नई दिल्ली: संसद में पेश तीन अहम बिलों को लेकर विपक्षी गठबंधन INDIA ब्लॉक में दरार साफ दिखने लगी है. इन बिलों में प्रावधान है कि अगर कोई केंद्रीय या राज्य मंत्री 30 दिन तक जेल में रहता है तो उसे अपने पद से हटना होगा. इन बिलों की जांच के लिए सरकार ने संयुक्त संसदीय समिति (JPC) गठित करने का फैसला किया. लेकिन इस पर विपक्ष बंटा हुआ नजर आ रहा है.
आम आदमी पार्टी (AAP) ने रविवार को साफ कर दिया कि वह जेपीसी में शामिल नहीं होगी. इससे पहले ही तृणमूल कांग्रेस भी इस प्रक्रिया से बाहर रहने का ऐलान कर चुकी थी. अब समाजवादी पार्टी और शिवसेना (UBT) ने भी इसी राह पर चलने का संकेत दिया है. ऐसे में कांग्रेस दुविधा में है. पहले पार्टी ने संकेत दिया था कि वह शामिल होकर असहमति नोट दर्ज कर सकती है. लेकिन अब दबाव की स्थिति में फंसी हुई है
कांग्रेस पर बढ़ा दबाव
कांग्रेस ने शुरुआत में जेपीसी में शामिल होकर अपना विरोध दर्ज करने की रणनीति बनाई थी. पार्टी का मानना था कि असहमति नोट देकर वैकल्पिक राय भी संसद के रिकॉर्ड का हिस्सा बन सकती है. वाम दलों और RSP (रिवॉल्यूशनरी सोशलिस्ट पार्टी) ने भी इसी तरह का रुख अपनाया है. लेकिन जैसे-जैसे AAP, TMC, समाजवादी पार्टी और शिवसेना (UBT) बाहर होने लगे, कांग्रेस पर विपक्षी एकजुटता बनाए रखने का दबाव बढ़ता जा रहा है.
बिल पर क्यों है विवाद
तीन में से एक बिल प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री तक को हटाने का प्रावधान करता है. इसके लिए संवैधानिक संशोधन जरूरी है. इसके लिए भाजपा के पास पर्याप्त संख्याबल नहीं है. यही वजह है कि विपक्षी दल मान रहे हैं कि यह “कड़ा और संघीय ढांचे के खिलाफ” कदम संसद से पास नहीं हो पाएगा. कई पार्टियां इसलिए जेपीसी को “समय की बर्बादी” बता रही हैं.
विपक्षी एकता पर सवाल
विपक्षी खेमे के एक वरिष्ठ नेता ने कहा कि असल में सभी पार्टियां बिल के खिलाफ हैं. फर्क सिर्फ इतना है कि कुछ इसे जेपीसी में शामिल होकर जताना चाहती हैं, जबकि कुछ बाहर रहकर अपना विरोध दर्ज करना चाहती हैं. वहीं AAP के राज्यसभा सांसद संजय सिंह ने कहा, मोदी सरकार असंवैधानिक बिल ला रही है. इसका मकसद विपक्षी नेताओं को जेल में डालना और उनकी सरकारें गिराना है.”