नई दिल्ली।आज का दिन भारतीय रक्षा इतिहास में स्वर्णिम अक्षरों में अंकित हो गया। हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (एचएएल) की नासिक फैसिलिटी से लाइट कॉम्बैट एयरक्राफ्ट (एलसीए) तेजस एमके-1ए ने अपनी पहली सफल उड़ान भरी। इस ऐतिहासिक क्षण का साक्षी बनने के लिए रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह भी मौजूद थे। Su-30 एमकेआई और एचटीटी-40 ट्रेनर विमानों की फ्लाई-पास्ट के बीच यह उड़ान न केवल एक तकनीकी उपलब्धि है, बल्कि ‘आत्मनिर्भर भारत’ अभियान की जीत भी है। यह स्वदेशी योद्धा भारत की वायु सेना को कैसे नई ऊंचाइयों पर ले जाएगा? आइए, इसकी पूरी कहानी को समझते हैं।
एक लंबी संघर्षपूर्ण यात्रा का समापन
तेजस का सफर आसान नहीं था। 1980 के दशक में शुरू हुआ यह प्रोजेक्ट मूल रूप से लाइट कॉम्बैट एयरक्राफ्ट (एलसीए) के रूप में विकसित किया गया। लेकिन इसने कई चुनौतियों का सामना किया। इंजन की कमी, तकनीकी जटिलताएं और ग्लोबल सप्लाई चैन की बाधाओं ने इसे विलंबित किया। मूल तेजस एमके-1 को 2015 में भारतीय वायु सेना (आईएएफ) में शामिल किया गया, लेकिन एमके-1ए संस्करण की प्रतीक्षा लंबी खिंच गई।
2021 में 83 विमानों की आपूर्ति के लिए 48,000 करोड़ रुपये का कॉन्ट्रैक्ट हुआ, लेकिन अमेरिका से जीई एफ-404-आईएन20 इंजनों की सप्लाई में देरी ने ब्रेक लगाया। एचएएल को अब तक केवल चार इंजन मिले हैं, जबकि दो और अक्टूबर के अंत तक पहुंचने की उम्मीद है। फिर भी, आज की प्रथम उड़ान ने साबित कर दिया कि भारत अब स्वदेशी विमान निर्माण में आत्मनिर्भर होने की दहलीज पर है। एचएएल के चीफ टेस्ट पायलट ग्रुप कैप्टन (सेवानिवृत्त) केके वेणुगोपाल ने इस उड़ान को सफलतापूर्वक अंजाम दिया।
तेजस Mk1A: MiG-21 की जगह लेने वाला नया भारतीय योद्धा
तेजस Mk1A विमान भारतीय वायुसेना के पुराने MiG-21 लड़ाकू विमानों की जगह लेगा, जिन्हें पिछले महीने ही सेवा से सेवानिवृत्त किया गया। भारतीय वायुसेना को इस महीने के अंत तक पहला तेजस Mk1A विमान मिलने की उम्मीद है। यह सफलता भारत के स्वदेशी रक्षा उत्पादन और आत्मनिर्भर भारत मिशन की दिशा में एक बड़ा कदम मानी जा रही है।
HAL की नई उत्पादन लाइन
नासिक स्थित HAL की नई उत्पादन इकाई में हर साल 8 विमान बनाने की क्षमता होगी। इससे पहले बेंगलुरु स्थित दो उत्पादन इकाइयों में हर साल 16 विमान तैयार किए जा रहे हैं। नई लाइन के शुरू होने से HAL की कुल वार्षिक उत्पादन क्षमता 24 विमानों तक बढ़ जाएगी। नासिक फैसिलिटी की शुरुआत 2023 में की गई थी ताकि तेजस Mk1A विमानों की डिलीवरी तेज गति से हो सके। साथ ही, राजनाथ सिंह ने आज HTT-40 बेसिक ट्रेनर एयरक्राफ्ट की दूसरी उत्पादन लाइन का भी उद्घाटन किया।
एमके-1ए: मूल तेजस से 40 गुना एडवांस
तेजस Mk1A एक 4.5-जनरेशन, मल्टी-रोल लड़ाकू विमान है जिसे पूरी तरह भारत में विकसित किया गया है। तेजस एमके-1ए मूल एमके-1 का एडवांस अवतार है, जिसमें 40 से अधिक सुधार किए गए हैं। इसका वजन कम करने के लिए कंपोजिट मटेरियल का उपयोग बढ़ाया गया है, जो इसे अधिक फुर्तीला बनाता है। यह विमान हर मौसम में संचालन करने में सक्षम है और हाई-थ्रेट एरियल एनवायरनमेंट में दुश्मन पर सटीक निशाना साध सकता है। तेजस Mk1A में कुल 9 हार्ड पॉइंट्स हैं जिन पर विभिन्न हथियार लगाए जा सकते हैं, जिनमें इजरायली डर्बी मिसाइल और भारतीय ASTRA मिसाइल शामिल हैं। यह विमान वायु रक्षा, समुद्री निगरानी और स्ट्राइक मिशनों को अंजाम देने में सक्षम है।
मुख्य विशेषताएं इस प्रकार हैं:
एडवांस रडार सिस्टम: इजरायली एल/एम-2025 एक्टिव इलेक्ट्रॉनिकली स्कैन्ड ऐरे (एईएसए) रडार, जो 200 किलोमीटर से अधिक दूरी पर एक साथ कई लक्ष्यों को ट्रैक कर सकता है। इससे पायलट को 360 डिग्री का दृश्य मिलेगा।
इलेक्ट्रॉनिक वारफेयर सूट: डीएआरई द्वारा विकसित स्वदेशी रडार वार्निंग रिसीवर (आरडब्ल्यूआर), सेल्फ-प्रोटेक्शन जॅमर और चाफ-फ्लेयर डिस्पेंसर। यह विमान को दुश्मन की मिसाइलों से बचाने में सक्षम है।
अवियोनिक्स और फ्लाइट कंट्रोल: नया डिजिटल फ्लाइट कंट्रोल कंप्यूटर (डीएफसीसी एमके-1ए) और उन्नत कॉकपिट डिस्प्ले, जो पायलट को बेहतर सिचुएशनल अवेयरनेस प्रदान करते हैं।
हथियार एकीकरण: अस्त्र और एएसआरएएएम जैसी स्वदेशी बियॉन्ड-विजुअल-रेंज (बीवीआर) मिसाइलें पहले ही परीक्षण पूरी कर चुकी हैं। ब्रह्मोस-एनजी मिसाइल के साथ नौसेना संस्करण की संभावना भी है।
इंजन और परफॉर्मेंस: जीई एफ-404-आईएन20 इंजन से संचालित, यह विमान 1.6 माच की स्पीड और 3,500 किलोमीटर की रेंज प्रदान करता है।
एमके-1ए में स्वदेशी मटेरियल की हिस्सेदारी 50 प्रतिशत से अधिक है, जो मूल संस्करण से काफी बेहतर है। यह विमान हल्का होने के बावजूद बहुउद्देशीय है- हवा से हवा, हवा से जमीन और रिकॉन्सेंस मिशनों के लिए उपयुक्त।
भारत की वायु शक्ति में क्रांतिकारी बदलाव
भारतीय वायु सेना के पास वर्तमान में 30 से अधिक स्क्वाड्रन हैं, जबकि अधिकृत संख्या 42 है। तेजस एमके-1ए इस कमी को पूरा करने का प्रमुख हथियार बनेगा। वायुसेना प्रमुख एयर चीफ मार्शल एपी सिंह ने हाल ही में कहा, “हम तेजस एमके-1ए का बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं- यह भूखे मुंह में भोजन जैसा है।”
चीन और पाकिस्तान जैसे पड़ोसियों के मुकाबले, तेजस एमके-1ए की फुर्ती और एडवांस सेंसर इसे हिमालयी क्षेत्रों या पश्चिमी सीमा पर प्रभावी बनाएंगे। यह रूस के एसयू-30 या फ्रांस के राफेल के साथ पूरक होगा, लेकिन स्वदेशी होने से रखरखाव आसान और सस्ता पड़ेगा। विदेशी निर्भरता कम होने से सप्लाई चैन सुरक्षित रहेगी।
एचएएल का उत्पादन अब सालाना 24 विमान तक पहुंचेगा, जो निर्यात के द्वार भी खोलेगा। फिलीपींस, मलेशिया और फिलीपींस एयर डेवलपमेंट कॉर्पोरेशन (पैडसी) जैसे देशों ने रुचि दिखाई है। तेजस एमके-1ए एमके-2 और पांचवीं पीढ़ी के एडवांस्ड मीडियम कॉम्बैट एयरक्राफ्ट (एएमसीए) का पुल है। 2027 तक एमके-2 का रोलआउट होगा, जो स्टील्थ फीचर्स लाएगा।
वायुसेना की चुनौतियां और भविष्य की योजना
भारतीय वायुसेना वर्तमान में अपनी स्वीकृत 42 स्क्वाड्रनों की तुलना में केवल 29 स्क्वाड्रनों पर संचालित हो रही है। वायुसेना प्रमुख एयर चीफ मार्शल ए.पी. सिंह ने हाल ही में कहा था कि वायुसेना को हर साल कम से कम दो स्क्वाड्रन (30-40 विमान) चाहिए ताकि उसका संतुलन बनाए रखा जा सके।
2021 में रक्षा मंत्रालय ने HAL के साथ 48,000 करोड़ रुपये का कॉन्ट्रैक्ट किया था, जिसके तहत 83 तेजस Mk1A विमान खरीदे जाने थे। डिलीवरी फरवरी 2024 से शुरू होनी थी, लेकिन GE Aerospace द्वारा F404 इंजनों की आपूर्ति में देरी के कारण परियोजना पीछे खिसक गई। अब HAL ने चार साल के भीतर इन विमानों की आपूर्ति पूरी करने की योजना बनाई है।
अतिरिक्त 97 विमानों का सौदा
सितंबर 2025 में रक्षा मंत्रालय ने HAL के साथ 97 अतिरिक्त तेजस Mk1A विमानों के लिए एक और बड़ा कॉन्ट्रैक्ट किया है, जिसकी कीमत 62,370 करोड़ रुपये है। इसमें 68 सिंगल-सीटर और 29 ट्विन-सीटर विमान शामिल होंगे। नए विमानों में 64% से अधिक स्वदेशी मटेरियल होगा।
इनमें स्वदेशी UTTAM AESA रडार, ‘स्वयं रक्षा कवच’ वारफेयर सिस्टम, और कंट्रोल सरफेस एक्ट्यूएटर्स लगाए जाएंगे। UTTAM रडार 200 किमी से अधिक की रेंज में कई लक्ष्यों को ट्रैक करने में सक्षम है और विमान को 360-डिग्री दृश्यता प्रदान करता है। नए तेजस Mk1A विमानों की डिलीवरी 2027-28 से शुरू होकर अगले छह वर्षों में पूरी होने की संभावना है।