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‘अभिव्यक्ति की आजादी है, लेकिन धार्मिक भावनाओं…’, शर्मिष्ठा पनोली की सुनवाई पर हाईकोर्ट!

पहल टाइम्स डेस्क by पहल टाइम्स डेस्क
June 3, 2025
in राज्य, राष्ट्रीय, विशेष
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शर्मिष्ठा पनोली - highcourt
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प्रकाश मेहरा
एग्जीक्यूटिव एडिटर


कोलकाता: शर्मिष्ठा पनोली, पुणे की एक 22 वर्षीय लॉ स्टूडेंट और सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर, को कोलकाता पुलिस ने 30 मई 2025 की देर रात हरियाणा के गुरुग्राम से गिरफ्तार किया था। उन पर आरोप है कि उन्होंने इंस्टाग्राम पर एक वीडियो पोस्ट किया, जिसमें ऑपरेशन सिंदूर और बॉलीवुड की चुप्पी को लेकर टिप्पणी करते हुए एक विशेष समुदाय के खिलाफ आपत्तिजनक और साम्प्रदायिक बयान दिए, जिससे धार्मिक भावनाएं आहत हुईं और सामाजिक तनाव पैदा हुआ।

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इस वीडियो के वायरल होने के बाद कोलकाता के गार्डन रीच थाने में उनके खिलाफ भारतीय न्याय संहिता (BNS) की धारा 196(1)(a) (धर्म के आधार पर शत्रुता को बढ़ावा देना), 299 (धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाना), 352 (शांति भंग करने के लिए उकसाना), और 353(1)(c) (सार्वजनिक उपद्रव भड़काने) के तहत FIR दर्ज की गई थी।

शर्मिष्ठा ने वीडियो हटाकर सोशल मीडिया पर बिना शर्त माफी मांगी थी, लेकिन पुलिस ने कानूनी प्रक्रिया के तहत कार्रवाई की। उन्हें 31 मई 2025 को कोलकाता के अलीपुर सीजेएम कोर्ट में पेश किया गया, जहां उनकी पुलिस हिरासत की मांग खारिज कर दी गई और उन्हें 13 जून 2025 तक न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया।

कलकत्ता हाई कोर्ट में सुनवाई

3 जून 2025 को, शर्मिष्ठा पनोली की जमानत याचिका पर कलकत्ता हाई कोर्ट में जस्टिस पार्थसारथी चटर्जी की बेंच के समक्ष सुनवाई हुई। कोर्ट ने उनकी अंतरिम जमानत याचिका खारिज कर दी और पश्चिम बंगाल सरकार को अगली सुनवाई में केस डायरी जमा करने का निर्देश दिया। मामले की अगली सुनवाई 5 जून 2025 को निर्धारित की गई।

हाई कोर्ट की टिप्पणी

सुनवाई के दौरान, कोर्ट ने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और धार्मिक भावनाओं के बीच संतुलन पर महत्वपूर्ण टिप्पणी की। जस्टिस चटर्जी ने कहा कि “हमारे देश में विभिन्न धर्मों, जातियों और समुदायों के लोग एक साथ रहते हैं। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का मतलब यह नहीं है कि आप दूसरों की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचा सकते हैं।”

कोर्ट ने यह भी नोट किया कि शर्मिष्ठा के वीडियो ने समाज के एक वर्ग की भावनाओं को आहत किया और धार्मिक अशांति पैदा की, जिसके कारण सामाजिक तनाव की स्थिति उत्पन्न हुई। कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि “भले ही सजा 7 साल से कम हो, पुलिस को किसी को भी गिरफ्तार करने का अधिकार है, खासकर जब मामला सामाजिक अशांति से जुड़ा हो।”

शर्मिष्ठा के वकील की दलीलें

शर्मिष्ठा के वकील, मोहम्मद समीमुद्दीन, ने कोर्ट में तर्क दिए पुलिस ने शर्मिष्ठा का मोबाइल और लैपटॉप जब्त कर लिया है, इसलिए उनकी हिरासत की आवश्यकता नहीं है। शर्मिष्ठा ने अपने बयानों के लिए सार्वजनिक माफी मांगी थी, और उनका इरादा देशभक्ति दिखाना था, न कि किसी की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाना। जेल में शर्मिष्ठा को उचित सुविधाएं नहीं मिल रही हैं, जैसे साफ-सफाई और चिकित्सा सुविधाएं, क्योंकि उन्हें किडनी स्टोन की समस्या है।

हालांकि, कोर्ट ने इन दलीलों को खारिज करते हुए कहा कि शर्मिष्ठा के बयानों ने सामाजिक अशांति पैदा की, और जांच के लिए उनकी हिरासत आवश्यक है। कोर्ट ने यह भी निर्देश दिया कि जेल में शर्मिष्ठा को सभी जरूरी सुविधाएं प्रदान की जाएं, लेकिन उन्हें जेल यूनिफॉर्म पहनना होगा।

गुरुग्राम से शर्मिष्ठा को किया गिरफ्तार !

शर्मिष्ठा ने अपने इंस्टाग्राम वीडियो में ऑपरेशन सिंदूर और बॉलीवुड की चुप्पी पर टिप्पणी करते हुए कथित तौर पर एक विशेष समुदाय (मुस्लिम) के खिलाफ आपत्तिजनक शब्दों का उपयोग किया। इस वीडियो के वायरल होने के बाद सामाजिक तनाव पैदा हुआ, और AIMIM नेता वारिस पठान सहित कई लोगों ने उनके खिलाफ कार्रवाई की मांग की। कोलकाता पुलिस ने कई बार शर्मिष्ठा और उनके परिवार को नोटिस भेजने की कोशिश की, लेकिन जवाब न मिलने पर कोर्ट से गिरफ्तारी वारंट प्राप्त किया। इसके बाद, पुलिस ने गुरुग्राम में उनकी लोकेशन ट्रेस कर उन्हें गिरफ्तार किया।

अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और सीमाएं

भारत के संविधान के अनुच्छेद 19(1)(a) के तहत अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता एक मौलिक अधिकार है, लेकिन यह निरंकुश नहीं है। भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 295A (अब BNS में समकक्ष धारा) धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने वाले कृत्यों को दंडनीय बनाती है। कलकत्ता हाई कोर्ट ने इस मामले में स्पष्ट किया कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का उपयोग दूसरों की भावनाओं को आहत करने के लिए नहीं किया जा सकता।

कोर्ट ने भारत की सांस्कृतिक और धार्मिक विविधता पर जोर देते हुए कहा कि देश में विभिन्न समुदाय एक साथ रहते हैं, इसलिए किसी भी टिप्पणी में सावधानी बरतनी चाहिए। कोलकाता पुलिस ने दावा किया कि शर्मिष्ठा की गिरफ्तारी देशभक्ति या व्यक्तिगत विचारों के लिए नहीं, बल्कि साम्प्रदायिक नफरत फैलाने वाली सामग्री साझा करने के लिए की गई।

नाजिया इलाही खान का मामला

2024 में, कलकत्ता हाई कोर्ट ने BJP की पूर्व नेता नाजिया इलाही खान की अग्रिम जमानत याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा था कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता किसी को दुर्व्यवहार करने या दूसरों के खिलाफ गलत बोलने का लाइसेंस नहीं देती। दिल्ली हाई कोर्ट ने 2025 में बाबा रामदेव के ‘शरबत जिहाद’ बयान को अनुचित और धार्मिक आधार पर समाज को बांटने वाला माना था। 2021 में, दिल्ली हाई कोर्ट ने सलमान खुर्शीद की किताब पर रोक लगाने की याचिका खारिज करते हुए कहा था कि असहमति का अधिकार लोकतंत्र का हिस्सा है, लेकिन इसका उपयोग बहुसंख्यक विचारों से मेल खाने के लिए नहीं होना चाहिए।

चिकित्सा और स्वच्छता सुविधाओं की मांग

शर्मिष्ठा पनोली को 13 जून 2025 तक न्यायिक हिरासत में रखा गया है, और अगली सुनवाई 5 जून 2025 को होगी। उनके वकील ने जेल में उचित चिकित्सा और स्वच्छता सुविधाओं की मांग की है, जिस पर कोर्ट ने जेल प्रशासन को निर्देश दिए हैं। इस मामले ने सोशल मीडिया पर व्यापक बहस छेड़ दी है, जहां कुछ लोग इसे “चुनिंदा सेंसरशिप” का मामला बता रहे हैं, जबकि अन्य इसे कानून के तहत उचित कार्रवाई मान रहे हैं।

शर्मिष्ठा की असंवैधानिक गिरफ्तारी: यति नरसिंहानंद

शर्मिष्ठा पनोली के समर्थन में डासना धाम के महामंडलेश्वर यति नरसिंहानंद गिरी ने कहा “शर्मिष्ठा की असंवैधानिक गिरफ्तारी के जिम्मेदार गांधी की समाधि पर रविवार 8 जून 2025 को उपवास करेंगे।”

#शर्मिष्ठा की असंवैधानिक गिरफ्तारी के जिम्मेदार गांधी की समाधि पर रविवार 8 जून 2025 को उपवास करेंगे महामंडलेश्वर @yatinarsingh और डॉ उदिता त्यागी#ReleaseSharmistha #Sarmistha @VHPDigital @RSSorg @BJP4India @KanganaTeam @PawanKalyan @mehraprakash23 @MishraManan01 pic.twitter.com/VKfsDPWpcc

— PAHAL TIMES (@pahal_times) June 3, 2025

स्वतंत्रता की सीमाओं पर जोर

कलकत्ता हाई कोर्ट ने शर्मिष्ठा पनोली की जमानत याचिका खारिज करते हुए अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की सीमाओं पर जोर दिया। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि भारत की सांस्कृतिक विविधता को देखते हुए, धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने वाली टिप्पणियां सामाजिक अशांति पैदा कर सकती हैं, और ऐसी टिप्पणियों पर सावधानी बरतनी चाहिए। यह मामला अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और सामाजिक सद्भाव के बीच संतुलन की चुनौती को रेखांकित करता है।

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