विशेष डेस्क/नई दिल्ली: जेपी आंदोलन, जिसे ‘संपूर्ण क्रांति’ के नाम से भी जाना जाता है, 1970 के दशक में जयप्रकाश नारायण (जेपी) के नेतृत्व में शुरू हुआ एक ऐतिहासिक जन आंदोलन था। इसने बिहार और भारत की राजनीति को गहराई से प्रभावित किया। यह आंदोलन भ्रष्टाचार, बेरोजगारी, महंगाई और प्रशासनिक विफलताओं के खिलाफ एक जन-जागरण था, जिसने न केवल बिहार बल्कि पूरे देश की सियासत को नई दिशा दी। आइए इस आंदोलन के प्रभाव और इसकी पूरी कहानी को विस्तार से एग्जीक्यूटिव एडिटर प्रकाश मेहरा से समझते हैं।
क्या रही जेपी आंदोलन की पृष्ठभूमि ?
1970 के दशक में भारत में सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक असंतोष चरम पर था। बिहार में बाढ़, सूखा, भ्रष्टाचार, बेरोजगारी और शिक्षा व्यवस्था की बदहाली ने लोगों, खासकर छात्रों में आक्रोश पैदा किया था। स्वतंत्रता के बाद बिहार में कांग्रेस का शासन था, लेकिन भ्रष्टाचार और जातीय सियासत के कारण जनता का असंतोष बढ़ रहा था।
1974 में, पटना विश्वविद्यालय और अन्य शैक्षणिक संस्थानों के छात्रों ने बिहार छात्र संघर्ष समिति (BCSS) का गठन किया और भ्रष्टाचार, शिक्षा सुधार और बेरोजगारी के खिलाफ आंदोलन शुरू किया। 8 अप्रैल 1974 को छात्रों ने जयप्रकाश नारायण से इस आंदोलन का नेतृत्व करने की अपील की। जेपी, जो पहले ही स्वतंत्रता संग्राम और समाजवादी आंदोलनों में अपनी भूमिका के लिए प्रसिद्ध थे, ने इस आह्वान को स्वीकार किया और ‘संपूर्ण क्रांति’ का नारा दिया।
आंदोलन का स्वरूप और विस्तार
जेपी आंदोलन की शुरुआत बिहार की राजधानी पटना से हुई। 18 मार्च 1974 को पटना में छात्रों ने प्रदर्शन शुरू किए, जो धीरे-धीरे पूरे बिहार और फिर देश के अन्य हिस्सों में फैल गया। जेपी ने भ्रष्टाचार, लोकतंत्र की रक्षा और सामाजिक-आर्थिक सुधारों की मांग को लेकर जनता को एकजुट किया। उनके उग्र भाषणों ने पटना के गांधी मैदान से लेकर दिल्ली के रामलीला मैदान तक लोगों को प्रेरित किया।
आंदोलन का मुख्य लक्ष्य था समाज, अर्थव्यवस्था और राजनीति में आमूल-चूल परिवर्तन। भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन प्रशासन और सरकार में व्याप्त भ्रष्टाचार को खत्म करना। लोकतंत्र की रक्षा तत्कालीन इंदिरा गांधी सरकार की निरंकुश नीतियों का विरोध।
बिहार और देश की सियासत पर प्रभाव
जेपी आंदोलन ने बिहार और भारत की राजनीति को कई तरह से बदला:आपातकाल (1975-1977):जेपी आंदोलन की व्यापकता और लोकप्रियता ने इंदिरा गांधी सरकार को हिलाकर रख दिया। 25 जून 1975 को, इंदिरा गांधी ने रातों-रात आपातकाल की घोषणा की, जिसमें नागरिक स्वतंत्रताएं निलंबित कर दी गईं और 35,000 से अधिक नेताओं, जिसमें जेपी भी शामिल थे, को गिरफ्तार कर लिया गया।
आपातकाल ने जनता में भारी आक्रोश पैदा किया, जिसका परिणाम 1977 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की करारी हार के रूप में सामने आया। यह पहली बार था जब कांग्रेस को केंद्र में सत्ता से बाहर होना पड़ा।
जनता पार्टी का उदय
जेपी आंदोलन ने विपक्षी एकता को जन्म दिया। विभिन्न विपक्षी दल, जैसे समाजवादी, जनसंघ और अन्य, एक मंच पर आए और जनता पार्टी का गठन किया। 1977 में जनता पार्टी ने केंद्र में सरकार बनाई, जो जेपी आंदोलन की सबसे बड़ी उपलब्धि थी। इसने गैर-कांग्रेसी शासन की नींव रखी और भारतीय राजनीति में बहुदलीय व्यवस्था को मजबूत किया।
बिहार में नेताओं का उदय
जेपी आंदोलन ने बिहार से कई बड़े नेताओं को राष्ट्रीय मंच पर लाया, जैसे लालू प्रसाद यादव, नीतीश कुमार, और रामविलास पासवान। ये नेता जेपी के करीबी सहयोगी थे और बाद में बिहार की सियासत में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। हालांकि, जेपी के सपने जैसे भ्रष्टाचार मुक्त समाज और बेहतर शिक्षा व्यवस्था पूरी तरह साकार नहीं हुए।
छात्र आंदोलनों की प्रेरणा
जेपी आंदोलन ने बिहार और देश में छात्रों को राजनीतिक सक्रियता की प्रेरणा दी। यह आंदोलन ‘दूसरी आजादी’ के रूप में जाना गया, क्योंकि इसने युवाओं को सत्ता के खिलाफ आवाज उठाने का साहस दिया।बिहार में छात्र आंदोलनों का इतिहास पहले से था, लेकिन जेपी आंदोलन ने इसे राष्ट्रीय स्तर पर ले जाकर एक नया आयाम दिया।
लोकतंत्र का सशक्तिकरण
जेपी ने अपनी जेल डायरी में लिखा था कि वे लोकतंत्र को और व्यापक बनाना चाहते हैं। इस आंदोलन ने भारतीय लोकतंत्र को मजबूत करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। आपातकाल के बाद जनता में लोकतांत्रिक मूल्यों के प्रति जागरूकता बढ़ी, और यह आंदोलन भारतीय राजनीति में एक मील का पत्थर बन गया।
जेपी का सपना भ्रष्टाचार मुक्त और समृद्ध बिहार का था, लेकिन बिहार में भ्रष्टाचार और शिक्षा के हालात आज भी चिंताजनक हैं। जनता पार्टी की सरकार ज्यादा समय तक नहीं टिकी, और आंतरिक मतभेदों के कारण यह जल्द ही टूट गई। बिहार में जेपी आंदोलन के बाद भी जातीय राजनीति हावी रही, जिसने जेपी के समग्र सुधार के लक्ष्य को प्रभावित किया।
जेपी आंदोलन की विरासत को दर्शाते
जेपी आंदोलन ने बिहार और देश की सियासत को स्थायी रूप से प्रभावित किया। यह आंदोलन आज भी भ्रष्टाचार और शासन के खिलाफ जन-आंदोलनों की प्रेरणा बना हुआ है। बिहार में हाल के वर्षों में भी छात्र आंदोलन, जैसे बीपीएससी के खिलाफ प्रदर्शन, जेपी आंदोलन की विरासत को दर्शाते हैं। हालांकि, बिहार की सियासत में जेपी आंदोलन से निकले नेताओं का प्रभाव आज भी दिखता है, लेकिन उनके सपनों का बिहार अभी तक पूरी तरह साकार नहीं हुआ है।
भारतीय लोकतंत्र के इतिहास में ‘संपूर्ण क्रांति’
जेपी आंदोलन ने बिहार को राष्ट्रीय राजनीति के केंद्र में ला खड़ा किया। इसने आपातकाल को जन्म दिया, कांग्रेस के एकछत्र शासन को तोड़ा, और जनता पार्टी के माध्यम से गैर-कांग्रेसी शासन की शुरुआत की। बिहार में इसने नए नेताओं को जन्म दिया, लेकिन भ्रष्टाचार और शिक्षा जैसे मुद्दों पर अपेक्षित सुधार नहीं हो सके। जेपी आंदोलन भारतीय लोकतंत्र के इतिहास में ‘संपूर्ण क्रांति’ का प्रतीक बना हुआ है, जिसने सत्ता के खिलाफ जनता की ताकत को उजागर किया।