स्पेशल डेस्क/नई दिल्ली: अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और नाटो महासचिव मार्क रूटे की ओर से रूस के साथ व्यापार करने वाले देशों, विशेष रूप से भारत, चीन और ब्राजील के खिलाफ द्वितीयक प्रतिबंधों (secondary sanctions) की धमकी ने वैश्विक तेल व्यापार और भू-राजनीतिक समीकरणों पर सवाल उठाए हैं। यह धमकी रूस-यूक्रेन युद्ध के संदर्भ में आई है, जहां अमेरिका और नाटो रूस पर दबाव बनाने की कोशिश कर रहे हैं। लेकिन सवाल यह है कि क्या यह रूस के बहाने भारत जैसे देशों को निशाना बनाने की रणनीति है? आइए पूरा विश्लेषण एग्जीक्यूटिव एडिटर प्रकाश मेहरा से समझते हैं।
ट्रंप की धमकी और नाटो का समर्थन
14 जुलाई को, ट्रंप ने व्हाइट हाउस में नाटो महासचिव मार्क रूटे के साथ एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा कि अगर रूस 50 दिनों के भीतर यूक्रेन के साथ युद्धविराम (ceasefire) पर सहमत नहीं होता, तो वह रूस के व्यापारिक साझेदारों पर 100% टैरिफ (secondary tariffs) लगाएंगे। इन टैरिफ्स का मुख्य निशाना रूस से तेल और गैस खरीदने वाले देश जैसे -भारत और चीन हैं।
नाटो की चेतावनी
अगले दिन, 15 जुलाई, 2025 को मार्क रूटे ने अमेरिकी सीनेटरों के साथ बैठक के बाद भारत, चीन और ब्राजील को चेतावनी दी कि वे रूसी तेल और गैस खरीदना बंद करें, अन्यथा “यह उनके लिए भारी पड़ेगा।” रूटे ने सुझाव दिया कि इन देशों के नेताओं को रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन को फोन करके शांति वार्ता के लिए दबाव डालना चाहिए।
अमेरिकी सीनेट का विधेयक
अमेरिकी सीनेट में “Sanctioning Russia Act of 2025” नामक एक विधेयक पर चर्चा चल रही है, जिसे 85 सीनेटर समर्थन दे रहे हैं। यह विधेयक रूस से तेल और गैस खरीदने वाले देशों पर 500% तक टैरिफ लगाने का प्रस्ताव करता है। इस विधेयक को सीनेटर लिंडसे ग्राहम और रिचर्ड ब्लूमेंथल ने पेश किया है, जो ट्रंप के करीबी सहयोगी हैं।
भारत-रूस तेल व्यापार और भारत की निर्भरता
यूक्रेन युद्ध शुरू होने के बाद से, भारत ने रूस से तेल आयात में भारी वृद्धि की है। 2021 में जहां रूस से भारत का तेल आयात केवल 2% था, वहीं 2023 तक यह बढ़कर लगभग 40% हो गया। जून 2025 में भारत ने 2.1 मिलियन बैरल प्रतिदिन रूसी तेल आयात किया, जो पिछले 11 महीनों में सबसे अधिक है। रूस ने पश्चिमी प्रतिबंधों के बाद भारत को भारी छूट पर तेल की आपूर्ति की, जिससे भारत ने 2022-23 में प्रति बैरल औसतन 9-14% कम कीमत पर तेल खरीदा। इससे भारत ने अरबों डॉलर की बचत की।
भारत रूस के कच्चे तेल का दूसरा सबसे बड़ा खरीदार है, जिसमें चीन 47% और भारत 38% हिस्सेदारी के साथ शीर्ष पर हैं। भारत की निजी रिफाइनरियां, जैसे रिलायंस इंडस्ट्रीज और नायरा एनर्जी, रूस के यूराल तेल की सबसे बड़ी खरीदार हैं।
क्या भारत पर निशाना है ? अमेरिकी रणनीति
ट्रंप और नाटो की धमकियों को कुछ विश्लेषकों ने भारत और चीन जैसे देशों पर दबाव बनाने की रणनीति के रूप में देखा है। भारत, जो रूस से सस्ता तेल खरीदकर अपनी ऊर्जा सुरक्षा सुनिश्चित कर रहा है, अब इन टैरिफ्स के कारण आर्थिक दबाव का सामना कर सकता है। अमेरिका भारत के साथ अपने व्यापारिक संबंधों को महत्व देता है (अमेरिका भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है), लेकिन रूस के साथ भारत के संबंधों को लेकर पहले भी चिंता जताई जा चुकी है।
BRICS और भू-राजनीति
कुछ विश्लेषकों का मानना है कि “यह धमकी केवल रूस-यूक्रेन युद्ध तक सीमित नहीं है, बल्कि इसका उद्देश्य BRICS (ब्राजील, रूस, भारत, चीन, दक्षिण अफ्रीका) जैसे उभरते समूह की बढ़ती वैश्विक ताकत को कमजोर करना भी हो सकता है। हाल ही में ब्राजील में हुए BRICS शिखर सम्मेलन में पेट्रोडॉलर के विकल्पों पर चर्चा हुई, जिसे अमेरिका एक खतरे के रूप में देखता है।
नाटो एक सैन्य गठबंधन है, और इसके महासचिव का भारत जैसे गैर-सदस्य देशों की व्यापार नीतियों पर टिप्पणी करना असामान्य और राजनयिक दृष्टिकोण से विवादास्पद माना जा रहा है। भारत ने पहले ही स्पष्ट किया है कि वह युद्ध के बजाय शांति की वकालत करता है, जैसा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वैश्विक मंचों पर कहा, “यह युद्ध का युग नहीं है।”
भारत पर संभावित प्रभाव आर्थिक प्रभाव
यदि अमेरिका 100% या 500% टैरिफ लागू करता है, तो भारत को रूस से तेल आयात कम करना पड़ सकता है। इसके विकल्प के रूप में भारत को मध्य पूर्व (सऊदी अरब, इराक, यूएई) या अफ्रीका से तेल आयात बढ़ाना होगा, जो अधिक महंगा होगा। इससे भारत के आयात बिल में वृद्धि होगी और वैश्विक तेल की कीमतें भी बढ़ सकती हैं।
रूस वैश्विक तेल आपूर्ति का लगभग 5% हिस्सा (4.5-5 मिलियन बैरल प्रतिदिन) निर्यात करता है। यदि रूस के तेल निर्यात पर प्रतिबंध लगते हैं, तो वैश्विक तेल की कीमतें 120 डॉलर प्रति बैरल तक जा सकती हैं, जिससे भारत जैसे आयातक देशों में मुद्रास्फीति बढ़ सकती है।
क्या है भारत की रणनीति ?
भारतीय रिफाइनरी अधिकारियों का मानना है कि “ट्रंप की धमकी एक सौदेबाजी की रणनीति हो सकती है, और इसका तत्काल प्रभाव सीमित होगा। भारत पहले ही मध्य पूर्व और अफ्रीका से अतिरिक्त तेल आपूर्ति की तलाश शुरू कर चुका है, लेकिन रूसी तेल की सस्ती कीमतों के कारण इसे पूरी तरह छोड़ना आर्थिक रूप से चुनौतीपूर्ण होगा।”
रूस ने ट्रंप की धमकी को “नाटकीय अल्टीमेटम” करार देते हुए इसे खारिज किया है। रूसी उप विदेश मंत्री सर्गेई रयाबकोव ने कहा कि रूस इस तरह के दबाव को स्वीकार नहीं करेगा। रूस ने पहले ही पश्चिमी प्रतिबंधों को दरकिनार करने के लिए “शैडो फ्लीट” जैसे उपाय अपनाए हैं, जो तेल की उत्पत्ति को छिपाने में मदद करते हैं।
यूरोप की दोहरी स्थिति
यूरोप ने रूस से तेल और गैस आयात कम किया है, लेकिन 2024 में भी वह रूस से 18% प्राकृतिक गैस और 25 बिलियन डॉलर मूल्य के जीवाश्म ईंधन आयात करता रहा। ट्रंप के टैरिफ्स से यूरोप को भी नुकसान हो सकता है, क्योंकि उनकी ऊर्जा आपूर्ति पहले से ही तीन साल के निचले स्तर पर है।
क्या यह भारत के खिलाफ रणनीति है ?
ट्रंप और नाटो की धमकियां भारत की ऊर्जा सुरक्षा और आर्थिक हितों को प्रभावित कर सकती हैं। भारत ने रूस से सस्ता तेल खरीदकर अपनी ऊर्जा जरूरतों को पूरा किया और वैश्विक तेल कीमतों को स्थिर रखने में योगदान दिया। लेकिन अमेरिका और नाटो का यह कदम भारत को रूस से दूरी बनाने के लिए मजबूर कर सकता है, जो भारत की संप्रभु विदेश नीति के लिए चुनौती है।
विदेशी मामलों के पत्रकार प्रकाश मेहरा का मानना है कि “यह धमकी BRICS देशों, विशेष रूप से भारत और चीन, को कमजोर करने की रणनीति का हिस्सा हो सकती है। अमेरिका को BRICS की बढ़ती ताकत और पेट्रोडॉलर के विकल्पों पर चर्चा से चिंता है।”
भारत की जवाबी रणनीति
भारत ने पहले भी अमेरिकी दबाव का सामना किया है, जैसे कि ईरान से तेल आयात पर प्रतिबंध के समय। भारत ने रूस के साथ अपने रणनीतिक संबंधों को बनाए रखा है और संभवतः इस स्थिति में भी अपनी ऊर्जा सुरक्षा को प्राथमिकता देगा। भारत ने हाल ही में अमेरिका से भी तेल आयात बढ़ाया है (जून 2025 में 439,000 बैरल प्रतिदिन), जो एक बैकअप रणनीति हो सकती है।
ट्रंप और नाटो की धमकियां रूस-यूक्रेन युद्ध को समाप्त करने के लिए रूस पर दबाव बनाने का एक प्रयास हैं, लेकिन इनका भारत, चीन और ब्राजील जैसे देशों पर भी गहरा प्रभाव पड़ सकता है। भारत, जो अपनी ऊर्जा सुरक्षा के लिए रूस से सस्ता तेल खरीद रहा है, अब एक जटिल स्थिति में है। हालांकि, भारतीय रिफाइनरी अधिकारियों और विशेषज्ञों का मानना है कि “यह धमकी ट्रंप की सौदेबाजी की रणनीति हो सकती है, और इसका तत्काल प्रभाव सीमित होगा। फिर भी, भारत को वैकल्पिक आपूर्तिकर्ताओं (मध्य पूर्व, अफ्रीका, अमेरिका) की तलाश तेज करनी होगी, जो अधिक लागत के साथ आएंगे।
यह स्पष्ट है कि यह धमकी केवल रूस तक सीमित नहीं है, बल्कि इसका उद्देश्य वैश्विक व्यापार और भू-राजनीतिक समीकरणों को प्रभावित करना भी हो सकता है। भारत को अपनी संप्रभु नीतियों और आर्थिक हितों की रक्षा के लिए सावधानीपूर्वक कदम उठाने होंगे, साथ ही रूस और अमेरिका के साथ अपने रणनीतिक संबंधों को संतुलित करना होगा।