नई दिल्ली। दक्षिण एशिया की भू-राजनीति एक बार फिर उथल-पुथल में है. पाकिस्तान अपनी पश्चिमी सीमा पर तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (TTP) के हमलों से पहले ही परेशान है. दोनों देशों के बीच झड़प तेज हो गई है कई लोगों की जान भी जा चुकी है. इस बीच पाकिस्तान को यह डर सता रहा है कि कहीं भारत अफगानिस्तान को मदद ना करे. क्योंकि तालिबान के शासन में आने के बाद एक बार फिर भारत और अफगानिस्तान के बीच नजदीकियां बढ़ रही हैं.
सवाल यह है उठ रहा है कि अगर भारत अफगानिस्तान को अपना भारत की सुपरसोनिक क्रूज मिलाइल ब्रह्मोस दे दे तो पाकिस्तान का क्या हाल होगा. अगर अफगानिस्तान भारत से यह मिसाइल खरीदना चाहे तो उसे कितने पैसे खर्च करने पड़ेंगे.
सवाल यह भी है कि क्या तालिबान प्रशासन जिसे अभी तक अंतरराष्ट्रीय मान्यता भी सीमित रूप से ही मिली है, वाकई भारत से इतनी महंगी और उन्नत मिसाइल प्रणाली खरीद सकता है? और अगर हां, तो क्या भारत ऐसा संवेदनशील निर्यात करने को तैयार होगा खासकर तब, जब अफगानिस्तान पर अब भी कई अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंध लागू हैं?
ब्रह्मोस की संभावित कीमत और तकनीकी चुनौतियां
ब्रह्मोस मिसाइल की कीमत उसके कॉन्फिगरेशन और पैकेज पर निर्भर करती है. एक यूनिट की अनुमानित लागत लगभग 2 से 3.5 मिलियन अमेरिकी डॉलर (करीब 16 से 29 करोड़ रुपये) के बीच मानी जाती है. यदि अफगानिस्तान इसे एक पूर्ण रेजिमेंटल सेट के रूप में खरीदना चाहे, तो कुल लागत 200 से 300 मिलियन डॉलर तक पहुंच सकती है. लेकिन तालिबान-शासित अफगानिस्तान की अर्थव्यवस्था वर्तमान में गंभीर संकट में है. विदेशी मुद्रा भंडार फ्रीज हैं और देश को मानवीय सहायता पर निर्भर रहना पड़ता है. ऐसे में इतना बड़ा सौदा आर्थिक रूप से असंभव-सा लगता है. इसके अलावा भारत को रूस से निर्यात की मंजूरी लेनी होगी जो एक लंबी और संवेदनशील प्रक्रिया है.
भारत-अफगान रिश्तों का नया आयाम
भारत ने पिछले दो दशकों में अफगानिस्तान में स्वास्थ्य, शिक्षा और बुनियादी ढांचे के क्षेत्र में भारी निवेश किया है. लेकिन 2021 में तालिबान के सत्ता में आने के बाद, नई दिल्ली ने सैन्य सहयोग के बजाय मानवीय सहायता पर ध्यान केंद्रित किया है. यदि कभी ऐसा सौदा संभव हुआ, तो यह भारत-अफगानिस्तान संबंधों में नया अध्याय खोलेगा. विशेषज्ञों का मानना है कि भारत सैन्य रूप से तालिबान सरकार को मजबूत करने से बचना चाहेगा. क्योंकि इससे पाकिस्तान और पश्चिमी देशों की नाराजगी मोल लेनी पड़ सकती है. फिलहाल, भारत की नीति है कि वह अफगानिस्तान की जनता की मदद करे. लेकिन तालिबान शासन को औपचारिक समर्थन न दे.
पाकिस्तान की चिंताएं और ‘ऑपरेशन सिंदूर’ की गूंज
अगर अफगानिस्तान के साथ इस तरह का सौदा होता है तो पाकिस्तान के रणनीतिक विश्लेषक इस सौदे को अपने खिलाफ “दो-मोर्चे की रणनीति” के रूप में देख सकते हैं. उनके अनुसार भारत अगर अफगानिस्तान को हथियार सप्लाई करता है, तो इससे पाकिस्तान की पश्चिमी सीमा पर दबाव और बढ़ जाएगा. किस्तान इस तरह की चर्चाओं को अपने खिलाफ एक मनोवैज्ञानिक दबाव के रूप में देखता है. ब्रह्मोस मिसाइल की 450–500 किलोमीटर रेंज इस्लामाबाद तक पहुंचने के लिए पर्याप्त है, और यही उसकी सबसे बड़ी चिंता है.
हालांकि ब्रह्मोस मिसाइल की अफगानिस्तान को बिक्री का कोई ठोस प्रमाण नहीं है. यह चर्चा केवल कयासों और कुछ अनौपचारिक रिपोर्टों तक सीमित है. भारत का रक्षा निर्यात अब भी सख्त नीति के अधीन है, जिसमें किसी अस्थिर या आतंक-संबंधित शासन को अत्याधुनिक हथियार देने की अनुमति नहीं है. इसलिए, यह कहना सुरक्षित है कि यह सौदा अभी कल्पना भर है, वास्तविकता नहीं. लेकिन इसने दक्षिण एशिया की सुरक्षा बहस को एक नया आयाम जरूर दे दिया है और यह बताता है कि क्षेत्र में सैन्य शक्ति का समीकरण कितना नाज़ुक और परिवर्तनशील हो चुका है.