प्रकाश मेहरा
एग्जीक्यूटिव एडिटर
नई दिल्ली: भारत-पाकिस्तान के बीच संघर्ष और युद्धविराम के संदर्भ में इंदिरा गांधी का नाम प्रमुखता से उभरता है, खासकर 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध और इसके परिणामस्वरूप बांग्लादेश के निर्माण के कारण। इंदिरा गांधी, जो उस समय भारत की प्रधानमंत्री थीं, उन्होंने इस युद्ध में अपनी रणनीतिक और कूटनीतिक कुशलता से न केवल भारत को विजय दिलाई, बल्कि वैश्विक मंच पर भारत की स्थिति को मजबूत किया। उनकी भूमिका, निर्णय और युद्ध के बाद के समझौतों ने इतिहास में महत्वपूर्ण स्थान बनाया। 1971 के युद्ध, युद्धविराम और इंदिरा गांधी की भूमिका इस विशेष विश्लेषण से समझते है।
भारत-पाकिस्तान तनाव और 1971 का संकट !
भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव 1947 के विभाजन के समय से ही चला आ रहा था। कश्मीर का मुद्दा और सीमा विवाद इन तनावों का प्रमुख कारण रहे। 1971 में स्थिति तब और गंभीर हो गई जब पूर्वी पाकिस्तान (आज का बांग्लादेश) में राजनीतिक और सैन्य संकट गहरा गया। 1970 के आम चुनावों में शेख मुजीबुर रहमान की अवामी लीग ने पूर्वी पाकिस्तान में भारी जीत हासिल की, लेकिन पश्चिमी पाकिस्तान के सैन्य शासकों ने सत्ता हस्तांतरण से इनकार कर दिया। इसके परिणामस्वरूप, पूर्वी पाकिस्तान में बंगाली आबादी पर सैन्य दमन शुरू हुआ, जिसे “ऑपरेशन सर्चलाइट” के नाम से जाना जाता है। लाखों बंगाली शरणार्थी भारत में शरण लेने को मजबूर हुए।
लगभग 1 करोड़ शरणार्थियों के भारत में आने से आर्थिक और सामाजिक संकट पैदा हो गया। इंदिरा गांधी ने इस मानवीय संकट को अंतरराष्ट्रीय मंच पर उठाया और शरणार्थियों के लिए सहायता मांगी। 3 दिसंबर 1971 को पाकिस्तान ने भारत के पश्चिमी मोर्चे पर हवाई हमले शुरू किए, जिसके साथ औपचारिक रूप से युद्ध शुरू हो गया।
इंदिरा गांधी की रणनीति और नेतृत्व !
इंदिरा गांधी ने इस युद्ध में अपनी रणनीतिक दृष्टि और दृढ़ नेतृत्व का परिचय दिया। उनकी प्रमुख भूमिकाएं…इंदिरा गांधी ने युद्ध से पहले व्यापक कूटनीतिक प्रयास किए। उन्होंने सोवियत संघ के साथ 9 अगस्त 1971 को “शांति, मैत्री और सहयोग संधि” पर हस्ताक्षर किए, जिसने युद्ध के दौरान भारत को सोवियत समर्थन सुनिश्चित किया। यह संधि विशेष रूप से महत्वपूर्ण थी क्योंकि अमेरिका और चीन पाकिस्तान के पक्ष में थे। उन्होंने यूरोप और अमेरिका का दौरा कर पूर्वी पाकिस्तान के संकट को वैश्विक मंच पर उठाया और शरणार्थियों के लिए सहायता मांगी। हालांकि, अमेरिका के राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन ने उनका अपमान किया और भारत पर दबाव डाला, लेकिन इंदिरा ने दृढ़ता दिखाई।
इंदिरा गांधी ने सेना के तत्कालीन प्रमुख जनरल सैम मानेकशॉ के साथ मिलकर युद्ध की रणनीति तैयार की। मानेकशॉ ने अप्रैल 1971 में युद्ध के लिए अनुकूल समय न होने की बात कही थी, जिसे इंदिरा ने स्वीकार किया और सैन्य तैयारियों के लिए समय दिया। भारतीय सेना, नौसेना और वायुसेना ने समन्वित रूप से पूर्वी और पश्चिमी मोर्चों पर हमले किए। भारतीय सेना ने पूर्वी पाकिस्तान में तेजी से प्रगति की और 13 दिनों में ही ढाका पर कब्जा कर लिया।
भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा से जोड़ा !
इंदिरा गांधी ने शरणार्थी संकट को न केवल मानवीय मुद्दा बनाया, बल्कि इसे भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा से जोड़ा। उन्होंने स्पष्ट किया कि शरणार्थियों की वापसी और पूर्वी पाकिस्तान में स्थिरता के बिना भारत सुरक्षित नहीं हो सकता। उनकी नीतियों ने बंगाली मुक्ति वाहिनी को समर्थन दिया, जिसने युद्ध में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
3 दिसंबर 1971 को शुरू हुआ युद्ध 16 दिसंबर 1971 को समाप्त हुआ, जब पाकिस्तानी सेना के 93,000 सैनिकों ने ढाका में भारतीय सेना के सामने आत्मसमर्पण किया। यह युद्ध विश्व के सबसे छोटे युद्धों में से एक था, जो मात्र 13 दिनों तक चला। युद्ध के परिणामस्वरूप पूर्वी पाकिस्तान स्वतंत्र होकर बांग्लादेश बना। इंदिरा गांधी ने 13 दिसंबर को लोकसभा में घोषणा की कि “ढाका अब एक स्वतंत्र देश की राजधानी है।” इंदिरा गांधी ने पश्चिमी मोर्चे पर एकतरफा युद्धविराम की घोषणा की, जिसके 24 घंटे बाद पाकिस्तानी जनरल याह्या खान ने भी युद्धविराम स्वीकार किया।
शिमला समझौता (1972)
युद्ध के बाद, इंदिरा गांधी ने पाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति जुल्फिकार अली भुट्टो के साथ शिमला में शिखर वार्ता की। इस समझौते के प्रमुख बिंदु थे। कश्मीर विवाद को द्विपक्षीय और शांतिपूर्ण तरीके से हल करने की प्रतिबद्धता। नियंत्रण रेखा (LoC) को मान्यता दी गई, जो 1947 के युद्ध के बाद स्थापित हुई थी।दोनों देशों ने युद्धबंदियों और कब्जाए गए क्षेत्रों की वापसी पर सहमति जताई।
कुछ आलोचकों का मानना है कि इंदिरा गांधी ने 93,000 पाकिस्तानी युद्धबंदियों को बिना ठोस रियायतें लिए वापस कर दिया और नियंत्रण रेखा को स्थायी सीमा बनाने का अवसर गंवा दिया। वहीं, अन्य का मानना है कि शिमला समझौता भारत की कूटनीतिक जीत थी, क्योंकि इसने कश्मीर को द्विपक्षीय मुद्दा बना दिया।
इंदिरा गांधी की चर्चा क्यों ?
इंदिरा गांधी की 1971 के युद्ध और युद्धविराम में भूमिका कई कारणों से चर्चा का विषय बनी उन्होंने वैश्विक दबावों (विशेष रूप से अमेरिका और चीन) के बावजूद दृढ़ता दिखाई। अमेरिका ने अपने सातवें नौसैनिक बेड़े को बंगाल की खाड़ी में भेजा था, लेकिन इंदिरा ने स्पष्ट किया कि भारत किसी के दबाव में नहीं आएगा। उनके नेतृत्व में भारत ने न केवल युद्ध जीता, बल्कि एक नए राष्ट्र के निर्माण में योगदान दिया, जिसने उन्हें वैश्विक मंच पर “आयरन लेडी” की उपाधि दिलाई।
सोवियत संघ के साथ संधि और युद्ध के बाद शिमला समझौते ने भारत की स्थिति को मजबूत किया। कुछ लोग मानते हैं कि उन्होंने युद्धबंदियों और कब्जाए गए क्षेत्रों को बहुत जल्दी लौटा दिया, जिससे कश्मीर मुद्दे का स्थायी समाधान नहीं हो सका।
इंदिरा गांधी का ऐतिहासिक महत्व !
आयरन लेडी: इंदिरा गांधी को उनकी दृढ़ता और साहस के लिए “आयरन लेडी” कहा गया। हेनरी किसिंजर ने उनकी तुलना विश्व की सबसे मजबूत नेताओं से की। 1971 में अमेरिका के गैलप सर्वे में वे दुनिया की सबसे लोकप्रिय महिला थीं। उन्हें भारत रत्न (1972) सहित कई अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार मिले। युद्ध की जीत ने उनकी लोकप्रियता को चरम पर पहुंचाया, जिसके परिणामस्वरूप 1972 में उनकी पार्टी ने कई राज्य चुनावों में जीत हासिल की।
भारत-पाकिस्तान युद्ध और युद्धविराम !
इंदिरा गांधी की 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध और युद्धविराम में भूमिका भारत के इतिहास में एक स्वर्णिम अध्याय है। उनकी रणनीतिक दूरदर्शिता, कूटनीतिक चातुर्य, और साहस ने न केवल भारत को विजय दिलाई, बल्कि बांग्लादेश के निर्माण के माध्यम से दक्षिण एशिया के भू-राजनीतिक परिदृश्य को बदल दिया। हालांकि, शिमला समझौते को लेकर कुछ आलोचनाएं भी रहीं, लेकिन उनकी नेतृत्व क्षमता और वैश्विक प्रभाव को नकारा नहीं जा सकता। यह युद्ध और इसके परिणाम आज भी भारत-पाकिस्तान संबंधों और इंदिरा गांधी के ऐतिहासिक योगदान की चर्चा का केंद्र बने हुए हैं।