पटना. बिहार विधानसभा चुनाव 2025 से पहले बीजेपी ने बड़ा दांव खेलने की तैयारी शुरू कर दी है. पार्टी इस बार सिर्फ स्थानीय नेताओं पर निर्भर नहीं रहना चाहती, बल्कि अपने तीन दिग्गज सांसदों को विधानसभा चुनाव मैदान में उतारने की योजना बना रही है. सूत्रों के मुताबिक, बीजेपी का यह मास्टरस्ट्रोक एक साथ राजपूत, यादव और पिछड़ा समाज (निषाद वर्ग) के वोट बैंक को साधने के लिए तैयार किया गया है. सूत्रों के अनुसार, बीजेपी अपने तीन प्रभावशाली सांसदों को बिहार विधानसभा चुनाव में उम्मीदवार बना सकती है.
बिहार की राजनीति में यादव वोट बेहद अहमियत रखते हैं, जिनकी आबादी करीब 14.3% है. यह बड़ा वोट बैंक लंबे समय से राष्ट्रीय जनता दल (RJD) के साथ मजबूती से जुड़ा रहा है. ऐसे में बीजेपी यादव समाज, उत्तर बिहार और मिथिलांचल के वोटरों को साधने के लिए बीजेपी अपने एक दिग्गज सांसद को चुनावी मैदान में उतार सकती है. यादव समाज से आने वाले इस सांसद का बीजेपी केंद्रीय नेतृत्व के साथ मजबूत रिश्ता रहा है.
राजपूतों को दिया जाएगा बड़ा मैसेज
बिहार में 3.45 प्रतिशत राजपूत मतदाता हैं. बिहार में राजपूतों का बड़ा जनाधार है. ऐसे में राजपूत वोटरों को साधने के लिए बीजेपी एक बड़े राजपूत सांसद को चुनावी मैदान में उतार सकती है. पटना समेत छपरा, सारण समेत बिहार के राजपूत वोटरों को बड़ा मैसेज देने के लिए बीजेपी एक बड़े राजपूत चेहरे विधानसभा चुनाव लड़ाने की तैयारी में है. बीजेपी के इस नेता का अपने क्षेत्र में बड़ा प्रभाव माना जाता है.
निषाद समाज के लिए भी BJP की बड़ी प्लानिंग
बिहार की राजनीति में निषाद समुदाय (मल्लाह, बिंद और अन्य मछुआरा जातियां) एक उभरती हुई सियासी शक्ति है. 2023 की बिहार जाति जनगणना के अनुसार, निषाद समुदाय की आबादी करीब 5.5% है जो इसे अति पिछड़ा वर्ग (EBC) की एक प्रभावशाली उपजाति बनाती है. हालांकि, जातिगत आंकड़ों के लिहाज से मल्लाहों का प्रतिशत 2.6 है, वहीं निषाद, मल्लाह, केवट, बिंद, कश्यप जैसे सभी जल-आधारित पेशों से जुड़ी उपजातियों को मिलाकर इसे 8 से 9 प्रतिशत कहा जाता है. मुजफ्फरपुर, वैशाली, समस्तीपुर, दरभंगा, मधुबनी, भागलपुर और खगड़िया जैसे जिलों में नदियों के किनारे बसी निषाद बस्तियां सियासी समीकरण तय करती हैं. ऐसे में निषाद समाज और इस क्षेत्र के वोटरों को साधने के लिए बीजेपी अपने एक और सांसद को विधानसभा चुनाव में उतार सकती है.
जातीय समीकरण पर बीजेपी का फोकस
बिहार की राजनीति हमेशा जातीय समीकरणों के इर्द-गिर्द घूमती रही है. बीजेपी को अच्छी तरह पता है कि इस बार का चुनाव नीतीश कुमार के अनुभव बनाम तेजस्वी यादव के जोश की लड़ाई के साथ-साथ जातीय आधार पर भी लड़ा जाएगा. ऐसे में पार्टी अगर इन तीन दिग्गज नेताओं को मैदान में उतारती है, तो एक साथ कई क्षेत्रों और जातियों में अपनी पकड़ मजबूत कर सकती है. राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि बीजेपी का यह दांव “एक तीर से तीन निशाने” वाला है- इससे यादवों में पार्टी की पैठ बढ़ेगी, राजपूतों के बीच संदेश जाएगा कि बीजेपी उन्हें नजरअंदाज नहीं कर रही, और साथ ही पिछड़े वर्गों में भी पार्टी अपनी पकड़ और गहरी कर पाएगी.