नई दिल्ली : ट्रैफिक चालानों का निपटारा समय पर न होना दिल्ली वालों के लिए मुसीबत बनता जा रहा है। पिछले तीन वर्षों में महज 20 फीसदी चालानों का ही निपटारा हो पाया है। बाकी लोग अब भी भुगतान के लिए अपनी बारी का इंतजार कर रहे हैं। एनसीआर के शहरों का हाल भी कुछ ऐसा ही है। दिल्ली के हाल पर हेमलता कौशिक की रिपोर्ट…
कमिश्नरेट लागू होने के बाद सख्ती बढ़ी
गाजियाबाद में पिछले साल यातायात पुलिस ने 4.15 लाख चालान किए, जिसमें से करीब सवा लाख चालानों का निपटारा लोक अदालत में हो पाया। यहां कमिश्नरेट प्रणाली लागू होने के बाद यातायात नियमों का उल्लंघन करने वालों पर सख्ती बढ़ी है। पूर्व में हर महीने 30 हजार चालान का औसत था, जो कमिश्नरेट बनने के बाद 90 हजार का आंकड़ा पार कर गया है।
नहीं कर पा रहे वाहनों की खरीद- फरोख्त
नोएडा में भी यातायात नियमों तोड़ने वालों पर सख्ती की जा रही है। ऐसे में हर साल लाखों वाहनों के चालान हो रहे हैं जबकि इससे पहले एक से सवा लाख वाहनों के चालान होते थे। चालान की संख्या अधिक होने पर लंबित चालान की संख्या भी बढ़ती जा रही है। अब भी 26 लाख वाहनों के चालान का भुगतान होना बाकी है। इससे लोग वाहनों की खरीद-फरोख्त नहीं कर पा रहे।
दिल्ली में लंबित ट्रैफिक चालान की संख्या काफी ज्यादा
दिल्ली में लंबित ट्रैफिक चालान की संख्या डेढ़ करोड़ का आंकड़ा पार कर चुकी है, जबकि हर साल महज छह से सात लाख चालानों का ही निपटारा हो पा रहा है। पिछले तीन साल में सिर्फ 20 लाख के ट्रैफिक चालान का भुगतान हो पाया है। ट्रैफिक चालान की लगातार बढ़ती संख्या से दिल्ली ट्रैफिक पुलिस भी चिंतित है।
हालांकि, दिल्ली विधिक सेवा प्राधिकरण (डालसा) भी इन चालानों के निपटारे के लिए नई व्यवस्था पर काम कर रहा है, ताकि अधिक से अधिक संख्या में इन चालानों का निपटारा किया जा सके। पुलिस अधिकारी से मिली जानकारी के अनुसार, 31 दिसंबर 2019 को लंबित ट्रैफिक चालानों की संख्या 69 लाख थी, लेकिन कोविड काल में सुनसान पड़ी सड़कों पर फर्राटे भरते वाहनों ने नियमों का उल्लंघन कर इस संख्या को करोड़ में तब्दील कर दिया। 31 दिसंबर 2022 तक इन चालानों की एक करोड़ 79 लाख पहुंच गई है।
ट्रैफिक चालान के बढ़ते मामलों को देखते हुए दिल्ली ट्रैफिक पुलिस और दिल्ली विधिक सेवा प्राधिकरण संयुक्त रूप से एक नए सॉफ्टवेयर पर काम कर रही है। डालसा के अधिकारी के अनुसार, अक्तूबर 2021 में इस सॉफ्टवेयर का खाका तैयार किया गया था। इसको ऑनलाइन लोक अदालत के लिए इस्तेमाल किया जाना है, जिसके तहत प्रत्येक कार्यदिवस पर लोक अदालत लगाने की योजना है।
फरीदाबाद में हर दिन दो हजार चालान
शहर में यातायात नियमों का खूब उल्लंघन हो रहा है। पुलिस रोजाना दो हजार से अधिक चालान कर रही है। इसमें सबसे अधिक चालान पोस्टल चालान होते हैं। यातायात पुलिस थाना के प्रभारी इंस्पेक्टर दर्पण ने बताया कि साल 2022 में फरीदाबाद पुलिस ने 1.47 लाख से अधिक चालान किए। इससे विभाग को करीब 7.57 करोड़ रुपये की प्राप्ति हुई। यहां भी हजारों की संख्या में चालान का निपटारा होना बाकी है। चालक राशि तुरंत जमा करने से बच रहे हैं।
लोक अदालत को प्राथमिकता
एक वाहन दर्जनों चालान लंबित हैं। ऐसे में चालान राशि अधिक हो जाने पर चालक लोक अदालत को प्राथमिकता दे रहे हैं। तीन माह में एक बार लगने वाली लोक अदालत में 1,44,000 चालान निपटाने का ही लक्ष्य रखा जाता है। ऐसे में महज सवा लाख चालानों का ही भुगतान हो पाता है। ऐसे में एक साल में करीब पांच लाख चालान का ही निपटारा हो पाता है। वहीं, नियमित अदालतों में भी एक साल में पांच लाख चालानों का ही निपटारा हो पाता है।
तेज रफ्तार के चालान अधिक
एक करोड़ 79 लाख में अधिक चालान तेज रफ्तार और लालबत्ती पार करने के अधिक हैं। प्राप्त जानकारी के अनुसार, एक करोड़ दो लाख चालान तेज रफ्तार और लालबत्ती पार करने के हैं। इसके अलावा अन्य तरह के यातायात नियम उल्लंघन के चालान भी हैं।
पालम गांव के रहने वाले नीतिन कुश ने कहा कि मेरी कार के पांच चालान हैं। इनके निपटारे के लिए पिछले दो साल से लोक अदालत का इंतजार कर रहा हूं। वेबसाइट से चालान डाउनलोड करने का प्रयास करता हूं, लेकिन लिंक खुल ही नहीं पाता।
फरीदाबाद के रहने वाले भूपेश शर्मा ने कहा कि मुझे कार बेचनी थी, तो पता चला कि कार के दिल्ली में करीब 37,000 रुपये के चालान लंबित है। चालान डाउनलोड करने की कोशिश करता हूं, पर वेबसाइट पर निर्धारित चालान डाउनलोड हो पाते हैं।
लंबित होने के चार मुख्य कारण
● चालान राशि कम करवाने के लालच में और नियमित अदालत में भुगतान के बजाय लोक अदालत को प्राथमिकता दे रहे।
● सड़कों पर लगे सीसीटीवी की वजह से चालान की संख्या काफी बढ़ गई है।
● चालान अधिक होने के कारण सर्वर में दिक्कत के चलते चालान डाउनलोड करने में परेशानी आ रही
● ट्रैफिक पुलिस पर कार्य भार अधिक होने जाने से निपटारा होने में समय लग रहा।







