स्पेशल डेस्क/नई दिल्ली: बगलिहार डैम, जिसे बगलिहार हाइड्रोइलेक्ट्रिक पावर प्रोजेक्ट के नाम से भी जाना जाता है, भारत के जम्मू और कश्मीर के रामबन जिले में चिनाब नदी पर स्थित एक महत्वपूर्ण जलविद्युत परियोजना है। इस बांध को लेकर भारत और पाकिस्तान के बीच लंबे समय से विवाद रहा है, और हाल के वर्षों में यह दोनों देशों के बीच तनाव का एक प्रमुख कारण बन गया है। पाकिस्तान को इस बांध से डर की वजहें ऐतिहासिक, भौगोलिक, आर्थिक, और रणनीतिक कारकों का मिश्रण हैं। नीचे इस मुद्दे को विस्तार से एग्जीक्यूटिव एडिटर प्रकाश मेहरा ने समझाया है।
देशों की कृषि और अर्थव्यवस्था का आधार !
बगलिहार डैम एक रन-ऑफ-द-रिवर (Run-of-the-River) जलविद्युत परियोजना है, जिसका निर्माण 2008 में पूरा हुआ। इसका प्राथमिक उद्देश्य बिजली उत्पादन (450 मेगावाट की क्षमता) और स्थानीय क्षेत्र में बाढ़ नियंत्रण है। यह चिनाब नदी पर बना है, जो सिन्धु नदी की एक प्रमुख सहायक नदी है। सिन्धु नदी प्रणाली भारत और पाकिस्तान दोनों के लिए महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह दोनों देशों की कृषि और अर्थव्यवस्था का आधार है।
सिन्धु जल संधि (Indus Waters Treaty): 1960 में भारत और पाकिस्तान के बीच हुए इस समझौते के तहत सिन्धु नदी प्रणाली की छह नदियों को दो हिस्सों में बांटा गया। भारत में सतलुज, रावी, और ब्यास नदियों पर पूर्ण नियंत्रण। पाकिस्तान में सिन्धु, झेलम, और चिनाब नदियों पर प्राथमिक नियंत्रण, लेकिन भारत को इन नदियों पर सीमित उपयोग (जैसे, जलविद्युत परियोजनाएं) की अनुमति। बगलिहार डैम चिनाब नदी पर होने के कारण इस संधि के दायरे में आता है, और पाकिस्तान का मानना है कि भारत इस संधि का उल्लंघन कर रहा है।
पाकिस्तान को डर क्या ?
पाकिस्तान का डर बगलिहार डैम को लेकर कई स्तरों पर है। चिनाब नदी पाकिस्तान की कृषि और अर्थव्यवस्था के लिए महत्वपूर्ण है, विशेष रूप से पंजाब प्रांत में, जो देश का कृषि केंद्र है। बगलिहार डैम के गेट्स को बंद करके भारत चिनाब नदी के जल प्रवाह को नियंत्रित कर सकता है, जिससे पाकिस्तान में पानी की कमी हो सकती है। मई 2025 में, भारत ने पहलगाम आतंकी हमले के जवाब में सिन्धु जल संधि को निलंबित कर दिया और बगलिहार डैम से चिनाब नदी के जल प्रवाह को रोक दिया।
इसके परिणामस्वरूप पाकिस्तान में पानी की आपूर्ति पर गंभीर प्रभाव पड़ा, जिससे वहां खौफ का माहौल बन गया। पाकिस्तान की 80% से अधिक कृषि सिंचाई पर निर्भर है, और चिनाब नदी का पानी इसकी रीढ़ है। जल प्रवाह में कमी से फसलों को नुकसान, खाद्य संकट, और आर्थिक अस्थिरता का खतरा है।
सिन्धु जल संधि का उल्लंघन !
पाकिस्तान का आरोप: पाकिस्तान का दावा है कि बगलिहार डैम का डिज़ाइन और संचालन सिन्धु जल संधि का उल्लंघन करता है। विशेष रूप से, डैम के गेट्स और जल भंडारण की क्षमता को लेकर आपत्तियां हैं। पाकिस्तान का कहना है कि भारत इन गेट्स का उपयोग करके पानी को रोक सकता है, जो संधि के नियमों के खिलाफ है। 2005 में पाकिस्तान ने इस मुद्दे को विश्व बैंक के समक्ष उठाया, जो सिन्धु जल संधि का मध्यस्थ है।
विश्व बैंक ने एक तटस्थ विशेषज्ञ नियुक्त किया, जिसने 2007 में कुछ तकनीकी बदलावों की सिफारिश की, जैसे गेट्स की ऊंचाई कम करना। भारत ने इन बदलावों को लागू किया, लेकिन पाकिस्तान अभी भी संतुष्ट नहीं है। सिन्धु जल संधि के निलंबन के बाद, पाकिस्तान को डर है कि भारत अब बिना किसी प्रतिबंध के चिनाब और झेलम नदियों (किशनगंगा डैम के साथ) के पानी को नियंत्रित करेगा, जिससे उसकी जल सुरक्षा खतरे में पड़ जाएगी।
रणनीतिक और सैन्य खतरा !
भारत की जवाबी कार्रवाई: पहलगाम आतंकी हमले (22 अप्रैल) के बाद भारत ने न केवल सिन्धु जल संधि को निलंबित किया, बल्कि अटारी-वाघा बॉर्डर चेकपोस्ट को बंद कर दिया और पाकिस्तानी नागरिकों के वीजा रद्द कर दिए। इन कदमों ने पाकिस्तान में भारत के संभावित सैन्य या रणनीतिक हमले का डर बढ़ा दिया है। पानी का हथियार के रूप में उपयोग पाकिस्तान को डर है कि भारत पानी को एक रणनीतिक हथियार के रूप में उपयोग कर सकता है। उदाहरण के लिए, बगलिहार डैम से पानी रोककर भारत पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था और सामाजिक स्थिरता को कमजोर कर सकता है, बिना सैन्य कार्रवाई के।
पाकिस्तान ने भारत के संभावित हवाई हमले के डर से लाहौर और कराची का एयरस्पेस एक महीने के लिए बंद कर दिया। कराची हार्बर, जो पाकिस्तान का आर्थिक और सैन्य केंद्र है, चिनाब नदी के जल प्रवाह पर निर्भर है। पानी की कमी से इस क्षेत्र की सुरक्षा और अर्थव्यवस्था पर असर पड़ सकता है।
आर्थिक और सामाजिक अस्थिरता !
पाकिस्तान पहले से ही आर्थिक संकट से जूझ रहा है। पानी की कमी से कृषि उत्पादन में कमी, बेरोजगारी, और सामाजिक अशांति बढ़ सकती है। बलूचिस्तान जैसे क्षेत्रों में पहले से ही अलगाववादी आंदोलन चल रहे हैं। पानी की कमी से इन क्षेत्रों में असंतोष और हिंसा बढ़ सकती है, जिससे पाकिस्तान सरकार के लिए स्थिति और जटिल हो जाएगी। CPEC परियोजनाएं, जो पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था के लिए महत्वपूर्ण हैं, भी पानी की उपलब्धता पर निर्भर हैं। बगलिहार डैम से जल प्रवाह में कमी से इन परियोजनाओं पर असर पड़ सकता है, जिससे चीन के साथ पाकिस्तान के संबंधों पर भी प्रभाव पड़ सकता है।
ऐतिहासिक और मनोवैज्ञानिक डर !
भारत और पाकिस्तान के बीच 1947 के विभाजन के बाद से ही तनाव रहा है, जिसमें कश्मीर विवाद और सिन्धु नदी प्रणाली के बंटवारे ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। पाकिस्तान को लगता है कि भारत अपनी भौगोलिक स्थिति (चिनाब नदी का उद्गम भारत में) का लाभ उठाकर उसे कमजोर करने की कोशिश कर रहा है। भारत का आरोप है कि पाकिस्तान कश्मीर में आतंकवाद को बढ़ावा देता है, और पहलगाम हमले जैसे घटनाओं के जवाब में भारत ने पानी रोकने जैसे कदम उठाए हैं। पाकिस्तान को डर है कि भारत भविष्य में भी ऐसी कार्रवाइयों को दोहराएगा।
पाकिस्तान ने क्या दी प्रतिक्रिया ?
पाकिस्तान ने बगलिहार डैम और सिन्धु जल संधि के निलंबन को लेकर कई कदम उठाए हैं पाकिस्तान ने भारत के कदमों को “युद्ध की कार्यवाही” करार दिया और विश्व बैंक से हस्तक्षेप की मांग की। कराची हार्बर पर J-10, JF-17, और F-16 जैसे लड़ाकू विमान तैनात किए गए हैं। साथ ही, पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (PoK) में मेडिकल इमरजेंसी घोषित की गई है। पाकिस्तान के पूर्व विदेश मंत्री बिलावल भुट्टो ने सिन्धु जल संधि तोड़ने पर “नदी में खून बहाने” और परमाणु हथियारों के उपयोग की धमकी दी है। लाहौर और कराची के एयरस्पेस को बंद करना और वाघा बॉर्डर को बंद करना जैसे कदम उठाए गए हैं।
भारत करेगा आतंकवाद के खिलाफ कार्रवाई ?
भारत का कहना है कि पहलगाम हमले जैसे आतंकी घटनाओं के जवाब में वह सख्त कदम उठाने को मजबूर है। सिन्धु जल संधि का निलंबन और बगलिहार डैम से पानी रोकना इसी रणनीति का हिस्सा है।भारत का दावा है कि उसने हमेशा सिन्धु जल संधि का पालन किया है, और बगलिहार डैम का निर्माण संधि के नियमों के अनुसार हुआ है। हालांकि, हाल के कदम संधि को निलंबित करने की दिशा में हैं, जिसे भारत आतंकवाद के खिलाफ जवाबी कार्रवाई मानता है। चिनाब और झेलम नदियों पर भारत की भौगोलिक स्थिति उसे रणनीतिक लाभ देती है, जिसका उपयोग वह पाकिस्तान पर दबाव बनाने के लिए कर रहा है।
सिन्धु जल संधि में विश्व बैंक मध्यस्थ की भूमिका !
सिन्धु जल संधि में विश्व बैंक मध्यस्थ की भूमिका निभाता है, लेकिन भारत के संधि निलंबन के बाद इसकी भूमिका सीमित हो गई है। चीन, जो CPEC के माध्यम से पाकिस्तान का प्रमुख सहयोगी है, इस विवाद में अभी तक तटस्थ रहा है। हालांकि, चिनाब नदी पर पानी की कमी से CPEC परियोजनाओं पर असर पड़ सकता है, जिससे भविष्य में चीन की प्रतिक्रिया संभव है। पहलगाम हमले और भारत-पाक तनाव के बाद अंतरराष्ट्रीय समुदाय तनाव कम करने की कोशिश कर रहा है, लेकिन दोनों देशों के कड़े रुख के कारण यह चुनौतीपूर्ण है।
दोनों देशों के बीच तनाव पूर्ण युद्ध !
पाकिस्तान ने सिन्धु जल संधि तोड़ने को युद्ध की घोषणा माना है, और दोनों देशों के बीच तनाव पूर्ण युद्ध की स्थिति तक पहुंच सकता है। पाकिस्तान में पानी की कमी से दीर्घकालिक आर्थिक और सामाजिक अस्थिरता बढ़ सकती है, जिसका असर पूरे दक्षिण एशिया पर पड़ सकता है। यदि दोनों देश संवाद की मेज पर आते हैं, तो विश्व बैंक या अन्य तटस्थ मध्यस्थों की मदद से विवाद का हल निकाला जा सकता है। हालांकि, वर्तमान में यह संभावना कम दिखती है।
डर केवल जल प्रवाह तक सीमित नहीं !
बगलिहार डैम को लेकर पाकिस्तान का डर केवल जल प्रवाह तक सीमित नहीं है, बल्कि यह एक रणनीतिक, आर्थिक और ऐतिहासिक विवाद का हिस्सा है। भारत की हालिया कार्रवाइयां, जैसे सिन्धु जल संधि का निलंबन और चिनाब नदी के जल प्रवाह को रोकना, ने पाकिस्तान की चिंताओं को और बढ़ा दिया है। यह डर पाकिस्तान की कृषि, अर्थव्यवस्था, और आंतरिक स्थिरता पर गंभीर प्रभाव डाल सकता है। दूसरी ओर, भारत इसे आतंकवाद के खिलाफ अपनी रणनीति का हिस्सा मानता है। इस स्थिति ने दोनों देशों के बीच तनाव को चरम पर पहुंचा दिया है, और भविष्य में इसका समाधान कूटनीति, सैन्य ताकत, या अंतरराष्ट्रीय हस्तक्षेप पर निर्भर करेगा।