प्रकाश मेहरा
एग्जीक्यूटिव एडिटर
नई दिल्ली: नागपुर में हाल ही में आयोजित एक कार्यक्रम में केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी ने राजनीति की सच्चाई पर एक बेबाक टिप्पणी की, जो सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो गई। उन्होंने कहा कि “जो लोगों को सबसे अच्छा मूर्ख बना सकता है, वही सबसे अच्छा नेता हो सकता है।” यह बयान उनके लंबे समय से चली आ रही स्पष्टवादिता की एक और मिसाल है, लेकिन इसने राजनीतिक हलकों में बहस छेड़ दी है।
बयान कब और कहां दिया ?
यह बयान 31 अगस्त को नागपुर (महाराष्ट्र) में आयोजित अखिल भारतीय महानुभाव परिषद के एक कार्यक्रम में दिया गया। यह परिषद चक्रधर स्वामी के महानुभाव संप्रदाय से जुड़ी है, जो सत्य, अहिंसा, शांति, मानवता और समानता जैसे मूल्यों पर जोर देती है। गडकरी इस कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में बोल रहे थे।
गडकरी ने अपने भाषण में राजनीति की वास्तविकताओं पर चर्चा करते हुए कहा, “बातें करना आसान है। मैं कोई अधिकारी नहीं हूं। लेकिन मुझे इसका एहसास है। क्योंकि जिस क्षेत्र में मैं काम करता हूं, वहां पूरे मन से सच बोलना मना है। जो लोगों को सबसे अच्छा मूर्ख बना सकता है, वो ही सबसे अच्छा नेता हो सकता है।” उन्होंने मराठी कहावत “हौसे, नावसे, गावसे” (शौक से, नए उत्साह से और आनंदपूर्वक काम करने वाले लोग) का जिक्र करते हुए कहा कि राजनीति में अक्सर जनता को गुमराह करने वाली छवि ही सफलता की कुंजी बन जाती है।
गडकरी ने यह टिप्पणी राजनीति में सच्चाई बोलने की कठिनाई पर की। उन्होंने स्वीकार किया कि “नेता अक्सर वोट हासिल करने के लिए झूठे वादे करते हैं और जनता को भ्रमित करते हैं। लेकिन उन्होंने इसे व्यंग्य के रूप में पेश किया, न कि अपनी व्यक्तिगत राय के रूप में। कार्यक्रम के दौरान वे ईमानदारी और मूल्यों पर भी जोर देते नजर आए।
📍𝐍𝐚𝐠𝐩𝐮𝐫 | Addressing Bhavya Mahanubhav Panthiy Sammelan organised by Akhil Bhartiya Mahanubhav Parishad https://t.co/iYUtReRPZ4
— Nitin Gadkari (@nitin_gadkari) August 31, 2025
गडकरी का स्पष्टीकरण और आगे की बातें
गडकरी ने अपने बयान को राजनीति की “सच्चाई” के रूप में रखा, लेकिन तुरंत ही नैतिक मूल्यों पर जोर दिया। उन्होंने कहा:”सफलता पाने का शॉर्टकट होता है, लेकिन नियम तोड़ने से अंततः नुकसान हो सकता है। इसलिए ईमानदारी, विश्वसनीयता, समर्पण और सच्चाई जैसे मूल्य जरूरी हैं।”
भगवद्गीता का हवाला देते हुए बोले, “अंत में सत्य की ही जीत होती है।” उन्होंने चक्रधर स्वामी की शिक्षाओं का उल्लेख किया और कहा कि जीवन में शॉर्टकट से बचना चाहिए, क्योंकि “शॉर्टकट कट यू शॉर्ट” (शॉर्टकट आपको छोटा कर देता है)। एक अन्य हिस्से में उन्होंने धर्म और राजनीति को अलग रखने की अपील की: “धर्म के काम से मंत्रियों-नेताओं को दूर रखें। धर्म की आड़ में राजनीति समाज के लिए नुकसानदायक है। सत्ता के हाथ में धर्म देने से हानि ही होगी।”
यह बयान गडकरी की पुरानी शैली से मेल खाता है। वे अक्सर राजनीति की कमियों पर खुलकर बोलते हैं, जैसे पहले उन्होंने कहा था कि “सरकार विषकन्या होती है, जिसके साथ जाती है उसे डुबोती है” या “सत्ता में आकर लोग अहंकारी हो जाते हैं।” लेकिन हर बार वे नैतिकता और सत्य पर लौट आते हैं।
विपक्ष और समर्थकों में चर्चा का विषय
यह बयान विपक्ष और समर्थकों दोनों के बीच चर्चा का विषय बन गया। कुछ ने इसे BJP के आंतरिक असंतोष का संकेत माना, जबकि गडकरी के समर्थक इसे उनकी ईमानदारी की तारीफ कर रहे हैं। कांग्रेस नेता नितिन राऊत जैसे विपक्षी नेताओं ने इसे BJP की आलोचना के रूप में देखा, लेकिन गडकरी ने स्पष्ट किया कि यह राजनीति की सामान्य प्रवृत्ति है, न कि किसी विशेष पार्टी पर हमला।
क्या मतलब है इस बयान का ?
गडकरी का यह बयान राजनीति में लोकप्रियता बनाम ईमानदारी के द्वंद्व को उजागर करता है। वे खुद को “सच्चाई बोलने वाले” के रूप में पेश करते हैं, जो उनके कार्यकाल में सड़क परियोजनाओं (जैसे दिल्ली-मुंबई एक्सप्रेसवे) की सफलता से मेल खाता है। लेकिन यह बहस छेड़ता है कि क्या भारतीय राजनीति में सत्य बोलना वाकई “मना” है? गडकरी की स्पष्टवादिता उन्हें BJP के लोकप्रिय नेताओं में रखती है, लेकिन ऐसे बयान कभी-कभी पार्टी के लिए असहज साबित होते हैं। कुल मिलाकर, यह बयान राजनीति की गहराई को दर्शाता है, जहां व्यंग्य और सलाह एक साथ आते हैं।