स्पेशल डेस्क
नई दिल्ली: भारत-पाकिस्तान के बीच हालिया संघर्ष, जो अप्रैल 2025 में जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले के बाद शुरू हुआ, ने दक्षिण एशिया में तनाव को चरम पर पहुंचा दिया। इस हमले में 26 पर्यटकों की मौत हुई, जिसके बाद भारत ने पाकिस्तान और पाकिस्तान प्रशासित कश्मीर में “ऑपरेशन सिंदूर” के तहत हवाई हमले किए। जवाब में, पाकिस्तान ने भी सैन्य कार्रवाइयां कीं, जिससे पूर्ण युद्ध की आशंका बढ़ गई। हालांकि, 10 मई 2025 को दोनों देशों ने तत्काल और पूर्ण संघर्षविराम की घोषणा की जिसमें अमेरिका की मध्यस्थता ने अहम भूमिका निभाई। इस विशेष रिपोर्ट में उस पर्दे के पीछे की बातचीत और अमेरिका की भूमिका को एग्जीक्यूटिव एडिटर प्रकाश मेहरा से समझने का प्रयास करते है।
पाकिस्तान का आतंकवाद !
22 अप्रैल 2025 को पहलगाम में हुए आतंकी हमले को भारत ने पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद से जोड़ा जबकि पाकिस्तान ने इन आरोपों को खारिज कर निष्पक्ष जांच की पेशकश की। भारत ने जवाब में सिंधु जल संधि को निलंबित कर दिया और पाकिस्तानी विमानों के लिए अपने हवाई क्षेत्र को बंद कर दिया। पाकिस्तान ने शिमला समझौते सहित द्विपक्षीय संबंधों को स्थगित करने की घोषणा की। दोनों देशों की सेनाओं ने सीमा पर गोलीबारी और हवाई हमले किए, जिसमें पुंछ में दो जुड़वां बच्चों सहित कई नागरिकों की मौत हुई। भारतीय सेना के जवान दिनेश कुमार भी शहीद हुए।
पर्दे के पीछे क्या बातचीत ?
संघर्षविराम तक पहुंचने की प्रक्रिया में कई स्तरों पर कूटनीतिक प्रयास हुए। प्रमुख बिंदु इस प्रकार हैं। 1 मई 2025 को अमेरिका ने दोनों देशों के नेताओं से संपर्क शुरू किया। अमेरिकी विदेश मंत्री मार्को रूबियो ने पाकिस्तान के सेना प्रमुख जनरल आसिम मुनीर और भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर से बात की। 8 मई को जयशंकर ने अमेरिकी विदेश मंत्री से दोबारा बातचीत की, जिससे कूटनीतिक रास्ते खुले। 10 मई को अमेरिकी उपराष्ट्रपति जेडी वेंस ने भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से बात की, जिसके बाद संघर्षविराम की दिशा में प्रगति हुई।
डीजीएमओ स्तर की बातचीत !
10 मई को पाकिस्तानी डीजीएमओ ने भारतीय डीजीएमओ से फोन पर बात की। इस बातचीत के बाद दोनों पक्षों ने शाम 5 बजे से जमीन, हवा, और समुद्र पर सभी सैन्य कार्रवाइयां रोकने पर सहमति जताई। 12 मई को दोनों देशों के डीजीएमओ ने दोबारा बातचीत की, जिसमें संघर्षविराम को मजबूत करने पर चर्चा हुई।
सऊदी अरब ने संघर्षविराम का स्वागत किया और दोनों देशों से संयम बरतने की अपील की। ब्रिटेन के विदेश मंत्री और प्रधानमंत्री कीर स्टार्मर ने भी कूटनीतिक प्रयासों में सक्रिय भूमिका निभाई। यूक्रेन और फ्रांस ने दोनों देशों से बातचीत को प्राथमिकता देने का आग्रह किया। अमेरिका ने इस संकट में मध्यस्थ की भूमिका निभाई, लेकिन उसका दृष्टिकोण अपने रणनीतिक हितों से प्रेरित था।
भारत के आत्मरक्षा के अधिकार का समर्थन !
अमेरिकी विदेश विभाग ने पहलगाम हमले की निंदा करते हुए पाकिस्तान पर आतंकवादी संगठनों को समर्थन देने का आरोप लगाया। प्रवक्ता टैमी ब्रूस ने इसे “अवैध और अस्वीकार्य” बताया। अमेरिकी उपराष्ट्रपति जेडी वेंस ने पाकिस्तान को हमले के लिए “कुछ हद तक जिम्मेदार” ठहराया, लेकिन भारत से क्षेत्रीय संघर्ष से बचने की अपील की। अमेरिकी रक्षा मंत्री पीट हेगसेथ ने भारतीय रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह से बात कर भारत के आत्मरक्षा के अधिकार का समर्थन किया।
डोनाल्ड ट्रंप…मध्यस्थता का दावा !
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने 10 मई को सोशल मीडिया पर घोषणा की कि उनकी मध्यस्थता में भारत और पाकिस्तान ने पूर्ण संघर्षविराम पर सहमति जताई। हालांकि, भारत और पाकिस्तान ने इसे पूरी तरह अमेरिका की मध्यस्थता के बजाय द्विपक्षीय बातचीत का परिणाम बताया। विदेश मंत्रालय के सूत्रों ने कहा कि मामला सीधे दोनों देशों के बीच सुलझा। भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीआई) ने अमेरिका की भूमिका पर सवाल उठाए, यह कहते हुए कि भारत और पाकिस्तान अपने मुद्दों को द्विपक्षीय रूप से हल करने में सक्षम हैं।
ट्रम्प का रणनीतिक हित ?
अमेरिका का भारत के प्रति झुकाव उसके भूराजनीतिक हितों से जुड़ा है, खासकर चीन के बढ़ते प्रभाव को काउंटर करने के लिए। अफगानिस्तान से अमेरिकी सेना की वापसी के बाद पाकिस्तान की रणनीतिक अहमियत कम हुई है, जबकि भारत एक महत्वपूर्ण सहयोगी बनकर उभरा है।
वहीं विशेषज्ञों का मानना है कि “अमेरिका किसी भी पक्ष का खुलकर समर्थन करने के बजाय अपने हितों को प्राथमिकता देता है।”
संघर्षविराम कैसे संभव हुआ ?
दोनों देशों के परमाणु हथियारों ने पूर्ण युद्ध को जोखिम भरा बना दिया, जिससे कूटनीति को प्राथमिकता मिली। अमेरिका, ब्रिटेन, सऊदी अरब, और अन्य देशों ने दोनों पक्षों से संयम बरतने की अपील की।पाकिस्तान में जनरल आसिम मुनीर के खिलाफ जनता का गुस्सा और भारत में नागरिक हताहतों ने दोनों सरकारों पर शांति की मांग बढ़ाई। डीजीएमओ स्तर की बातचीत और उच्च-स्तरीय संपर्क ने तनाव को कम करने में मदद की।
क्या संघर्षविराम टिकाऊ है ?
हालांकि संघर्षविराम ने तात्कालिक तनाव को कम किया, लेकिन कई सवाल बाकी हैं आतंकवाद का मुद्दा: भारत ने स्पष्ट किया कि अगर आतंकी गतिविधियां दोबारा हुईं, तो वह इसे युद्ध मानेगा। दोनों देशों के बीच ऐतिहासिक अविश्वास और पाकिस्तान के आतंकवाद को समर्थन देने के आरोप स्थायी शांति को चुनौती देते हैं। हालांकि बिना ठोस कूटनीतिक समझौतों के, यह संघर्षविराम अस्थायी हो सकता है।
संघर्षविराम एक जटिल कूटनीतिक प्रक्रिया !
भारत-पाकिस्तान के बीच संघर्षविराम एक जटिल कूटनीतिक प्रक्रिया का परिणाम था, जिसमें अमेरिका ने महत्वपूर्ण लेकिन विवादास्पद भूमिका निभाई। पर्दे के पीछे की बातचीत, जिसमें डीजीएमओ स्तर की चर्चा और उच्च-स्तरीय संपर्क शामिल थे, ने तनाव को कम करने में मदद की। हालांकि, अमेरिका की मध्यस्थता को लेकर भारत और पाकिस्तान दोनों ने इसे पूरी तरह स्वीकार नहीं किया, बल्कि इसे द्विपक्षीय प्रयासों का हिस्सा बताया। यह संघर्षविराम क्षेत्रीय शांति की दिशा में एक सकारात्मक कदम है, लेकिन दीर्घकालिक स्थिरता के लिए आतंकवाद, विश्वास की कमी, और क्षेत्रीय भूराजनीति जैसे मुद्दों को हल करना जरूरी है।