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इंटरव्यू : जीवन के असल मूल्यों को दर्शाती मनीष जोशी जी का नाटक ‘पतलून’

मनीष जोशी “बिस्मिल” लिखित नाटक “पतलून” के किरदार भगवान को मिला दर्शकों का भरपूर स्नेह और नाटक की मंच परिकल्पना एवम निर्देशिका रितिका मल्होत्रा को स्टैंडिंग आवेशन।

पहल टाइम्स डेस्क by पहल टाइम्स डेस्क
September 5, 2023
in दिल्ली, विशेष
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Manish Joshi's play 'Pataloon'
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रंगमंच का नाम आते ही मंच, प्रकाश, संगीत, किरदार, वस्त्र विन्यास, जीवन के अनेक परिदृश्य हमारे जैहन में आने लगते है, और हमे जीवन को जीने का एक सूत्र प्राप्त होता है। रंगमंच जीवन मैं रंग लेकर आता है, रंग से ही हमारा जीवन सशक्त और साहसी होता है, जब जीवन में रंग होते हैं, तो जीवन का असल मूल्य पता चलता है। मनीष जोशी जी का नाटक पतलून एक ऐसा ही नाटक है। जिसमें रंगों और सपनों का खालीपन और उनका जीवन दर्शन संघर्ष और हमारे जुझारूपन और हिम्मत को एक नई दिशा देता हैं। नाटक का मुख्य किरदार “भगवान” जो की गांव से शहर आता है अपने सपनों और रंगों के कैनवास को लेकर, 50 साल शोषण की भट्टी में झुलस कर जब उसे ज़िंदगी में एक मक़सद मिलता है और उस मक़सद को पूरा करने के लिए असाधारण तरीके से साधारण सा दिखने वाला भगवान अपनी शिद्दत और मेहनत से यह सीख देता है। कि चाहे जो हो जाए जीवन में कभी घबराना नहीं चाहिए,अपने लक्ष्य से हर बार कहो “एक बार कहो तुम मेरे हो…” और एक दिन उस लक्ष्य को, हकीकत में अपना बना लो …उसके लिए जियो और एक दिन उसे हमेशा के लिए कमा लो।

“परिवर्तन समूह” और “अभिनायक रंगमंच” के सहयोग से नाटक “पतलून” श्री मनीष जोशी ‘बिस्मिल’ जी द्वारा लिखित एक हिंदी नाटक है। जिसकी निर्देशिका रीतिका मलहोत्रा है। गीतों की कंपोजिशन “साधो बैंड” और “अयाज़ खान” के द्वारा किया गया है, नाटक का मुख्य किरदार “भगवान” को वंशज सक्सेना नें अपनें अभिनय से जीवंत कर दिया है।
इसी नाटक की निर्देशिका “रितिका मल्होत्रा” एवम मुख्य किरदार वंशज सक्सेना से हमारे “मुरार कण्डारी” की बातचीत के कुछ अंश…

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मुरार : नाटक पतलून के कथानक और नाटक के चयन के बारे में बताएं? आखिर पतलून ही क्यों…?

रीतिका मलहोत्रा: नाटक पतलून को पढ़ते समय इसका कथानक और मूल सार मुझे अपनी और आकर्षित करता रहा है, ख़ासकर इब्ने इंशा की जो कविता है “एक बार कहो तुम मेरी हो..” मनुष्य के संघर्षों के आगे उसका अथक प्रयासों के साथ सामना करना और लक्ष्य प्राप्ति के लिए सर्वस्व समर्पित करना, ये दो महत्वपूर्ण संदेश देती है। मुझे हमेशा नाटक के मुख्य किरदार भगवान के संघर्ष में अपना संघर्ष महसूस होता रहा है,इसीलिए मेरा इस नाटक के साथ जो रिश्ता है वो अटूट से और भी अटूट बन गया है।

मुरार: नाटक का मुख्य किरदार भगवान और उसका क्या संघर्ष हैं?

वंशज सक्सेना: भगवान 50 साल ईट भट्ठे में बंधुआ मजदूर बनकर शोषण झेलने के बाद, वहां से आज़ाद होकर, जब आगे का गुजारा करने के लिए बूट पॉलिश का काम शुरू करता है, जहां पॉलिश का तजुर्बा न होनें के कारण उससे किसी की पतलून पर पॉलिश लग जाती है, और वो व्यक्ति उसे भला बुरा कहता है और उसके जमीर पर चोट कर उसको जीवन में एक पतलून खरीद कर दिखाने का टौंट मार कर कहता है अगर उसमे हिम्मत है तो वो तो भगवान उसे अपनी कमाई से एक पतलून खरीद कर दिखाए क्योंकि पतलून औकात बनाती है। भगवान दृढ़ निश्चय करता है की बची खुची ज़िंदगी में और कुछ बने या न बने पर एक पतलून तो वो अपने पैसे से बनाएगा…इज़्ज़त कमाएगा…

मुरार : जो लोग अभिनय मैं आने की सोच रहे हैं उनको नाटक किस दृष्टिकोण से देखना और पढ़ना चाहिए?

रीतिका मलहोत्रा: नाटक को देखने और पढ़ने की सबकी अपनी समझ होती है,हर इंसान उसी समझ के अनुसार अपना चयन करता है।जो भी लोग इस क्षेत्र में आना चाहते है उन्हे ये समझना होगा की क्या उनके अंदर बस हीरो बनने का जज़्बा है या सच में अभिनेता पहले बनना चाहते हैं,यूं तो सभी के अंदर जुनून है किसी न किसी लक्ष्य का, यानी हर किसी में एक भगवान है और हर किसी की एक पतलून है। यदि वो लोग जो इस अभिनय क्षेत्र में आना चाहते हैं अपने अंदर भगवान के किरदार को अभिनय नामक पतलून के लिए और उसको सीखने के लिए किए गए तमाम संघर्षों के लिए तैयार पाते हैं तो उन्हें अभी से शुरू कर देना चाहिए।

मुरार: रंगमंच एक ऐसा माध्यम बनकर उभरा है जो सिनेमा में जाने के लिए एक बेहद जरूरी अस्त्र बन गया है, जब रंगमंच की बात होतीं हैं तो लोगों के जहन मैं अभिनय ही होता है, अभिनय से अलग और कोन कोन से संकाओ का योगदान होता है?

रीतिका मलहोत्रा: थियेटर हमें जीना सीखाता है,हमे बात करना,उठना बैठना,चलना फिरना सब हमे थियेटर से मिलता है,थियेटर कोई एक नाम नही है वो सब कुछ है,सच कहूं तो रंगमंच मेरे लिए जीने का आधार है। जहां तक बात सिनेमा की है तो वो एक कमर्शियल पहलू है,अगर आपको सिनेमा में या जीवन कहीं भी लंबा सफर तय करना है तो रंगमंच आपके लिए बेहद जरूरी है।शुरू में रंगमच को बहुत ही अलग दृष्टि से देखा जाता था लेकिन अब तो फिर भी कुछ सुधार है लेकिन आज भी कुछ घरों में हर बार जब भी कोई व्यक्ति अपने परिवार में अभिनेता बनने का विचार साझा करता है तो शुरुआती दौर में उसकी इस बात को सिर्फ शौक समझ कर ज्यादा गंभीरता से नहीं देखा जाता। मैं ये मानती हूं के ये बहुत ही संदेहयुक्त (uncertain) है परंतु ऐसे तो हर दिन का हिसाब है। हमें नहीं पता की हम जो कर रहे हैं आज उसका भविष्य कितना देख पाएंगे। पर संयम के साथ पंक्ति में लगे रहने पर एक दिन नंबर जरूर आयेगा। और हां, जैसा की अक्सर एक्टर बनने के ख्वाब लिए अक्सर एक व्यक्ति को उसके रिश्तेदार अक्सर कर कर के दिखाने के लिए घर में कहा जाता है उस पर यही कहूंगी जैसे ऑपरेशन की असली जगह अस्पताल है वैसे ही अभिनय का असली स्थान रंगमंच व सिनेमा है…और ये तमाम प्रश्न लड़का और लड़की दोनों के साथ होते है ।

मुरार: इस नाटक के किरदारों का चयन आपके लिए कितना मुश्किल रहा और नाटक की रिहर्सल मैं कितना समय लगा?

रीतिका मलहोत्रा: बहुत मुश्किल था लेकिन मेरे लिए यह सबसे अच्छी बात रही की नाटक का चयन करते समय ही मेरे दिमाग में भगवान का किरदार किस एक्टर से कराना है यह बिल्कुल क्लियर था ,सच कहूं तो भगवान के कारण ही मैं यह नाटक शुरू करने में सफल रही हूं,और इसकी रिहर्सल लगभग 3 महीने के प्रोसेस से होकर गुज़री है,सबसे पहले केवल रीडिंग, फिर किरदारों का चयन, फिर ब्लॉकिंग और इमोशंस के साथ कुछ गीतों की कंपोजिशन के समावेश के साथ इसे नाटक के रूप में तैयार किया गया।

मुरार: वंशज सक्सेना जी जैसा की रीतिका जी ने बताया कि भगवान के किरदार को लेकर वो बिल्कुल आश्वस्त थी,तो कैसा लगता है जब आपका डायरेक्टर आप पर इस तरह का विश्वास रखता है,कितना मुश्किल होता है उस कसौटी पर खरा उतरना।

वंशज सक्सेना: सच कहूं तो निजी तौर पर एक कलाकार के रूप में आपकी जिम्मेदारी और भी बढ़ जाती है। रीतिका मैम का में तहेदिल से शुर्कगुजार की उन्होंने मुझ पर यह विश्वास दिखाया है,मैंने अपनी पूरी मेहनत और शिद्द से इस किरदार को निभाने का प्रयास किया हैं,कितना सफल हो पाया हूं यह तो आप ही बेहतर जानते है या रीतिका मैम।

मुरार: रीतिका जी इस नाटक की रिहर्सल करते समय कुछ ऐसा अनुभव जो आप पाठक को बताना चाहती हैं?

रीतिका मलहोत्रा: बस कभी न थकने वाला भगवान जब एक जादूगर से बेवकूफ बन अपनी जीवन भर की जोड़ी पाई पाई खो देता है और बावजूद इसके वापिस खड़ा होने का संकल्प लेता है तो मैं खुद भी वैसे 100 गुलफाम (जादूगरों) का सामना करने का सामर्थ्य महसूस करती हूं।

मुरार: आप हमारे पाठकों से और अपने दर्शकों से कुछ कहना चाहेंगी ?
रीतिका मलहोत्रा: बस इतना ही कि भगवान का संघर्ष कहीं न कहीं हम सबका संघर्ष है,हम सब सपने देखते है और उन्हें पूरा करने का प्रयास भी करते है,तो आप भी आज बढ़िए और अपने सपनों की पतलून को हासिल करने के प्रयास में जुट जाइए…यकीनन आपकी पतलून आपको जरूर मिलेगी।मुरार जी आपका बहुत बहुत धन्यवाद!

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