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पृथ्वी और हम कण जितने!

पहल टाइम्स डेस्क by पहल टाइम्स डेस्क
July 26, 2022
in विशेष
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हरिशंकर व्यास

शायद कण जितने भी नहीं! पृथ्वी और उसके आठ अरब लोगों की ब्रह्मांड में औकात क्या है? इस बात को रंग-बिरंगे अंदाज में पिछले सप्ताह जेम्स वेब स्पेस टेलीस्कोप से जैसे मालूम हुआ वह मानों अद्भुत देवलोक के अकल्पनीय दर्शन। रोंगटे खड़े करने वाला इसलिए कि उन्हें देख लगा पृथ्वी, हम आठ अरब लोग ब्रह्मांड की धूल के कण जितने भी नहीं! कैसी है यह ब्रह्मांड लीला! 10 अरब डॉलर के जेम्स वेब स्पेस टेलीस्कोप ने पृथ्वीवासियों को ब्रह्मांड के जो दर्शन कराए हैं वे मानव इतिहास की इस कौतुहलता का अल्टीमेट हैं कि ग्रह-नक्षत्र क्या हैं, क्या बोलते हुए हैं, उनसे पृथ्वी की जैविक रचना पर किस तरह के कैसे-कैसे प्रभाव हैं? पृथ्वी पर लाखों साल से सूर्य और तारों-सितारों को लेकर मनुष्य का दिमाग जितना सोचता-खदबदाता रहा है उसके आगे ब्रह्मांड की रंग-बिरंगी तस्वीरों के बाद क्या सोचें? कोई ईश्वर नहीं, बल्कि ईश्वर से भी परे की वह माया है, जिसका ओर-छोर मायावी कल्पनाओं से भी आगे का अनंत।

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क्या इस अनंत को, अनंत में उपस्थित कोई जीव रचना याकि मनुष्य भेद सकता है? विज्ञान को निश्चित पता है कि अनंत बेहिसाब है। जेम्स वेब स्पेस टेलीस्कोप की तस्वीरों से प्रामाणिक तौर पर लग रहा है कि ब्रह्मांड का नक्शा नहीं बन सकता। वह कोई गोला नहीं है, कोई आकार नहीं है जिसमें दूरिया माप कर पहले तो खरबों आकाशगंगाओं का हिसाब लगे और फिर एक-एक आकाशगंगा के भीतर के तारों की संख्याओं की गिनती, उनकी आपसी दूरियों का लेखा-जोखा बने। निश्चित ही वैज्ञानिक अपने सौर मंडल की दूरियों का हिसाब लगाए हुए हैं लेकिन अनंत का हिसाब बने, यह असंभव है। इसलिए अमेरिका और उसके राष्ट्रपति जो बाइडेन की टेलीस्कोप की लाजवाब सफलता पर यह गर्वोक्ति वाजिब होते हुए भी बेमतलब है कि, ‘ये तस्वीरें पूरी दुनिया को यह संदेश देने वाली हैं कि अमेरिका बड़े काम कर सकता है। और अमेरिकी लोगों मेंज् खासकर हमारे बच्चों में ये विश्वास भरने वाला है कि ऐसी कोई चीज नहीं जो हमारी सीमा से बाहर हो’!
नहीं, मनुष्य की सीमा में ब्रह्मांड का एटलस भी बना सकना संभव नहीं है। उलटे ब्रह्मांड की ताजा तस्वीरों से लगता है कि पृथ्वी और सौर मंडल आग का गोला कब बन जाए, गैस और धूल के टुकड़ों में कब बदले इसका कोई ठिकाना नहीं है। पृथ्वी जैसे तप और गल रही है, गरम गैसों से जलवायु परिवर्तन का जो सिलसिला बना है उसे मनुष्य रोक ले या पृथ्वी के खत्म होने से पहले दूसरे ग्रह में अपनी प्रजाति को बसा ले वहीं बहुत बड़ी बात होगी। वैसा हो सकना मनुष्य का सचमुच भगवान बनना होगा। हालांकि वह भगवान भी अनंत ब्रह्मांड के सत्य में मात्र कण!
रंग-बिरंगी तस्वीरों से प्रकट ब्रह्मांड के अनंत की कल्पना करें? मुझे तस्वीरों में नेबुला तारकीय यानी स्टेलर नर्सरीज फोटो दर्शनीय लगा। यह पृथ्वी से करीब याकि कोई 76 सौ प्रकाश वर्ष की दूरी पर गैस और धूल का एक भीमकाय बादल है। करीबी आसमान में सबसे बड़ा और चमकीला नेबुला (फोटो आखिरी पेज पर)। फोटो में पहाड़ जैसे और उसके पीछे अनंत ब्रह्मांड के सितारे कल्पनाओं को पंख लगाते हैं! ऐसे कितने नेबुला होंगे? इन्हीं की गैसों के बादलों और धूल से नए तारों का जन्म होता है। पता नहीं इस स्टेलर नर्सरीज से आगे कितने तारे बनें? ध्यान रहे अंतरिक्ष में छोड़ी गई जेम्स वेब टेलीस्कोप से यह भी मालूम होगा कि तारे कैसे बनते हैं।

इस टेलीस्कोप के दो लक्ष्य हैं। एक ब्रह्मांड में 13.5 अरब साल से भी पहले से चमकने वाले सबसे पहले सितारों की तस्वीरें लेना और दूसरा लक्ष्य ऐसे ग्रहों की तलाश करना है, जहां जीवन की उम्मीद हो।

हिसाब से जीवन जीने लायक ग्रह जल्दी मिलना चाहिए। अनंत ब्रह्मांड की गैलेक्सियों और तारों की खरबों की संख्या में कितने लाख या करोड़ ग्रहों में बायोमॉस याकि जीवन होगा इसकी जितनी कल्पना की जाए वह अब कम होगी। तथ्य नोट रखें कि खगोलविज्ञानियों का अनुमान है कि ब्रह्मांड में दो खरब गैलेक्सियां (2,000,000,000,000) है। इनके भीतर, एक-एक गैलेक्सी में कितने-कितने तारे और कुल तारों की संख्या कितनी है? इसका आंकडा कोई दो सौ अरब खरब तारों का है। मतलब ब्रह्मांड में 200,000,000,000,000,000,000,000 तारे! इस संख्या को एक जानकार ने पृथ्वी के सभी महासागरों के पानी से दस गुना अधिक पानी से भरे कपों की संख्या के बराबर सोचा है।

बहरहाल, सवाल है जेम्स वेब टेलीस्कोप की सफलता क्या मनुष्य की आंखों के आगे ब्रह्मांड को साकार बनाते-बनाते उसका क्या लाजवाब नया पर्यटन नहीं बनवा देगी? वैज्ञानिकों द्वारा अंतरिक्ष में भेजी पहली टेलीस्कोप हबल नाम की थी। उसे जिस तस्वीर को कैद करने में एक सप्ताह लगता था वह तस्वीर नया टेलीस्कोप 12 घंटों में ले रहा है। भविष्य में संभव है जो अंतरिक्ष में लाइव वीडियो कैमरा भी बतौर टेलीस्कोप घूमते हुए हों। मनुष्य के अंतरिक्ष दर्शन, अंतरिक्ष यात्रा की ट्रैवलिंग का काम बढ़ ही रहा है। सो, आगे संभव है कि अंतरिक्ष सफर करते हुए लोगों को ब्रह्मांड की आकाशगंगाओं को दिखाने का लाइव टूरिज्म भी हो। याकि ब्रह्मांड से कमाई का खेला!

विज्ञान ने ब्रह्मांड के सफर को प्रकाश की गति से मापा हुआ है। मतलब यह कि पृथ्वी सौर मंडल का एक ग्रह है। सूर्य केंद्र है, धुरी है और वहां से प्रकाश आता है। पृथ्वी पर सूर्य की किरण के पहुंचने का वक्त है आठ मिनट। जबकि सौर मंडल से बाहर के तारों से किरणें चार वर्षों में पहुंचेंगी। इसी अनुसार सितारों के बीच दूरी का हिसाब है। ध्यान रहे सौर मंडल के बाहर का निकटतम तारा है अल्फा सेंटौरी। उसके बाद के अनंत विस्तार में खरबों गैलेक्सियां और तारे हैं। नासा के अधिकारी बिल नेल्सन ने फोटो रिलीज करते हुए एक फोटो का खुलासा करते हुए बताया है कि  ‘प्रकाश 1,86,000 मील प्रति सेकंड की गति से यात्रा करता है। और वो प्रकाश जो आप उन छोटे धब्बों में से एक पर देख रहे हैं, वह 13 अरब वर्षों से अधिक समय से यात्रा कर रहा है। प्रकाश, किरण, ऊर्जा का एक से दूसरी ओर पहुंचना ही वह आकाशीय दूरी है, जिसके मूल में इस टेलीस्कोप को जहां ब्रह्मांड में 13.5 अरब साल से भी पहले से चमकने वाले सबसे पहले सितारों की तस्वीरें लेनी है तो दूरियों का बोध भी करवाना है। ध्यान रहे ब्रह्मांड निर्माण का बिंग बैंग 13.8 अरब वर्ष पहले था। फिर अंधकार युग 13.5 अरब वर्ष पहले। उसके बाद आकाशगंगाओं व तारों का निर्माण। 13 अरब वर्ष पहले से चला आ रहा आधुनिक काल।

संभव है टेलीस्कोप से ब्रह्मांड के लाइव दर्शन के साथ जल्दी ही अंतरिक्ष के डार्क मैटर का राज भी समझ आ जाए। स्विट्जरलैंड के सर्न में यूरोपियन ऑर्गेनाइजेशन ऑफ न्यूक्लियर रिसर्च में लार्ज हैड्रॉन कोलाइडर ने पांच जुलाई से काम करना शुरू कर दिया है। इसने ही पहले हिग्स बोसोन का पता लगाया था। हिग्स बोसोन कण को खोजे जाने के दस साल पूरे हो रहे हैं और अब डार्क मैटर की तलाश है। ध्यान रहे ब्रह्मांड का तीन चौथाई से ज्यादा हिस्सा डार्क मैटर से बना है। यह है क्या? किससे और कैसे बना हुआ है? इसे समझना अनंत ब्रह्मांड के कैनवस को जानना होगा। ब्रह्मांड का 80 से 85 फीसदी हिस्से का नाम डार्क मैटर इसलिए है क्योंकि यह प्रकाश से संपर्क नहीं करता है। इसलिए हम इसे देख नहीं सकते हैं।

तभी डार्क मैटर की पहेली फिलहाल मानव सभ्यता के वैज्ञानिकों के लिए नंबर एक चुनौती है। मैंने पिछले दिनों मानव सभ्यता पर लिखा था। उसमें मेसोपोटोमिया में सभ्यता की शुरुआत के साथ सूर्य की पूजा, चांद-सितारों के हवाले अलौकिक शक्ति याकि ईश्वर और धर्म के निर्माण की जो कहानी जानी तो गुत्थी समझ नहीं आई कि उस सभ्यता और उसके बाद मिस्र में सूर्य की धुरी पर ज्योतिष की जो कल्पनाएं हुई हैं तो कल्पना होना भी क्यों कर था? तब सौर मंडल और अब अनंत ब्रह्मांड की बुद्धि का विस्तार गजब है। कुछ भी कहें चंद देवर्षि लोगों ने ज्ञान-विज्ञान और सत्य खोज से इस ग्रह के लोगों को जो अनुभव कराया है वह कण मात्र होते हुए भी, मनुष्य का कण अस्तित्व होते हुए भी जैविक रचना का उतना ही अद्भुत और लाजवाब मामला है जितना अद्भुत ब्रह्मांड की रंगीनी का है!

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