Upgrade
पहल टाइम्स
  • होम
  • दिल्ली
  • राज्य
  • राष्ट्रीय
  • विश्व
  • धर्म
  • व्यापार
  • खेल
  • मनोरंजन
  • गैजेट्स
  • जुर्म
  • लाइफस्टाइल
    • स्वास्थ्य
    • फैशन
    • यात्रा
  • विशेष
    • साक्षात्कार
  • ईमैगजीन
  • होम
  • दिल्ली
  • राज्य
  • राष्ट्रीय
  • विश्व
  • धर्म
  • व्यापार
  • खेल
  • मनोरंजन
  • गैजेट्स
  • जुर्म
  • लाइफस्टाइल
    • स्वास्थ्य
    • फैशन
    • यात्रा
  • विशेष
    • साक्षात्कार
  • ईमैगजीन
No Result
View All Result
पहल टाइम्स
No Result
View All Result
  • होम
  • दिल्ली
  • राज्य
  • राष्ट्रीय
  • विश्व
  • धर्म
  • व्यापार
  • खेल
  • मनोरंजन
  • गैजेट्स
  • जुर्म
  • लाइफस्टाइल
  • विशेष
  • ईमैगजीन
Home राष्ट्रीय

राष्ट्रीय गठजोड़ के फेर में विपक्ष न पड़े!

पहल टाइम्स डेस्क by पहल टाइम्स डेस्क
May 20, 2023
in राष्ट्रीय, विशेष
A A
opposition to unite
1
VIEWS
Share on FacebookShare on Whatsapp

अजीत द्विवेदी


राष्ट्रीय गठबंधन एक मिथक-1: लोकतांत्रिक राजनीति की एक सचाई है कि इसमें विपक्ष जीतता नहीं है, बल्कि चुनी हुई सरकारें हारती हैं। इसलिए विपक्ष का एकजुट होना या राष्ट्रीय गठबंधन बना कर चुनाव जीत लेना एक मिथक की तरह है। हर चुनी हुई सरकार अपनी हार की जमीन खुद तैयार करती है और विपक्ष एकजुट हो या न हो सरकार हार जाती है। कर्नाटक का चुनाव मिसाल है, जहां विपक्ष की आधा दर्जन पार्टियां अलग अलग चुनाव लड़ रही थीं और फिर भी भाजपा को हारना था तो वह हार गई। विपक्ष की एकता बनाने के लिए जिन चुनावों की मिसाल दी जाती है उनमें भी सरकार विपक्ष की एकता से नहीं हारी थी। बोफोर्स के मुद्दे पर हुआ 1989 का चुनाव भी सभी पार्टियां अलग अलग लड़ी थीं। जनता परिवार की पार्टियां जरूर एक हुई थीं लेकिन भाजपा, वामपंथी पार्टियां और दक्षिण भारत के दल अलग अलग लड़े थे। फिर भी राजीव गांधी की प्रचंड बहुमत वाली सरकार हार गई थी। विपक्ष जीता नहीं था। क्योंकि विपक्ष के सबसे बड़े गठबंधन को भी सिर्फ 143 सीटें मिली थीं, जबकि हारी हुई कांग्रेस ने 197 सीटें जीती थीं। बाद में वीपी सिंह ने भाजपा और लेफ्ट के समर्थन से सरकार बनाई थी। उसके बाद 2004 में भी कोई गठबंधन नहीं हुआ था। लगभग सभी विपक्षी पार्टियां अलग अलग लड़ी थीं और फीलगुड व इंडिया शाइनिंग के मुगालते में भाजपा हार गई थी। चुनाव नतीजों के बाद सरकार बनाने के लिए यूपीए का गठन किया गया था।

इन्हें भी पढ़े

सांसद रेणुका चौधरी

मालेगांव फैसले के बाद कांग्रेस सांसद के विवादित बोल- हिंदू आतंकवादी हो सकते हैं

July 31, 2025
पूर्व मुख्यमंत्री ज्योति बसु

इस नेता ने लगाया था देश का पहला मोबाइल फोन कॉल, हेलो कहने के लग गए थे इतने हजार

July 31, 2025

‘एक पेड़ मां के नाम’: दिल्ली के सरस्वती कैंप में वृक्षारोपण कार्यक्रम, समाज को दिया पर्यावरण संरक्षण का संदेश!

July 31, 2025
nisar satellite launch

NISAR : अब भूकंप-सुनामी से पहले बजेगा खतरे का सायरन!

July 30, 2025
Load More

तभी यह बहुत दिलचस्प है कि कर्नाटक विधानसभा चुनाव के नतीजों के बाद यह चर्चा तेज हो गई है कि अगर विपक्षी पार्टियां एक हो जाती हैं और हर सीट पर भाजपा के खिलाफ विपक्ष का एक उम्मीदवार होता है तो भाजपा को हराया जा सकता है। यह दिलचस्प इसलिए है क्योंकि कर्नाटक में कांग्रेस बिना विपक्षी एकता के जीती है। सोचें, जहां त्रिकोणात्मक संघर्ष होने की वजह से भाजपा हारी है वहां के नतीजे के बाद आमने सामने की लड़ाई बनवाने की सबसे ज्यादा चर्चा हो रही है! बहरहाल, यह सुनने में बहुत अच्छा लगता है कि हर सीट पर विपक्ष का एक उम्मीदवार हो या वन ऑन वन चुनाव होना चाहिए। लेकिन यह व्यावहारिक रूप से संभव नहीं है और राजनीतिक रूप से इसके सफल होने की कोई गारंटी नहीं है। राजनीति में हमेशा एक और एक मिल कर दो हों या 11 हो जाएं यह जरूरी नहीं है। कई बार एक और एक मिल शून्य हो जाता है, जैसे कर्नाटक में 2019 के लोकसभा चुनाव में हुआ था।

कर्नाटक में 2018 के विधानसभा चुनाव में त्रिकोणात्मक मुकाबला हुआ था, जिसमें कांग्रेस को 38.14 फीसदी और जेडीएस को 18.30 फीसदी वोट मिले थे। कांग्रेस ने 80 और जेडीएस ने 37 सीट जीती थी। भाजपा को 36 फीसदी वोट और 104 सीटें मिली थीं। साधारण गणित के नजरिए से देखें तो कांग्रेस और जेडीएस का साझा वोट करीब 57 फीसदी बनता है और सीटें 117 हो जाती हैं। यह तब हुआ, जब दोनों अलग लड़े। इसके बाद 2019 में दोनों तालमेल करके लड़े और दोनों को मिला कर सिर्फ 39 फीसदी वोट आए और दो ही सीटें मिलीं। भाजपा को 52 फीसदी वोट मिले और उसने 25 सीटें जीतीं। जानकार राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि अगर कांग्रेस और जेडीएस अलग अलग लड़े होते तो दोनों को सात से नौ सीटें मिल सकती थीं, जैसा 2014 के चुनाव में हुआ था। तब कांग्रेस को नौ और जेडीएस को दो सीट मिली थी।

कर्नाटक के आंकड़ों की मिसाल देकर एक तस्वीर बनाने का मकसद यह बताना है कि हर जगह साथ लडऩा चुनाव जीतने की गारंटी नहीं है। कई राज्यों का राजनीतिक और सामाजिक समीकरण ऐसा है कि अगर समूचा विपक्ष एक हो जाए तो भाजपा के लिए मैदान खाली हो जाएगा। इसलिए अगर विपक्ष अगले लोकसभा चुनाव की प्रभावशाली रणनीति बनाना चाहता है तो उसे राज्यवार रणनीतिक गठबंधन के बारे में सोचना होगा। निश्चित रूप से एक बड़ा राष्ट्रव्यापी गठबंधन होना चाहिए लेकिन सीटों का तालमेल या एडजस्टमेंट अलग अलग राज्यों के लिए अलग अलग होना चाहिए। इस बात को दक्षिण भारत के कुछ राज्यों के समीकरण से समझा जा सकता है। पिछले कुछ चुनावों के नतीजों को देखते हुए यह कहा जा सकता है कि तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश को छोड़ कर बाकी तीन राज्यों में अगर विपक्ष एकजुट होकर लड़ता है तो तीन स्थितियां बनेंगी, या तो कोई फर्क नहीं पड़ेगा या विपक्ष को आंशिक फायदा होगा या भाजपा को फायदा हो जाएगा।

राष्ट्रीय गठबंधन बनाने और हर सीट पर आमने सामने का मुकाबला बनवाने के लिए बहुत मेहनत करने की बजाय विपक्षी पार्टियों को अलग अलग राज्य के लिए अलग अलग रणनीति पर विचार करना चाहिए, सरकार की कमियों को उजागर करना चाहिए और वैकल्पिक एजेंडा तय करने पर माथापच्ची करनी चाहिए। अपनी अपनी महत्वाकांक्षा में भागदौड़ कर रहे नेताओं को यह ध्यान रखना चाहिए कि एक साइज का जूता सबके पैर में फिट नहीं हो सकता है। एक चुनावी रणनीति जो एक राज्य में चलेगी, वह दूसरे में चले ऐसा जरूरी नहीं है। हर राज्य का सामाजिक समीकरण अलग होता है और राजनीतिक सचाई भी अलग होती है। इस बात का ध्यान रखते हुए रणनीति बनानी होगी। इससे प्रभावित होने की जरूरत नहीं है कि ममता बनर्जी के सुर बदल गए या के चंद्रशेखर राव भी गठबंधन के लिए तैयार हो गए। दोनों की अपनी समस्याएं हैं, चिंताएं हैं, जिसकी वजह से वे नरम पड़े हैं।

सो, अब सवाल है कि यह कैसे पता चलेगा कि कहां विपक्ष को क्या रणनीति अपनानी चाहिए? कहां उसे हर सीट पर भाजपा के खिलाफ एक उम्मीदवार देना चाहिए और कहां बहुकोणीय लड़ाई होने देनी चाहिए? यह बहुत मुश्किल नहीं है। इसके कुछ बुनियादी सिद्धांत हैं। पहला, जिन राज्यों में भाजपा मजबूत ताकत नहीं है और अपनी जगह बनाने के लिए स्ट्रगल कर रही है वहां बड़े विपक्षी गठबंधन की जरूरत नहीं है। केरल, तेलंगाना, पंजाब आदि इसकी मिसाल हैं। इन राज्यों में अगर समूचा विपक्ष एक होकर लड़ता है तो हो सकता है कि उसको ज्यादा सीट मिल जाए या सारी सीटें मिल जाएं लेकिन इसके दो फॉलआउट होंगे, भाजपा वहां की सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी बनेगी और कांग्रेस का आधार बहुत कमजोर हो जाएगा। जो काम भाजपा इन राज्यों में आजतक नहीं कर पाई है वह काम हो जाएगा। दूसरा, जिन राज्यों में भाजपा मजबूत है और सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की संभावना प्रबल है वहां विपक्ष का एकजुट होकर लडऩा भाजपा को फायदा पहुंचाएगा क्योंकि वहां भाजपा यह नैरेटिव बना सकती है कि मोदी को रोकने के लिए मुस्लिमपरस्त पार्टियां एक हो गई हैं। पश्चिम बंगाल, कर्नाटक, झारखंड, असम आदि राज्य इस श्रेणी में आते हैं।

तीसरा, जिन राज्यों में कांग्रेस का सीधा मुकाबला भाजपा से है, वहां जबरदस्ती गठबंधन बनाना किसी काम नहीं आएगा। राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड आदि राज्य इस श्रेणी में आते हैं। चौथा, हिंदुत्व की प्रयोगशाला बन चुके राज्यों में भी गठबंधन के सफल होने की संभावना कम है। फिलहाल इस श्रेणी में उत्तर प्रदेश और गुजरात का नाम लिया जा सकता है। पांचवां, जिन राज्यों में भाजपा के प्रति सद्भाव रखने वाली पार्टियों का शासन है, जैसे आंध्र प्रदेश और ओडि़शा, वहां वैसे भी गठबंधन नहीं बन सकता है। इसके बाद बचते हैं वो राज्य, जहां भाजपा या उसकी सहयोगी पार्टियों को रोकने में गठबंधन कामयाब हो सकता है। इसमें तीन बड़े राज्य हैं, तमिलनाडु, बिहार और महाराष्ट्र। सो, विपक्ष को इन सभी छह श्रेणी के राज्यों के लिए अलग अलग रणनीति बनानी होगी। उनका एजेंडा एक हो सकता है, उनमें सद्भाव हो सकता है, संसाधन से सब एक दूसरे की मदद कर सकते हैं लेकिन हर जगह मिल कर लडऩे की सोच मुश्किल पैदा करेगी। कल इस पर राज्यवार विश्लेषण होगा, जिससे तस्वीर और साफ होगी।

इन्हें भी पढ़ें

  • All
  • विशेष
  • लाइफस्टाइल
  • खेल
दिलीप पांडे

दिल्ली : अहंकार में डूबी केंद्र सरकार लोकतांत्रिक परंपराओं को कर रही हैं दरकिनार

March 22, 2023

WCL सुपर 30 – TARASH के अंतर्गत 30 छात्रों को आईआईटी-जेईई तथा एनईईटी के लिये होंगे प्रशिक्षित

May 22, 2023
Opposition

‘INDIA’ को कैसे एकजुट रख पाएंगे विपक्षी दल, गड़बड़ाए समीकरण!

July 31, 2023
पहल टाइम्स

पहल टाइम्स का संचालन पहल मीडिया ग्रुप्स के द्वारा किया जा रहा है. पहल टाइम्स का प्रयास समाज के लिए उपयोगी खबरों के प्रसार का रहा है. पहल गुप्स के समूह संपादक शूरबीर सिंह नेगी है.

Learn more

पहल टाइम्स कार्यालय

प्रधान संपादकः- शूरवीर सिंह नेगी

9-सी, मोहम्मदपुर, आरके पुरम नई दिल्ली

फोन नं-  +91 11 46678331

मोबाइल- + 91 9910877052

ईमेल- pahaltimes@gmail.com

Categories

  • Uncategorized
  • खाना खजाना
  • खेल
  • गैजेट्स
  • जुर्म
  • दिल्ली
  • धर्म
  • फैशन
  • मनोरंजन
  • यात्रा
  • राजनीति
  • राज्य
  • राष्ट्रीय
  • लाइफस्टाइल
  • विशेष
  • विश्व
  • व्यापार
  • साक्षात्कार
  • सामाजिक कार्य
  • स्वास्थ्य

Recent Posts

  • मालेगांव फैसले के बाद कांग्रेस सांसद के विवादित बोल- हिंदू आतंकवादी हो सकते हैं
  • डोनाल्ड ट्रंप ने भारत में किन उद्योगों के लिए बजाई खतरे की घंटी!
  • इस नेता ने लगाया था देश का पहला मोबाइल फोन कॉल, हेलो कहने के लग गए थे इतने हजार

© 2021 पहल टाइम्स - देश-दुनिया की संपूर्ण खबरें सिर्फ यहां.

  • होम
  • दिल्ली
  • राज्य
  • राष्ट्रीय
  • विश्व
  • धर्म
  • व्यापार
  • खेल
  • मनोरंजन
  • गैजेट्स
  • जुर्म
  • लाइफस्टाइल
    • स्वास्थ्य
    • फैशन
    • यात्रा
  • विशेष
    • साक्षात्कार
  • ईमैगजीन

© 2021 पहल टाइम्स - देश-दुनिया की संपूर्ण खबरें सिर्फ यहां.