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चर्चिल के ब्रिटेन में ऋषि सुनक का क्या काम?

पहल टाइम्स डेस्क by पहल टाइम्स डेस्क
August 1, 2022
in विशेष
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हरिशंकर व्यास

ब्रिटेन के गोरे दुविधा में होंगे। आखिर वे एक तरफ लोकतंत्र, बुद्धि, ज्ञान-विज्ञान, काबलियत को पूजने के संस्कारों से इक्कीसवीं सदी में समावेशी मिजाज में जिंदगी के राजभोग खा रहे हैं वहीं एक अश्वेत हिंदू को प्रधानमंत्री बनाने के विकल्प पर फैसला लेना है। ये गोरे उमा भारती, सुषमा स्वराज या संघ परिवार जैसे हिंदू नहीं हैं, जिन्हें सोनिया गांधी के प्रधानमंत्री बनने की संभावना से ही गुलामी लौटती लगी थी। न ही उन भयाकुल हिंदुओं जैसे हैं, जो डरें कि मुसलमानों की बढ़ती आबादी से ब्रिटेन में इस्लामी राज बनेगा। या इस तरह सोचना कि राजधानी लंदन के मेयर सादिक अली ब्रिटेन में इस्लामी राज की दस्तक हैं। हां, भारत और ब्रिटेन के मोदी भक्त हिंदू सोशल मीडिया में लिखते रहते हैं कि ब्रिटेन में तो शरिया राज होगा। लेकिन वे ही हिंदू अब गर्व से, छाती फुलाए नगाड़े बजा रहे हैं कि देखो हिंदुओं की विश्व गुरूता जो ऋषि सुनक ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बन रहे हैं। नरेंद्र मोदी हैं तो सब मुमकिन है! आश्चर्य नहीं होगा कि जिस दिन ऋषि सुनक वहां प्रधानमंत्री चुने जाएं तो नरेंद्र मोदी छाती फुलाए हुए इस टैग लाइन के साथ बधाई संदेश में हिंदुओं को वैश्विक संदेश दें कि जब सुनक शपथ लें तब के समय दुनिया के हिंदुओं ताली-थाली बजाओ, दीपक जलाओ। ब्रिटेन में भगवा फहरा। ब्रिटेन के हिंदू अपने घरों पर दीये जलाएं!

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इस तरह की बेहूदगी नामुकिन नहीं है। हिंदू राजनीति की मौजूदा तासीर में इसी तरह की जहालतें-काहिली भरी हुई है। नरेंद्र मोदी और लंदन में उनके भक्त ऋषि सुनक की इवेंट को भुनाने की हर संभव वैसी बेहूदगियां करेंगे, जिससे खुद ऋषि सुनक सिर पीटेंगे तो ब्रितानी गोरे, भक्तों की फूहड़ता देख सोचेंगे कि उनका नया प्रधानमंत्री ब्रिटेन को कहीं वैसा ही नहीं बना दे, जैसे नरेंद्र मोदी भारत को बना रहे हैं!

तभी मुझे खटका है कि कंजरवेटिव पार्टी के जमीनी नेता ऋषि सुनक की तमाम खूबियों के बावजूद उन्हें नहीं चुनेंगे। भारत की हिंदू राजनीति के कलंकों से एक प्रवासी हिंदू का अवसर मारा जा सकता है। मैं यह तो नहीं मानता कि ऋषि सुनक और प्रीति पटेल ने बोरिस जॉनसन के मंत्री रहते हुए भारत के लोकतंत्र में नरेंद्र मोदी के प्रयोगों के खिलाफ एलर्जी नहीं दिखा कर अपने राजनीतिक करियर को ब्लॉक किया। बावजूद इसके यह गांरटी से कहा जा सकता है कि जो समाज ‘बीबीसी’, ‘गार्जियन’, ‘डेली मेल’, ‘द टाइम्स’, ‘इकोनोमिस्ट’ जैसे मीडिया से देश-दुनिया की खबर रखता है उसके गोरों और मुसलमानों, अश्वेतों सभी में भारत के मोदी राज से कुछ तो हिंदू के प्रति वह निगेटिविटी होगी, जिसे अपने महानायक प्रधानमंत्री चर्चिल की जुबानी 1947 से पहले सुना था। याद करें चर्चिल के ये वाक्य, ‘वे जानवर जैसे लोग हैंज्.यदि भारत को आजादी दी जाती है, तो सत्ता का पॉवर बदमाशों, दुष्टों, लुटरों  के हाथों में होगा। कम बुद्धि के छिछोरे-मूर्ख नेता होंगे। वे बाते मीठी करेंगे और मूर्ख दिल लिए हुए होंगे। वे सत्ता के लिए आपस में लड़ेंगे और भारत एक दिन राजनीतिक झगड़ों में खो जाएगा। एक दिन वह आएगा जब भारत हवा-पानी पर भी टैक्स लगाए हुए होगा’। चर्चिल ने गांधी की लीडरशीप को ले कर भी बहुत कहा था तो भारत के मुसलमानों को हिंदुओं से बेहतर बताया था। (सोचें, यदि सुनक भी मोदी जैसे सोचने वाले हुए तो लंदन में चर्चिल (गांधी-नेहरू की भी लगी हुई है) की मूर्ति हटवा कर वे पटेल की मूर्ति लगवाएंगे या सुभाष बोस की?) बाद में ब्रितानियों और सन् 2020 में प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन ने भी भारत की आजादी के संघर्ष तथा गांधी पर चर्चिल के स्टैंड को लेकर सफाई दी थी।

ध्यान रहे बोरिस जॉनसन, ऋषि सुनक उसी कंजरवेटिव पार्टी के नेता हैं, जिसके आदर्श विंस्टन चर्चिल हैं। इसलिए मेरे लिए रोमांच और गौरव दोनों में यही बात बहुत बड़ी है जो हिंदू ऋषि सुनक इस पार्टी के सांसदों में प्रधानमंत्री पद के लिए सर्वाधिक लायक माने गए। जो चर्चिल हिंदुओं को सत्ता के भूखे, ढोंगी, मूर्ख मानते थे उनके गोरे वारिस यदि ऋषि सुनक को लायक मान रहे हैं तो मेरे जैसे सनातनी हिंदुओं के लिए इससे बड़ी बात क्या हो सकती है?

लेकिन ऋषि सुनक और दुनिया में तमाम सभ्य हिंदू नागरिक आज उस हिंदुत्व राजनीति की प्रतिछाया में जी रहे हैं, जिससे सभ्य समाजों में सवाल है कि तुम गांधी-नेहरू छाप हिंदू हो या नरेंद्र मोदी छाप! ब्रिटेन के गोरे समाज के अवचेतन में भारत में मोदी सरकार के तौर-तरीकों, हिंदू राजनीति के पिछले आठ साला अनुभवों की क्या गूंज नहीं होगी? ब्रिटेन की वैश्विक गौरव वाली जिस एमनेस्टी इंटरनेशनल को मोदी सरकार ने लात मार कर भारत से बाहर किया, ‘गार्जियन’, ‘बीबीसी’ आदि के मीडिया ने जैसे ब्रितानी समाज को नोटबंदी, महामारी में गंगा किनारे लाशों के ढेर, सोनिया गांधी के साथ दुर्व्यवहार, भारत में लोकतंत्र के बाजे बजने के असंख्य किस्से अपने मीडिया से लगातार पढ़ाए-सुनाए-दिखाए हैं वह समाज क्या हिंदू ऋषि सुनक के चेहरे में नरेंद्र मोदी की सोच के अंश तलाशता हुआ नहीं होगा?

ऋषि सुनक ने अपने आपको ब्रिटेन की लौह महिला प्रधानमंत्री माग्ररेट थैचर का अनुयायी बताया है। संदेह नहीं है कि बतौर वित्त मंत्री ऋषि सुनक ने आर्थिकी-वित्तीय मामलों पर जो पकड़ दिखाई है और ब्रितानी थिंकटैंक के श्रेष्ठिजनों में अपनी विद्वता, ऑक्सफोर्ड में पढाई को शासन के अपने राजकाज से जैसे प्रमाणित किया है उसके वहां लोग कायल हैं। जैसे पंडित नेहरू ने ब्रितानियों का दिल जीता हुआ था। 1947 के बाद तो चर्चिल भी नेहरू की हैरो में पढ़ाई के हवाले उन्हें सहयोग देने का वादा करते हुए थे। उन्होंने नेहरू को सलाह दी थी कि वे एशिया की ज्योति बनें। करोड़ों लोगों को बताएं कि वे साम्यवाद के अंधकार को अपनाने के बजाय कैसे चमचमा सकते हैं। हिसाब से ऋषि सुनक ब्रितानी समाज में भी उम्मीद की शख्सियत बने हैं। लेकिन ब्रिटेन और खासकर कंजरवेटिव पार्टीं में माग्ररेट थैचर की रीति-नीति, आर्थिकी के जलवे के बावजूद पहली प्राथमिकता देश की लोकतांत्रिक विरासत, उसके मूल्यों, वैश्विक गौरव और आदर्शों की है। ब्रिटेन बिना लिखित संविधान का देश है। परंपराओं और जन-जन की आवाज के साथ मर्यादाओं में जीने वाला देश है। मौजूदा प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन बहुत लोकप्रिय थे। उनसे चुनाव में पार्टी की रिकार्ड तोड़ जीत हुई। लेकिन कोविड महामारी के लॉकडाउन वक्त में अपने प्रधानमंत्री निवास पर मंत्रियों (ऋषि सुनक भी थे) दोस्तों के साथ ड्रिंक पार्टी की। उसकी मीडिया में खबर छप गई तो देश-समाज में प्रधानमंत्री की मर्यादा के ऐसे सवाल बने कि पुलिस से लेकर संसदीय कमेटी, मीडिया सभी से खुलासे और निंदा। सत्ता पर बने रहने की बोरिस जॉनसन की हर तरह की कोशिश के बावजूद उन्हें इस्तीफा देना पड़ा।

और देखिए ब्रितानी लोकतंत्र का कमाल, जो सत्तारूढ़ पार्टी के भीतर भी सांसद-पार्टी नेता यह कहते मिले कि प्रधानमंत्री पद पर बैठे व्यक्ति का अपने निवास पर लॉकडाउन के वक्त पार्टी करना शोभनीय नहीं। उनका छोटा झूठ भी स्वीकार्य नहीं। प्रधानमंत्री हैं तो इस मनमानी का अधिकार नहीं कि जनता तो लॉकडाउन से घर में रहे और पीएम घर पर पार्टी करें!
तुलना करें बोरिस जॉनसन के वक्त के इस ब्रिटेन की अपने नरेंद्र मोदी के वक्त के भारत से! क्या भारत में कोई मीडिया प्रधानमंत्री के घर में क्या हो रहा है, इसकी खबर छाप सकता है? दिल्ली की पुलिस क्या स्कॉटलैंड यार्ड पुलिस की तरह खबर जान अपने आप पीएम निवास के घर की घटना की जांच कर सकती है? कह सकती है कि प्रधानमंत्री ने झूठ बोला?
तभी ऐसे ब्रितानी लोकतंत्र में एक हिंदू का प्रधानमंत्री बन सकना अनहोनी बात होगी। ब्रिटेन के प्रधानमंत्री पद पर ऋषि सुनक की नियुक्ति का अर्थ है एक रियल वैश्विक महाशक्ति का प्रमुख। जी-7 ग्रुप का सदस्य। संयुक्त राष्ट्र में वीटो पॉवर लिया हुआ प्रधानमंत्री। रूस बनाम यूक्रेन की लड़ाई में नाटो देशों, पश्चिमी समाज को नेतृत्व देने वाला! चीन में चिंता पैदा करने वाला प्रधानमंत्री। विश्व की वित्तीय राजधानी का प्रधानमंत्री। दुनिया के सभ्य-लोकतांत्रिक समाजों, मानवाधिकारी मूल्यों की वैश्विक मशाल को लिए हुए ब्रितानी प्रधानमंत्री!
इसलिए दिल-दिमाग दोनों में चाहना है कि ऋषि सुनक कंजरवेटिव पार्टी के नेता चुने जाएं। बतौर सनातनी हिंदू मेरे लिए यह पूरी उम्र का यादगार दिन इसलिए होगा कि जिन गोरों ने हम पर राज किया, उन्होंने हिंदू कौम के एक शख्स को उसकी काबलियत के आधार पर अपना प्रधानमंत्री बनाया।

लेकिन हम हिंदुओं की नियति! सन् बाईस के वक्त में भारत की कमान उस हिंदू राजनीति, उस हिंदू प्रधानमंत्री के हाथों में है, जिनके कारण भारत में लोकतंत्र के कुरूप तमाशे, सत्ता भूख दुनिया के आगे है। जहां विपक्ष को, मीडिया को, आजाद ख्याल लोगों को, बुद्धिमानों को, सभ्य लोगों को, स्वंयसेवी संस्थाओं को, विचार की विरोधी अभिव्यक्तियों को, विपक्ष की सत्तारूढ़ प्रादेशिक सरकारों के मंत्रियों को कुचला गया है, कुचला जा रहा है। जेल में डाला जा रहा है। क्या इस सबकी ग्लानि में, शर्म में ऋषि सुनक या वे प्रवासी हिंदू भारतीय नहीं होंगे जो अपनी मेधा, बुद्धि, सत्यवादिता, काबलियत से प्रधानमंत्री, उप राष्ट्रपति, उप प्रधानमंत्री पद तक पहुंचे हैं या पहुंचने के कगार पर हैं? क्या यह हिंदुत्व, हिंदुवादी राजनीति, हिंदू आइडिया ऑफ इंडिया का वह शर्मनाक अनुभव नहीं जो ऋषि सुनक या प्रवासी भारतीय गौरव से कह सकें कि वे उन गांधी-नेहरू के आइडिया के प्रतिनिधि हैं, जिन्होंने हिंदू-मुस्लिम साझे, वसुधैव कुटुंबकम के समावेशी राष्ट्र की नींव बनाई थी! उदार, सभ्य, लोकतांत्रिक  मान-मर्यादाओं का समाज बनाया था! यदि हिंदू ऋषि सुनक से मोदी सरकार की सच्चाई का कटु सवाल हो तो वे क्या ब्रितानियों के आगे सहज जवाब दे सकेंगे?

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