प्रकाश मेहरा
एग्जीक्यूटिव एडिटर
नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने 4 अगस्त को कांग्रेस नेता और लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी को भारत जोड़ो यात्रा के दौरान भारतीय सेना और चीन द्वारा कथित रूप से 2000 वर्ग किलोमीटर भारतीय जमीन पर कब्जे के बयान को लेकर सख्त फटकार लगाई। यह मामला उदय शंकर श्रीवास्तव द्वारा दायर एक मानहानि केस से संबंधित है, जिसमें राहुल गांधी पर भारतीय सेना के खिलाफ अपमानजनक टिप्पणी करने का आरोप लगाया गया था।
सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी
जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस ऑगस्टिन जॉर्ज मसीह की बेंच ने सुनवाई के दौरान राहुल गांधी से सवाल किया “आपको कैसे पता चला कि चीन ने 2000 वर्ग किलोमीटर जमीन पर कब्जा कर लिया है? आपके पास क्या विश्वसनीय जानकारी है?”
“अगर आप सच्चे भारतीय होते, तो ऐसी बातें नहीं कहते।” कोर्ट ने जोर देकर कहा कि “जब सीमा पर तनावपूर्ण स्थिति हो, तब विपक्ष के नेता को ऐसे बयान देने से बचना चाहिए।”
कोर्ट ने यह भी पूछा कि “राहुल गांधी ने इस मुद्दे को संसद में उठाने के बजाय सोशल मीडिया पर क्यों उठाया। “आप विपक्ष के नेता हैं, आपको संसद में सवाल उठाना चाहिए था।”
कोर्ट ने राहुल गांधी को सलाह दी कि “वे अपनी संवैधानिक भूमिका की गरिमा बनाए रखें और सार्वजनिक बयानों में सावधानी बरतें।”
भारत जोड़ो यात्रा (2022)
राहुल गांधी ने 16 दिसंबर 2022 को अपनी यात्रा के दौरान गलवान घाटी में भारत-चीन सैन्य झड़प का जिक्र करते हुए कहा था कि चीनी सैनिक भारतीय सैनिकों को पीट रहे हैं और चीन ने भारत की 2000 वर्ग किलोमीटर जमीन पर कब्जा कर लिया है। इस बयान पर उदय शंकर श्रीवास्तव, जो सीमा सड़क संगठन (BRO) के पूर्व निदेशक हैं, ने लखनऊ की एक अदालत में मानहानि का मुकदमा दर्ज किया, जिसमें दावा किया गया कि इस बयान ने सेना का अपमान किया और उनका मनोबल गिराया।
इलाहाबाद हाईकोर्ट का फैसला
राहुल गांधी ने इस मामले में लखनऊ कोर्ट के समन को चुनौती देते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी, जिसे 29 मई 2025 को खारिज कर दिया गया। हाईकोर्ट ने कहा था कि बोलने की आजादी की भी सीमाएं होती हैं और सेना का अपमान बर्दाश्त नहीं किया जा सकता। इसके बाद राहुल गांधी ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की, जिसमें उन्होंने समन और मानहानि शिकायत को दुर्भावनापूर्ण बताते हुए रद्द करने की मांग की।
सुप्रीम कोर्ट का फैसला
सुप्रीम कोर्ट ने राहुल गांधी को तात्कालिक राहत देते हुए लखनऊ की निचली अदालत में चल रही मानहानि की कार्यवाही पर रोक लगा दी। कोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार और शिकायतकर्ता उदय शंकर श्रीवास्तव को नोटिस जारी कर जवाब मांगा। मामले की अगली सुनवाई तीन सप्ताह बाद तय की गई है।
राहुल गांधी की ओर से वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि उनके खिलाफ मानहानि का मुकदमा दर्ज करने की कोई जरूरत नहीं थी और संज्ञान लेने से पहले उन्हें प्राकृतिक न्याय (सुनवाई का अवसर) नहीं दिया गया। उन्होंने यह भी कहा कि राहुल गांधी कोई दागी व्यक्ति नहीं हैं और न ही पीड़ित हैं।
कोर्ट की टिप्पणी विश्वसनीयता पर सवाल
कोर्ट ने राहुल गांधी के दावे की विश्वसनीयता पर सवाल उठाया और पूछा कि क्या उनके पास 2000 वर्ग किलोमीटर जमीन पर कब्जे का कोई ठोस सबूत है। कोर्ट ने कहा कि सीमा पर तनाव के समय ऐसे बयान राष्ट्रीय हित के खिलाफ हो सकते हैं। “जब सीमा पर विवाद हो, तो क्या आप ऐसा कह सकते हैं?”
कोर्ट ने सुझाव दिया कि “राहुल गांधी को ऐसे संवेदनशील मुद्दों को सोशल मीडिया के बजाय संसद में उठाना चाहिए था। कोर्ट ने राहुल गांधी को भविष्य में सार्वजनिक बयानों में सावधानी बरतने की नसीहत दी।
भारतीय जमीन पर कब्जे का दावा
राहुल गांधी ने पहले भी कई बार चीन द्वारा भारतीय जमीन पर कब्जे का दावा किया है। उदाहरण के लिए, 25 अगस्त 2022 को कारगिल में एक रैली और लोकसभा में शून्यकाल के दौरान उन्होंने कहा था कि चीन ने 4000 वर्ग किलोमीटर जमीन पर कब्जा किया है। उन्होंने विदेश सचिव विक्रम मिस्री के चीनी दूतावास में एक कार्यक्रम में शामिल होने पर भी सवाल उठाए थे। विदेश मंत्री एस जयशंकर ने राहुल गांधी के दावों का खंडन करते हुए कहा था कि चीन ने 1962 में ही कुछ जमीन पर कब्जा किया था, और राहुल के बयान इसे हाल की घटना के रूप में पेश करते हैं, जो गलत है।
सार्वजनिक मंचों पर ऐसे बयानों से बचना चाहिए
सुप्रीम कोर्ट ने राहुल गांधी के बयान को गैर-जिम्मेदाराना माना और उन्हें सावधानी बरतने की सलाह दी, लेकिन साथ ही लखनऊ कोर्ट की कार्यवाही पर रोक लगाकर उन्हें राहत भी दी। यह मामला राष्ट्रीय सुरक्षा और बोलने की आजादी के बीच संतुलन को लेकर एक महत्वपूर्ण बहस को जन्म देता है। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि विपक्ष के नेता के रूप में राहुल गांधी को अपनी बात संसद में रखनी चाहिए और सार्वजनिक मंचों पर ऐसे बयानों से बचना चाहिए जो विवादास्पद हों।