सतीश मुखिया
मथुरा: देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ सबका साथ सबका विकास का सपना देख रहे हैं लेकिन यह संकल्प जमीन पर उतरता हुआ दिखाई नहीं दे रहा है। जब देश से जमींदारी प्रथा का उन्मूलन किया गया और उसका कुछ हिस्सा दलित, वंचित, शोषित वर्ग के लोगों को पट्टे के रूप में दिया गया। जिससे उम्मीद जगी कि अब इन लोगों का विकास संभव हो सकेगा लेकिन इसमें भी समाज के सरमायदार, जमींदार और दबंग प्रवृत्ति के लोगों ने अपने प्रभाव से इन जमीनों में गोलमाल कर दिया।
इन लोगों के द्वारा दलित, वंचित और पिछड़े वर्ग को पट्टे के रूप में दी जाने वाली जमीनों को अपने रिश्तेदारों के नाम से फर्जी पट्टे कटवा दिए और उस जमीन पर इन लोगों ने कब्जा हासिल कर लिया। यह जमीने कुटीर उद्योग लगाने के नाम से ली और कहीं मुफ्त अस्पताल, धर्मशाला, विद्यालय आदि के नाम से!
यह समस्या लगभग पूरे भारत देश में है जिसका एक उदाहरण हमें भगवान श्री कृष्ण की नगरी मथुरा में देखने को मिलता है। वर्ष 2017 में नगर पालिका से नगर निगम मथुरा वृंदावन बनने के बाद और बिल्डर लॉबी का मथुरा की और आकर्षित होना ही अपने आप में एक समस्या बन गया। अभी हाल ही में मथुरा शहर के मध्य में माया टीला, कच्ची सड़क की घटना हुई। इस टीले की जमीन को नौकरशाही, नेतागिरी और अफसर शाही के कॉकटेल के वरदहस्त से भू माफिया द्वारा इस पर बड़े जोर शोर से निर्माण कार्य कराया जा रहा था, जिसमें टीला ढहने के कारण इसमें कई परिवारों की अपूरणीय क्षति हुई और कई लोग असमय मृत्यु का शिकार हुए।
यह सोचनीय है कि कैसे शहर के मध्य में स्थित इस टीले की मिट्टी का खनन किया जा रहा था, जब कि यहां से थाना: गोविंद नगर की दूरी लगभग 1 किलोमीटर और पुलिस चौकी: मसानी की दूरी लगभग 500 मी मात्र थी, क्या यह संभव है कि बिना प्रशासन की मिली भगत से भू माफियाओं द्वारा इतना बड़ा कार्य किया जा सकता है, अभी वर्तमान में इस कांड की जांच चल रही है और इसमें 08 भागीदारों की बात सामने आ रही है जिसमें मुख्य आरोपी सुनील गुप्ता उर्फ सुनील चैन को पुलिस द्वारा गिरफ्तार करके जेल भेज दिया गया है और आगे की विधिक कार्यवाही की जा रही है।
यह घटना एक उदाहरण मात्र है। नगर निगम मथुरा वृंदावन क्षेत्र के अंतर्गत उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा घोषित वन खंड, बंजर जमीनों, गोचारण, टीलों और सार्वजनिक पार्कों पर इस तरह की गतिविधियां खुले आम चल रही है, जबकि कई मामले विभिन्न न्यायालयों, हाईकोर्ट में विचाराधीन है और इन जमीनों पर यथा स्थिति का आदेश पारित है मगर प्रशासन इंतजार में है कि कब घटना हो और हम कब…?
वर्ष 2017 में नगर निगम बनने के बाद और वर्ष 2022 में नगर निगम मथुरा वृंदावन की सीमा के विस्तार के बाद इसमें लगभग 18 से 20 अन्य पंचायत को शामिल किया गया जिससे मथुरा वृंदावन नगर निगम का क्षेत्रफल काफी बढ़ गया। इन गांव की जमीनों के शहर में शामिल होने के बाद इन जमीनों की कीमतों में अचानक भारी उछाल आ गया और भूमाफियाओं की नजर इन जमीनों पर पहले से ही थी। भगवान श्री कृष्ण की नगरी और पूरे वर्ष श्रद्धालुओं के आवा गमन के कारण मथुरा एक नया पर्यटन स्थल बनकर उभरा जिस कारण देश विदेश के भक्तों ने मथुरा में अपना एक निवास स्थान बनाने की जिज्ञासा जागृत हुई जिस कारण मथुरा वृंदावन क्षेत्र में जमीनों की कीमतों में भारी उथल-पुथल देखने को मिली और इसका फायदा उठाया भूमि का क्रय विक्रय करने वाले प्रॉपर्टी डीलरों ने और इनके द्वारा शहर में पड़ी हुई खाली जमीनों को राजस्व विभाग के कर्मचारियों के साथ मिली भगत करके खुर्द बुर्द्ध करना शुरू कर दिया।
सरकार द्वारा विभिन्न पट्टे को रद्द किया गया है और इसी का फायदा उठाया सरकार के भ्रष्ट कर्मचारियों ने, ऐसा नहीं है कि अधिकारियों को इस खेल के बारे में पता नहीं है लेकिन भ्रष्टाचार और कॉकटेल के कारण सभी लोग चुप हैं। शायद भ्रष्टाचार की मिठाई लेने के बाद मौके पर पहुंचने के बावजूद यह कोई कार्यवाही नहीं कर रहे या इन सरमाइदारों की निशानी पर नहीं आना चाहते। उत्तर प्रदेश सरकार और केंद्र सरकार समाज के अंतिम पंक्ति के विकास हेतु विभिन्न योजनाएं चला रही है लेकिन इन सरमायदारों के द्वारा उनके हक और हकूक पर डाका डालकर इन लोगों ने उनकी जमीनों पर अस्पताल, विद्यालय, फैक्ट्रियां और महलनुमा कोठियो का निर्माण कर लिया है।