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पहली सभ्यता: हाइब्रिड फाउंडेशन!

पहल टाइम्स डेस्क by पहल टाइम्स डेस्क
July 6, 2022
in विशेष
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हरिशंकर व्यास

मनुष्य समाज दरअसल पशु प्रवृत्तियों और मनुष्य व्यवहार की वह वर्णसंकर, हाईब्रिड प्रजाति है, जिससे मानव दिमाग एक छोर से दूसरे छोर, जंगली से मानवीय छोर में झूलता है। दुविधाओं और अतिवाद में जिंदगी जीता है। यह भूख, भय, अहम का अतिवाद है तो इन पर शासन व शोषण की बनी गड़ेरिया बुद्धि भी कम अतिवादी नहीं है। ज्21वीं सदी के आठ अरब लोगों की मौजूदा आबादी में श्रेष्ठि मानव वर्ग आठ करोड़ भी नहीं होंगे। जबकि 99 प्रतिशत लोग पशुगत प्रवृत्तियों की भेड़-बकरी, सुअर की कैटल क्लास के एनिमल फार्म में जिंदगी जी रहे हैं।

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सभ्यता की हाइब्रिड फाउंडेशन के कारण!
प्रलय का मुहाना -31: यक्ष प्रश्न है सुमेर की पहली सभ्यता से मनुष्य का क्या हुआ उसके पशुगत डीएनए मिटे या वे और बढ़े सुमेर-मेसोपोटामिया के मॉडल व टैंपलेट से बनी सभ्यताओं से मनुष्य सभ्य हुआ या दुष्ट पहली बात, वह व्यवस्थाओं का अधीनस्थ हुआ। दूसरी बात, मनुष्यों में असमानता बनना शुरू हुई। तमाम सभ्यताओं में वे आइडिया और व्यवस्थाएं बनीं, जिनसे बहुसंख्यक लोगों का नया पशु जीवन प्रारंभ हुआ। वहीं कुछ लोग उन्हें हांकने वाले कुलीन मानव बने। तब से आज तक मनुष्यों में, उनके समाजों, धर्मों, राजनीति, व्यवस्थाओं में यह सोच स्थायी है कि फलां सभ्य है या असभ्य।

इस दोहरी व्यवस्था के मूल प्रवर्तक-प्रायोजक सुमेर के पुजारी और उनके बनवाए राजा, उनके कारिंदे या कि नया श्रेष्ठि मानव था। कोई माने या न माने 21वीं सदी के आठ अरब लोगों की मौजूदा आबादी में श्रेष्ठि मानव वर्ग आठ करोड़ भी नहीं होंगे। जबकि 99 प्रतिशत लोग पशुगत प्रवृत्तियों की भेड़-बकरी, सुअर की कैटल क्लास की एनिमल फार्म जिंदगी जीते हुए हैं, ऐसा सभ्यता की हाइब्रिड फाउंडेशन से निर्मित संचालकों-मालिकों धर्माचार्यों, सत्तावान, बुद्धिमान और धनवानों व कारिदों के कुलीन वर्ग की बदौलत है।

अतिवादी छोर
तभी आठ अरब लोगों का मनुष्य समाज दरअसल पशु प्रवृत्तियों और मनुष्य व्यवहार की वह वर्णसंकर, हाइब्रिड प्रजाति है, जिससे मानव दिमाग एक छोर से दूसरे छोर, जंगली से मानवीय छोर में झूलता है। दुविधाओं और अतिवाद में जिंदगी जीता है। यह भूख, भय, अहम का अतिवाद है तो इन पर शासन व शोषण की बनी गड़ेरिया बुद्धि भी कम अतिवादी नहीं है।
मनुष्यों के कई रूपों, वर्ग-वर्ण और पहचान का सुमेर से शुरू सिलसिला सभ्यता की खास विशेषता है। वह प्रगति का आधार है तो नारकीयता का भी। संदेह नहीं शहरी रहन-सहन, औजार-निर्माण, सुरक्षा-लड़ाई के हथियार, श्रम विभाजन, प्रबंध, यातायात, दिमाग-बुद्धि में नए-नए आइडिया, भौतिक उपलब्धियों की प्रगति के अनुभव जबरदस्त हैं। सभ्यताओं के बाड़े बने। समाज-धर्म-राजनीति के त्रिभुज ने मनुष्य व्यवहार के नए आयाम बनाए। प्रतिस्पर्धाएं बनीं। मनुष्य पॉवरफुल हुआ। उसका वह अभिजात-कुलीन वर्ग पैदा हुआ, जिसकी कमान से लोगों के जीने की पद्धति का सत्व-तत्व और दिशा बनीं है।

चाहें तो कह सकते हैं कि सभ्यता से लोगों में कम-ज्यादा सभ्य होने का बोध तो बना। यह आइडिया तो पैदा हुआ कि मनुष्य को बतौर मानव परिपूर्ण बनना है। इसी बोध में शायद मनुष्य समाजों, राष्ट्रों की अलग-अलग आइडेंटिटी बनी। जन्म, पहचान और हैसियत से मानव गरिमा और स्वतंत्रता तय हुई। मनुष्य जीवन के संचालनालय बने। जिंदगी स्वार्थी संबंधों और रिश्तों में बंधी।
अपना मानना है कि मानव का दुर्भाग्य जो उसने खेती को अपना कर पराश्रित-संचालित जिंदगी का रास्ता अपनाया। भूख, भय और अहम में अपने को पुजारी और राजा व कुलीनवर्ग के सुपुर्द किया। उस प्रारंभिक-बेसिक गलती के बाद से मनुष्य दिमाग लगातार अबोध है। होमो सेपियन ज्ञानवान हो ही नहीं पाया। सभ्य भी असभ्य और पूरे मानव जीवन को असभ्य बनाते हुए। जिन मनुष्यों की पशुओं के मुकाबले बुद्धि बढ़ी और उन्हें मानव पर सोचने का मौका मिला था वे भी मानव सभ्यता की नियति को बाड़ों-गड़ेरियों की बनवाते हुए थे।
सुमेर से परस्पर रिश्तों में स्वार्थों की वे स्थितियां और जातियां बनीं, जिनसे ऊंच-नीच, शोषक-शोषित की व्यवस्थाओं का निर्माण हुआ। यहीं फॉर्मूला आगे सिटी-स्टेट, देशों की चारदिवारियों के रिश्तों और लड़ाई-झगड़ों में निर्णायक था। जाहिर है सुमेर के बीज, खाद-पानी से प्रगति का रास्ता बना तो साथ ही मनुष्य दिमाग कलुषित होना भी शुरू हुआ। कुल मिलाकर सुमेर की पहली सभ्यता से मनुष्य की शिकारी-खानाबदोश वक्त की स्वतंत्रता-स्वछंदता-आत्मनिर्भर-ऑर्गेनिक जिंदगी खत्म।
तब से पशु-मनुष्य का साझा हाइब्रिड जीवन लगातार मानवीय और नारकीय विकास का समानांतर मानव अनुभव बनाए हुए है।

सभ्यता की जन्मजात चतुराई
सभ्यता्गत किंगडम ऑफ ह्यमून एनिमेलिया का प्रारंभ चतुराईयों से शुरू हुआ। मनुष्य को बांधने का जिम्मा पुजारियों और धर्म ने संभाला। मनोदशा, स्वभाव और व्यवहार में संस्कार, नैतिक मूल्य, विश्वास-आस्था की गंगोत्री धर्म से संचालित है। इसके सहायक रूप में फिर समाज का रोल। मतलब समाज और धर्म मनुष्य की मनोदशा को बनाता आया है वहीं राजा व राजनीति का रोल भूख और भय-असुरक्षा के निदान और उसकी व्यवस्थाओं के लिए। सुमेर की पहली सभ्यता से धर्म, समाज और राजनीति पर मनुष्य की निर्भरता ही वह कारण है, जिससे पालनहार, संरक्षक, रक्षक, मालिक कुलीन वर्ग पैदा हुआ। दिमाग और बुद्धि धर्म और राजा व इनके कुलीन वर्ग को समर्पित व उनकी अधीनस्थ।
ईसा पूर्व सन् 35 सौ में सिटी-स्टेट का शासन, शुरुआत में कुनबे-कबीले के पारिवारिक व्यवसाय जैसा था। वह ग्यारह सौ साल बाद ईसा पूर्व 24 सौ में सुमेरियन सभ्यता के लंबे-चौड़े साम्राज्य में जब तब्दील हुआ तो पुजारी-राजा-नौकरशाहों के जबरदस्त कुलीन वर्ग से सांगठनिक राष्ट्र था। उसका मालिकाना पूरी तरह कुलीन वर्ग के हाथों में। ईसा पूर्व सन् 2350 में केंद्रीय मेसोपोटामिया क्षेत्र के सिटी-स्टेट अक्कड़ में सरगोन नाम के राजा के वक्त की प्रगति मील का पत्थर है। वह इतिहास का पहला साम्राज्य निर्माता सम्राट था। उसने और उसके खानदान ने कोई 120 वर्ष शासन किया। उसने नौकरशाही बनाई। सुमेर-मेसोपोटामियाई कायदों, मूल्यों और सामाजिक-आर्थिक अनुभवों पर कानून बनाए। यह राजा भी पुजारियों द्वारा भगवान का अवतार घोषित था। पुजारियों ने उन्हें बाबुल (बेबीलोन) के शीर्ष देवता मार्डुक की ओर से राजा घोषित कर प्रजा में अंधविश्वास बनाया था। वह पौराणिक घटना स्टेल्स (पत्थर के स्तंभ) पर चित्रित है। उसकी प्रतिलिप पेरिस के लूव्रे संग्रहालय में है। जाहिर है मंदिर और महल का एक-दूसरे से पोषण था। साझेदारी थी। दोनों के आइडिया में, उनकी सर्वज्ञता में कुलीन वर्ग का निर्माण था। उसी अभिशाप में पिछले पांच हजार वर्षों से पृथ्वी के बहुसंख्यक मनुष्य नरक भोगते आए हैं।

मेसोपोटामिया में महल और मंदिर की साझी सर्वज्ञता में देवताओं का उपयोग राजाओं द्वारा प्रजा को उल्लू बनाने और स्वयं की शक्ति को मजबूत करने के लिए था। जब अक्कड़ सत्ता का केंद्र बना तो सुमेरियन देवताओं की जगह शिलालेखों में बेबीलोन देवता (मार्डुक) टॉप पर हो गए। नए राजा के नए कानूनों में जहां सुमेरियन परंपरा थी तो बेबीलोन शासन की नई सोच भी थी। इसका एक बारीक फर्क यह था जो सुमेरियन दंड में नागरिकों से जुर्माना लेने पर जोर था वहीं हजार साल के विकास, हिंसा, ताकत के अनुभवों के बाद अक्कड राज में आंख के बदले आंख और एक दांत के लिए दांत जैसी शारीरिक-यातनादायी दंड व्यवस्थाएं बनीं। मतलब हिंसा, क्रूरता, दुष्टताएं बढ़ी हुई।

ऊंच-नीच की वजह प्रभु वर्ग
सुमेर के शुरुआती वर्षों में व्यापार पुजारियों और योद्धाओं की इच्छा व आवश्यकताओं से थे। ये व्यापारी कुलीन वर्ग को धातु, कच्चे माल और विलासी सामान सप्लाई करते और उनकी कृपा पाते थे। मतलब आधुनिक वक्त के क्रोनी पूंजीवाद के बीज तभी बन गए थे। सारगोन के बाद हम्मूराबी के समय में अक्कड़ के स्वतंत्र व्यापारियों की कुछ हैसियत बनी। लेकिन तब भी इनकी सामाजिक हैसियत योद्धाओं और पुजारियों के बाद थी। इनसे समाज में तीसरा कुलीन वर्ग बना। हम्मूराबी के कानूनी कोड अनुसार तब सभ्यता ने प्रजा को चार हिस्सों में बांटा था। सुमेरियन कानून में सामाजिक संरचना लू-गल (महान व्यक्ति या राजा), लू या मुक्त व्यक्ति और अर्ध-मुक्त और फिर गुलाम-दास में विभाजित थी। इनमें से प्रत्येक की कानून के सामने अलग-अलग स्थिति थी।

ऐसा भेदभाव खेती और सभ्यता से पहले नहीं था। तुलना करें शिकारी-पशुपालक खानबदोश मनुष्य बनाम खेतिहर मनुष्य की। कृषि से मनुष्य जहां प्रकृति, प्राकृतिक संसधानों, जमीन का भूखा बना वहीं उससे मनुष्य के शोषण, अलग-अलग बाड़े और गुलामी के वर्ग-वर्ण बने। दमन, लड़ाई, हिंसा और नरसंहार की स्थितियां, व्यवस्थाएं और मनोवृत्तियां बनीं। यदि पृथ्वी और उसका पर्यावरण आज खतरे में है तो औद्योगिकीकण से कई गुना अधिक रोल कृषि और उससे शुरू सभ्यता का है।
अनाज की पैदावार ने ही सिटी-स्टेट का आइडिया पैदा किया। सरकार की व्यवस्थाएं बनीं। दरअसल अनाज की फसल कुलीन वर्ग, लगान वसूलने वाले कर्मचारियों के सामने दृश्यमान, विभाज्य, आकलन योग्य, भंडारण योग्य, परिवहन योग्य और ‘राशन योग्य’ उपज थी तो वहीं राष्ट्र की कराधान इकाई और वर्चस्ववादी कृषि कैलेंडर का आधार भी। अनाज से हर कोई अनुमान लगा सकता था कि फसल में उसका हिस्सा कितना बनेगा। विचारक स्कॉट के अनुसार कृषि में सरप्लस निकलने से राज्य का जन्म हुआ। उसी के बूते फिर आवश्यकताओं में हायरार्की, श्रम विभाजन, समाज निर्माण हुआ। पुजारी, राजा, सैनिक, कर्मचारी आदि का कुलीन वर्ग बना। पड़ोसी सिटी-स्टेट से लड़ाइयां हुईं। मजदूर की जरूरत में गुलामी की प्रथा बनी। युद्ध का एक कारण गुलामों की जरूरत थी। मानव इतिहास के शुरुआती चित्रांकनों में कुछ, मेसोपोटामियाई राज्यों के गुलामों की भीड़ के हैं, गर्दन में बेडिय़ों के साथ मार्च करते हुए।

भाषा से प्रारंभ उत्पीडऩ
कृषि और सभ्यता से जहां नए तरह का जीवन बना तो उसकी आवश्यकता के नाम पर युद्ध, दासता, कुलीन वर्ग का विकास हुआ। इनकी शासन व्यवस्था भाषा से और पुख्ता हुई। मनुष्य ने लिखना जाना तो संख्यात्मक रिकॉर्ड रखने की व्यवस्थित तकनीक से सभ्यताओं का ताना-बाना पुख्ता हुआ। मेसोपोटामिया में कोई पांच सौ साल लेखन का उपयोग लोगों के हिसाब-किताब के लिए था। समाज, जनशक्ति, उत्पादन को शासकों और मंदिर पुजारियों के लिए सुपाठ्य बनाने की एक संकेतन प्रणाली बनी। सभ्यता के शुरुआती रिकॉर्ड में सूचियों की भरमार है। स्कॉट के अनुसार यह रिकॉर्ड-कीपिंग, जौ (राशन और करों के रूप में), युद्धबंदी, पुरुष और महिला दासों की गिनतियों में थी।

उस नाते जर्मन यहूदी सांस्कृतिक आलोचक वाल्टर बेंजामिन की यह बात पते की है कि ‘सभ्यता का कोई दस्तावेज नहीं है जो एक ही समय में बर्बरता का दस्तावेज नहीं हो’। मतलब मानवता ने जो भी जटिल और अच्छी चीज बनाई है, उस पर गहराई से गौर करेंगे तो वह उत्पीडऩ का इतिहास और उसकी प्रतिछाया लिए हुए होगी।

मेसोपोटामिया के राजा हम्मूराबी ने ईसा पूर्व 1792 में सुमेर-बेबिलोन को मिलाकर साम्राज्य बनाया। वह कुलीन वर्ग की उत्पति और उनकी बनाई प्रगतिशाली शो पीस सभ्यता थी। प्रगति मतलब मनुष्य वर्गीकृत, असमान अलग-अलग पशु बाड़े में जीवन जीता हुआ। मनुष्यों के परस्पर रिश्तों में असमानताएं और पुरूष-महिला की बराबरी जैसे कोई मानवीय आधार नहीं।
यह लेखा-जोखा (सुमेर-मेसोमोपोटिया की शुरुआती सभ्यता) इसलिए जरूरी है क्योंकि इसी के पैटर्न व नींव पर सभ्यताओं का आगे इतिहास हुआ। कृषि युग की प्रारंभिक सभ्यताओं के सांचों में ही मनुष्य की आधुनिक जिंदगी ढली है। समाज, धर्म, राजनीति, व्यवस्था का ताना-बाना शुरुआती सभ्यताओं से चला आ रहा हे। इसलिए आधुनिकता के प्रगतिशील रंग-रोगन के बावजूद व्यवस्थाओं का मकडज़ाल पांच हजार वर्षों पुराना है।

तब भी सभ्यता में धर्म का नंबर एक महत्व था। पुजारी ईश्वर और देवताओं को जानने-समझने, उन्हें खुश करने के समर्थ विशेषज्ञ माने जाते थे। पूजा स्थान, मंदिरों के भीतर बलि और चढ़ावे, समारोहों-अनुष्ठानों का सिस्टम था। लेकिन विनाशकारी देवताओं को मनाने की पुजारियों की कोशिशों-घोषणाओं के बावजूद आम मनुष्य का जीवन ठगा हुआ और कठिन था। भय और मृत्यु, आशा-विश्वास में देवताओं की कृपा के बावजूद मानव भाग्य, नियति में जीने की मनोदशा बनाते हुए था। इस सच्चाई का प्रमाण मेसोपोटामियाई ‘गिलगमेश’ महाकाव्य है। देवताओं और मानव जीवन की सीमाओं की भावाभिव्यक्ति की यह कहानी गिलगमेश पर केंद्रित है। पहले यह श्रुति परपंरा में सुमेरियन लोक परंपरा का हिस्सा थी। बाद में ईसा पूर्व सन् 2000-1800 के आसपास बेबीलोनियों ने अपनी भाषाओं में गिलगमेश की कहानियों को लिखा। लोगों ने गिलगमेश को अपने प्रति दयालु बनाने के लिए देवताओं को पकड़ा। देवताओं ने गिलगमेश के लिए एक वाइल्डमैन, एनकिडू भेजा। उसे सबक मिला। गिलगमेश तब अनन्त जीवन के रहस्य को खोजने का खोजी बना। रहस्यों को वह एक आदमी (उत्नापिष्टिम) जानता था जो प्रलयकारी बाढ़ में बचा था और कालजयी देवपुरूष था। गिलगमेश उस उत्नापिष्टिम को तलाशता है और उससे रहस्य के स्रोत व तरीका मालूम करता है। रहस्य जान लेता है लेकिन फिर (जैसा कि अपरिहार्य है) उसे गंवा देता है। गिलगमेश की कहानी मेसोपोटामिया जीवन में बुद्धि, भावनाओं की अभिव्यक्ति में जहां लेखन, विकास को बताती है तो उन महामानवों को मानने का संकेत भी है जो उपलब्धियों के देवपुरूष थे। जैसे जल-प्लावन पर हिंदू पुराणों में और बाइबल में नोआह द्वारा मनुष्य को बचाने की कथा है वैसे ही राजा गिलगमेश के कीर्ति ग्रन्थ ‘गिलगमेश’ महाकाव्य में भी जल-प्लावन का उल्लेख है।

एक से धर्म मिथक भी
ध्यान रहे सुमेर-मेसोपोटामिया में ईसा से लगभग 37 वर्ष पहले पहिए, भाषा के उपयोग, संसार के सात आश्चर्यों में से एक, बेबिलोन के झूलते बाग़ जैसी भौतिक उपलब्धियां हैं तो यहूदी, ईसाई, हिंदू धर्म की कई मान्यताएं भी यहीं से शुरू हुई लगती है। असंख्य देवताओं, शहर-नगर देवता, पुजारी-राजा की बहुलताओं से सुमेरियन सभ्यता में वह सब था, जिसका बहुत कुछ सनातनी धर्म में अनादि काल से है। अलग-अलग ब्रह्मांडीय मिथकों की आस्था में सुमेरियन भाषा में अग्नि, हवा, बारिश, सूर्य के देवता नाम हैं तो ग्रह-नक्षत्र और दिशा अनुसार जीवन व्यवहार भी।
जाहिर है पुजारियों ने जैसा सोचा, चाहा वैसे सभी सभ्यताएं बनी हैं। यह स्वाभाविक था। इसलिए कि दिमाग और बुद्धि में आइडिया की पैदाइश का पुजारी शुरू से ही नैसर्गिक अधिकार लिए हुए है। खानबदोश जीवन में भी कबीले का प्रमुख जादू-टोना करने वाले ओझा-पुजारी पर निर्भर था। सरल-सहज कबीलाई बुद्धि का ओझा-पुजारी से कंडीशंड होना भय के कारण था। नियोलिथिक काल की क्रांति (धर्म, बस्ती, खेती के आइडिया) में भी ओझा-पुजारी का दिमाग अपनी सर्वज्ञता बनाए हुए था। उसी से सभ्यता की जमीन तैयार हुई। फिर सभ्यता की फसल पैदा करने का हल भी पुजारियों ने चलाया।

इसलिए बाद के संगठित धर्म, भाषा का आविष्कार, इमारतों-शहरों के निर्माण और कार्य विशेषज्ञता के सामाजिक विकासों ने सामूहिक जीवन से मनुष्य खोपड़ी की कॉग्निटिविटी को भले खूब बढ़ाया हो लेकिन  बुनियादी पशुगत डीएनए नही बदले। उन्हें बदलने के लिए व्यक्तियों के परस्पर सभ्य व्यवहार के दिल-दिमाग में, सभ्यता से बीज अंकुरित नहीं हुए और न इसकी जरूरत के लिए, विश्वास और आस्था को खाद-पानी मिला।

हम कैसे बने और पृथ्वी पर जिंदगी का अनुभव लिए 108 अरब लोगों ने क्या भोगा, इस पर विचारें तो आम राय बनेगी कि मानव इतिहास दुखों का इतिहास है। तभी स्वर्ग की कल्पनाएं बनीं। ज्यादातर लोग, ज्यादातर समय दुखी रहे हैं। संस्कृति, जटिल भौतिक विकास, आधुनिक विज्ञान और चिकित्सा तथा सजृनात्मक कलाओं, देवर्षियों के बौद्धिक अनुष्ठानों के संचित चमत्कार अपनी जगह हैं लेकिन युद्ध, दासता, सामाजिक भेदभाव, यातनाओं, महामारियों, भूख-भय-अहंकार की आदिम प्रवृत्तियों के ज्वालामुखी अनुभवों को यदि याद करें तो सभ्यता का अहंकार निरर्थक लगेगा। सोचने वाली बात है कि सभ्यता का अहम कब व्यक्ति के सभ्य बनने या न बनने की चिंता करते हुए था

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