प्रकाश मेहरा
एग्जीक्यूटिव एडिटर
पटना: बिहार में विधानसभा चुनाव 2025 से पहले चल रही मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (Special Intensive Revision – SIR) प्रक्रिया को लेकर सुप्रीम कोर्ट में कई याचिकाएं दायर की गई हैं। यह प्रक्रिया चुनाव आयोग (ECI) द्वारा 24 जून 2025 को शुरू की गई थी, जिसका उद्देश्य मतदाता सूची को शुद्ध करना, फर्जी, मृत, डुप्लिकेट या स्थानांतरित नामों को हटाना है। बिहार में कुल 7.89 करोड़ मतदाताओं की सूची का सत्यापन हो रहा है, जिसमें 1 अगस्त को ड्राफ्ट सूची जारी की गई। इस सूची से लगभग 65 लाख नाम हटाए गए, जिस पर विपक्षी दलों (जैसे RJD, कांग्रेस, AIMIM आदि) ने सवाल उठाए हैं।
उनका आरोप है कि यह प्रक्रिया मनमानी है, अल्पसंख्यक, दलित और पिछड़े वर्गों के मतदाताओं को निशाना बना रही है, और दावे-आपत्तियां दाखिल करने की समयसीमा (1 सितंबर तक) बहुत कम है।सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले पर कई अंतरिम आदेश दिए हैं, और आज (1 सितंबर) को सुनवाई के दौरान एक महत्वपूर्ण निर्देश जारी किया गया।
SIR प्रक्रिया का विवरण
चुनाव आयोग ने SIR को जनप्रतिनिधित्व अधिनियम 1950 की धारा 21(3) और मतदाता पंजीकरण नियम 1960 के तहत वैध बताया है। इसमें बूथ लेवल ऑफिसर (BLO) घर-घर जाकर सत्यापन करते हैं। 2003 की पुरानी सूची में शामिल मतदाताओं को केवल सत्यापन की जरूरत है, लेकिन उसके बाद के मतदाताओं को 11 दस्तावेजों (जैसे पासपोर्ट, जन्म प्रमाण पत्र, ड्राइविंग लाइसेंस, राशन कार्ड आदि) में से कोई एक जमा करना पड़ता है। आधार कार्ड को शुरू में स्वीकार नहीं किया गया था, लेकिन कोर्ट के हस्तक्षेप के बाद इसे भी मान्य कर लिया गया।
क्या है विपक्ष का दावा ?
65 लाख नामों को बिना नोटिस या सुनवाई के हटाया गया, जो लोकतंत्र पर हमला है। कांग्रेस ने दावा किया कि उन्होंने 89 लाख शिकायतें दर्ज कराईं, लेकिन EC इसे नकार रहा है। नाम हटाने से पहले नोटिस, सुनवाई और कारणयुक्त आदेश अनिवार्य है। हटाए गए नामों में 22 लाख मृत, 36 लाख स्थानांतरित और 7 लाख डुप्लिकेट शामिल हैं। दावे-आपत्तियां 1 अगस्त से 1 सितंबर तक ऑनलाइन/ऑफलाइन दाखिल की जा सकती हैं।
RJD, AIMIM, कांग्रेस, TMC, ADR (Association for Democratic Reforms), PUDR (People’s Union for Civil Liberties), योगेंद्र यादव आदि। उन्होंने समयसीमा बढ़ाने, पारदर्शिता और ऑनलाइन सुविधा की मांग की।
नोटिस जारी करने का आदेश
10 जुलाई को SC ने SIR पर रोक लगाने से इनकार किया, लेकिन आधार कार्ड को दस्तावेजों में शामिल करने का सुझाव दिया। 22 अगस्त को SC ने राजनीतिक दलों की निष्क्रियता पर हैरानी जताई। 1.68 लाख बूथ लेवल एजेंट्स (BLA) होने के बावजूद केवल 2 आपत्तियां दर्ज हुईं। कोर्ट ने बिहार के मुख्य निर्वाचन अधिकारी को सभी 12 पंजीकृत दलों (NDA और INDIA दोनों) के अध्यक्षों/महासचिवों को नोटिस जारी करने का आदेश दिया।
दलों को 8 सितंबर को स्टेटस रिपोर्ट दाखिल करने को कहा गया। साथ ही, आधार कार्ड को वैध दस्तावेज माना और ऑनलाइन दावे की अनुमति दी। 29 अगस्त को RJD और AIMIM ने समयसीमा बढ़ाने की याचिका दाखिल की, क्योंकि 22 अगस्त के बाद दावों की संख्या दोगुनी (95,000 नए दावे) हो गई। SC ने 1 सितंबर को सुनवाई तय की।
सुप्रीम कोर्ट का आदेश
सुप्रीम कोर्ट (जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस जॉयमाल्या बागची और जस्टिस विपुल एम. पंचोली की बेंच) ने RJD-AIMIM की समयसीमा बढ़ाने वाली याचिका पर सुनवाई की। मुख्य आदेश निम्नलिखित हैं:सियासी दलों को EC के नोट पर जवाब दें कोर्ट ने सभी राजनीतिक दलों (12 मान्यता प्राप्त दलों सहित) को निर्देश दिया कि वे चुनाव आयोग के हालिया नोट (जो SIR प्रक्रिया, दावे-आपत्तियों की स्थिति और पारदर्शिता पर आधारित है) पर लिखित जवाब दें।
यह जवाब अगली सुनवाई (संभावित रूप से 8 सितंबर 2025) से पहले दाखिल करना होगा। कोर्ट ने हैरानी जताई कि दलों के BLA इतने कम सक्रिय क्यों हैं, जबकि आम मतदाता 2.63 लाख नए आवेदन कर चुके हैं। दलों को निर्देश दिया गया कि वे अपने एजेंट्स को सक्रिय करें और मतदाताओं की मदद करें।
समयसीमा पर फैसला
दावे-आपत्तियां दाखिल करने की अंतिम तिथि 1 सितंबर ही रहेगी, लेकिन कोर्ट ने EC को निर्देश दिया कि सभी दावों का निस्तारण 7 कार्यदिवसों में करें। अगर संख्या बहुत अधिक हुई, तो समयसीमा पर पुनर्विचार संभव है। RJD के वकील प्रशांत भूषण ने तर्क दिया कि दावे बढ़ रहे हैं, लेकिन कोर्ट ने कहा कि प्रक्रिया पारदर्शी है और दलों को पहले से सूची साझा की गई थी। EC को 65 लाख हटाए गए नामों की पूरी सूची (कारण सहित) वेबसाइट/डिस्प्ले बोर्ड पर अपलोड करने का आदेश दोहराया गया। ऑनलाइन आवेदन अनिवार्य, फिजिकल फॉर्म वैकल्पिक। कोई भी पात्र मतदाता बिना नोटिस के नाम न हटाया जाए सुनवाई अनिवार्य।
मामले पर कोर्ट की टिप्पणी
जस्टिस सूर्यकांत ने कहा, “राजनीतिक दल मतदाताओं के अधिकारों की रक्षा करें, न कि सिर्फ सियासत करें।” कोर्ट ने EC के हलफनामे (10 अगस्त 2025) का हवाला दिया, जिसमें कहा गया कि प्रक्रिया संवैधानिक है।
RJD नेता तेजस्वी यादव और कांग्रेस के पवन खेड़ा ने आदेश का स्वागत किया, लेकिन समयसीमा न बढ़ाने पर नाराजगी जताई। खेड़ा ने कहा, “हमने 89 लाख शिकायतें कीं, लेकिन EC इग्नोर कर रहा है।” AIMIM ने कहा कि “यह अल्पसंख्यकों के खिलाफ साजिश है।”
NDA (शासक गठबंधन)
BJP के रविशंकर प्रसाद ने कहा, “SIR जरूरी है, विपक्ष विरोध कर रहा है क्योंकि फर्जी वोटर खत्म हो रहे हैं।” JDU ने दलों को सक्रिय होने की सलाह दी। आयोग ने कहा कि 13.33 लाख दावे प्राप्त हो चुके हैं, जिनमें से 61,000 का निपटारा हो गया। प्रक्रिया पारदर्शी है, और दलों को 1.5 लाख BLA के माध्यम से सूची साझा की गई।
मतदाताओं पर असर
1 सितंबर के बाद फाइनल सूची जारी होगी। अगर दावे न बढ़े, तो 65 लाख में से कई नाम बहाल हो सकते हैं। लेकिन देरी से कई वैध मतदाता वंचित हो सकते हैं। बिहार चुनाव (अक्टूबर-नवंबर 2025 अनुमानित) से पहले यह विवाद तेज हो सकता है। विपक्ष इसे “वोट चोरी” बता रहा है, जबकि NDA इसे “सुधार”। 8 सितंबर को दलों की स्टेटस रिपोर्ट पर। अगर दावों की संख्या बहुत अधिक हुई, तो समयसीमा बढ़ सकती है।
यह रिपोर्ट वर्तमान तारीख (1 सितंबर 2025) तक की जानकारी पर आधारित है। अधिक अपडेट के लिए आधिकारिक EC वेबसाइट (ceoelection.bihar.gov.in) या SC की साइट चेक करें।