पहले कहीं इक्का-दुक्का सुनने को मिलता था कि किसी नेता को वाई श्रेणी की सुरक्षा मिली है। आमतौर पर बड़े और चर्चित नेताओं को यह सुरक्षा मिलती थी। इससे नेता के कद का अंदाजा होता था। लेकिन अब ऐसा लग रहा है कि हर उस नेता को वाई श्रेणी की सुरक्षा मिल रही है, जो किसी विरोधी पार्टी में हो और दलबदल करके भाजपा के साथ आया हो या आने वाला हो। ताजा मिसाल ओमप्रकाश राजभर की है, जो अभी भाजपा में शामिल भी नहीं हुए हैं। उन्होंने सिर्फ समाजवादी पार्टी का विरोध किया है और राष्ट्रपति चुनाव में भाजपा की उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू को वोट दिया। जैसे ही उन्होंने मुर्मू का समर्थन किया उनको वाई श्रेणी की सुरक्षा मिल गई। ऐसा भी नहीं है कि वे किसी विरोधी पार्टी की सरकार वाले राज्य के नेता हैं। वे उत्तर प्रदेश के नेता हैं, जहां भाजपा की ही सरकार है। लेकिन ऐसा लग रहा है कि उनकी हैसियत बढ़ाने और खुश करने के लिए वाई श्रेणी की सुरक्षा दे दी गई।
इसी तरह महाराष्ट्र में भाजपा ने सिर्फ शिव सेना के बागी नेतता एकनाथ शिंदे को मुख्यमंत्री ही नहीं बनाया है, बल्कि उनके साथ शिव सेना से बगावत करने वाले विधायकों को भी वाई श्रेणी की सुरक्षा दे दी है। उधर पश्चिम बंगाल में तो केंद्र ने कमाल ही किया है। वहां भाजपा के सभी 70 विधायकों को वाई श्रेणी की सुरक्षा मिली हुई है। सोचें, एक तरफ वीआईपी कल्चर खत्म करने का दावा किया जा रहा है और दूसरी ओर वाई श्रेणी की सुरक्षा बांटी जा रही है। केंद्रीय सुरक्षा बलों की कमी के बावजूद नेताओं को उनकी सुरक्षा दी जा रही है और दूसरे इससे राज्य पुलिस और केंद्रीय बलों के बीच टकराव की आशंका भी पैदा हो रही है। दोनों के बीच अविश्वास तो बढ़ ही रहा है।