नई दिल्ली। ट्रंप की टैरिफ नीतियों के बीच जियो पॉलिटक्स बड़े बदलावों से गुजर रही है. इसी कड़ी में अब भारत की एक सीक्रेट रणनीति सामने आई है, जिसके बाद ट्रंप की नींद उड़नी तय है. दिलचस्प बात ये है कि भारत ने ये रणनीति अपने एक ‘दुश्मन’ के साथ मिलकर बनाई है. दरअसल, बडबोले ट्रंप ने हाल ही में ऐलान कर दिया है कि भारत जल्द ही रुस से तेल खरीद बंद कर देगा. इसके बाद ट्रंप की इस बेतुकी टिप्पणी का रूस ने जो जवाब दिया, उससे 3 सुपरपावर्स का महाअभियान दुनिया के सामने आ गया है.
रूस के प्रधानमंत्री अलेक्जेंडर नोवाक ने रूस की सरकारी समाचार एजेंसी TASS के सामने इसी हफ्ते ये पुष्टि की है कि भारत अब रूसी तेल खरीदी के एक छोटे से हिस्से का भुगतान चीन की करेंसी युआन में कर रहा है. आगे जानें कैसे कागज पर उकेरा ये एक छोटा सा लेखा-जोखा, जियो पॉलिटिक्स में भूचाल लाने की शुरुआत है.
ट्रंप के लिए क्यों है बुरी खबर
युआन में भुगतान, सीधे तौर पर उस वैश्विक प्रणाली का विकल्प निकालना है, जहां पर अभी तक डॉलर की धाक है. RIC (Russia, India, China) सुपरपावर मिलकर डी-डॉलराइजेशन ड्राइव चला रहे हैं और ये महाअभियान इस बात का संकेत है कि वैश्विक तेल व्यापार से धीरे-धीरे डॉलर का दूर होना तय है. दुनिया के फाइनेंशियल मैप पर 8 दशकों से राज कर रहे डॉलर की जगह लेना फिलहाल दूर की बात है लेकिन स्थानीय मुद्राओं, रुपया, रूबल और अब युआन के साथ ऐसा प्रयोग करके BRICS देश धीरे-धीरे व्यापार भुगतान के लिए एक समकक्ष सर्किट तैयार कर रहे हैं.
रुपया क्यों पीछे?
अब सवाल उठता है कि रुपया क्यों नहीं? तो बता दें कि रूसी निर्यातक लंबे समय से रुपये में ट्रेड के खिलाफ रहे हैं. ये लोग रुपये को ‘ट्रैप्ड मनी’ मानते हैं और दावा कर चुके हैं कि अरबों डॉलर भारतीय बैंकों में फंसे हुए हैं, जिन्हें वापस लाना या बदलना मुश्किल है. इन हालातों में युआन की एंट्री हुई है.
एक तरफ चीन और भारत के बीच कडवाहट से दुनिया वाकिफ है, ऐसे में युआन भारत के लिए आदर्श विकल्प नहीं था लेकिन दूसरी तरफ युआन ये कनवर्टेबल है, लिक्विड है और एशिया के ट्रेड नेटवर्क में व्यापक रूप से स्वीकार किया जाता है.
न्यूज एजेंसी रयूटर्स के मुताबिक भारतीय सरकारी रिफाइनरियां पहले ही दो से तीन रूसी कार्गो का भुगतान युआन में कर चुकी हैं. फिलहाल भारत का युआन भुगतान एक पायलट प्रोजेक्ट है लेकिन ग्लोबल फाइनेंस को बहुध्रुवीय बनाने के लिए BRICS का एक तगड़ा एक्सपेरिमेंट है.
कितना तगड़ा है भारत-रूस का तेल व्यापार?
रॉयटर्स के अनुसार, यूक्रेन से युद्ध के बाद रुस के साथ भारत का तेल व्यापार भयंकर तरीके से बढ़ा है. जिस रूसी कच्चे तेल का आयात पहले 1 प्रतिशत से भी कम था, वो अब प्रतिदिन 17 लाख बैरल से ज़्यादा है और कुल आयात का लगभग 35-40 प्रतिशत पहुंच गया है.
सितंबर 2025 में, भारत ने 2.5 अरब यूरो का रूसी तेल खरीदा, जिससे वह चीन के बाद मास्को का दूसरा सबसे बड़ा खरीदार बन गया.
भारत ने कैसे मारे 2 सांप?
इन आंकड़ों से जाहिर है कि भारत-रूस के बीच सुविधाजनक भुगतान की अहमियत क्या है. ट्रंप की ‘अमेरिका फर्स्ट’ पॉलिसीज और प्रतिबंधों के कारण डॉलर का रास्ता ब्लॉक हो जाता है तो युआन एक सुविधाजनक मध्यमार्ग बन सकता है. फिर भले ही चीन से कड़वे संबंधों की वजह से ये कदम राजनीतिक रूप से असुविधानक क्यों ना हो.
डी-डॉलराइजेशन ड्राइव के अलावा भारत के लिए ये कदम बिना किसी रुकावट के देश की तेल जरूरतों को पूरा करने में भी मददगार है.
बता दें कि MEA ने रूस से तेल खरीदी बंद करने के दावों पर जवाब देते हुए साफ कर दिया है कि भारत की आयात नीतियां पूरी तरह से उपभोक्ता हितों और देश की ऊर्जा सुरक्षा को ध्यान में रखकर बनाई जाएंगी न कि विदेशी दबाव से. रूस को भी भरोसा है कि भारत के साथ उनकी ऊर्जा साझेदारी जारी रहेगी क्योंकि ये ‘आर्थिक रूप से लाभकारी और व्यावहारिक’ है.