विशेष डेस्क/नई दिल्ली: भारत में गैर-नागरिकों को वोट देने का अधिकार मिलने का मुद्दा मुख्य रूप से मतदाता पंजीकरण प्रक्रिया में खामियों से जुड़ा है, विशेषकर फॉर्म 6 के उपयोग से। भारतीय संविधान के अनुसार, केवल 18 वर्ष या उससे अधिक आयु के भारतीय नागरिकों को मतदान का अधिकार है (अनुच्छेद 326)। हालांकि, गैर-नागरिकों के वोटर लिस्ट में शामिल होने की संभावना कुछ प्रक्रियात्मक कमियों के कारण उत्पन्न होती है। आइये इस मुद्दे का विस्तृत विश्लेषण एग्जीक्यूटिव एडिटर प्रकाश मेहरा से समझते हैं।
गैर-नागरिकों को अधिकार कैसे मिल जाता है ?
मतदाता सूची में पंजीकरण के लिए फॉर्म 6 भरा जाता है, जिसमें आवेदक को अपनी नागरिकता साबित करने के लिए कोई विशिष्ट दस्तावेज जमा करने की आवश्यकता नहीं होती। केवल जन्मतिथि, पता और एक स्व-घोषणा पत्र पर्याप्त है।
इस फॉर्म में आधार कार्ड, पैन कार्ड या ड्राइविंग लाइसेंस जैसे दस्तावेजों को पहचान के लिए स्वीकार किया जाता है, लेकिन ये दस्तावेज नागरिकता का प्रमाण नहीं देते। इससे गैर-नागरिक, विशेष रूप से अवैध प्रवासी, गलत तरीके से मतदाता सूची में शामिल हो सकते हैं, क्योंकि उनकी नागरिकता की जांच के लिए कोई सख्त तंत्र नहीं है।
प्रमाणीकरण प्रक्रिया का अभाव
मतदाता पंजीकरण के दौरान स्थानीय स्तर पर दस्तावेजों की जांच होती है, लेकिन यह प्रक्रिया अक्सर अपर्याप्त होती है। स्थानीय अधिकारी बिना गहन जांच के फॉर्म स्वीकार कर सकते हैं। एक पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त के अनुसार, दशकों से अवैध प्रवासियों की मौजूदगी के कारण मतदाता सूची में गैर-नागरिकों के नाम शामिल होने की समस्या बनी हुई है।
आधार कार्ड को मतदाता पंजीकरण में पहचान के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है, लेकिन यह नागरिकता का प्रमाण नहीं है। गैर-नागरिकों को भी आधार कार्ड जारी हो सकता है, जिससे वे फॉर्म 6 के माध्यम से मतदाता सूची में शामिल हो सकते हैं। भारत के कुछ सीमावर्ती राज्यों, जैसे असम और पश्चिम बंगाल, में अवैध प्रवासियों की मौजूदगी के कारण यह समस्या अधिक गंभीर है। इन क्षेत्रों में गैर-नागरिकों के मतदाता सूची में शामिल होने की शिकायतें बार-बार सामने आती हैं।
असली दिक्कत क्या है ? नागरिकता सत्यापन की कमी
सबसे बड़ी समस्या यह है कि “मतदाता पंजीकरण प्रक्रिया में नागरिकता की पुष्टि के लिए कोई ठोस तंत्र नहीं है। फॉर्म 6 में केवल स्व-घोषणा की आवश्यकता होती है, जिसे आसानी से गलत बयानी के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है। चुनाव आयोग समय-समय पर स्पेशल इंटेसिव रिवीजन (SIR) के माध्यम से मतदाता सूची को अपडेट करने और गैर-नागरिकों को हटाने की कोशिश करता है। लेकिन, यह प्रक्रिया संसाधनों की कमी और स्थानीय स्तर पर सत्यापन की चुनौतियों के कारण पूरी तरह प्रभावी नहीं हो पाती।
क्या है अवैध प्रवास का मुद्दा !
भारत में अवैध प्रवासियों की संख्या, विशेषकर बांग्लादेश और अन्य पड़ोसी देशों से, एक दीर्घकालिक समस्या है। इन प्रवासियों के पास अक्सर जाली दस्तावेज या स्थानीय सहायता होती है, जिससे वे मतदाता सूची में शामिल हो जाते हैं। कुछ मामलों में, स्थानीय राजनीतिक प्रभाव के कारण गैर-नागरिकों को मतदाता सूची में शामिल करने की प्रक्रिया को नजरअंदाज किया जाता है। यह विशेष रूप से उन क्षेत्रों में होता है जहां वोट बैंक की राजनीति प्रभावी है।
कानूनी और प्रशासनिक जटिलताएं
System: -वोटर्स (संदिग्ध मतदाता) की श्रेणी एक विशेष उदाहरण है। असम में लगभग एक लाख लोग डी-वोटर्स के रूप में चिह्नित हैं, जिनकी नागरिकता पर सवाल उठाए गए हैं। इन लोगों को मतदान का अधिकार नहीं है, लेकिन उनकी पहचान और स्थिति का निर्धारण करने की प्रक्रिया धीमी और विवादास्पद है।
फॉरेनर्स ट्रिब्यूनल जैसे संस्थान नागरिकता के मामलों की जांच करते हैं, लेकिन इनकी प्रक्रिया में पारदर्शिता की कमी और लंबा समय लगना आम शिकायतें हैं।
सुधार की जरूरत स्पेशल इंटेसिव रिवीजन (SIR)
चुनाव आयोग ने हाल ही में बिहार से शुरू करते हुए मतदाता सूची को अपडेट करने और गैर-नागरिकों को हटाने की प्रक्रिया शुरू की है। लेकिन, फॉर्म 6 की खामियों के कारण यह पूरी तरह प्रभावी नहीं हो पा रहा। एक पूर्व सीईसी ने सुझाव दिया है कि “न केवल फॉर्म 6, बल्कि पूरी मतदाता पंजीकरण प्रक्रिया पर पुनर्विचार की जरूरत है ताकि अवैध प्रवासियों को वोटर लिस्ट में शामिल होने से रोका जा सके।”
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 326 स्पष्ट रूप से कहता है कि “मतदान का अधिकार केवल भारतीय नागरिकों को है।” सुप्रीम कोर्ट ने विभिन्न मामलों (जैसे ज्योति बसु बनाम देबी घोषाल, 1982 और कुलदीप नैयर बनाम भारत संघ, 2006) में कहा है कि “वोट देने का अधिकार मौलिक अधिकार नहीं, बल्कि एक संवैधानिक या वैधानिक अधिकार है। गैर-नागरिकों को मतदान से वंचित करने के लिए कानून मौजूद हैं, लेकिन उनकी पहचान और हटाने की प्रक्रिया में व्यावहारिक चुनौतियां हैं।
नागरिकता सत्यापन को अनिवार्य करना
फॉर्म 6 में नागरिकता के प्रमाण के लिए पासपोर्ट, जन्म प्रमाण पत्र या अन्य विश्वसनीय दस्तावेज अनिवार्य किए जाएं। मतदाता पंजीकरण के लिए डिजिटल डेटाबेस का उपयोग, जैसे एनआरसी या अन्य नागरिकता रजिस्टर, जो गैर-नागरिकों की पहचान कर सके। स्थानीय अधिकारियों को नागरिकता सत्यापन के लिए प्रशिक्षित करना और उनकी जवाबदेही सुनिश्चित करना। मतदाता सूची की जांच प्रक्रिया को और पारदर्शी बनाना, ताकि आम लोग और राजनीतिक दल इस पर नजर रख सकें।
भारत में गैर-नागरिकों को वोट देने का अधिकार मिलने की समस्या फॉर्म 6 और मतदाता पंजीकरण प्रक्रिया की कमियों से उत्पन्न होती है, जिसमें नागरिकता सत्यापन का अभाव प्रमुख है। असली दिक्कत प्रक्रियात्मक खामियों, अवैध प्रवास, और स्थानीय स्तर पर सत्यापन की कमी में निहित है। चुनाव आयोग के हालिया प्रयासों के बावजूद, इस समस्या का समाधान तभी संभव है जब पंजीकरण प्रक्रिया में सख्त और पारदर्शी सत्यापन तंत्र लागू किए जाएं।