प्रकाश मेहरा
एक्जीक्यूटिव एडिटर
नई दिल्ली: दिल्ली चुनाव में बुधवार शाम पांच बजे तक 57.70 प्रतिशत मतदान न केवल सुखद, बल्कि स्वागत योग्य है। मतदान के अंतिम आंकड़े आने में कुछ समय लगेगा, पर कुल मिलाकर दिल्ली में मतदान के प्रति जिस तरह का उत्साह दिखा है, यह मायने रखता है। इस बार का चुनाव बाकी तीन-चार चुनावों की तुलना में कुछ ज्यादा ही तल्खी भरा रहा है।
हम ऐसे भी कह सकते हैं कि ऐसी तल्खी अभी तक दिल्ली के चुनाव में नहीं देखी गई थी। दिल्ली विधानसभा चुनाव 2025 ने राष्ट्रीय राजधानी में राजनीति के तेवर, कलेवर को हमेशा के लिए बदल दिया है। इस बार के विवादों, आरोपों-प्रत्यारोपों, घोषणाओं में बहुत कुछ ऐसा है, जिसे आगामी वर्षों में याद किया जाएगा। बेशक, दिल्ली भाजपा के लिए एक और राज्य है, जबकि आम आदमी पार्टी के लिए जीवन-मरण का प्रश्न और कांग्रेस के लिए एक चमत्कार या एक बिल्कुल नई शुरुआत।
तीनों पार्टियों ने लुभाने के लिए किए वादे !
तीनों पार्टियों ने मतदाताओं को लुभाने के लिए लगभग एक जैसे वादे किए हैं और ज्यादा वोट इन्हीं तीन को पड़े होंगे। दिल्ली के साथ यह विचित्र बात रही है कि अगर लोकसभा में कमल भरपूर खिलता है, तो विधानसभा में झाडू चल जाता है। दिल्ली में विधानसभा चुनाव 2020 में मतदान प्रतिशत 62.82 रहा था, इस बार भी मतदान के आंकड़े वैसे ही रह सकते हैं।
साल 2015 के विधानसभा चुनाव में तो एक तरह से रिकॉर्ड 67.47 प्रतिशत वोट पड़े थे। साल 2013 में भी जब वैकल्पिक राजनीति के दावे के साथ आम आदमी पार्टी का पदार्पण हुआ था, तब 66.02 प्रतिशत मतदान हुआ था। उस चुनाव में महज एक साल पहले गठित हुई आम आदमी पार्टी को पहली ही बार में 28 सीटें हासिल हुई थीं और उसके बाद इस पार्टी ने पीछे पलटकर नहीं देखा है।
क्या कांग्रेस ने आप को समर्थन देकर गलती की?
तब सत्ता से बाहर हुई कांग्रेस ने आम आदमी को सरकार बनाने में समर्थन देकर शायद गलती की थी। नतीजा यह हुआ कि वह सरकार भी जल्दी गिर गई और साल 2015 और 2020 के चुनाव में कांग्रेस यहां अपना खाता भी न खोल सकी। क्या इस बार दिल्ली में कांग्रेस खाता खोल पाएगी? भाजपा की अगर बात करें, तो विगत तीन दशक से भाजपा दिल्ली में मजबूत तो है, लेकिन वह यहां अंतिम विधानसभा चुनाव साल 1993 में ही जीत पाई थी।
पिछले दो विधानसभा चुनाव में भाजपा को क्रमशः तीन और आठ सीटों पर ही जीत हासिल हुई थी। यह उसके लिए चिंता की बात है कि जो लोग उसे लोकसभा चुनाव में भरपूर मत देते हैं, वे विधानसभा चुनाव में क्यों छिटककर दूर चले जाते हैं? दिल्ली के लोगों को स्थानीय शासन के लिए अरविंद केजरीवाल और देश में नरेंद्र मोदी चाहिए, पर क्या इस बार दिल्ली सियासी करवट बदलने जा रही है?
चुनावी पंडितों की चिंता बढ़ी !
दिल्ली के लोग चुनावी पंडितों की चिंता को बढ़ा देते हैं और यह कहना मुश्किल हो जाता है कि किसके पक्ष में ज्यादा मतदान हुए हैं। इस बार का एग्जिट पोल भले कुछ बताए, पर अगर साल 2020 के एग्जिट पोल को देखखें, तो आम आदमी पार्टी को 52 सीटें मिलने का अनुमान था, पर मिलीं 62 सीटें। ठीक इसी तरह 2015 के चुनाव में एग्जिट पोल ने बताया कि आम आदमी पार्टी 45 सीटें जीतेगी, पर वह 67 सीटें जीतकर भाजपा को तीन सीटों तक समेटने में कामयाब रही थी। पिछले दो चुनावों में भाजपा अनुमान से कम और आम आदमी पार्टी अनुमान से ज्यादा सीटें जीतती आ रही है। क्या होगा इस बार ? जवाब के लिए 8 फरवरी तक इंतजार करना होगा।