स्पेशल डेस्क
नई दिल्ली। भारत और तुर्की के बीच व्यापार में 63% की कमी और “बॉयकॉट तुर्की” अभियान का मामला हाल के भू-राजनीतिक तनावों से जुड़ा है, विशेष रूप से तुर्की द्वारा पाकिस्तान का समर्थन करने के कारण। इसका पूरा विश्लेषण एग्जीक्यूटिव एडिटर प्रकाश मेहरा से जानते है।
व्यापार में कमी का कारण !
भू-राजनीतिक तनाव भारत और पाकिस्तान के बीच हालिया तनाव, विशेष रूप से पहलगाम आतंकी हमले और भारत के “ऑपरेशन सिंदूर” के बाद, तुर्की ने खुलकर पाकिस्तान का समर्थन किया। सूत्रों के अनुसार, तुर्की ने पाकिस्तान को ड्रोन और सैन्य उपकरण प्रदान किए, जिनका उपयोग भारत के खिलाफ किया गया। इस समर्थन ने भारत में तुर्की के प्रति आक्रोश पैदा किया, जिससे व्यापार और पर्यटन पर असर पड़ा।
पहले से घटता व्यापार
डायरेक्टरेट जनरल ऑफ कमर्शियल इंटेलिजेंस एंड स्टैटिस्टिक्स (DGCIS) के आंकड़ों के अनुसार, वित्त वर्ष 2022-23 से 2024-25 के बीच भारत और तुर्की का कुल व्यापार 63% कम हुआ, जो 5,400.85 मिलियन डॉलर से घटकर 2,721.9 मिलियन डॉलर हो गया। वित्त वर्ष 2024-25 (अप्रैल-फरवरी) में भारत का तुर्की को निर्यात 5.2 अरब डॉलर और आयात 2.84 अरब डॉलर रहा, जो भारत के कुल निर्यात और आयात का क्रमशः 1.5% और 0.5% है। व्यापार में यह कमी आंशिक रूप से नीतिगत बदलावों, वैकल्पिक स्रोतों की तलाश और तुर्की के प्रति घटते विश्वास के कारण हुई।
आर्थिक और रणनीतिक कदम !
भारत ने तुर्की से आयात, जैसे मार्बल (70% भारत का मार्बल आयात तुर्की से), सेब (1,000-1,200 करोड़ रुपये वार्षिक) और अन्य उत्पादों (कालीन, जैतून का तेल, हस्तशिल्प) को कम करने के लिए वैकल्पिक स्रोतों (ईरान, हिमाचल, उत्तराखंड) की ओर रुख किया। उदयपुर के मार्बल व्यापारियों और पुणे के फल विक्रेताओं ने तुर्की से आयात बंद कर दिया, जो राष्ट्रीय भावनाओं और सरकार के साथ एकजुटता का प्रतीक है।
भारत में बॉयकॉट तुर्की अभियान
तुर्की के पाकिस्तान समर्थन के बाद, भारत में #BoycottTurkey सोशल मीडिया पर ट्रेंड करने लगा। व्यापारियों, ट्रैवल एजेंसियों, और आम जनता ने तुर्की के उत्पादों और सेवाओं का बहिष्कार शुरू किया।कॉन्फेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स (CAIT) ने व्यापारियों से तुर्की और अजरबैजान के साथ व्यापार बंद करने की अपील की। पुणे और मुंबई में तुर्की के सेब की बिक्री बंद हो गई, और व्यापारी अब हिमाचल, उत्तराखंड, ईरान, और न्यूजीलैंड से सेब मंगा रहे हैं।
पर्यटन पर बड़ा प्रभाव
तुर्की और अजरबैजान की अर्थव्यवस्था में पर्यटन का बड़ा योगदान है (तुर्की की GDP का 12%, अजरबैजान का 7.6%)। 2024 में 3.3 लाख भारतीय तुर्की और 2.43 लाख अजरबैजान गए। ट्रैवल कंपनियों जैसे EaseMyTrip, Ixigo, Cox & Kings, और MakeMyTrip ने तुर्की और अजरबैजान के लिए बुकिंग रोक दी। EaseMyTrip ने “Nation First, Business After” का नारा दिया। छह दिनों में तुर्की की 50% से अधिक ट्रैवल बुकिंग रद्द हुई, जिससे अनुमानित 3,000 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ।
लखनऊ के सर्राफा बाजार में तुर्की के आभूषणों का आयात बंद किया गया। जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (JNU) ने तुर्की की इनोनू यूनिवर्सिटी के साथ शैक्षणिक सहयोग समाप्त कर दिया। तुर्की की कंपनी सेलेबी एविएशन, जो दिल्ली-मुंबई हवाई अड्डों की सुरक्षा संभालती है, को हटाने की मांग उठी।
भारत और तुर्की के बीच व्यापार
भारत और तुर्की के बीच व्यापार में भारत का पलड़ा भारी है। 2023-24 में भारत ने 6.65 अरब डॉलर का निर्यात और 3.78 अरब डॉलर का आयात किया, जिससे 2.87 अरब डॉलर का trade surplus रहा।भारत ने तुर्की को कई बार मदद की, जैसे 1920 के स्वतंत्रता संग्राम, प्रथम विश्व युद्ध के बाद, और 2023 के भूकंप में “ऑपरेशन दोस्त” के तहत। तुर्की का पाकिस्तान के प्रति झुकाव और भारत के खिलाफ रुख (जैसे NSG में भारत की सदस्यता का विरोध) ने संबंधों को तनावपूर्ण बनाया।
नीतिगत बदलावों और वैकल्पिक स्रोतों की तलाश !
भारत और तुर्की के बीच व्यापार में 63% की कमी पहले से ही नीतिगत बदलावों और वैकल्पिक स्रोतों की तलाश का परिणाम थी। तुर्की के पाकिस्तान समर्थन ने इस कमी को और तेज किया, जिससे “बॉयकॉट तुर्की” अभियान ने जोर पकड़ा। यह अभियान न केवल व्यापार, बल्कि पर्यटन, शिक्षा और अन्य क्षेत्रों में तुर्की को आर्थिक नुकसान पहुंचा रहा है। भारत की रणनीति वैकल्पिक स्रोतों पर निर्भरता और राष्ट्रीय भावनाओं को मजबूत करने की है, जिससे तुर्की पर दबाव बढ़ रहा है।