स्पेशल डेस्क/नई दिल्ली: तीसरे विश्व युद्ध की संभावना एक जटिल और काल्पनिक परिदृश्य है, जिसका विश्लेषण वर्तमान भू-राजनीतिक स्थिति, देशों के बीच गठबंधनों और उनके रणनीतिक हितों के आधार पर किया जा सकता है। रूस-यूक्रेन युद्ध, जो 2022 से चल रहा है, वैश्विक स्तर पर देशों को दो खेमों में बांटने का एक प्रमुख कारक रहा है। यदि यह संघर्ष तीसरे विश्व युद्ध में बदलता है, तो देशों का पक्ष विभिन्न कारकों जैसे सैन्य गठबंधन, आर्थिक हित, वैचारिक समानता और क्षेत्रीय प्रभाव पर निर्भर करेगा। आइए इस पूरे मामले को विस्तार से एग्जीक्यूटिव एडिटर प्रकाश मेहरा से समझते हैं।
रूस के पक्ष में संभावित देश
रूस के साथ उन देशों के खड़े होने की संभावना है जो या तो उसके साथ सैन्य, आर्थिक या वैचारिक रूप से जुड़े हैं, या जो पश्चिमी देशों (विशेषकर नाटो) के खिलाफ हैं। कुछ देश रूस के पक्ष में हो सकते हैं।
बेलारूस रूस का सबसे करीबी सहयोगी है। रूस-यूक्रेन युद्ध में बेलारूस ने रूस को सैन्य और रसद समर्थन प्रदान किया है, जिसमें रूसी सेना को अपने क्षेत्र से यूक्रेन पर हमला करने की अनुमति देना शामिल है। बेलारूस के राष्ट्रपति अलेक्जेंडर लुकाशेंको रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के साथ मजबूत संबंध रखते हैं। रूस ने बेलारूस को आर्थिक और सैन्य सहायता प्रदान की है, और दोनों देश यूनियन स्टेट समझौते के तहत एकीकृत हैं।
चीन और रूस के बीच रणनीतिक साझेदारी
चीन और रूस के बीच रणनीतिक साझेदारी हाल के वर्षों में गहरी हुई है। दोनों देश पश्चिमी प्रभाव, विशेषकर अमेरिका और नाटो के खिलाफ एकजुट हैं। चीन ने रूस-यूक्रेन युद्ध में रूस के खिलाफ पश्चिमी प्रतिबंधों की आलोचना की है और रूस के साथ व्यापार बढ़ाया है। हालांकि चीन ने खुले तौर पर रूस को सैन्य सहायता नहीं दी, लेकिन उसने रूस के साथ संयुक्त सैन्य अभ्यास किए हैं और आर्थिक रूप से रूस का समर्थन किया है। तीसरे विश्व युद्ध में चीन रूस के साथ खड़ा हो सकता है, खासकर अगर युद्ध अमेरिका और नाटो के खिलाफ केंद्रित हो। हालांकि, चीन की भागीदारी सशर्त हो सकती है, क्योंकि वह वैश्विक आर्थिक स्थिरता को प्राथमिकता देता है।
उत्तर कोरिया रूस का मजबूत समर्थक
उत्तर कोरिया रूस का पुराना सहयोगी है और पश्चिमी देशों के खिलाफ रूस के साथ खड़ा रहा है। उत्तर कोरिया ने रूस को हथियार और गोला-बारूद की आपूर्ति की है, जैसा कि यूक्रेन युद्ध में देखा गया। उत्तर कोरिया के नेता किम जॉन्ग-उन ने रूस के साथ सैन्य सहयोग बढ़ाया है। रूस ने उत्तर कोरिया को तकनीकी सहायता और आर्थिक समर्थन प्रदान किया है। तीसरे विश्व युद्ध में उत्तर कोरिया रूस का मजबूत समर्थक हो सकता है।
ईरान ने रूस-यूक्रेन युद्ध में रूस को ड्रोन और मिसाइल जैसे हथियार प्रदान किए हैं। दोनों देश पश्चिमी प्रतिबंधों का सामना कर रहे हैं और नाटो के खिलाफ एकजुट हैं। ईरान और रूस के बीच सैन्य और ऊर्जा सहयोग बढ़ रहा है। ईरान मध्य पूर्व में अपने प्रभाव का उपयोग रूस के पक्ष में कर सकता है, खासकर अगर युद्ध मध्य पूर्व तक फैलता है।
सीरिया में रूस का सैन्य हस्तक्षेप (2015 से) ने बशर अल-असद की सरकार को बचाया है। सीरिया रूस का आभारी है और रूस के साथ सैन्य सहयोग करता है। सीरिया में रूसी सैन्य अड्डे हैं, और यह देश रूस के लिए मध्य पूर्व में एक रणनीतिक गढ़ है। तीसरे विश्व युद्ध में सीरिया रूस के साथ खड़ा रहेगा।
संभावित सहयोगी कौन से ?
क्यूबा, वेनेजुएला, और निकारागुआ ये देश ऐतिहासिक रूप से अमेरिका-विरोधी रहे हैं और रूस के साथ संबंध रखते हैं। हालांकि, उनकी सैन्य और आर्थिक क्षमता सीमित है, इसलिए उनका योगदान प्रतीकात्मक हो सकता है। कुछ अफ्रीकी देश सूडान, माली, और बुर्किना फासो जैसे देश, जहां रूस का प्रभाव बढ़ रहा है (वैगनर समूह के माध्यम से), रूस का समर्थन कर सकते हैं।
यूक्रेन के पक्ष में संभावित देश
यूक्रेन का समर्थन मुख्य रूप से पश्चिमी देशों और नाटो गठबंधन से मिल रहा है। तीसरे विश्व युद्ध में कुछ देश यूक्रेन के साथ हो सकते हैं अमेरिका यूक्रेन का सबसे बड़ा समर्थक है, जिसने यूक्रेन को अरबों डॉलर की सैन्य और आर्थिक सहायता प्रदान की है। रूस को वैश्विक प्रभाव के लिए एक प्रतिद्वंद्वी मानते हुए, अमेरिका नाटो के नेतृत्व में यूक्रेन का समर्थन करता है। अमेरिका ने यूक्रेन को हथियार (जैसे हिमार्स, पैट्रियट मिसाइल सिस्टम) और खुफिया जानकारी प्रदान की है। तीसरे विश्व युद्ध में अमेरिका नाटो गठबंधन के साथ यूक्रेन का प्रमुख समर्थक होगा।
यूरोपीय नाटो सदस्य यूके, जर्मनी, फ्रांस, इटली, पोलैंड, नॉर्वे, स्वीडन, फिनलैंड, डेनमार्क और अन्य नाटो देश यूक्रेन को सैन्य और आर्थिक सहायता दे रहे हैं। ये देश रूस के खिलाफ एकजुट हैं और नाटो की सामूहिक रक्षा नीति के तहत यूक्रेन का समर्थन करेंगे। पोलैंड और बाल्टिक देश (लिथुआनिया, लातविया, एस्टोनिया) रूस के पड़ोसी होने के कारण विशेष रूप से यूक्रेन के समर्थन में सक्रिय हैं। यूके और फ्रांस ने लंबी दूरी की मिसाइलें और प्रशिक्षण प्रदान किया है।
जापान और दक्षिण कोरिया
जापान और दक्षिण कोरिया ने रूस के खिलाफ प्रतिबंध लगाए हैं और यूक्रेन को मानवीय सहायता प्रदान की है। दोनों देश अमेरिका के सहयोगी हैं और रूस-चीन गठजोड़ के खिलाफ हैं। जापान ने यूक्रेन को आर्थिक सहायता दी है, जबकि दक्षिण कोरिया ने अप्रत्यक्ष रूप से हथियारों की आपूर्ति की है (जैसे अमेरिका के माध्यम से गोला-बारूद)।
ऑस्ट्रेलिया और कनाडा
दोनों देश नाटो के सहयोगी हैं और यूक्रेन को सैन्य और मानवीय सहायता प्रदान कर रहे हैं। वे पश्चिमी गठबंधन का हिस्सा हैं और रूस के खिलाफ प्रतिबंधों में शामिल हैं। कनाडा ने यूक्रेन को तोपखाने और प्रशिक्षण प्रदान किया है, जबकि ऑस्ट्रेलिया ने बख्तरबंद वाहन और आर्थिक सहायता दी है।
इजरायल और संयुक्त अरब अमीरात
इजरायल और यूएई पश्चिमी गठबंधन के करीब हैं। इजरायल ने यूक्रेन को मानवीय सहायता प्रदान की है और यूएई ने तटस्थता बनाए रखते हुए पश्चिमी देशों के साथ व्यापारिक संबंधों को प्राथमिकता दी है। इजरायल रूस के साथ अपने संबंधों को संतुलित करता है, लेकिन तीसरे विश्व युद्ध में वह पश्चिमी गठबंधन के साथ रहने की संभावना है।
तटस्थ या मध्यस्थ भूमिका वाले देश
कुछ देश तटस्थ रह सकते हैं या शांति वार्ता में मध्यस्थ की भूमिका निभा सकते हैं। इनमें शामिल हैं। भारत ने रूस-यूक्रेन युद्ध में तटस्थता की नीति अपनाई है। भारत के रूस के साथ ऐतिहासिक रक्षा और आर्थिक संबंध हैं, लेकिन वह अमेरिका और पश्चिमी देशों के साथ भी संबंध मजबूत कर रहा है। भारत ने रूस के खिलाफ प्रतिबंधों में शामिल होने से इनकार किया है और रूस से तेल आयात बढ़ाया है। हालांकि, भारत ने शांति की वकालत की है और युद्ध को रोकने के लिए कूटनीतिक प्रयासों का समर्थन किया है। तीसरे विश्व युद्ध में भारत शायद किसी एक पक्ष में खुलकर न जाए और शांति वार्ता में मध्यस्थ की भूमिका निभाए।
ब्राजील, दक्षिण अफ्रीका और इंडोनेशिया
ये देश ब्रिक्स (BRICS) समूह के सदस्य हैं और वैश्विक दक्षिण का प्रतिनिधित्व करते हैं। ये देश आमतौर पर गुट-निरपेक्ष नीति अपनाते हैं। ये देश युद्ध में सीधे शामिल होने से बच सकते हैं और शांति वार्ता या मानवीय सहायता पर ध्यान दे सकते हैं।
सऊदी अरब और अन्य खाड़ी देश
सऊदी अरब और अन्य खाड़ी देश (जैसे कतर) अमेरिका के साथ सैन्य और आर्थिक संबंध रखते हैं, लेकिन वे रूस और चीन के साथ भी व्यापार करते हैं। सऊदी अरब ने रूस-यूक्रेन युद्ध में तटस्थता बनाए रखी है और तेल उत्पादन पर रूस के साथ सहयोग किया है (OPEC+ के तहत)। तीसरे विश्व युद्ध में ये देश तटस्थ रह सकते हैं या क्षेत्रीय हितों के आधार पर सीमित समर्थन दे सकते हैं।
तीसरे विश्व युद्ध के संभावित परिणाम
रूस और उसके सहयोगियों (जैसे उत्तर कोरिया, ईरान) के पास परमाणु हथियार हैं, जबकि अमेरिका और नाटो देशों के पास भी विशाल परमाणु शस्त्रागार हैं। रूसी नेताओं, जैसे दिमित्री मेदवेदेव, ने परमाणु युद्ध की चेतावनी दी है। तीसरे विश्व युद्ध से वैश्विक अर्थव्यवस्था को भारी नुकसान हो सकता है, जिसमें आपूर्ति श्रृंखला बाधित होना, तेल संकट और पर्यावरणीय विनाश शामिल हैं। युद्ध के बाद कुछ देशों (जैसे यूक्रेन) का भौगोलिक आकार बदल सकता है, जैसा कि रूस द्वारा यूक्रेन के कुछ हिस्सों पर कब्जे से संकेत मिलता है।
क्या है भारत की भूमिका !
भारत की स्थिति तीसरे विश्व युद्ध में महत्वपूर्ण होगी। भारत ने ऐतिहासिक रूप से गुट-निरपेक्ष नीति अपनाई है, लेकिन बदलते वैश्विक समीकरणों में वह रणनीतिक रूप से संतुलन बनाए रखेगा। भारत रूस से रक्षा उपकरण और तेल आयात करता है, लेकिन क्वाड (Quad) और अन्य पश्चिमी गठबंधनों के माध्यम से अमेरिका और जापान के साथ भी सहयोग बढ़ा रहा है। भारत शायद युद्ध में सीधे शामिल होने से बचे और शांति वार्ता को बढ़ावा दे।
वैश्विक कूटनीति के माध्यम से युद्ध
तीसरे विश्व युद्ध के परिदृश्य में, रूस के पक्ष में बेलारूस, चीन, उत्तर कोरिया, ईरान और सीरिया जैसे देश हो सकते हैं, जबकि यूक्रेन के पक्ष में अमेरिका, नाटो देश (यूके, जर्मनी, फ्रांस, पोलैंड, आदि), जापान, दक्षिण कोरिया, ऑस्ट्रेलिया और कनाडा जैसे देश होंगे। भारत, ब्राजील और कुछ खाड़ी देश तटस्थ रह सकते हैं और शांति स्थापना में भूमिका निभा सकते हैं। हालांकि, यह परिदृश्य अभी काल्पनिक है, और वैश्विक कूटनीति के माध्यम से युद्ध को टालने के प्रयास जारी हैं।