स्पेशल डेस्क/संभल: संभल की शाही जामा मस्जिद और हरिहर मंदिर विवाद का मामला उत्तर प्रदेश के संभल जिले में स्थित एक ऐतिहासिक मस्जिद और हिंदू पक्ष के मंदिर होने के दावे से जुड़ा है। यह विवाद तब शुरू हुआ जब हिंदू पक्ष ने दावा किया कि मस्जिद का निर्माण 1526 में मुगल सम्राट बाबर द्वारा हरिहर मंदिर को तोड़कर किया गया था। इस मामले का पूरा विश्लेषण एग्जीक्यूटिव एडिटर प्रकाश मेहरा से समझिए।
क्या है हिंदू पक्ष का दावा ?
हिंदू पक्ष ने संभल के सिविल कोर्ट में याचिका दायर कर दावा किया कि शाही जामा मस्जिद वास्तव में हरिहर मंदिर है, जिसे मस्जिद में बदल दिया गया। उन्होंने मस्जिद परिसर में प्रवेश और पूजा के अधिकार की मांग की। इस याचिका में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) द्वारा मस्जिद के सर्वे की मांग भी की गई थी। 19 नवंबर 2024 को, संभल की सिविल जज (सीनियर डिवीजन) कोर्ट ने हिंदू पक्ष की याचिका पर सुनवाई करते हुए मस्जिद परिसर का ASI सर्वे कराने का आदेश दिया। कोर्ट ने एडवोकेट कमिश्नर रमेश सिंह राघव को सर्वे की जिम्मेदारी सौंपी और सर्वे रिपोर्ट 29 नवंबर 2024 तक जमा करने का निर्देश दिया। सर्वे का पहला चरण उसी दिन और दूसरा चरण 24 नवंबर 2024 को हुआ।
24 नवंबर 2024 को सर्वे के दौरान मस्जिद के पास भीड़ जमा हो गई, जिसके बाद पथराव, फायरिंग और आगजनी की घटनाएं हुईं। इस हिंसा में 4-5 लोगों की मौत हुई और कई लोग घायल हुए, जिसमें 29 पुलिसकर्मी भी शामिल थे। पुलिस ने स्थिति को नियंत्रित करने के लिए आंसू गैस और बल प्रयोग किया। इस घटना के बाद क्षेत्र में तनाव बढ़ गया और सुरक्षा व्यवस्था कड़ी कर दी गई।
मस्जिद कमेटी की आपत्ति और कानूनी कदम
जामा मस्जिद इंतजामिया कमेटी ने सिविल कोर्ट के सर्वे आदेश को एकपक्षीय और जल्दबाजी में लिया गया बताते हुए इसे इलाहाबाद हाईकोर्ट में चुनौती दी। कमेटी ने सिविल रिवीजन याचिका दायर कर मामले की पोषणीयता (maintainability) पर सवाल उठाया और सर्वे पर रोक लगाने की मांग की। मस्जिद कमेटी ने सुप्रीम कोर्ट में भी विशेष अनुमति याचिका (SLP) दायर की थी। 29 नवंबर 2024 को सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया कि जब तक हाईकोर्ट में मस्जिद कमेटी की याचिका पर सुनवाई नहीं हो जाती, तब तक सिविल कोर्ट में कोई कार्यवाही नहीं होगी। कोर्ट ने सर्वे रिपोर्ट को सीलबंद लिफाफे में रखने और शांति बनाए रखने का भी निर्देश दिया। सुप्रीम कोर्ट ने मस्जिद कमेटी को हाईकोर्ट में जाने की सलाह दी।
इलाहाबाद हाईकोर्ट में जस्टिस रोहित रंजन अग्रवाल की एकल पीठ ने मस्जिद कमेटी की याचिका पर कई सुनवाइयां की। 8 जनवरी 2025 को हाईकोर्ट ने सिविल कोर्ट के सर्वे आदेश पर अंतरिम रोक लगा दी थी। 13 मई 2025 को सुनवाई पूरी होने के बाद कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रख लिया।
हाईकोर्ट का ने सुनाया फैसला
19 मई 2025 को, इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मस्जिद कमेटी की सिविल रिवीजन याचिका को खारिज कर दिया। इस फैसले से मस्जिद कमेटी को बड़ा झटका लगा, क्योंकि इससे सिविल कोर्ट के सर्वे आदेश को चुनौती देने की उनकी मांग खारिज हो गई। हाईकोर्ट के इस फैसले ने मस्जिद परिसर के ASI सर्वे का रास्ता साफ कर दिया है।
ऐतिहासिक और पुरातात्विक सबूतों के आधार पर सर्वे
हिंदू पक्ष का कहना है कि “मस्जिद का निर्माण हरिहर मंदिर को तोड़कर किया गया था। उन्होंने ऐतिहासिक और पुरातात्विक सबूतों के आधार पर सर्वे की मांग की थी।” मस्जिद कमेटी का तर्क कमेटी का कहना है कि सिविल कोर्ट ने बिना उनका पक्ष सुने और बिना नोटिस जारी किए सर्वे का आदेश दिया, जो प्रक्रियात्मक रूप से गलत है। उनका यह भी कहना है कि इस तरह के आदेश सांप्रदायिक तनाव को बढ़ा सकते हैं और देश के धर्मनिरपेक्ष ढांचे को नुकसान पहुंचा सकते हैं।
ASI ने अपने हलफनामे में दावा किया कि मस्जिद में अवैध निर्माण हुआ है और निरीक्षण के दौरान कमेटी ने बाधाएं डालीं। हालांकि, ASI ने मस्जिद की रंगाई-पुताई की अनुमति देने से इनकार किया था, जिसे हाईकोर्ट ने बाद में केवल सफाई तक सीमित कर दिया।
संभल में सुरक्षा व्यवस्था कड़ी
हाईकोर्ट के 19 मई 2025 के फैसले के बाद मस्जिद का सर्वे अब आगे बढ़ सकता है, क्योंकि सिविल कोर्ट के आदेश पर लगी रोक हट गई है। मस्जिद कमेटी के पास अब सुप्रीम कोर्ट में अपील करने का विकल्प है, और कुछ रिपोर्ट्स के अनुसार, दोनों पक्षों ने पहले ही हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट जाने की बात कही थी। संभल में सुरक्षा व्यवस्था कड़ी कर दी गई है, क्योंकि यह मामला संवेदनशील है और पहले हिंसा की घटनाएं हो चुकी हैं। इस मामले की जांच के लिए उत्तर प्रदेश सरकार ने एक न्यायिक जांच आयोग भी गठित किया है, जिसकी अध्यक्षता इलाहाबाद हाईकोर्ट के रिटायर्ड जज देवेंद्र कुमार अरोड़ा कर रहे हैं। यह आयोग हिंसा की घटनाओं की जांच कर दो महीने में अपनी रिपोर्ट सौंपेगा।
जामा मस्जिद और हरिहर मंदिर विवाद !
संभल जामा मस्जिद और हरिहर मंदिर विवाद एक जटिल कानूनी और सामाजिक मुद्दा है, जिसमें ऐतिहासिक दावों, धार्मिक भावनाओं और कानून-व्यवस्था की चुनौतियां शामिल हैं। इलाहाबाद हाईकोर्ट के हालिया फैसले ने मस्जिद कमेटी की याचिका को खारिज कर सर्वे का रास्ता साफ कर दिया है, लेकिन इस मामले का अंतिम निपटारा सुप्रीम कोर्ट में होने की संभावना है। यह मामला न केवल संभल बल्कि देश भर में धार्मिक स्थलों के विवादों से जुड़े कानूनी और सामाजिक सवालों को भी उजागर करता है, विशेष रूप से प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट, 1991 के संदर्भ में।