स्पेशल डेस्क/नई दिल्ली: अमेरिका द्वारा ईरान के तीन परमाणु ठिकानों—फोर्डो, नतांज़ और इस्फ़हान—पर हवाई हमलों के बाद मध्य पूर्व में तनाव चरम पर है। इसराइल और ईरान के बीच 10 दिनों से चल रहे संघर्ष में अमेरिका की सैन्य भागीदारी ने स्थिति को और जटिल बना दिया है। इस पृष्ठभूमि में, भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ईरान के राष्ट्रपति मसूद पेजेशकियन से टेलीफोन पर बातचीत की, जिसमें क्षेत्रीय शांति, स्थिरता और तनाव कम करने पर गंभीर चर्चा हुई। यह बातचीत करीब 45 मिनट तक चली और भारत की कूटनीतिक पहल को दर्शाती है। आइए इस बातचीत और इसके संदर्भ का विस्तृत विश्लेषण एक्जीक्यूटिव एडिटर प्रकाश मेहरा से समझते हैं।
कूटनीति के माध्यम से समाधान !
22 जून रविवार को यह बातचीत हुई। पीएम मोदी ने ईरान-इसराइल संघर्ष और अमेरिकी हमलों से उत्पन्न तनाव पर गहरी चिंता जताई। उन्होंने तत्काल तनाव कम करने, बातचीत, और कूटनीति के माध्यम से समाधान निकालने की अपील की।
पीएम मोदी ने स्पष्ट किया कि “भारत हमेशा शांति और मानवता के पक्ष में खड़ा है। उन्होंने क्षेत्र में शांति और स्थिरता की शीघ्र बहाली की आवश्यकता पर जोर दिया। दोनों नेताओं ने व्यापार, आर्थिक सहयोग, विज्ञान, प्रौद्योगिकी, और जनता से जनता के संपर्क जैसे क्षेत्रों में भारत-ईरान संबंधों को और मजबूत करने की प्रतिबद्धता दोहराई।
शांति और स्थिरता की अपील !
यह संघर्ष 13 जून को शुरू हुआ, जब इसराइल ने ईरान के सैन्य और परमाणु ठिकानों पर हमले किए, जिसमें 78 लोग मारे गए। जवाबी कार्रवाई में ईरान ने इसराइल के ठिकानों, जैसे बेर्शेबा के सोरोका अस्पताल और तेल अवीव में अमेरिकी दूतावास, पर मिसाइल हमले किए।
22 जून को अमेरिका ने ईरान के परमाणु ठिकानों पर स्टील्थ बॉम्बर्स और बंकर-बस्टर बमों से हमले किए, जिसे ईरान ने “खतरनाक युद्ध की शुरुआत” करार दिया। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने दावा किया कि इन हमलों ने ईरान के परमाणु कार्यक्रम को “पूरी तरह नष्ट” कर दिया।
चीन, पाकिस्तान, और संयुक्त अरब अमीरात जैसे देशों ने अमेरिकी हमलों की निंदा की, जबकि संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने इसे वैश्विक शांति के लिए खतरा बताया। इससे पहले, 13 जून को इसराइली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने पीएम मोदी को फोन कर स्थिति की जानकारी दी थी। मोदी ने तब भी शांति और स्थिरता की अपील की थी।
भारत की कूटनीतिक स्थिति !
भारत ने इसराइल और ईरान दोनों के साथ अपने रणनीतिक और ऐतिहासिक संबंधों को संतुलित करते हुए तटस्थ रुख अपनाया है।इसराइल भारत का प्रमुख रक्षा साझेदार है, जबकि ईरान के साथ चाबहार बंदरगाह और ऊर्जा आयात जैसे आर्थिक हित जुड़े हैं। भारत ने ऑपरेशन सिंधु के तहत ईरान से 600 से अधिक भारतीय छात्रों, जिनमें 500 से अधिक कश्मीरी छात्र शामिल हैं, को निकाला। इसराइल में काम करने वाले भारतीयों की सुरक्षा के लिए भी एडवाइजरी जारी की गई है।
तेल की कीमतों में 6-7% की वृद्धि और होर्मुज जलडमरूमध्य के बंद होने की आशंका से भारत की ऊर्जा सुरक्षा और व्यापार पर असर पड़ सकता है। भारत ने वाणिज्य मंत्रालय के साथ आपात बैठक बुलाई है।
क्या हो सकते हैं परिणाम !
ईरान की जवाबी कार्रवाई, जैसे खोर्रमशहर-4 मिसाइल का उपयोग, और इसराइल के हमले क्षेत्र को पूर्ण युद्ध की ओर ले जा सकते हैं। होर्मुज जलडमरूमध्य के बंद होने से तेल की कीमतें 400 डॉलर प्रति बैरल तक पहुंच सकती हैं, जिसका भारत और वैश्विक अर्थव्यवस्था पर गहरा असर होगा। हमलों से रेडियोएक्टिव रिसाव की आशंका है, जिससे क्षेत्रीय और वैश्विक पर्यावरण को नुकसान हो सकता है।
सुरक्षा और आर्थिक हितों की रक्षा
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ईरान के राष्ट्रपति मसूद पेजेशकियन से बातचीत भारत की शांतिपूर्ण और कूटनीतिक नीति को दर्शाती है। भारत ने इस संकट में तटस्थता बनाए रखते हुए सभी पक्षों से संयम और बातचीत का आह्वान किया है। यह बातचीत क्षेत्रीय शांति और स्थिरता को बढ़ावा देने में भारत की सक्रिय भूमिका को रेखांकित करती है। पीएम मोदी की पहल से यह स्पष्ट है कि भारत न केवल अपने नागरिकों की सुरक्षा और आर्थिक हितों की रक्षा के लिए प्रतिबद्ध है, बल्कि वैश्विक शांति के लिए भी एक जिम्मेदार भूमिका निभा रहा है