Upgrade
पहल टाइम्स
  • होम
  • दिल्ली
  • राज्य
  • राष्ट्रीय
  • विश्व
  • धर्म
  • व्यापार
  • खेल
  • मनोरंजन
  • गैजेट्स
  • जुर्म
  • लाइफस्टाइल
    • स्वास्थ्य
    • फैशन
    • यात्रा
  • विशेष
    • साक्षात्कार
  • ईमैगजीन
  • होम
  • दिल्ली
  • राज्य
  • राष्ट्रीय
  • विश्व
  • धर्म
  • व्यापार
  • खेल
  • मनोरंजन
  • गैजेट्स
  • जुर्म
  • लाइफस्टाइल
    • स्वास्थ्य
    • फैशन
    • यात्रा
  • विशेष
    • साक्षात्कार
  • ईमैगजीन
No Result
View All Result
पहल टाइम्स
No Result
View All Result
  • होम
  • दिल्ली
  • राज्य
  • राष्ट्रीय
  • विश्व
  • धर्म
  • व्यापार
  • खेल
  • मनोरंजन
  • गैजेट्स
  • जुर्म
  • लाइफस्टाइल
  • विशेष
  • ईमैगजीन
Home राज्य

उद्धव ठाकरे के पास एक उम्मीद और थोड़ी संभावनाओं के सिवा कुछ भी नहीं बचा है

पहल टाइम्स डेस्क by पहल टाइम्स डेस्क
February 18, 2023
in राज्य, विशेष
A A
uddhav thackeray
21
SHARES
699
VIEWS
Share on FacebookShare on Whatsapp

मृगांक शेखर


कुदरत की बनावट और बुनावट कुछ ऐसी है कि किसी उम्मीदें कोई चाह कर भी उससे नहीं ले सकता. उद्धव ठाकरे (Uddhav Thackeray) के मामले में भी ये बात लागू होती है – और ये भी कि संभावनाएं कभी खत्म नहीं होती. उद्धव ठाकरे के साथ भी, अब भी ऐसा ही है. ये उम्मीदें ही ताकत देती हैं, और ये संभावनाएं ही हैं जो विकल्प मुहैया कराती हैं – और ले देकर उद्धव ठाकरे के पास जमा पूंजी के रूप में अब यही बचा भी है.

इन्हें भी पढ़े

Dharali

उत्तराखंड में बार-बार क्यों आ रही दैवीय आपदा?

August 24, 2025
Rahul Gandhi

राहुल गांधी की सुरक्षा में बड़ी चूक, यात्रा के बीच युवक ने की गले लगने की कोशिश

August 24, 2025
nikki murder case

निक्की हत्याकांड: ग्रेटर नोएडा में पत्नी को जिंदा जलाने वाले विपिन का पुलिस एनकाउंटर, पैर में लगी गोली।

August 24, 2025
D.K. Shivkumar

कर्नाटक में कांग्रेस का नया रंग, डी.के. शिवकुमार और एच.डी. रंगनाथ ने की RSS गीत की तारीफ!

August 24, 2025
Load More

ये उम्मीदें और संभावनाएं ही हैं जिनकी बदौलत उद्धव ठाकरे कह भी रहे हैं, सुप्रीम कोर्ट जाएंगे. अदालत में खड़े होकर अपनी बात कहेंगे. कोई जरूरी तो नहीं है, लेकिन हो सकता है सुप्रीम कोर्ट उद्धव ठाकरे का पक्ष सुने भी – और चुनाव आयोग को नोटिस देकर उसका पक्ष भी जानेगा ही.

महाराष्ट्र की राजनीति में अभी जो परिस्थितियां दिखायी पड़ रही हैं, लगता तो नहीं है कि उद्धव ठाकरे के पास जो बचा खुचा है, बहुत काम का है. जो विश्वास उद्धव ठाकरे को कभी एकनाथ शिंदे या शिवसेना के विधायकों पर रहा, अब खुद पर होना चाहिये. ये विश्वास ही है जो उम्मीदें बनाये रखता है – और संभावनाओं के साथ आगे बढ़ने का रास्ता खोजने में भी मददगार साबित होता है.

अभी कुछ दिन पहले ही महाराष्ट्र के पूर्व डिप्टी सीएम अजित पवार का दावा रहा कि एनसीपी नेतृत्व की तरफ से उद्धव ठाकरे को आगाह करने की पूरी कोशिश हुई थी, लेकिन वो सुने नहीं. बल्कि, बड़े विश्वास के साथ बोले कि शिवसेना के विधायक कुछ ऐसा वैसा नहीं करेंगे – जाहिर है, तब ये बात एकनाथ शिंदे (Eknath Shinde) पर भी लागू होती ही होगी!

वो विश्वास ही रहा जो उद्धव ठाकरे शिंदे पर आंख मूंद कर भरोसा करते थे, लेकिन लगता नहीं कि कभी वो उनके मन की बात भी सुनते रहे या ऐसी कोई कोशिश भी किये. ये उद्धव ठाकरे ही हैं जो बीजेपी के साथ गठबंधन टूटने के दौरान एकनाथ शिंदे को शिवसेना विधायक दल का नेता बनाया था. तब कुछ देर के लिए ऐसा भी माना जा रहा था कि एकनाथ शिंदे ही मुख्यमंत्री बनेंगे.

तब तक उद्धव ठाकरे के मुख्यमंत्री बनने की कोई संभावना नहीं जतायी गयी थी. आदित्य ठाकरे वैसे भी पहली बार विधायक बने थे, लिहाजा स्कोप कम ही था. बाद में चीजें जरूरत और सलाहियत के मुताबिक बदलती भी चली गयीं. अब उद्धव ठाकरे को शरद पवार की सलाह अच्छी लगी या फिर रश्मि ठाकरे की – मुख्यमंत्री बनने के लिए तैयार हो गये.

दिक्कत वहां भी नहीं थी. थोड़ा गौर करें और समझें तो एकनाथ शिंदे मन मसोस कर रह जाने के बाद भी शांत रह सकते थे. लेकिन उद्धव ठाकरे के मुख्यमंत्री बन जाने के बाद आदित्य ठाकरे और रश्मि ठाकरे का दबदबा और दखल बढ़ जाने से अंदर का गुस्सा बढ़ने लगा – और एक दिन ऐसा आया जब बगावत के फैसले के रूप में ज्वालामुखी फूट पड़ी. बाद में जो कुछ हुआ आपकी आंखों के सामने रीकैप नजर आ ही रहा होगा.

अब जबकि चुनाव आयोग ने शिवसेना को सर्वाधिकार (Shiv Sena Real Owner) महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के नाम कर ही दिया है, जो कुछ उद्धव ठाकरे के पास बचा हुआ लग रहा है, जरूरी नहीं कि लंबे समय तक ऐसा ही रहे – अब तो वो भी उसी शिवसेना के एमएलसी हैं जिसके नेता के रूप में एकनाथ शिंदे को सरकारी मान्यता मिल चुकी है.

दुश्मन या तो जश्न मना रहे हैं, या मन ही मन खुश हैं, लेकिन हाल के मुश्किल दिनों में उद्धव ठाकरे के साथ दोस्त जैसे पेश आने वाले एनसीपी नेता शरद पवार ने चुनाव आयोग के फैसले को स्वीकार कर आगे बढ़ने की सलाह दी है. बाकी सलाहियतें जैसी भी रही हों, लेकिन आगे बढ़ने की बात तो नेक ही लगती है.

जब कहीं कुछ साफ साफ दिखायी न दे तो आगे बढ़ ही जाना चाहिये. रही बात मौजूदा हालात में एकनाथ शिंदे या बीजेपी से समझौते की तो ऐसे विकल्प तो हमेशा ही खुले रहते हैं. फैसला तो फिलहाल उद्धव ठाकरे को ही लेना है, शर्त सिर्फ ये है कि राजनीतिक रूप से सही होना चाहिये.

जीरो बैलेंस तो नहीं, लेकिन बचा क्या है?
चुनाव आयोग का ऑर्डर आने के बाद उद्धव ठाकरे ने जिस तरीके से रिएक्ट किया है, वो स्वाभाविक ही लगता है – ‘शिंदे समूह ने भले ही कागज पर तीर-कमान निशान चुरा लिया हो, लेकिन असली धनुष और तीर जिसकी पूचा बालासाहेब ठाकरे करते थे… वो मेरे पास है.’

और जिस तरीके से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर हमला बोला है, हताश और निराश होने के बाद कोई भी ऐसा ही कहता, ‘…हमें हमेशा के लिए चुनाव कराना बंद कर देना चाहिये… और एक व्यक्ति का शासन कायम कर देना चाहिये.’

उद्धव ठाकरे को लगता है कि ये सब बीएमसी के चुनाव कराने के लिए किया जा रहा है, ‘लोग मेरे साथ हैं… चुनाव आयोग ने जो कुछ भी मांगा, हमने उसका पालन किया… सारे कागजात जमा किये, फिर भी आयोग ने हमारे खिलाफ फैसला सुनाया’ – कहते हैं, आयोग के फैसले से संकेत मिलता है कि बीएमसी चुनाव जल्द ही घोषित किये जाएंगे.

जो भी है, सरमाया है: एकबारगी तो ऐसा ही लगता है कि उद्धव ठाकरे के पास राजनीतिक थाती के तौर पर कम से कम तीन चीजें तो बची ही हैं – विधायक बेटा आदित्य ठाकरे, सांसद फ्रेंड फिलॉस्फर और गाइड संजय राउत के अलावा ‘सामना’ अखबार. लेकिन उसमें भी शर्तें लागू हैं.

शिवसेना की संपत्तियां: ऐसे में जबकि चुनाव आयोग ने एकनाथ शिंदे की शिवसेना को असली मान लिया गया है, फिर तो सब कुछ उनका ही समझा जाना चाहिये – मसलन, शिवसेना की संपत्तियां भी शिंदे के हिस्से की हुईं. कम से कम तब तक जब तक वो शिवसेना के नेता बने रहते हैं.

सामना पर मालिकाना हक: अगर एकनाथ शिंदे ये भी दावा कर दें कि सामना तो शिवसेना का ही मुखपत्र है, कोई स्वतंत्र प्रॉपर्टी नहीं है तो वो भी उद्धव ठाकरे के हाथ से निकल सकता है.

अब तो हर एक्शन झेलना पड़ेगा
जो भी शिवसेना नेता, विधायक या सांसद, या फिर वो कोई भी जो शिवसेना का सदस्य है – अगर उद्धव ठाकरे के पक्ष में खड़ा होता है तो शिवसेना के बैनर तले वो तभी तक खड़ा रह सकता है जब तक एकनाथ शिंदे उदार भाव से ऐसा होने देते हैं.

ऐसे सारे चुने हुए या मनोनीत प्रतिनिधि चाहें तो उद्धव ठाकरे के समर्थन में खड़े हो सकते हैं, लेकिन ऐन उसी वक्त एकनाथ शिंदे के पास अब वो अधिकार भी है जिसका इस्तेमाल करते हुए वो ऐसे नेताओं को शिवसेना से बेदखल कर सकते हैं – और इस दायरे से बाहर न तो आदित्य ठाकरे हैं, न संजय राउत और न ही स्वयं उद्धव ठाकरे.

विरोध पर अड़े रहने की सूरत में अनुशासनात्मक कार्रवाई के दायरे में तो अब उद्धव ठाकरे भी आ चुके हैं. उद्धव ठाकरे भी तो शिवसेना के ही एमएलसी हैं. शिवसेना नेता एकनाथ शिंदे चाहें तो उद्धव ठाकरे को भी नोटिस तो जारी कर ही सकते हैं – चाहें तो उनको अयोग्य ठहराने की कार्यवाही भी शुरू कर सकते हैं. भेले ही वो कुछ भी ऐसा वैसा न करें, लेकिन अधिकृत तो हैं ही.

चाहें तो समझौता भी कर सकते हैं
एनसीपी नेता शरद पवार ने निजी तौर पर जो भी सलाह दी हो, सार्वजनिक तौर पर वो नहीं मानते कि चुनाव आयोग के ताजा आदेश से उद्धव ठाकरे और उनके साथ जो खड़े हैं, उन पर कोई फर्क पड़ेगा.

शरद पवार ने कांग्रेस में बंटवारे के वक्त इंदिरा गांधी को मिले चुनाव निशाना का हवाला दिया है. शरद पवार का कहना है कि इंदिरा गांधी के नेतृत्व वाली कांग्रेस ने 1978 में एक नया निशान चुना था, लेकिन उससे उनके हिस्से की पार्टी को नुकसान नहीं उठाना पड़ा था. शरद पवार का राजनीतिक नजरिया ये है कि धनुष-बाण का निशान गवां देने के बाद भी उद्धव ठाकरे बेफिक्र होकर आगे बढ़ सकते हैं, क्योंकि जनता उनके नये चुनाव निशान को स्वीकार कर लेगी.

शरद पवार की सलाह है, ‘जब कोई फैसला आ जाता है तो चर्चा नहीं करनी चाहिये… स्वीकार करें, नया चुनाव निशान लें… इससे कोई फर्क नहीं पड़ेगा.’ उद्धव ठाकरे अगर समझौते का फैसला करते हैं, तो वो बीजेपी के सामने भी प्रस्ताव रख सकते हैं, और चाहें तो एकनाथ शिंदे की शर्तें मानने को भी तैयार हो सकते हैं – दोनों बातें एक जैसी ही हैं.

उद्धव ठाकरे की बातों से बहुत कुछ साफ भी लगता है, ‘शिवसेना फिर से खड़ी होगी और खत्म नहीं होगी… महाराष्ट्र ने हमेशा अन्याय के खिलाफ लड़ाई लड़ी है – और लोग चोरों को सबक सिखाएंगे.’ ये चोर शब्द उद्धव ठाकरे बार बार एकनाथ शिंदे के लिए इस्तेमाल कर रहे हैं.

एकनाथ शिंदे को लेकर उद्धव ठाकरे चाहे जितना भी भला बुरा कहते रहे हों, लेकिन शिंदे की उनको यही संदेश देने की कोशिश रही है कि वो चाहें तो पार्टी में बने रहें, लेकिन कोई मनमानी नहीं चलेगी. पार्टी जो तय करेगी मानना होगा. मतलब, नेता यानी शिंदे जो कहेंगे, सुनना ही होगा.

सवाल ये नहीं है कि चुनाव आयोग ने जो फैसला लिया है वो सही है या नहीं? सवाल ये नहीं है कि चुनाव आयोग ने किन परिस्थिति में फैसला लिया है? सवाल ये नहीं है कि चुनाव आयोग ने फैसले के पीछे जो दलीलें दी है, सही हैं या नहीं? सवाल ये भी नहीं है कि चुनाव आयोग को लेकर उद्धव ठाकरे जो सवाल खड़े कर रहे हैं, वे सही हैं या गलत?

किसी को कितना भी कमजोर कर दिया जाये, उसे लड़ने से नहीं रोका जा सकता. किसी से सब कुछ भले ही छीन लिया जाये, उससे उसकी बहादुरी नहीं छीनी जा सकती. उद्धव ठाकरे की बातों से लगता है, ये सब वो बखूबी महसूस करने लगे हैं – बेशक वो आगे बढ़ें, बस इतना ध्यान रहे राजनीतिक रूप से सही फैसले लें क्योंकि अब जजमेंट ऑफ एरर जैसी कोई भी गुंजाइश बची नहीं है.

ये लड़ाई राजनीतिक है. कानूनी दावपेंच तो सिर्फ लॉजिस्टिक और सपोर्ट सिस्टम भर हैं. चुनाव आयोग पर सवाल उठाने से पहले उद्धव ठाकरे को एक बार अपने मुख्यमंत्री रहते महाराष्ट्र पुलिस के कामकाज की भी समीक्षा करनी चाहिये. नवनीत राणा और नारायण राणे केस को तटस्थ होकर देखें तो जवाब अंदर से ही मिल जाएगा – और हां, मन को भी बहुत शांति भी मिलेगी. और अभी उद्धव ठाकरे के लिए सबसे जरूरी यही है.

इन्हें भी पढ़ें

  • All
  • विशेष
  • लाइफस्टाइल
  • खेल
TV journalist

स्वतंत्रता खो रही पत्रकारिता

May 4, 2023
Pakistan

पाक के नए पीएम पर सेना ने फिर शुरू किया नया खेल

May 31, 2023
air marshal ak bharti

एयर मार्शल ए.के. भारती ने चौपाई से दी पाक को चेतावनी… ‘बिनय न मानत जलधि जड़, अब भारत की ताकत देखे विश्व’

May 12, 2025
पहल टाइम्स

पहल टाइम्स का संचालन पहल मीडिया ग्रुप्स के द्वारा किया जा रहा है. पहल टाइम्स का प्रयास समाज के लिए उपयोगी खबरों के प्रसार का रहा है. पहल गुप्स के समूह संपादक शूरबीर सिंह नेगी है.

Learn more

पहल टाइम्स कार्यालय

प्रधान संपादकः- शूरवीर सिंह नेगी

9-सी, मोहम्मदपुर, आरके पुरम नई दिल्ली

फोन नं-  +91 11 46678331

मोबाइल- + 91 9910877052

ईमेल- pahaltimes@gmail.com

Categories

  • Uncategorized
  • खाना खजाना
  • खेल
  • गैजेट्स
  • जुर्म
  • दिल्ली
  • धर्म
  • फैशन
  • मनोरंजन
  • यात्रा
  • राजनीति
  • राज्य
  • राष्ट्रीय
  • लाइफस्टाइल
  • विशेष
  • विश्व
  • व्यापार
  • साक्षात्कार
  • सामाजिक कार्य
  • स्वास्थ्य

Recent Posts

  • भारत का ‘सुदर्शन चक्र’ IADWS क्या है?
  • उत्तराखंड में बार-बार क्यों आ रही दैवीय आपदा?
  • इस बैंक का हो रहा प्राइवेटाइजेशन! अब सेबी ने दी बड़ी मंजूरी

© 2021 पहल टाइम्स - देश-दुनिया की संपूर्ण खबरें सिर्फ यहां.

  • होम
  • दिल्ली
  • राज्य
  • राष्ट्रीय
  • विश्व
  • धर्म
  • व्यापार
  • खेल
  • मनोरंजन
  • गैजेट्स
  • जुर्म
  • लाइफस्टाइल
    • स्वास्थ्य
    • फैशन
    • यात्रा
  • विशेष
    • साक्षात्कार
  • ईमैगजीन

© 2021 पहल टाइम्स - देश-दुनिया की संपूर्ण खबरें सिर्फ यहां.