प्रकाश मेहरा
एग्जीक्यूटिव एडिटर
नई दिल्ली। इजरायल और ईरान के बीच हालिया सैन्य तनाव, विशेष रूप से 13 जून 2025 को शुरू हुए इजरायल के “ऑपरेशन राइजिंग लॉयन” और ईरान के जवाबी “ऑपरेशन ट्रू प्रॉमिस थ्री” ने मध्य पूर्व में एक बड़े युद्ध को जन्म दिया है। इस संघर्ष ने भारत के लिए जटिल कूटनीतिक, आर्थिक और सामरिक चुनौतियां खड़ी की हैं। भारत के इजरायल के साथ मजबूत रक्षा और तकनीकी संबंध हैं, लेकिन साथ ही ईरान और अरब देशों (जैसे सऊदी अरब, UAE) के साथ भी रणनीतिक और आर्थिक साझेदारी है। इस तनाव ने भारत को एक नाजुक संतुलन बनाए रखने के लिए मजबूर किया है।
भारत के लिए मुश्किलें क्यों बढ़ीं ?
भारत और इजरायल के बीच 1992 में पूर्ण कूटनीतिक संबंध स्थापित होने के बाद से रक्षा, तकनीक, और कृषि में सहयोग बढ़ा है। भारत इजरायल से 42.1% हथियार आयात करता है, जो रूस के बाद दूसरा सबसे बड़ा आपूर्तिकर्ता है। हाल ही में, इजरायल ने भारत के 22 अप्रैल 2025 को पहलगाम आतंकी हमले और 7 मई 2025 को पाकिस्तान पर भारत के हवाई हमलों का समर्थन किया।
भारत और ईरान के बीच सभ्यतागत और रणनीतिक संबंध हैं, विशेष रूप से चाबहार बंदरगाह और ऊर्जा आपूर्ति के क्षेत्र में। 2003 के नई दिल्ली घोषणापत्र में भारत और ईरान ने क्षेत्रीय स्थिरता और कश्मीर मुद्दे पर सहयोग की नींव रखी थी।
इजरायल-ईरान युद्ध ने भारत को तटस्थ रुख अपनाने के लिए मजबूर किया। भारत ने दोनों देशों से संयम और शांति की अपील की है, क्योंकि अरब देशों (UAE, सऊदी अरब) के साथ भी भारत के आर्थिक और ऊर्जा हित जुड़े हैं।
क्या पड़ेंगे आर्थिक प्रभाव !
इजरायल-ईरान युद्ध के कारण कच्चे तेल की कीमतों में 12% की वृद्धि हुई, जिससे भारत का आयात बिल बढ़ गया। भारत अपनी तेल जरूरतों का 85% आयात करता है, जिसमें खाड़ी देशों (सऊदी अरब, UAE, इराक) का बड़ा हिस्सा है। तेल कीमतों में यह उछाल महंगाई और व्यापार घाटे को बढ़ा सकता है। युद्ध के कारण सेंसेक्स में 1100 अंकों की गिरावट आई और निवेशकों का 8 लाख करोड़ रुपये का नुकसान हुआ। सोने की कीमतें भी MCX पर 1 लाख रुपये प्रति 10 ग्राम से ऊपर पहुंच गईं, जो भारत की अर्थव्यवस्था पर दबाव डाल रही हैं।
भारत-मध्य पूर्व-यूरोप आर्थिक कॉरिडोर (IMEEC), जिसमें इजरायल एक महत्वपूर्ण भागीदार है, इस युद्ध के कारण रुक सकता है। यह कॉरिडोर भारत के लिए क्षेत्रीय कनेक्टिविटी और व्यापार के लिए महत्वपूर्ण है।
रक्षा और हथियारों की आपूर्ति पर सवाल
इजरायल भारत का प्रमुख हथियार आपूर्तिकर्ता है, जिसमें ड्रोन (हेरॉन, हारोप), मिसाइल (बराक-8), और निगरानी उपकरण शामिल हैं। हाल ही में, भारत की एक कंपनी को इजरायल के लिए 1400 करोड़ रुपये की रॉकेट लॉन्चर डील मिली। हालांकि, इजरायल के गाजा युद्ध और अब ईरान के साथ संघर्ष के कारण हथियार निर्यात पर अंतरराष्ट्रीय दबाव बढ़ रहा है।
क्षेत्रीय स्थिरता और भारतीय प्रवासी
मध्य पूर्व में 90 लाख से अधिक भारतीय प्रवासी रहते हैं, खासकर खाड़ी देशों में। युद्ध के कारण वहां अस्थिरता भारत के लिए चिंता का विषय है। विदेश मंत्रालय ने इजरायल और ईरान में भारतीय नागरिकों के लिए सलाह जारी की है, जिसमें गैर-जरूरी यात्रा से बचने को कहा गया है। सीरिया में हालिया अस्थिरता (असद सरकार का पतन) और इजरायल-हिजबुल्लाह तनाव ने भारत की चिंताओं को और बढ़ा दिया है।
भारत का रुख और रणनीति
भारत ने इजरायल-ईरान युद्ध में तटस्थ रुख अपनाया है और दोनों पक्षों से संयम बरतने की अपील की है। विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने दोहा फोरम में क्षेत्रीय अस्थिरता पर चिंता जताई और कूटनीति को बढ़ावा देने की बात कही। भारत ने हमेशा दो-राष्ट्र सिद्धांत का समर्थन किया है और गाजा में मानवीय सहायता भेजी है। यह भारत की अरब देशों और वैश्विक दक्षिण के साथ छवि को बनाए रखने की कोशिश है।
भारत ने इजरायल के साथ रक्षा सहयोग को मजबूत रखा है, लेकिन ईरान और अरब देशों के साथ व्यापार और ऊर्जा संबंधों को भी संतुलित करने की कोशिश की है।
क्षेत्रीय शांति के लिए सक्रिय भूमिका !
इजरायल-ईरान युद्ध ने भारत के लिए कूटनीतिक, आर्थिक और सामरिक चुनौतियां बढ़ा दी हैं। भारत को अपनी रणनीतिक स्वायत्तता बनाए रखते हुए इजरायल, ईरान और अरब देशों के साथ संबंधों का संतुलन बनाना होगा। तेल की कीमतों में उछाल, क्षेत्रीय अस्थिरता, और हथियार निर्यात पर अंतरराष्ट्रीय दबाव भारत के लिए प्रमुख चिंताएं हैं। साथ ही, घरेलू स्तर पर विपक्ष और मुस्लिम समुदाय की भावनाओं को भी संभालना होगा। भारत की तटस्थ और कूटनीतिक नीति इस संकट में उसकी स्थिति को मजबूत कर सकती है, बशर्ते वह क्षेत्रीय शांति के लिए सक्रिय भूमिका निभाए।