प्रकाश मेहरा
एग्जीक्यूटिव एडिटर
पटना: बिहार विधानसभा चुनाव के बीच जन सुराज पार्टी के संस्थापक प्रशांत किशोर (पीके) ने एक नया और विवादास्पद मुद्दा उठाया है। उनका कहना है कि अगर उनकी पार्टी सत्ता में आती है, तो बिहार में लगी शराबबंदी को एक घंटे के अंदर हटा दिया जाएगा। इससे होने वाले राजस्व का पूरा इस्तेमाल स्कूल शिक्षा को विश्वस्तरीय बनाने में किया जाएगा। पीके का दावा है कि यह कदम बिहार को ‘फेल्ड स्टेट’ से उबारने का पहला कदम होगा, जहां शिक्षा की बदहाली सबसे बड़ी समस्या है।
शराबबंदी का इतिहास और चुनौतियां
2016 में तत्कालीन मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने बिहार में पूर्ण शराबबंदी लागू की। इसका उद्देश्य था शराब से जुड़ी सामाजिक बुराइयों (जैसे घरेलू हिंसा, स्वास्थ्य समस्याएं) को रोकना। नीतीश ने इसे ‘महिलाओं की रक्षा’ का प्रतीक बताया। सरकारी आंकड़ों के अनुसार, शराबबंदी के बाद घरेलू हिंसा के मामले कम हुए हैं। हालांकि, अवैध शराब से जुड़ी होच त्रासदियां (जैसे जहरीली शराब से मौतें) बढ़ी हैं।
बिहार सरकार को सालाना 20,000 से 28,000 करोड़ रुपये का राजस्व घाटा हो रहा है। यह राशि अवैध शराब की जब्ती, पुलिसिंग और अदालती खर्चों पर खर्च हो रही है। पड़ोसी राज्य उत्तर प्रदेश में शराब राजस्व से 47,600 करोड़ रुपये (2023-24) कमाए जाते हैं, जो बिहार के अनुमानित घाटे से कहीं ज्यादा है।
बिहार में शिक्षा की बदहाली
बिहार में साक्षरता दर राष्ट्रीय औसत से नीचे है। स्कूलों में 38% में ही खेल का मैदान है, 40% में बिजली, और 53% में बाउंड्री वॉल। NITI आयोग के अनुसार, बिहार स्कूल शिक्षा गुणवत्ता सूचकांक में सबसे निचले पांच राज्यों में है। विश्वस्तरीय शिक्षा के लिए अगले 10 साल में 5 लाख करोड़ रुपये की जरूरत है। पीके का यह मुद्दा चुनावी बहस को तीखा बना रहा है, क्योंकि शराबबंदी नीतीश कुमार की राजनीतिक पहचान का हिस्सा है।
क्या है प्रशांत किशोर का प्लान
शराब राजस्व से शिक्षा क्रांतिपीके ने अपनी जन सुराज पार्टी (जो 2024 में लॉन्च हुई) को ‘विकास-केंद्रित’ बताया है। वे जाति-धर्म की बजाय मेरिट पर जोर देते हैं। उनका मुख्य एजेंडा:शराबबंदी हटाना: सत्ता मिलते ही ‘प्रतिबंध हटाओ, राजस्व लाओ’। अनुमानित 28,000 करोड़ रुपये सालाना राजस्व बचेगा। पीके कहते हैं, “शराबबंदी वोट बैंक का जाल है। पुरुष पीते ही हैं, लेकिन अवैध तरीके से। पुलिस और नेता ही सप्लाई करते हैं। अगर इतना फायदा है, तो BJP पूरे देश में क्यों नहीं लगाती?”
प्राथमिक स्कूलों को विश्वस्तरीय बनाना
पूरा राजस्व शिक्षा पर लगेगा। अंतरराष्ट्रीय पाठ्यक्रम, विशेषज्ञ शिक्षक भर्ती। 10 साल में 5 लाख करोड़ का निवेश IMF/विश्व बैंक से 5-6 लाख करोड़ के लोन की योजना। बिहार को शिक्षा हब बनाना, जहां विदेशी छात्र आएं। “शिक्षा गरीबी खत्म करेगी, नौकरियां पैदा करेगी और पलायन रोकेगी।” अन्य वादे पलायन रोकना 50 लाख युवाओं को स्थानीय नौकरियां (10-15 हजार मासिक), उद्योग-व्यापार को बढ़ावा। ग्रामीण क्षेत्रों में डॉक्टर भर्ती, 60+ वृद्धों को 2,000 रुपये पेंशन। क्रेडिट-डिपॉजिट रेशियो 70% तक बढ़ाना, भूमि सुधार बिना सर्वे के।
पीके ने अमेरिकी बिहारी डायस्पोरा से अपील की “बिहार 11वें सबसे बड़े देश जैसा है। जन सुराज 2025 में जीतेगा।” उनकी पदयात्रा (2022 से) ने 1 करोड़ सदस्य जुटाए हैं।
सर्वे में सीएम पद के टॉप चॉइस
पीके की डेटा-आधारित बातें पसंद आ रही हैं। सर्वे में वे सीएम पद के टॉप चॉइस हैं। महागठबंधन (कांग्रेस-RJD) ने भी शराबबंदी हटाने का वादा किया, लेकिन ‘ताड़ी’ (देशी शराब) को छूट देकर। विकासशील इंसान पार्टी के मुकेश साहनी ने कहा, “शराबबंदी असफल रही, समीक्षा जरूरी।”
नीतीश कुमार/JD(U) इसे ‘जंगल राज लौटाने’ का प्रयास बताया। महिलाओं को डराने का आरोप। बीजेपी ने कहा “पीके पहले शराब पिलाएंगे, फिर नौकरियां देंगे।” सम्राट चौधरी ने कहा, “यह बिहार की नैतिकता पर हमला है।” RJD (आंशिक) तेजस्वी यादव ने शिक्षा पर फोकस किया, लेकिन शराबबंदी हटाने को ‘जंगल राज 2.0’ कहा कई ने विरोध जताया, कहते हुए कि इससे हिंसा बढ़ेगी।
गेमचेंजर या वोट-कटर ?
पीके ने जवाब दिया “100 प्रशांत किशोर आएं, तो भी बदलाव आपकी जिम्मेदारी है। शिक्षा और नौकरियों पर नजर रखें।” पार्टी ने 30-40 सीटें जीतने का लक्ष्य रखा। बाय-इलेक्शन में इमामगंज में 22% वोट मिले, लेकिन अन्य जगह जमानत जब्त हुई। पीके खुद चुनाव नहीं लड़ रहे, संगठन पर फोकस।
243 सीटों पर NDA (नीतीश-BJP), महागठबंधन (तेजस्वी-RJD) और जन सुराज का त्रिकोणीय मुकाबला। पहला चरण 7 दिनों में (नवंबर 2025)। यह मुद्दा युवाओं को आकर्षित कर सकता है, लेकिन महिलाओं (बिहार की 48% वोटर) को खोने का खतरा। अगर जन सुराज 30+ सीटें लाती है, तो किंगमेकर बन सकती है।
बिहार के लिए नया प्रयोग ?
प्रशांत किशोर का यह मुद्दा बिहार की पुरानी राजनीति (जाति, गठबंधन) से हटकर विकास पर फोकस करता है। लेकिन सफलता तभी मिलेगी जब वोटर शिक्षा सुधार को प्राथमिकता दें। जैसे आचार्य प्रशांत ने कहा, “बिहार का असली मुद्दा शिक्षा है, वोटर पूछें – कौन स्कूलों को मजबूत करेगा ?” चुनाव नतीजे बताएंगे कि क्या बिहार ‘शराब vs शिक्षा’ बहस से बाहर निकल पाएगा।







