Upgrade
पहल टाइम्स
  • होम
  • दिल्ली
  • राज्य
  • राष्ट्रीय
  • विश्व
  • धर्म
  • व्यापार
  • खेल
  • मनोरंजन
  • गैजेट्स
  • जुर्म
  • लाइफस्टाइल
    • स्वास्थ्य
    • फैशन
    • यात्रा
  • विशेष
    • साक्षात्कार
  • ईमैगजीन
  • होम
  • दिल्ली
  • राज्य
  • राष्ट्रीय
  • विश्व
  • धर्म
  • व्यापार
  • खेल
  • मनोरंजन
  • गैजेट्स
  • जुर्म
  • लाइफस्टाइल
    • स्वास्थ्य
    • फैशन
    • यात्रा
  • विशेष
    • साक्षात्कार
  • ईमैगजीन
No Result
View All Result
पहल टाइम्स
No Result
View All Result
  • होम
  • दिल्ली
  • राज्य
  • राष्ट्रीय
  • विश्व
  • धर्म
  • व्यापार
  • खेल
  • मनोरंजन
  • गैजेट्स
  • जुर्म
  • लाइफस्टाइल
  • विशेष
  • ईमैगजीन
Home राष्ट्रीय

बदलते पर्यावरण से संकट में खेती और खाद्य सुरक्षा

पहल टाइम्स डेस्क by पहल टाइम्स डेस्क
June 5, 2023
in राष्ट्रीय, विशेष
A A
पर्यावरण
24
SHARES
795
VIEWS
Share on FacebookShare on Whatsapp

नई दिल्ली : हर साल पांच जून को समूचा विश्व ‘पर्यावरण दिवस’ मनाता है, और बदलती जलवायु की समस्या से पार पाने के लिए सार्थक और सटीक उपाय करने के लिए नए सिरे से प्रतिबद्धता जाहिर करता है। पूरी दुनिया ग्लोबल वार्मिंग (बढ़ते वैश्विक ताप) का सामना कर रही है। तमाम कारण गिनाए गए हैं, जिन्हें ग्लोबल वार्मिंग के लिए जिम्मेदार माना जा रहा है। बेशक ये कारण मानव व्यवहार से ज्यादा संबंधित हैं, लेकिन हम ऐसा कोई कारगर उपाय नहीं खोज पाए हैं, जिससे इस संकट से उबर सकें।

विशेषज्ञ भी बता रहे हैं कि वैश्विक ताप में लगातार बढ़ोतरी हो रही है और बढ़ोतरी का यह रुझान बना हुआ है। बताया जा रहा है कि एक-दो सेंटीग्रेड भी तापमान बढ़ा तो गेहूं जैसे खाद्यान्न तो गायब ही हो जाएंगे। अन्य खाद्यान्न, वनस्पतियां, फल, सब्जियां अपने वे गुणसूत्र खो सकती हैं जिनसे स्वाद और पौष्टिकता तय होती है यानी जीवन के अस्तित्व पर संकट आसन्न है।

इन्हें भी पढ़े

nisar satellite launch

NISAR : अब भूकंप-सुनामी से पहले बजेगा खतरे का सायरन!

July 30, 2025
भारत का व्यापार

ट्रंप का 20-25% टैरिफ: भारत के कपड़ा, जूता, ज्वेलरी उद्योग पर असर, निर्यात घटने का खतरा!

July 30, 2025
parliament

ऑपरेशन सिंदूर: संसद में तीखी बहस, सरकार की जीत या विपक्ष के सवाल? 7 प्रमुख हाई पॉइंट्स

July 30, 2025
UNSC

पहलगाम हमला : UNSC ने खोली पाकिस्तान की पोल, लश्कर-ए-तैयबा की संलिप्तता उजागर, भारत की कूटनीतिक जीत !

July 30, 2025
Load More

भारत को ही देखें तो मौसम आंख मिचौली कर रहा है। इसे जलवायु परिवर्तन का ही असर कहा जा रहा है। असमय गर्मी और बारिश दोनों बढ़ रहे हैं। एक ओर जहां मई के महीने में देश के अधिकांश हिस्सों में असमय बारिश हुई वहीं बिहार, उड़ीसा, झारखंड का तापमान 45 से 48 डिग्री सेंटीग्रेड तक दर्ज किया गया। सवाल केवल गर्मी का ही नहीं है, देश की अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण दखल रखने वाले मानसून की चाल भी लगातार टेढ़ी हो रही है।

हाल के वर्षों में दक्षिण पश्चिम मानसून के रुझानों से पता चलता है कि अनिश्चित होती जा रही बारिश का अब सामान्यीकरण हो चुका है। पिछले साल जून में जब पश्चिमी हिमालय अत्यधिक बरसात से हलकान था, तब मध्य और दक्षिणी भारत के बड़े हिस्से में सूखे के हालात बन रहे थे। इस साल मई महीने की बरसात ने पिछले कई सालों का रिकॉर्ड तोड़ दिया, जबकि वर्ष 2021 का अगस्त महीना 1901 के बाद का सबसे अधिक सूखा अगस्त बनकर सामने आया था। पिछले 126 सालों में पहाड़ी राज्यों में बादल फटने की संख्या में भी तेजी से वृद्धि हुई है। ‘साउथ एशिया नेटवर्क आन डैम्स रिवर एंड पीपल’ का विश्लेषण बताता है कि पिछले साल ऐसे कई मौके आए जब उत्तराखंड में जून से सितंबर के दौरान बादल फटे।

इन बदलावों ने भारत को वैश्विक स्तर पर जलवायु परिवर्तन के लिए पांचवा सबसे संवेदनशील देश बना दिया है। आज 80% से ज्यादा भारतीय आबादी अत्यंत जलवायु संवेदनशील जिलों में रह रही है। 1901 से 2022 के दौरान भारत का औसत तापमान लगभग 0.7 डिग्री सेल्सियस बढ़ गया है। तापमान में वृद्धि से गंभीर नुकसान के बीच कार्य उत्पादकता में भी कमी आई है, जिसने जीवन और आजीविका दोनों को बुरी तरह से प्रभावित किया है।

संयुक्त राष्ट्र के खाद्य एवं कृषि संगठन (एफएओ) ने चेतावनी दी है कि उच्च तापमान सूखा, बाढ़ और मिट्टी की उर्वरता में कमी के कारण मध्य पूर्व के कई देशों में कृषि को बड़े पैमाने पर नुकसान हो सकता है। वहीं इंटरनेशनल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज (आईपीसीसी) ने जून 2021 में जारी चार हजार पन्नों की रिपोर्ट में क्लाइमेट चेंज के असर का व्यापक खाता पेश किया था। इसमें भविष्यवाणी की गई थी कि 2050 तक आज की तुलना में 8 करोड़ से अधिक लोगों पर भूख का खतरा होगा।

बदलते पर्यावरण के कारण खेती के समक्ष संकट है और खाद्य सुरक्षा अहम चुनौती बन रही है। एक अनुमान के अनुसार वर्ष 2040 तक तापमान 1.5 डिग्री तक बढ़ता है तो फसलों की पैदावार पर इसका गंभीर प्रभाव पड़ेगा। बढ़ते कार्बन उत्सर्जन से इस शताब्दी में विश्व में भुखमरी, बाढ़ और जनसंख्या के पलायन में भी बढ़ोतरी होने की बात कही जा रही है।अगर तापमान में बढ़ोतरी होती है तो एशियाई देशों में कृषि पैदावार 30% तक नीचे आ सकती है। मिसाल के तौर पर भारत में तापमान में डेढ़ डिग्री सेल्सियस की बढ़ोतरी हुई तो देश में बरसात एक मिलीमीटर कम होगी और धान की पैदावार में 3 से 15% तक की कमी आ जाएगी। इसी तरह तापमान में दो डिग्री वृद्धि होती है तो गेहूं की उत्पादकता बिल्कुल कम हो जाएगी। जिन क्षेत्रों में गेहूं की उत्पादकता अधिक है वहां पर यह प्रभाव कम परिलक्षित होगा किन्तु वहां जहां उत्पादकता कम है उन क्षेत्रों में उत्पादकता में अधिक कमी आएगी।

विकास की तीव्र आंधी में हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि विश्व की अधिकांश जनसंख्या की आजीविका का मुख्य आधार आज भी कृषि है। साफ है यदि प्रकृति के साथ ऐसे ही खिलवाड़ करते रहे तो कृषि पर दिन प्रतिदिन दबाव बढ़ता जाएगा, जिससे अधिकांश जनसंख्या के लिए रोजी-रोटी की व्यवस्था करना मुश्किल हो जाएगा। वर्ष 2030 तक भूख को खत्म करने का हमारा लक्ष्य भी अधूरा रह सकता है।

मालूम हो देश में पिछले 40 वर्षों में होने वाली वर्षा की मात्रा में निरंतर गिरावट आ रही है। बीसवीं सदी के आरंभ में औसत वर्षा 141 सेंटीमीटर थी जो 90 के दशक में घटकर 119 सेंटीमीटर रह गई है। गंगोत्री ग्लेशियर भी प्रतिवर्ष सिकुड़ रहा है। नदियों का जल कम हो रहा है। पानी की कमी के कारण खेती घाटे का सौदा बनती जा रही है।

भारत के लिए यह और अधिक चिंता की बात है क्योंकि हमारे यहां 70% जनसंख्या खेती से प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से जुड़ी है। कृषि ही उनके जीवनयापन का मुख्य स्रोत है। जलवायु परिवर्तन न सिर्फ आजीविका, पानी की आपूर्ति और मानव स्वास्थ्य के लिए खतरा पैदा कर रहा है बल्कि खाद्य सुरक्षा के लिए भी चुनौती खड़ा कर रहा है। वर्ष 2050 तक विश्व की आबादी बढ़कर साढ़े नौ अरब हो जाएगी। इसका अर्थ यह है कि हमें दो अरब अतिरिक्त लोगों के लिए 70% ज्यादा खाना पैदा करना होगा। इसलिए खाद्य और कृषि प्रणाली को जलवायु परिवर्तन के अनुकूल बनाना होगा और ज्यादा लचीला, उपजाऊ और टिकाऊ बनाने की जरूरत होगी। ऐसे में कृषि के विभिन्न तरीकों का पुनरावलोकन कर सर्वाधिक उत्पादक एवं पर्यावरण को कम से कम क्षति पहुंचाने वाली तकनीकों का प्रयोग वांछनीय है।

मालूम हो कि हमारे देश के अधिकांश किसानों के पास खेती का रकबा बहुत छोटा है इसलिए इस तरह की आपदाओं के कारण उनकी आमदनी लगातार कम हो रही है। जलवायु परिवर्तन न सिर्फ कृषि के लिए बल्कि संपूर्ण मानव सभ्यता के लिए भी खतरे के रूप में सामने आ रहा है कोई भी देश इसके असर से बच नहीं सकता। इसलिए हमें अविलंब जलवायु का ऐसा विखंडन रोकने के लिए आगे आना ही होगा ताकि समय रहते मानवता की रक्षा की जा सके।

इन्हें भी पढ़ें

  • All
  • विशेष
  • लाइफस्टाइल
  • खेल
Charitable Hospital

खसरा संख्या 19ग , वन खंड और चैरिटेबल अस्पताल

June 26, 2025

सवा सौ फीट का पेड़ बन चुका पूर्व पीएम राजीव गांधी के द्वारा भेंट किया पीपल का पौधा

June 30, 2022
AI

एआई के चक्कर में बर्बाद होगी नौकरी!

July 20, 2025
पहल टाइम्स

पहल टाइम्स का संचालन पहल मीडिया ग्रुप्स के द्वारा किया जा रहा है. पहल टाइम्स का प्रयास समाज के लिए उपयोगी खबरों के प्रसार का रहा है. पहल गुप्स के समूह संपादक शूरबीर सिंह नेगी है.

Learn more

पहल टाइम्स कार्यालय

प्रधान संपादकः- शूरवीर सिंह नेगी

9-सी, मोहम्मदपुर, आरके पुरम नई दिल्ली

फोन नं-  +91 11 46678331

मोबाइल- + 91 9910877052

ईमेल- pahaltimes@gmail.com

Categories

  • Uncategorized
  • खाना खजाना
  • खेल
  • गैजेट्स
  • जुर्म
  • दिल्ली
  • धर्म
  • फैशन
  • मनोरंजन
  • यात्रा
  • राजनीति
  • राज्य
  • राष्ट्रीय
  • लाइफस्टाइल
  • विशेष
  • विश्व
  • व्यापार
  • साक्षात्कार
  • सामाजिक कार्य
  • स्वास्थ्य

Recent Posts

  • कलियुग में कब और कहां जन्म लेंगे भगवान कल्कि? जानिए पूरा रहस्य
  • NISAR : अब भूकंप-सुनामी से पहले बजेगा खतरे का सायरन!
  • देश पहले खेल बाद में, EaseMyTrip ने WCL भारत-पाकिस्तान मैच से प्रायोजन हटाया, आतंक के खिलाफ मजबूत रुख अपनाया।

© 2021 पहल टाइम्स - देश-दुनिया की संपूर्ण खबरें सिर्फ यहां.

  • होम
  • दिल्ली
  • राज्य
  • राष्ट्रीय
  • विश्व
  • धर्म
  • व्यापार
  • खेल
  • मनोरंजन
  • गैजेट्स
  • जुर्म
  • लाइफस्टाइल
    • स्वास्थ्य
    • फैशन
    • यात्रा
  • विशेष
    • साक्षात्कार
  • ईमैगजीन

© 2021 पहल टाइम्स - देश-दुनिया की संपूर्ण खबरें सिर्फ यहां.