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Home राष्ट्रीय

वित्तीय समावेशन- एक सफरनामा

पहल टाइम्स डेस्क by पहल टाइम्स डेस्क
December 17, 2022
in राष्ट्रीय, विशेष, व्यापार
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india economy
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अजय सेठ और माइकल देवव्रत पात्र


समाज के कमजोर एवं कम आय वाले वर्गों जैसे बेसहारा तबकों को वित्तीय सेवाओं के साथ-साथ उनको समय पर और किफायती दरों पर पर्याप्त मात्रा में क्रेडिट सुलभ कराने को दुनिया-भर में आर्थिक विकास और गरीबी उन्मूलन की दिशा में एक प्रमुख प्रेरक तत्व माना जाता है। यदि समाज के कमजोर तबकों की पहुंच औपचारिक वित्त तक हो तो इससे रोजगार पैदा करने की गति को बल मिलेगा, आर्थिक आघात लगने की संभावना कम हो सकती है और इससे मानव पूंजी में किए जाने वाले निवेशों में भी इजाफा होगा। संयुक्त राष्ट्र के सत्रह सतत विकास लक्ष्यों (एसडीजी) में से सात  लक्ष्यों में वित्तीय समावेशन को एक ऐसे सक्षमता कारक तत्व के रूप में शामिल किया गया है जिसकी बदौलत समाज के गरीब एवं उपेक्षित तबकों के जीवन स्तर में सुधार लाया जा सकता है।

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वर्ष 2010 में जी-20 के देशों ने वित्तीय समावेशन के लक्ष्य को पूरा करने के लिए वैश्विक स्तर पर भागीदारी  (जीपीएफआई) की जरूरत पर अपनी सहमति व्यक्त की थी जिसका उद्देश्य वित्तीय समावेशन पर आधारित एक संवाद शुरू करना था जिसके केंद्र में वंचित एवं जरूरतमंद लोग, सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम हों। वर्ष  2011 में, जी-20 के नेताओं ने विप्रेषण की लागत को कम करने के मुद्दे पर अपनी प्रतिबद्धता प्रदर्शित की थी। वर्ष 2016 में डिजिटल वित्तीय समावेशन (डीएफआई) के संबंध में कुछ उच्चस्तरीय सिद्धांतों की रचना की गई थी ताकि उनसे मार्गदर्शन प्राप्त करते हुए सभी देश डिजिटल परिवर्तन के अपने मार्ग पर आगे बढ़ सकें। जीपीएफआई वित्तीय ग्राहक संरक्षण और वित्तीय साक्षरता के विभिन्न पहलुओं को ध्यान में रखते हुए डिजिटल वित्तीय समावेशन को सुविधाजनक बनाने और लघु और मध्यम उद्यमों को वित्त के विकल्प मुहैया कराने की दिशा में निरंतर प्रयास कर रहा है।

वित्तीय समावेशन का अभियान प्रत्येक देश में अपनी तरह से सबसे अलग किस्म का रहा है, जिसे उस देश की राष्ट्रीय प्राथमिकताओं, सुधारों को लागू करने की उसकी संस्थागत क्षमता, वित्तीय बाजारों का विकास, भुगतान के बुनियादी ढांचे, वित्तीय क्षमता और वे सांस्कृतिक मान्यताएं रूपाकार देती हैं जिनसे लोगों का वित्तीय व्यवहार तय होता है।

भारत में वित्तीय समावेशन की नीतियों के अंतर्गत बैंक शाखा नेटवर्क के विस्तार को उन क्षेत्रों तक ले जाना जहां बेंकिंग एवं वित्तीय सेवाएं नहीं पहुंची हैं या सीमित दायरों तक पहुंची हैं, समाज के ऐसे वर्गों को ऋण प्रवाह प्रदान करना जो क्रेडिट बाजारों की ऋण सुविधाओं से वंचित रह गए हैं, अग्रणी बैंक योजना का शुभारंभ, स्वयं सेवी समूहों और संयुक्त देयता समूहों (जेएलजी) को बढ़ावा देना, किसान क्रेडिट कार्ड (केसीसी) और बुनियादी बचत बैंक जमा खातों (बीएसबीडीए) की शुरुआत करना शामिल हैं जिसका उद्देश्य व्यापार प्रतिनिधियों के माध्यम से अंतिम व्यक्ति तक वित्तीय सेवाएं पहुंचाना है।
प्रधान मंत्री जनधन योजना (पीएमजेडीवाई) कार्यक्रम का शुभारंभ एक ऐतिहासिक क्षण था जिसे प्रत्येक हाउसहोल्ड को और उसके बाद बैंकिंग सुविधाओं से रहित प्रत्येक वयस्क व्यक्ति को बैंक खातों तक पहुंच प्रदान करने के लिए प्रारंभ किया गया था। पीएमजेडीवाई की घोषणा प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने 15 अगस्त 2014 को अपने स्वतंत्रता दिवस के भाषण में की थी। 28 अगस्त 2014 को कार्यक्रम की शुरुआत करते हुए प्रधानमंत्री ने गरीबों के लिए इस अवसर को गरीबी के दुष्चक्र से मुक्ति का जश्न मनाने के उत्सव के रूप में वर्णित किया था। इस पहल को आगे बढ़ाते हुए, जेएएम (जनधन, आधार और मोबाइल) की त्रयी ने वित्तीय समावेशन के क्षेत्र में एक बड़ा बदलाव किया और सुविधाजनक, सुरक्षित, संरक्षित, पारदर्शी और किफायती तरीके से डिजिटल भुगतान को सर्वव्यापी बनाने के काम को सुगम बनाया। महामारी के दौरान जेएएम ईको-सिस्टम की सुदृढ़ता का परीक्षण हो गया था, जब 54 मंत्रालयों की 319 सरकारी योजनाओं के तहत 5.53 लाख करोड़ की धनराशि प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण (डीबीटी) के माध्यम से कमजोर वर्गों को समय पर राहत के रूप में प्रदान की गई थी। जेएएम इको-सिस्टम के आधार पर देश ने लैंगिक अंतर को पाटने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम बढ़ाए हैं। पिछले एक दशक में महिलाओं की जमा राशि पुरुषों की तुलना में तेजी से बढ़ रही है।

समग्र प्रणाली के स्तर पर वित्तीय समावेशन, वित्तीय साक्षरता और उपभोक्ता संरक्षण सुनिश्चित करने के लिए वित्तीय क्षेत्र के सभी नियामकों द्वारा समन्वित दृष्टिकोण अपनाए जाने के संबंध में एक रोड मैप प्रदान करने के उद्देश्य से वित्तीय समावेशन हेतु राष्ट्रीय कार्यनीति (एनएसएफआई) 2019-24 और वित्तीय शिक्षण हेतु राष्ट्रीय कार्यनीति (एनएसएफई): 2020-25 की शुरुआत की गई है।

भारतीय रिज़र्व बैंक (आरबीआई) द्वारा एक वित्तीय समावेशन (एफआई) सूचकांक विकसित किया गया है जो वित्तीय सेवाओं के सुरक्षित और संरक्षित उपयोग में सुधार और सतत वित्तीय समावेशन की उपलब्धि की गुणवत्ता में सुधार के लिए समावेशन प्रयासों के मांग पक्ष पर अधिक से अधिक केंद्रित कार्रवाई की आवश्यकता पर प्रकाश डालता है।

भारत सूक्ष्म, लघु और मध्यम आकार के उद्यमों (एमएसएमई) को नकदी प्रवाह-आधारित उधार सहित ऋण देने के लिए डिजिटल सहमति के आधार पर वित्तीय डेटा साझा करने हेतु भारत एक विश्व स्तरीय भुगतान अवसंरचना विकसित करके, यूपीआई, आधार, जीएसटीएन, डिजिटल कॉमर्स के लिए ओपन नेटवर्क (ओएनडीसी) और डिजिटल की सुविधा के लिए अकाउंट एग्रीगेटर्स (एए) जैसे डिजिटल बुनियादी ढांचे का लाभ उठाकर ‘लास्ट माइल कनेक्टिविटी’ की समस्या को दूर करने में अग्रणी देश रहा है। डिजिटलीकृत भूमि अभिलेखों को एकीकृत करने वाले फिनटेक सल्युशन्स किसानों को सुचारु रूप से ऋण की सुविधा प्रदान करते हैं। ग्राहकों की डिजिटल ऑनबोर्डिंग को बढ़ावा देने के लिए वीडियो आधारित ग्राहक पहचान प्रक्रिया (वी-सीआईपी) शुरू की गई है। खुदरा भुगतान, सीमा-पार भुगतान और एमएसएमई ऋण देने के लिए आरबीआई द्वारा नियामक सैंडबॉक्स समूह (रेग्युलेटरी सैंडबॉक्स को-हॉर्ट्स) स्थापित किए गए हैं जिसका उद्देश्य जिम्मेदार नवाचार को बढ़ावा देना है। यह उम्मीद की जाती है कि आगे चलकर यूपीआई, ई-केवाईसी और एए की त्रिमूर्ति के द्वारा सभी के लिए अपनी आवश्यकता के अनुरूप एवं समावेशी वित्तीय सेवाएं प्राप्त करने के क्षेत्र में अगली क्रांति की शुरुआत हो। 1 दिसंबर 2022 से भारत द्वारा जी-20 की अध्यक्षता ग्रहण करने के बाद से देश वैश्विक स्तर पर वित्तीय समावेशन पारिस्थितिकी तंत्र के आधार को गहरा बनाने के लिए डिजिटल सार्वजनिक अवसंरचना (डिजिटल पहचान, डिजिटल भुगतान और डेटा की डिजिटल सहमति-आधारित विनिमय) के महत्व को अपना मुखर समर्थन देने का प्रयास करेगा।

लेन-देन की लागत और सूचना विषमता में कमी लाकर समावेशन के लिए पारंपरिक बाधाओं को दूर करके डिजिटल नवाचार वित्तीय समावेशन को आगे बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं, विशेष रूप से एमएसएमई और छोटे और सीमांत किसानों जैसे वंचित समूहों के मामले में।


नोट : भारत में बैंकिंग की प्रवृत्ति और प्रगति पर रिपोर्ट 2020-21 का अंश

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