स्पेशल डेस्क/नई दिल्ली: “साइलेंट शिकारी” के रूप में भारतीय नौसेना की परमाणु पनडुब्बी INS अरिघाट की हालिया तैनाती और इसकी K-4 बैलिस्टिक मिसाइल की सफल टेस्टिंग ने चीन और पाकिस्तान में खलबली मचा दी है। यह पनडुब्बी भारत की सामरिक ताकत को नए स्तर पर ले जाती है और क्षेत्रीय सुरक्षा परिदृश्य में महत्वपूर्ण बदलाव लाती है। आइए इसे पहल विशेष में एक्जीक्यूटिव एडिटर प्रकाश मेहरा से समझते हैं।
INS अरिघाट साइलेंट शिकारी !
INS अरिघाट भारत की दूसरी परमाणु ऊर्जा से संचालित बैलिस्टिक मिसाइल पनडुब्बी (SSBN) है, जिसे 29 अगस्त 2024 को विशाखापट्टनम में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने कमीशन किया। यह अरिहंत-श्रेणी की पनडुब्बी है, जो भारत के न्यूक्लियर ट्रायड (जमीन, हवा, और समुद्र से परमाणु हमले की क्षमता) को मजबूत करती है। “साइलेंट शिकारी” उपनाम इसकी stealth (चुपके) तकनीक और लंबे समय तक समुद्र में गुप्त रूप से रहने की क्षमता के कारण दिया गया है, जो इसे शत्रु के लिए “अदृश्य” और घातक बनाता है।
- यह पनडुब्बी 6,000 टन वजन की है और 12 K-15 (750 किमी रेंज) या 4 K-4 (3,500-4,000 किमी रेंज) बैलिस्टिक मिसाइलें ले जा सकती है।
- K-4 मिसाइल टेस्ट पड़ोसियों में खौफ: नवंबर 2024 में, भारतीय नौसेना ने INS अरिघाट से K-4 सबमरीन-लॉन्च बैलिस्टिक मिसाइल (SLBM) का सफल परीक्षण किया।
- K-4 मिसाइल की खासियत इसकी रेंज 3,500-4,000 किमी, जो पूरे पाकिस्तान और चीन के अधिकांश शहरों (बीजिंग, शंघाई सहित) को कवर करती है। अत्यधिक सटीक मारक क्षमता, जो इसे सामरिक और रणनीतिक दोनों उद्देश्यों के लिए प्रभावी बनाती है।
- यह भारत को परमाणु हमले का जवाब देने की गारंटी देती है, क्योंकि पनडुब्बी समुद्र में गुप्त रहकर हमला कर सकती है। इस टेस्ट की पुष्टि नौसेना प्रमुख एडमिरल दिनेश त्रिपाठी ने की, जिसने क्षेत्रीय शक्तियों में चिंता बढ़ा दी।
चीन और पाकिस्तान में भय क्यों ?
पाकिस्तान की नौसेना की तुलना में भारत की पनडुब्बी तकनीक कहीं अधिक उन्नत है। K-4 की रेंज पूरे पाकिस्तान को निशाना बना सकती है, जिससे उसकी रक्षा रणनीति कमजोर पड़ती है।
हाल के वर्षों में पाकिस्तान ने चीन की मदद से अपनी नौसेना को बढ़ाने की कोशिश की है, जिसमें 50 जहाजों का बेड़ा बनाने की योजना शामिल है। लेकिन INS अरिघाट की तैनाती ने इन योजनाओं पर पानी फेर दिया।
भारत की “नो फर्स्ट यूज” नीति !
हिंद महासागर में चीन की बढ़ती गतिविधियों, जैसे जासूसी जहाजों और कोको द्वीप पर सैन्य ठिकानों के अपग्रेड, पर भारत की नौसेना नजर रख रही है। INS अरिघाट की तैनाती ने इस क्षेत्र में भारत की स्थिति को मजबूत किया है। चीनी नौसेना (PLAN) की योजना 2025 तक 400 जहाजों और 2030 तक 440 जहाजों तक बेड़ा बढ़ाने की है। लेकिन भारत की परमाणु पनडुब्बी और ड्रोन निगरानी (जैसे MQ-9 रीपर) ने चीन की रणनीति को चुनौती दी है। K-4 की रेंज और भारत की “नो फर्स्ट यूज” नीति के बावजूद, यह चीन के लिए एक बड़ा deterrent (निवारक) है।
भारत की रणनीतिक बढ़त
भारतीय नौसेना हिंद-प्रशांत में स्थिरता और सुरक्षा के लिए क्वाड (भारत, अमेरिका, जापान, ऑस्ट्रेलिया) के साथ सहयोग बढ़ा रही है। INS अरिघाट इस रणनीति का हिस्सा है।अप्रैल 2023 में, भारत ने अंडमान और निकोबार में MQ-9 ड्रोन तैनात किया, जो चीन की गतिविधियों पर नजर रखता है।
INS अरिघाट और K-4 ने भारत के न्यूक्लियर ट्रायड को पूरा किया, जिससे यह परमाणु शक्ति के रूप में और मजबूत हुआ। भारत अब 5,000 किमी रेंज वाली MIRV (Multiple Independently Targetable Reentry Vehicle) मिसाइल विकसित करने पर काम कर रहा है, जो अग्नि-5 पर आधारित होगी। इससे भारत की मारक क्षमता एशिया, अफ्रीका, और दक्षिण चीन सागर तक बढ़ जाएगी।
क्षेत्रीय और वैश्विक प्रतिक्रियाएं !
चीन ने भारत की सैन्य कार्रवाइयों पर “खेद” जताया है और भारत-पाकिस्तान से शांति बनाए रखने की अपील की है। पाकिस्तान ने इस तैनाती पर प्रत्यक्ष टिप्पणी नहीं की, लेकिन वह चीन से हथियारों और CPEC परियोजनाओं के लिए भारी निवेश ले रहा है।अमेरिका ने हिंद-प्रशांत में भारत को “स्थिरता का वाहक” बताया है और इस क्षेत्र में चीन की गतिविधियों को “पागलपन” करार दिया है।
नई मिसाइल और पनडुब्बी परियोजनाएं !
INS अरिघाट और K-4 मिसाइल की तैनाती ने भारतीय नौसेना को “साइलेंट शिकारी” के रूप में स्थापित किया है, जो हिंद महासागर और हिंद-प्रशांत क्षेत्र में भारत की सामरिक ताकत को बढ़ाता है। यह न केवल चीन और पाकिस्तान के लिए एक चेतावनी है, बल्कि भारत की “नो फर्स्ट यूज” नीति के तहत एक मजबूत रक्षा रणनीति भी है। भविष्य में, भारत की नई मिसाइल और पनडुब्बी परियोजनाएं क्षेत्रीय शक्ति संतुलन को और प्रभावित करेंगी।