतीय निर्यात, विशेष रूप से फार्मास्यूटिकल्स और ऑटोमोबाइल जैसे क्षेत्रों पर असर पड़ सकता है। 2023-24 में भारत का अमेरिका के साथ व्यापार अधिशेष (ट्रेड सरप्लस) 35.32 अरब डॉलर था, जो टैरिफ के कारण कम हो सकता है।
भारतीय उत्पादों की कीमतें अमेरिकी बाजार में बढ़ेंगी, जिससे उनकी प्रतिस्पर्धात्मकता प्रभावित हो सकती है। भारत ने जवाब में कुछ अमेरिकी उत्पादों, जैसे व्हिस्की, लक्ज़री कारों और सोलर सेल्स पर टैरिफ कम किए हैं, ताकि व्यापारिक तनाव को कम किया जा सके।
क्या हैं रणनीतिक चुनौतियां ?
ट्रंप की नीतियां भारत-अमेरिका संबंधों को तनावपूर्ण बना रही हैं। पहले भारत को अमेरिका का करीबी साझेदार माना जाता था, लेकिन अब टैरिफ और रूस के साथ भारत के व्यापारिक संबंधों पर ट्रंप की आलोचना ने संबंधों में खटास ला दी है।
ट्रंप के टैरिफ से प्रभावित भारत और चीन दोनों ही वैकल्पिक व्यापारिक रणनीतियों की तलाश कर रहे हैं। बीजिंग ने हाल ही में भारत से अधिक आयात और व्यापारिक सहयोग बढ़ाने की इच्छा जताई है। टेक्नोलॉजी, टेलीकॉम और फार्मास्यूटिकल्स जैसे क्षेत्रों में भारत और चीन पहले से ही प्रतिस्पर्धी हैं, लेकिन टैरिफ दबाव के कारण सहयोग की संभावना बढ़ सकती है। हालांकि, इसके लिए सावधानीपूर्वक संतुलन की आवश्यकता होगी।
बीजिंग स्थित प्रोफेसर हुआंग हुआ का कहना है कि ट्रंप की नीतियां भारत को चीन के करीब ला सकती हैं, क्योंकि अमेरिका की नीतियां दोनों देशों के लिए नुकसानदेह साबित हो रही हैं।
विदेश नीति पर पुनर्विचार
ट्रंप का पाकिस्तान के साथ दोस्ताना रवैया और भारत पर सख्ती ने भारत को अपनी विदेश नीति पर पुनर्विचार करने के लिए मजबूर किया है। विदेश नीति विशेषज्ञ ज़ाकिर हुसैन के अनुसार, अमेरिकी नीतियां भारत को चीन की ओर धकेल रही हैं। आनंद महिंद्रा जैसे उद्योगपतियों ने भी संकेत दिया है कि अमेरिकी टैरिफ एक बहु-ध्रुवीय दुनिया को तेजी से बढ़ावा दे रहे हैं, जहां भारत और चीन जैसे देश क्षेत्रीय सहयोग को मजबूत कर सकते हैं।
भारत और चीन के बीच ऐतिहासिक तनाव और सीमा विवाद सहयोग की राह में बाधा बन सकते हैं। इसके अलावा, दोनों देशों के बीच व्यापार असंतुलन (चीन के पक्ष में) एक चुनौती है। भारत को वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला में अपनी स्थिति मजबूत करने के लिए व्यापार नीतियों में सुधार, लॉजिस्टिक्स में निवेश और नीतिगत स्थिरता की आवश्यकता होगी।
भारत के लिए अवसर वैश्विक आपूर्ति
ट्रंप के टैरिफ से चीन (54%), वियतनाम (46%), और अन्य देशों पर भारत की तुलना में अधिक शुल्क लगाया गया है, जिससे भारत को वैश्विक बाजार में प्रतिस्पर्धी लाभ मिल सकता है। पूर्व आरबीआई गवर्नर रघुराम राजन ने सुझाव दिया है कि भारत को संरक्षणवाद के खिलाफ खुली व्यापार नीतियों को अपनाना चाहिए, जिससे दीर्घकालिक लाभ हो सकता है।
व्यापारिक और भू-राजनीतिक निकटता
ट्रंप की टैरिफ नीतियां भारत के लिए अल्पकालिक आर्थिक चुनौतियां पेश कर रही हैं, लेकिन ये भारत और चीन के बीच सहयोग की नई संभावनाएं भी खोल रही हैं। भारत को इस स्थिति में रणनीतिक रूप से कदम उठाने होंगे, जिसमें अमेरिका के साथ व्यापार वार्ता को तेज करना और चीन के साथ सतर्क सहयोग शामिल है। साथ ही, भारत को अपनी आंतरिक व्यापार नीतियों को मजबूत करना होगा ताकि वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला में अपनी स्थिति को और सुदृढ़ किया जा सके। यदि ट्रंप इसी राह पर चलते रहे, तो भारत और चीन के बीच व्यापारिक और भू-राजनीतिक निकटता बढ़ सकती है, लेकिन यह प्रक्रिया जटिल और सावधानीपूर्वक होगी।