नई दिल्ली। अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और तुर्की के राष्ट्रपति रेसेप तैयप एर्दोगन के बीच 25 सितंबर को वाइट हाउस में मुलाकात हुई। इस बैठक में दोनों नेताओं के बीच एफ-35 फाइटर जेट को लेकर बातचीत हुई। तुर्की के रूस से एस-400 सिस्टम खरीदने के बाद अमेरिका ने CAATSA प्रतिबंध लगा दिया था जिससे वह एफ-35 प्रोग्राम से बाहर हो गया था। अब एक बार फिर से तुर्की ने ट्रंप से एफ-35 फाइटर जेट को लेकर बातचीत बढ़ा दी है।
एर्दोगन ने ऐसी चाल चली है कि उन्हें रूसी एस-400 सिस्टम को भी नहीं लौटाना होगा। असल में ताजा योजना के तहत तुर्की के एस-400 सिस्टम के प्रमुख कंपोनेंट को निकाल दिया जाएगा। इससे एस-400 ‘काम नहीं करेगा’ और तुर्की को इसे रूस या किसी और देश को नहीं देना होगा। इससे उसे फायदा यह होगा कि वह CAATSA प्रतिबंधों से बच जाएगा और उसके एफ-35 फाइटर जेट खरीदने का रास्ता साफ हो जाएगा।
अमेरिका के नैशनल सिक्यॉरिटी जर्नल ने अपनी ताजा रिपोर्ट में खुलासा किया है कि एर्दोगन किसी भी तरह से एफ-35 फाइटर जेट हासिल करना चाहते हैं। इसके पीछे तुर्की की दो वजह है। तुर्की अपना कान स्टील्थ फाइटर जेट बना रहा है जो एफ-35 की काफी तकनीक से लैस है। असल में CAATSA प्रतिबंध लगने से पहले नाटो सदस्य देश तुर्की ने एफ-35 फाइटर जेट के काफी उपकरण बनाए थे। रिपोर्ट में कहा गया है कि तुर्की चाहता है कि एफ-35 फाइटर जेट उसे मिल जाए ताकि उसकी तकनीक को कॉपी करके अपने कान फाइटर जेट को पूरा कर लिया जाए। कान फाइटर जेट अभी भी प्रोटोटाइप के लेवल पर है। इसमें इंजन भी अमेरिकी लगा है जिसको लेकर भी अमेरिका रोड़े डाल रहा है।
अमेरिका और तुर्की के बीच रोड़ा बना S-400
नैशनल सिक्यॉरिटी जर्नल ने कहा कि तुर्की के एफ-35 हासिल करने की तड़प के पीछे दूसरी वजह यह है कि उसके ज्यादातर पड़ोसी दुश्मन देशों के पास अब यह अमेरिकी स्टील्थ जेट है। इजरायल काफी पहले से ही एफ-35 जेट का इस्तेमाल कर रहा है। इसके अलावा तुर्की का एक और विरोधी ग्रीस भी एफ-35 जेट ले चुका है। ऐसे में तुर्की को यह डर सता रहा है कि वह इस रेस से पिछड़ सकता है। इससे पहले अमेरिकी संसद ने CAATSA को पारित किया था ताकि उसके जरिए रूस, उत्तर कोरिया और ईरान को निशाना बनाया जा सके। तुर्की के रूस से एस-400 खरीदने के बाद वह CAATSA के दायरे में आ गया था जिससे उसके एफ-35 हासिल करने का रास्ता बंद हो गया था।
अब अमेरिका छठवीं पीढ़ी के एफ-47 फाइटर जेट पर पूरा फोकस कर रहा है। वहीं एफ-35 बनाने वाली कंपनी चाहती है कि उसे ऑर्डर मिलते रहे। ऐसे में ट्रंप पर दबाव है कि वह तुर्की को एफ-35 फाइटर जेट की मंजूरी दें। हालांकि ट्रंप के साथ समस्या यह है कि तुर्की के खिलाफ लगे प्रतिबंध को वह अकेले नहीं हटा सकते हैं।
ट्रंप को इसके लिए पहले अमेरिकी कांग्रेस से मंजूरी लेनी होगी। एस-400 को आसानी से छूट नहीं दी जा सकती है, चाहे रूस इसे दोबारा ही क्यों न खरीद ले। रिपोर्ट में 4 इस पूरे मामले से जुड़े सूत्रों के हवाले से कहा गया है कि इसको देखते हुए ट्रंप की तकनीकी टीम ने एक लूपहोल खोज निकाला है। तुर्की एस-400 सिस्टम का एक प्रमुख कंपोनेंट निकाल लेगा और इसे ‘निष्क्रिय’ कर देगा।
F-35 जेट के लिए अमेरिका को झांसा दे रहा तुर्की
रिपोर्ट के मुताबिक यह कुछ वैसे ही होगा जैसे राइफल से उसका नट बोल्ट निकाल दिया जाए। हालांकि इसमें यह खतरा होता है कि फायरिंग पिन को निकाल देने से उस हथियार का खतरा हमेशा के लिए खत्म नहीं हो जाता है। इसे फिर से नट बोल्ट जोड़कर सही किया जा सकता है। रिपोर्ट में कहा गया है कि तुर्की एफ-35 जेट हासिल करने के लिए एस-400 को कुछ समय के लिए निष्क्रिय कर सकता है लेकिन बाद में लंबे समय के लिए यह वॉशिंगटन के लिए बड़ा संकट बन सकता है।
यही नहीं आगे चलकर ईरान और उत्तर कोरिया भी इसी तरह का दिखावा करके प्रतिबंधों में छूट मांग सकते हैं। विश्लेषक यह भी कह रहे हैं कि अमेरिका को तुर्की को एफ-35 नहीं देना चाहिए बल्कि नाटो देशों का एफ-35 वहां तैनात कर देना चाहिए। इससे तुर्की को यह नहीं देना पड़ेगा।