कौशल किशोर
नई दिल्ली: दिल्ली की भाजपा सरकार लावारिस घूमने वाली गायों के लिए आश्रय की व्यवस्था करने में लगी है। गृह मंत्री अशीष सूद इस मामले में प्रस्तावित कानून के विषय में विधानसभा में कई महत्वपूर्ण बातें रख चुके हैं। दिल्ली पुलिस इस साल के पहले 50 दिनों में लावारिस घूमते गायों से जुड़े 25,393 मामले दर्ज करती है। इसका मतलब है कि राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में औसतन 500 बेसहारा गायों की शिकायतें प्रति दिन मिल रही हैं। नगर निगम के आंकड़ों से साफ है कि दिल्ली सरकार के अधीन गौशालाओं में कुल 20 हजार पशुओं को रखने की व्यवस्था है। इनका संज्ञान लेकर मॉडल टाऊन से भाजपा विधायक अशोक गोयल ने विधानसभा में निजी प्रस्ताव पेश किया है। इसमें नगर के बेसहारा गायों के लिए अतिरिक्त आश्रय की मांग की गई है।
विकास और कानून मंत्री कपिल मिश्रा दिल्ली नगर निगम के अधिकारियों के साथ मिल कर इसकी व्यवस्था करने में लगे हैं। हैरत की बात है कि गोवंश के लिए आज छत की व्यवस्था करने में लगे नेतागण गोचर भूमि उद्धार के मामले में मौन साधना करने लगे हैं। क्या धरती माता की संतानों को भारत माता के सपनों में समेटने की इस राजनीति में औपनिवेशिक मानसिकता हावी नहीं है? ऐसे किसी सवाल से मुंह फेरने का परिणाम अच्छा नहीं हो सकता है।
भारतीय उपमहाद्वीप में मानवीय बसावट बागर (ऊंची) भूमि पर विकसित हुआ। साथ ही खादर (नीची) जमीन पर कुदरत की देन गोचर भूमि है। भगवान राम और कृष्ण के समय में भी गायों के स्वछंद विचरण का यह स्थान रहा। उनके पहले और बाद में भी गाय बिना किसी बंधन के गोचर भूमि में पलती रही। आम लोग दूध समेत पंचगव्य की प्राप्ति के उद्देश्य से गायों को हांक लाते थे और दूध देना बंद करने पर वहीं वापस छोड़ आते। औपनिवेशिक शासन ने भारतीय मानस से इस सामूहिक स्मृति को मिटा कर संक्रमण काल को परिभाषित किया।
हालांकि गोकशी का काम मुगलों के समय में शुरु हो गया था। पर अंग्रेजों ने 1880-1894 के दौरान बड़े पैमाने गौहत्या का अभियान चलाया था। धर्मपाल और टी.एम. मुकुंदन की इस विषय में लिखी किताब से पता चलता है कि किस तरह अंग्रेजों की फौज ने गोचर भूमि पर पलने वाली गायों को आहार बना कर हिन्दू मुस्लिम के बीच विद्वेष की राजनीति का सूत्रपात किया था। गोचर जमीन पर कब्जा करने का खेल भी तभी से जारी है। औपनिवेशिक मानसिकता को दूर करने का दावा करने वाली सरकार को इस बात का ध्यान रखना चाहिए। इसके लिए उन्नीसवीं सदी व इक्कीसवीं सदी के गोचर भूमि की स्थिति पर श्वेत पत्र जारी करने की जरूरत है।
आज राम राज की पैरवी करने वाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने सरकारी आवास में गोसेवा का प्रबंध किया है। प्रतीत हो रहा है कि दिल्ली सरकार के मंत्रियों व विधायकों ने सरकारी आवास में गोसेवा की व्यवस्था का विचार किया है। वस्तुतः इस मामले में आज गोचर भूमि उद्धार कार्यक्रम की जरूरत है। हालांकि सर्वोच्च न्यायालय ने अप्रैल 2022 में जलस्रोतों और चारागाहों की भूमि के संरक्षण के लिए ‘पंजाब विलेज कॉमन लैंड एक्ट 1961’ के तहत स्पष्ट निर्देश दिया था।
जस्टिस हेमंत गुप्ता और वी. रामासुब्रमण्यम की डिवीजन बेंच के फैसले की समीक्षा 19 अप्रैल 2022 को “ग्राम समाज की जमीन वापसी का दूरगामी फैसला” शीर्षक से छपी थी। बीते तीन सालों में यदि दिल्ली सरकार ने इस आदेश को लागू करने का प्रयास किया होता तो बेसहारा गायों को आश्रय मिल गया होता। विधानसभा चुनाव के बाद सत्ता में आई भाजपा सरकार को इसे लागू कर गायों के प्रति अपनी संवेदनशीलता का परिचय देना चाहिए।
हाल ही में एक दिन दिल्ली की मुख्य मंत्री रेखा गुप्ता को भी हैदरपुर फ्लाई ओवर पर भटकते हुए गायों की वजह से लंबा इंतजार करना पड़ा था। उन्होंने अधिकारियों से इन मूक और बेसहारा गायों के उचित आश्रय की व्यवस्था करने के लिए कहा था। आज इस मामले में प्रस्तावित कानून पर विचार विमर्श विधान भवन और सचिवालय तक ही सीमित नहीं गई है। राष्ट्रीय राजधानी के 365 गांवों की गोचर भूमि पर अवैध कब्जे के बारे में चर्चा होने लगी है।
गोसेवा और गोचर संरक्षण की संस्कृति को पुनर्जीवित करने में लगे श्रीकृष्णायन गौशाला के अध्यक्ष ईश्वर दास जी ने पिछले सात सदियों तक दिल्ली के गौसेवकों का प्रतिनिधित्व करने वाले श्याम गिरि सवाई मठ की थाती के पुनरुत्थान का आह्वान किया है। गौर करने वाली बात है कि चौदहवीं सदी में अलाउद्दीन खिलजी के काल में सनातन के प्रवक्ता श्याम गिरि सवाई को सैकड़ों एकड़ भूमि यमुना के तट पर आवंटित किया गया था। पूर्वी दिल्ली में शास्त्री पार्क मेट्रो स्टेशन के पास स्थित श्याम गिरि सवाई मठ इसके सिकुड़ने की कहानी बयां करती है। दिल्ली सरकार इस मामले में उचित कार्रवाई कर गोसेवा सुनिश्चित करना चाहिए।
बेसहारा गायों की समस्या राष्ट्रीय राजधानी की सड़कों तक ही सीमित नहीं है। केंद्रीय पशुपालन मंत्रालय के अनुसार देश भर में इनका आंकड़ा 50 लाख के पार है। राजस्थान 12.7 लाख बेसहारा गायों के साथ पहले नंबर पर है। शीर्ष पांच राज्यों में शामिल उत्तर प्रदेश में यह आंकड़ा 10.18 लाख, मध्य प्रदेश में 8.53 लाख, गुजरात में 3.43 लाख और छत्तीसगढ़ में 1.84 लाख है। गोचर जमीन से अवैध कब्जा हटा कर इनके लिए आश्रय की व्यवस्था करने की जरूरत है। राम राज की बात करने वाली सरकार गंगा और यमुना जैसी पवित्र नदियों के कछार में फैले भूमि पर इनके स्थाई आश्रय का प्रबंध कर सकती है। इस मामले में दिल्ली की पहल का व्यापक असर होगा।