स्पेशल डेस्क/पटना : बिहार में 2025 के विधानसभा चुनाव से पहले मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (Special Intensive Revision – SIR) अभियान के तहत 35.5 लाख से अधिक मतदाताओं के नाम हटाए जाने की प्रक्रिया ने सियासी हलचल मचा दी है। यह प्रक्रिया 24 जून से शुरू हुई और 25 जुलाई तक चलेगी, जिसके बाद 1 अगस्त 2025 को मतदाता सूची का मसौदा प्रकाशित होगा। आइए, इस मामले को विस्तार में एक्जीक्यूटिव एडिटर प्रकाश मेहरा से समझते हैं
पूरा मामला क्या है ?
चुनाव आयोग ने बिहार में मतदाता सूची को त्रुटिरहित बनाने के लिए SIR अभियान शुरू किया है। इसके तहत 7.90 करोड़ मतदाताओं में से अब तक 6.60 करोड़ (88.18%) ने गणना प्रपत्र (Enumeration Form) जमा कर दिए हैं। 35.5 लाख मतदाताओं के नाम हटाए जाने की संभावना है, जो कुल मतदाताओं का 4.5% से अधिक है। इनमें शामिल हैं: 12.5 लाख (1.59%) मृत मतदाता, जिनके नाम अभी भी सूची में हैं। 17.5 लाख (2.2%) मतदाता, जो स्थायी रूप से बिहार से बाहर चले गए हैं। 5.5 लाख (0.73%) मतदाता, जिनके नाम एक से अधिक जगहों पर पंजीकृत हैं। कुछ विदेशी नागरिक (नेपाल, बांग्लादेश, म्यांमार) के नाम भी सूची में पाए गए, जिन्हें 1 से 30 अगस्त तक विशेष अभियान के तहत हटाया जाएगा।
ऑनलाइन सत्यापन की सुविधा शुरू की गई है और दस्तावेजों की अनिवार्यता को लचीला किया गया है। मतदाता ECINET ऐप या voters.eci.gov.in के जरिए फॉर्म भर सकते हैं।इस प्रक्रिया पर सुप्रीम कोर्ट की निगरानी है और अगली सुनवाई 28 जुलाई 2025 को होगी। विपक्ष ने इसे गरीब, दलित और प्रवासी मजदूरों के खिलाफ साजिश करार दिया है।
क्यों हो रहा है विवाद? विपक्ष की आपत्तियां
विपक्षी महागठबंधन (RJD-कांग्रेस) का आरोप है कि यह प्रक्रिया गरीब, दलित, मुस्लिम, और प्रवासी मजदूरों को वोटर लिस्ट से बाहर करने की साजिश है, जिससे NDA को फायदा हो सकता है। बिहार कांग्रेस अध्यक्ष राजेश राम ने दावा किया कि 3 करोड़ से अधिक नाम हट सकते हैं, खासकर प्रवासी मजदूरों के, जिनमें 2 करोड़ पंजीकृत और 1 करोड़ गैर-पंजीकृत मजदूर शामिल हैं। RJD और कांग्रेस का कहना है कि सीमांचल और कोसी जैसे क्षेत्रों में महागठबंधन का वोट बैंक प्रभावित होगा। विपक्ष ने इसे चुपके से NRC लागू करने की कोशिश बताया है।
चुनाव आयोग का पक्ष !
आयोग का कहना है कि यह प्रक्रिया मतदाता सूची को पारदर्शी और विश्वसनीय बनाने के लिए है, ताकि फर्जी, मृत, और दोहरे पंजीकरण वाले वोटर हटाए जा सकें। 2003 की वोटर लिस्ट को आधार मानकर सत्यापन किया जा रहा है, और ज्यादातर लोगों को अतिरिक्त दस्तावेज देने की जरूरत नहीं है। आयोग ने 11 दस्तावेजों की सूची जारी की है, जिनमें से कोई एक जमा करना होगा। ऑनलाइन सत्यापन और विशेष शिविरों के जरिए प्रक्रिया को आसान बनाया गया है।
विशेषज्ञों और संगठनों की चिंता
संगठन जैसे ADR और PUCL ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है, जिसमें SIR की वैधता और व्यावहारिकता पर सवाल उठाए गए हैं। दस्तावेज जमा करने की प्रक्रिया को गरीबों और प्रवासियों के लिए चुनौतीपूर्ण बताया जा रहा है, क्योंकि उनके पास जरूरी कागजात नहीं हो सकते। समय की कमी (25 जुलाई तक) और जटिल प्रक्रिया के कारण लाखों लोग वोटर लिस्ट से बाहर हो सकते हैं।
किसे नफा, किसे नुकसान ?
सीमांचल, कोसी, और अन्य क्षेत्रों में महागठबंधन का मजबूत वोट बैंक (दलित, मुस्लिम, और गरीब समुदाय) प्रभावित हो सकता है, क्योंकि इनमें से कई प्रवासी मजदूर या दस्तावेजों के अभाव में नाम हटा सकते हैं। यदि कटौती 70 लाख तक पहुंचती है, जैसा कि कुछ अनुमान हैं, तो प्रति विधानसभा सीट औसतन 28,000 वोटर प्रभावित होंगे, जो 2020 के चुनाव में जीत-हार के अंतर से कहीं ज्यादा है।
क्या NDA को होगा फ़ायदा ?
विपक्ष का दावा है कि यह प्रक्रिया NDA के पक्ष में हो सकती है। NDA (BJP-JDU-LJP) को फायदा ? NDA को इस प्रक्रिया से अपेक्षाकृत लाभ हो सकता है, क्योंकि उनके वोट बैंक (शहरी और मध्यम वर्ग) पर कम असर पड़ने की संभावना है। हालांकि, BJP और JDU के सहयोगी दलों में भी प्रवासी मजदूरों के नाम कटने की चिंता है, क्योंकि ये उनके कुछ समर्थक भी हो सकते हैं। यदि सुप्रीम कोर्ट इस प्रक्रिया को रद्द या संशोधित करता है, तो NDA को राहत मिल सकती है।
प्रवासी मजदूरों पर असर !
बिहार के 2 करोड़ पंजीकृत और 1 करोड़ गैर-पंजीकृत प्रवासी मजदूरों के नाम हटने का खतरा है, क्योंकि उनके लिए दस्तावेज जुटाना और समय पर बिहार पहुंचना मुश्किल है। यह समुदाय, जो ज्यादातर गरीब और दलित वर्ग से है, वोटिंग से वंचित हो सकता है। यह प्रक्रिया बिहार की 243 विधानसभा सीटों पर औसतन 28,000 वोटर प्रति सीट को प्रभावित कर सकती है, जो कई सीटों पर नतीजों को बदल सकता है।
RJD नेता तेजस्वी यादव और कांग्रेस ने इसे लोकतंत्र पर हमला करार दिया है। हालांकि गरीब, दलित और मुस्लिम समुदायों के लिए वोटिंग अधिकारों का हनन होने की आशंका है, जिससे सामाजिक असंतोष बढ़ सकता है।
अब आगे क्या होगा ?
25 जुलाई तक मतदाताओं को गणना प्रपत्र जमा करना होगा। 1 अगस्त 2025 को ड्राफ्ट वोटर लिस्ट प्रकाशित होगी। सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई (28 जुलाई) इस प्रक्रिया को रद्द या संशोधित कर सकती है। चुनाव आयोग ने ऑनलाइन सत्यापन और विशेष शिविरों के जरिए प्रक्रिया को आसान करने का दावा किया है, लेकिन विपक्ष और विशेषज्ञ इसे अपर्याप्त मानते हैं।
चुनाव आयोग ने क्या कहा ?
चुनाव आयोग का कहना है कि “SIR का उद्देश्य मतदाता सूची को सटीक और पारदर्शी बनाना है, लेकिन विपक्ष इसे गरीब और दलित वोटरों को निशाना बनाने की साजिश मानता है। इस प्रक्रिया से महागठबंधन को ज्यादा नुकसान और NDA को अपेक्षाकृत फायदा हो सकता है। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट का फैसला और अंतिम आंकड़े इस मामले को और स्पष्ट करेंगे। मतदाताओं, खासकर प्रवासियों, को समय रहते अपने फॉर्म जमा करने चाहिए ताकि उनका नाम सूची में बना रहे।
नोट: अगर आप बिहार के मतदाता हैं, तो voters.eci.gov.in या ECINET ऐप के जरिए तुरंत अपना सत्यापन करवाएं और 25 जुलाई की समय सीमा का पालन करें।