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PM, CM से जुड़े बिल पर अमित शाह बोले…’केजरीवाल ने जेल जाने के बाद इस्तीफा दिया होता तो..!

पहल टाइम्स डेस्क by पहल टाइम्स डेस्क
August 23, 2025
in राष्ट्रीय
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amit shah
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प्रकाश मेहरा
एग्जीक्यूटिव एडिटर


नई दिल्ली: केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने हाल ही में लोकसभा में तीन महत्वपूर्ण विधेयकों को पेश किया, जिनमें संविधान (130वां संशोधन) विधेयक 2025, केंद्र शासित प्रदेश सरकार (संशोधन) विधेयक 2025, और जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन (संशोधन) विधेयक 2025 शामिल हैं। इन विधेयकों का मुख्य उद्देश्य गंभीर आपराधिक मामलों में 30 दिनों से अधिक समय तक हिरासत में रहने वाले प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री, या मंत्रियों को उनके पद से हटाना है।

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इस बिल के प्रावधान के अनुसार, यदि कोई नेता 5 साल या उससे अधिक सजा वाले अपराध के लिए 30 दिनों तक हिरासत में रहता है, तो 31वें दिन उसे स्वतः पद से हटा दिया जाएगा, बशर्ते वह खुद इस्तीफा न दे। जमानत मिलने के बाद ऐसे नेता को दोबारा पद पर नियुक्त किया जा सकता है।

अमित शाह का केजरीवाल पर निशाना

अमित शाह ने इन विधेयकों को पेश करते हुए दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल का जिक्र किया। उन्होंने कहा कि यदि केजरीवाल ने शराब घोटाले में अपनी गिरफ्तारी के बाद तुरंत इस्तीफा दे दिया होता, तो शायद इस तरह के कानून की जरूरत ही नहीं पड़ती। शाह ने तंज कसते हुए कहा कि संविधान निर्माताओं ने कभी नहीं सोचा था कि कोई नेता जेल से सरकार चलाएगा। उन्होंने यह भी उल्लेख किया कि 70 साल पहले, जेल जाने वाले मंत्रियों और मुख्यमंत्रियों ने नैतिकता के आधार पर इस्तीफा दे दिया था, लेकिन हाल के समय में कुछ नेता, जैसे केजरीवाल, जेल में रहते हुए भी पद पर बने रहे।

शाह ने अपनी व्यक्तिगत मिसाल देते हुए कहा कि 2010 में जब उन पर फर्जी मुठभेड़ मामले में आरोप लगे थे, उन्होंने गुजरात के गृहमंत्री पद से गिरफ्तारी से पहले ही इस्तीफा दे दिया था और कोर्ट से बरी होने के बाद ही दोबारा पद संभाला। उन्होंने इसे नैतिकता का उदाहरण बताया।

बिल का उद्देश्य और प्रावधान

प्रस्तावित विधेयकों में निम्नलिखित प्रमुख प्रावधान शामिल हैं यदि कोई प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री, या मंत्री 5 साल या उससे अधिक सजा वाले अपराध में 30 दिनों तक हिरासत में रहता है, तो उसे 31वें दिन तक इस्तीफा देना होगा, अन्यथा वह स्वतः पद से हटा दिया जाएगा।

यह नियम केंद्र, राज्य सरकारों, और केंद्र शासित प्रदेशों पर लागू होगा। जमानत मिलने के बाद संबंधित नेता को दोबारा पद पर नियुक्त किया जा सकता है। यह बिल विधायकों और सांसदों पर लागू नहीं है, केवल संवैधानिक पदों (PM, CM, मंत्रियों) पर लागू होगा।

शाह ने कहा कि “यह बिल किसी विशेष पार्टी को निशाना बनाने के लिए नहीं है, बल्कि यह सुशासन और राजनीति में नैतिकता को बढ़ावा देने के लिए है। उन्होंने यह भी जोड़ा कि यह नियम भाजपा के नेताओं और प्रधानमंत्री पर भी समान रूप से लागू होगा।

People of the nation have to decide whether they want a PM, CM, or minister to run government from jail. pic.twitter.com/a8yiTYXM5T

— Amit Shah (@AmitShah) August 22, 2025

विपक्ष का विरोध

विपक्षी दलों, विशेष रूप से कांग्रेस, टीएमसी, सपा, और AIMIM ने इस बिल का कड़ा विरोध किया। उनका कहना है कि यह बिल संविधान के खिलाफ है और इसका दुरुपयोग विपक्षी नेताओं को निशाना बनाने के लिए हो सकता है। कांग्रेस नेता के.सी. वेणुगोपाल और अभिषेक मनु सिंघवी ने इसे लोकतंत्र और संघीय ढांचे को कमजोर करने वाला बताया। कुछ विपक्षी सांसदों ने बिल की प्रतियां फाड़ दीं और सदन में हंगामा किया। विपक्ष का तर्क है कि बिना दोष सिद्ध हुए किसी को पद से हटाना प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों के खिलाफ है।

केजरीवाल और अन्य मामले

इस बिल को लाने की प्रेरणा दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और तमिलनाडु के पूर्व मंत्री वी. सेंथिल बालाजी के मामलों से मिली। केजरीवाल ने शराब घोटाले में मार्च 2024 में गिरफ्तारी के बाद करीब 6 महीने तक जेल से सरकार चलाई और 17 सितंबर 2024 को इस्तीफा दिया। इसी तरह, सेंथिल बालाजी ने मनी लॉन्ड्रिंग और कैश-फॉर-जॉब घोटाले में गिरफ्तारी के बावजूद लंबे समय तक मंत्री पद पर बने रहे। सुप्रीम कोर्ट और मद्रास हाई कोर्ट ने उनके मामले में हस्तक्षेप किया, जिसके बाद उन्होंने इस्तीफा दिया।

झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन का उदाहरण भी दिया गया, जिन्होंने जेल जाने से पहले इस्तीफा दे दिया था, जिसे नैतिकता का उदाहरण माना गया।

क्या है बिल की स्थिति ?

बिल को संयुक्त संसदीय समिति (JPC) को भेजा गया है, जिसमें सत्तापक्ष और विपक्ष दोनों के सांसद शामिल होंगे। JPC इस बिल की समीक्षा करेगी और अगले संसद सत्र में इसे पारित करने की कोशिश की जाएगी। हालांकि, संविधान संशोधन के लिए दो-तिहाई बहुमत की जरूरत होती है, जिसके कारण इसके पारित होने में चुनौतियां हो सकती हैं। विपक्ष के कड़े विरोध को देखते हुए सरकार को इसे पास कराने के लिए विपक्ष का समर्थन जुटाना होगा।

अमित शाह के इस बिल को सरकार सुशासन और राजनीतिक नैतिकता को बढ़ावा देने वाला कदम बता रही है, जबकि विपक्ष इसे राजनीतिक हथियार और विपक्षी नेताओं को निशाना बनाने का उपकरण मानता है। इस बिल का भविष्य JPC की समीक्षा और संसद में होने वाली चर्चा पर निर्भर करेगा।

 

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