प्रकाश मेहरा
एक्जीक्यूटिव एडिटर
नई दिल्ली: रुसी शहर कजान में आयोजित ब्रिक्स का 16वां शिखर सम्मेलन कई अर्थों में काफी महत्वपूर्ण साबित हुआ। साल 2009 में जब इस संगठन का पहला शिखर सम्मेलन हुआ था, तब उसमें केवल चार सदस्य देश थे- ब्राजील, रूस, भारत और चीन। तब यह समूह ‘ब्रिक’ कहलाता था। उस वक्त इन चारों देशों की अर्थव्यवस्थाएं तेजी से उभर रही थीं, इसलिए उनकी नजर आर्थिक और व्यापारिक विषयों पर थी। साल 2010 में दक्षिण अफ्रीका इसका सदस्य बना, जिसके बाद यह ‘ब्रिक्स’ बन गया। इस बार इसमें चार नए देश- मिस्त्र, ईरान, इथियोपिया और संयुक्त अरब अमीरात भी शामिल हुए। इस विस्तार के बाद ब्रिक्स सिर्फ आर्थिक और व्यापारिक मसलों तक सीमित नहीं रहा, बल्कि भू-राजनीति, पर्यावरण, विज्ञान-प्रौद्योगिकी आदि विषयों तक इसका विस्तार हो चला है।
इतिहास में किस देश ने इतना समग्र विकास!
दरअसल, पिछले 15 वर्षों में चीन के उत्थान के कारण अंतरराष्ट्रीय जगत में अहम बदलाव हुए हैं। शायद ही इतिहास में किसी देश ने इतना समग्र विकास किया है, जितना पिछले चार दशकों में चीन ने किया है। अमेरिका के बाद चीन की ही अर्थव्यवस्था दुनिया में सबसे मजबूत मानी जाती है। साल 2013 में जब शी जिनपिंग ने चीन की बागडोर संभाली थी, तभी उन्होंने अपनी और अपने देश की महत्वाकांक्षा जाहिर कर दी थी। वह चाहते थे कि चीन की ताकत दुनिया कुबूल करे और वैश्विक मामलों में अंतरराष्ट्रीय समुदाय उनकी भूमिका को स्वीकार करे। ‘बेल्ट ऐंड रोड इनीशिएटिव’ के जरिये राष्ट्रपति जिनपिंग ने दुनिया के कई देशों के साथ गोलबंदी की कोशिश भी की। यही कारण है कि अब अंतरराष्ट्रीय मामलों के कई वैश्विक जानकार कहने लगे हैं कि ब्रिक्स के माध्यम से चीन और रूस एक प्रकार से पश्चिमी देशों के दबदबे को चुनौती दे रहे हैं। जिस तरह शीतयुद्ध के दौर में दुनिया दो खेमों में बंट गई थी, उसी प्रकार की खेमेबंदी के आसार फिर से दिखने लगे हैं। कजान घोषणापत्र में भी इसकी झलक दिखती है।
व्यापारिक प्रतिबंधों का ब्रिक्स ने विरोध!
इस घोषणापत्र के तीन बिंदुओं पर विशेष नजर जाती है। पहला, अमेरिका के एकतरफा प्रतिबंध को नकारना, यानी रूस और ईरान पर लगे अमेरिकी व्यापारिक प्रतिबंधों का ब्रिक्स ने विरोध किया है। दूसरा, इजरायल के व्यवहार की निंदा करना। घोषणापत्र में न सिर्फ इजरायल द्वारा गाजा पट्टी पर किए गए हमले की आलोचना की गई है, बल्कि इजरायल से तत्काल व स्थायी संघर्ष विराम करने और पीड़ितों तक मानवीय सहायता पहुंचने देने की मांग भी की गई है। घोषणापत्र में अक्तूबर, 2023 में हमास द्वारा इजरायल में की गई कार्रवाई का कोई जिक्र नहीं है। माना जाता है, भारत ने विदेश मंत्रियों की जून, 2024 की बैठक में संभवतः यह कोशिश की थी कि ब्रिक्स को हमास के हमले का भी जिक्र करना चाहिए, लेकिन तब अन्य देशों ने ऐसा होने नहीं दिया। कजान घोषणापत्र में भी इसकी कोई चर्चा नहीं की गई है।
तीसरा, कजान घोषणापत्र में यह भी लिखा गया है कि जलवायु परिवर्तन को किसी भी तरह से सुरक्षा मामलों से नहीं जोड़ना चाहिए। कुछ पश्चिमी देशों की राय है कि जलवायु परिवर्तन को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् का विषय होना चाहिए, क्योंकि इससे अंतरराष्ट्रीय शांति और सुरक्षा पर असर पड़ सकता है। मगर, भारत के साथ-साथ कई अन्य विकासशील देश भी यह मानते हैं कि सुरक्षा परिषद् की इसमें कोई भूमिका नहीं होनी चाहिए।
2009 में गठन के समय ‘ब्रिक’ की जो नीतियां थीं
साफ है, साल 2009 में गठन के समय ‘ब्रिक’ की जो नीतियां थीं, उनका अब काफी विस्तार हो चुका है या यूं कहें कि उनमें अब जमीन-आसमान का फर्क आ गया है। आज के भारत के हित कई क्षेत्रों में पश्चिमी देशों के हितों से मिलते हैं। अपनी तरक्की के लिए भारत पश्चिमी देशों के साथ विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में सहयोग बढ़ा रहा है, साथ ही हमारी अर्थव्यवस्था पश्चिमी देशों के निवेश का स्वागत भी करती है। इतना ही नहीं, चीन की विस्तारवादी नीतियों की मुखालफत के मामले में भी हमारे और पश्चिमी देशों के हित आपस में जुड़ते हैं। फिर, भारत ‘ग्लोबल साउथ’ के देशों का नेतृत्व करना चाहता है।
इसकी वजह यह भी है कि खुद ग्लोबल साउथ भारत की तरफ उम्मीद भरी नजरों से देख रहा है, क्योंकि जिस प्रकार भारत ने जनता तक सरकारी योजनाओं का लाभ पहुंचाने, कोरोना महामारी से लड़ने और जन-हितकारी कार्यों में डिजिटलीकरण का प्रयोग किया है, वह ग्लोबल साउथ के लिए आश्चर्य की बात है। जाहिर है, भारतीय कूटनीतिज्ञों के लिए अब यही चुनौती होगी कि वे ब्रिक्स को एक संतुलित नजरिये के साथ आगे लेकर जाएं। ऐसा न हो कि यह संगठन चीन और रूस का पिछलग्गू बन जाए। भारत को अब ब्रिक्स देशों के जरिये सुरक्षा परिषद् की स्थायी सदस्यता की अपनी दावेदारी को पुख्ता करवाने का कूटनीतिक प्रयास तेज कर देना चाहिए।
कजान में पीएम मोदी की बहुत महत्वपूर्ण बैठकें
ब्रिक्स सम्मेलन से इतर कजान में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की दो बहुत महत्वपूर्ण बैठकें भी हुईं। एक, चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के साथ पांच साल के बाद हुई मुलाकात। इस बैठक से पहले भारत ने यह अधिकृत बयान दिया था कि साल 2020 में लद्दाख में चीन की कार्रवाई के कारण जो मुश्किलें पैदा हुई थीं, उनका अब समाधान हो चुका है। बीजिंग ने भी इसकी एक प्रकार से पुष्टि की है। इस बैठक में दोनों शीर्ष नेताओं ने आपसी संबंधों को फिर से पटरी पर लाने पर जोर दिया और सीमा पर सहमति बनाने के लिए बातचीत फिर से शुरू करने के आदेश विशेष प्रतिनिधि को दिए। निस्संदेह, भारत और चीन, दुनिया के सबसे बड़े प्रगतिशील देश हैं और दोनों नेताओं ने उचित ही यह माना कि यदि आपसी संबंध ठीक रहे, तो उसका अच्छा असर इस क्षेत्र और समूचे विश्व पर पड़ेगा। हालांकि, चीन ने 1990 की आपसी समझ का उल्लंघन किया था, इसलिए भारत को चीन के प्रति हमेशा सतर्क रहने की भी जरूरत है। दूसरी मुलाकात रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की थी। भारत और रूस का आपसी रिश्ता दोनों देशों के लिए काफी अहम है। बातचीत में दोनों नेताओं ने इस रिश्ते को और घनिष्ठ बनाने पर जोर दिया।
हो सकता है, पश्चिमी देशों को ये मुलाकातें नागवार गुजरें, पर भारत ने हमेशा अपने हितों को सबसे ऊपर रखा है और अपनी सुरक्षा के लिए उचित कदम उठाए हैं। भारत की विदेश नीति का हमेशा से यही उद्देश्य रहा है, कजान सम्मेलन में भी हमने यही देखा।