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वक़्फ़ क़ानून पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा, क्या हिंदू समुदाय के धार्मिक ट्रस्ट में मुसलमान या ग़ैर-हिंदू भी शामिल हो सकते हैं?

पहल टाइम्स डेस्क by पहल टाइम्स डेस्क
April 17, 2025
in राष्ट्रीय, विशेष
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प्रकाश मेहरा
एग्जीक्यूटिव एडिटर


नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने वक़्फ़ (संशोधन) अधिनियम, 2025 की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं की सुनवाई के दौरान यह सवाल उठाया। कोर्ट ने केंद्र सरकार से पूछा कि यदि वक़्फ़ बोर्ड में गैर-मुसलमानों को शामिल किया जा सकता है, तो क्या हिंदू धार्मिक ट्रस्टों में मुसलमानों या गैर-हिंदुओं को शामिल करने की अनुमति दी जाएगी? मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना की अध्यक्षता वाली पीठ ने इस मुद्दे पर तीखी बहस देखी, जिसमें याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि वक़्फ़ बोर्ड में गैर-मुसलमानों की नियुक्ति धार्मिक स्वतंत्रता (अनुच्छेद 26) का उल्लंघन करती है। केंद्र की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि इस तरह के बदलावों से पहले उनकी बात सुनी जानी चाहिए। कोर्ट ने यह भी चिंता जताई कि वक़्फ़ बाय यूजर संपत्तियों को डिनोटिफाई करना जटिल हो सकता है, खासकर ऐतिहासिक मस्जिदों के मामले में।

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महत्वपूर्ण कानूनी और सामाजिक मुद्दा !

सुप्रीम कोर्ट में वक़्फ़ (संशोधन) अधिनियम, 2025 की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर चल रही सुनवाई एक महत्वपूर्ण कानूनी और सामाजिक मुद्दा है। इस मामले में कोर्ट ने कई गंभीर सवाल उठाए हैं, जिनमें से एक प्रमुख सवाल यह था कि क्या हिंदू धार्मिक ट्रस्टों में मुसलमानों या गैर-हिंदुओं को शामिल किया जा सकता है, जैसा कि वक़्फ़ बोर्ड में गैर-मुसलमानों को शामिल करने का प्रावधान है। नीचे इस मामले की विस्तृत जानकारी दी जा रही है।
वक़्फ़ (संशोधन) अधिनियम, 2025 का परिचय !

वक़्फ़ (संशोधन) अधिनियम, 2025 को 8 अगस्त 2024 को लोकसभा में पेश किया गया था। यह विधेयक 1923 के मुस्लिम वक़्फ़ अधिनियम को निरस्त करने और 1995 के वक़्फ़ अधिनियम में संशोधन करने के लिए लाया गया। इसका उद्देश्य वक़्फ़ संपत्तियों के प्रबंधन को अधिक पारदर्शी, जवाबदेह और समावेशी बनाना है। इस अधिनियम को संसद के दोनों सदनों से पारित होने के बाद राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू की मंजूरी मिली, और इसे 8 अप्रैल 2025 से लागू कर दिया गया। अधिनियम का नया नाम “समेकित वक़्फ़ प्रबंधन, सशक्तिकरण, दक्षता और विकास अधिनियम, 1995” (उम्मीद अधिनियम) रखा गया है।

क्या हैं मुख्य प्रावधान ?

वक़्फ़ बोर्ड में गैर-मुसलमानों की नियुक्ति: विधेयक में वक़्फ़ बोर्ड में गैर-मुसलमान सदस्यों को शामिल करने का प्रावधान है। यह प्रावधान धार्मिक स्वतंत्रता और समानता के सवालों को उठाता है।

महिला प्रतिनिधित्व: बोर्ड में कम से कम दो मुस्लिम महिलाओं को शामिल करना अनिवार्य किया गया है।संपत्ति का डिजिटलीकरण और पारदर्शिता: वक़्फ़ संपत्तियों के रिकॉर्ड को डिजिटल करने और अनधिकृत कब्जों पर सख्ती करने का प्रावधान। सरकारी संपत्ति का वक़्फ़ से हटाना: यदि कोई सरकारी संपत्ति वक़्फ़ के रूप में दर्ज है, तो जिला कलेक्टर इसकी जांच करेगा और इसे वक़्फ़ से हटाने की प्रक्रिया शुरू करेगा। वक़्फ़-बाय-यूजर का मुद्दा: पुरानी मस्जिदों या कब्रिस्तानों जैसी संपत्तियों, जो सदियों से धार्मिक उपयोग में हैं, को वक़्फ़ के रूप में पंजीकृत करने के लिए दस्तावेजों की मांग एक जटिल मुद्दा है।

ट्राइब्यूनल का गठन: वक़्फ़ विवादों के निपटारे के लिए ट्राइब्यूनल में जिला न्यायाधीश और संयुक्त सचिव स्तर के अधिकारियों को शामिल करने का प्रस्ताव। शिया, सुन्नी और अन्य समुदायों का प्रतिनिधित्व: बोहरा और आगाखानी समुदायों के लिए अलग वक़्फ़ बोर्ड की स्थापना की अनुमति।

सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई का विवरण !

सुप्रीम कोर्ट ने इस अधिनियम की वैधता को चुनौती देने वाली कई याचिकाओं पर सुनवाई शुरू की है। सुनवाई मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना, जस्टिस संजय कुमार और जस्टिस के.वी. विश्वनाथन की तीन सदस्यीय पीठ द्वारा की जा रही है।

हिंदू ट्रस्टों में गैर-हिंदुओं की नियुक्ति !

कोर्ट ने केंद्र सरकार से पूछा कि यदि वक़्फ़ बोर्ड में गैर-मुसलमानों को शामिल किया जा सकता है, तो क्या हिंदू धार्मिक ट्रस्टों में मुसलमानों या गैर-हिंदुओं को शामिल करने की अनुमति दी जाएगी? यह सवाल धार्मिक स्वतंत्रता (अनुच्छेद 26) और समानता (अनुच्छेद 14) के संदर्भ में उठा। याचिकाकर्ताओं का तर्क है कि वक़्फ़ बोर्ड में गैर-मुसलमानों की नियुक्ति मुस्लिम समुदाय की धार्मिक स्वायत्तता का उल्लंघन करती है।

वक्फ कानून

वक़्फ़-बाय-यूजर संपत्तियों का पंजीकरण !

कोर्ट ने चिंता जताई कि 14वीं या 16वीं सदी की मस्जिदों या कब्रिस्तानों जैसी संपत्तियों के लिए वक़्फ़ डीड जैसे दस्तावेज उपलब्ध नहीं होंगे। ऐसी संपत्तियों को वक़्फ़ के रूप में कैसे पंजीकृत किया जाएगा? मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि यदि “वक़्फ़-बाय-यूजर” (लंबे समय से धार्मिक उपयोग में होने वाली संपत्ति) को डिनोटिफाई किया गया, तो यह ऐतिहासिक धार्मिक स्थलों के लिए समस्या पैदा कर सकता है।

सुप्रीम कोर्ट या हाईकोर्ट में सुनवाई !

कोर्ट ने विचार किया कि क्या इस मामले को सुप्रीम कोर्ट में सुना जाना चाहिए या इसे हाईकोर्ट को सौंप देना चाहिए। हालांकि, याचिकाकर्ताओं, जैसे वरिष्ठ वकील अभिषेक सिंघवी, ने तर्क दिया कि यह मामला पूरे भारत को प्रभावित करता है, इसलिए सुप्रीम कोर्ट ही इसका सुनवाई करे।

केंद्र का पक्ष

केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में कैविएट याचिका दायर की है, ताकि उसका पक्ष सुने बिना कोई आदेश पारित न हो। सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने तर्क दिया कि यह संशोधन वक़्फ़ संपत्तियों के प्रबंधन में पारदर्शिता और सुधार लाने के लिए है। केंद्रीय मंत्री किरेन रिजिजू ने कहा कि सरकार का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि कोई भी व्यक्ति किसी अन्य की संपत्ति पर जबरन कब्जा न कर सके।

क्या हैं याचिकाकर्ताओं की दलीलें ?

जमीयत उलमा-ए-हिंद, ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड, और कई विपक्षी नेता जैसे असदुद्दीन ओवैसी, अमानतुल्लाह खान, महुआ मोइत्रा, और मनोज झा ने याचिकाएं दायर की हैं। याचिकाकर्ताओं का कहना है कि यह अधिनियम संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता), 15 (भेदभाव का निषेध), 25 (धार्मिक स्वतंत्रता), और 26 (धार्मिक मामलों के प्रबंधन का अधिकार) का उल्लंघन करता है। वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने तर्क दिया कि पुरानी वक़्फ़ संपत्तियों के लिए दस्तावेज मांगना अव्यावहारिक है, क्योंकि कई संपत्तियां सैकड़ों साल पुरानी हैं।

वक्फ बोर्ड

वक़्फ़ संपत्तियों को लेकर विवाद ?

वक़्फ़ संपत्तियों पर विवाद और विरोध पर सीनियर एग्जीक्यूटिव एडिटर प्रकाश मेहरा का मानना है कि वक़्फ़ संपत्तियों को लेकर विवाद, विशेष रूप से केरल और कर्नाटक जैसे राज्यों में, राजनीतिक रूप से प्रेरित हैं। ये मुद्दे उपचुनावों के दौरान अधिक सक्रिय हो जाते हैं, और नोटिस जारी करने की प्रक्रिया बीजेपी और कांग्रेस दोनों सरकारों के कार्यकाल में देखी गई है।

सुनवाई की प्रगति !

16 अप्रैल 2025: सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में सुनवाई शुरू की। कोर्ट ने केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया और जवाब दाखिल करने को कहा।

17 अप्रैल 2025: सुनवाई दोपहर 2 बजे मुख्य न्यायाधीश की अदालत में जारी रही। कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं से पूछा कि वे किन बिंदुओं पर बहस करना चाहते हैं।

आगामी सुनवाई: मामले की अगली सुनवाई की तारीख अभी निर्धारित नहीं हुई है, लेकिन कोर्ट ने संकेत दिया है कि वह इस मामले को गहराई से देखेगा। कुल 73 याचिकाएं दायर की गई हैं, जिनमें निम्नलिखित प्रमुख याचिकाकर्ता शामिल हैं राजनीतिक दल और नेता: कांग्रेस, डीएमके, आम आदमी पार्टी, वाईएसआरसीपी, एआईएमआईएम, जेडीयू, तृणमूल कांग्रेस, और समाजवादी पार्टी। संगठन: जमीयत उलमा-ए-हिंद, ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड, एसोसिएशन फॉर द प्रोटेक्शन ऑफ सिविल राइट्स। अन्य: तमिलगा वेत्री कझगम (टीवीके) के अध्यक्ष और अभिनेता थलापति विजय, अधिवक्ता हरि शंकर जैन, और मणि मुंजाल।

क्यों हो रहा है विवाद और विरोध ?

विपक्ष का तर्क: विपक्षी दलों और मुस्लिम संगठनों का कहना है कि यह अधिनियम मुस्लिम समुदाय की धार्मिक स्वतंत्रता पर हमला है। उनका दावा है कि यह अल्पसंख्यकों के अधिकारों को कमजोर करता है और संविधान के बुनियादी ढांचे का उल्लंघन करता है। कुछ पक्षों ने इस अधिनियम का समर्थन किया है, इसे वक़्फ़ संपत्तियों के प्रबंधन में पारदर्शिता और आधुनिकीकरण का कदम बताया है। शिया धर्मगुरु मौलाना सैयद कल्बे जवाद ने इसे “काला कानून” बताया, जो वक़्फ़ संपत्तियों को नष्ट कर सकता है।

वक़्फ़ संपत्तियों का पंजीकरण अनिवार्य !

सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में संतुलित दृष्टिकोण अपनाया है। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि वह अभी अधिनियम पर रोक लगाने की मांग पर विचार नहीं कर रहा है, बल्कि इसकी संवैधानिक वैधता और व्यावहारिकता पर गहराई से जांच करेगा। कोर्ट ने यह भी कहा कि यदि वक़्फ़ संपत्तियों का पंजीकरण अनिवार्य किया जाता है, तो यह संपत्ति मालिकों के लिए मददगार हो सकता है, लेकिन पुरानी संपत्तियों के लिए यह प्रक्रिया जटिल होगी।

क्या कहते हैं कानूनी विशेषज्ञ ?

कानूनी विशेषज्ञ इस अधिनियम की संवैधानिक वैधता और इसके कार्यान्वयन की व्यावहारिकता पर केंद्रित हैं।

वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल (याचिकाकर्ताओं की ओर से)

सिब्बल ने तर्क दिया कि वक़्फ़-बाय-यूजर संपत्तियों (जैसे पुरानी मस्जिदें या कब्रिस्तान) के लिए दस्तावेजीकरण की मांग अव्यावहारिक है। उन्होंने कहा कि यह अधिनियम संविधान के अनुच्छेद 26 (धार्मिक मामलों के प्रबंधन का अधिकार) का उल्लंघन करता है, क्योंकि वक़्फ़ बोर्ड में गैर-मुसलमानों की नियुक्ति मुस्लिम समुदाय की धार्मिक स्वायत्तता पर अतिक्रमण है।

वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी

सिंघवी ने सुप्रीम कोर्ट में कहा कि यह मामला पूरे भारत को प्रभावित करता है और इसे सुप्रीम कोर्ट में ही सुना जाना चाहिए। उन्होंने अधिनियम के कुछ प्रावधानों को मनमाना और अल्पसंख्यक विरोधी बताया।

संवैधानिक विशेषज्ञ सुब्रह्मण्यम स्वामी

स्वामी ने इस अधिनियम का समर्थन करते हुए कहा कि यह वक़्फ़ संपत्तियों के दुरुपयोग को रोकने और पारदर्शिता बढ़ाने में मदद करेगा। हालांकि, उन्होंने यह भी चेतावनी दी कि गैर-मुसलमानों की नियुक्ति का प्रावधान धार्मिक संवेदनशीलता को भड़का सकता है।

कानून प्रोफेसर फैजान मुस्तफा

मुस्तफा ने अपने विश्लेषण में कहा कि वक़्फ़ बोर्ड में गैर-मुसलमानों की नियुक्ति का प्रावधान संवैधानिक रूप से चुनौतीपूर्ण हो सकता है, क्योंकि यह धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार को प्रभावित करता है। उन्होंने सुझाव दिया कि सरकार को इस प्रावधान को और स्पष्ट करना चाहिए और इसे लागू करने से पहले व्यापक परामर्श करना चाहिए।

अंतिम फैसला इस मुद्दे पर दीर्घकालिक प्रभाव डालेगा !

वक़्फ़ (संशोधन) अधिनियम, 2025 को लेकर सुप्रीम कोर्ट में चल रही सुनवाई धार्मिक स्वतंत्रता, संवैधानिक अधिकारों, और वक़्फ़ संपत्तियों के प्रबंधन जैसे जटिल मुद्दों को छू रही है। कोर्ट का सवाल कि क्या हिंदू ट्रस्टों में गैर-हिंदुओं को शामिल किया जा सकता है, इस मामले को और गहरा करता है। यह मामला न केवल कानूनी दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि सामाजिक और धार्मिक सद्भाव के लिए भी अहम है। सुप्रीम कोर्ट का अंतिम फैसला इस मुद्दे पर दीर्घकालिक प्रभाव डालेगा।

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