स्पेशल डेस्क/नई दिल्ली: अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने पदभार संभालने के बाद से ही जिन क़दमों की शुरुआत की है या जिन फ़ैसलों के संकेत दिए हैं, उनसे ऐसा लगता है कि वैश्विक नीतियों को लेकर एक प्रकार की अनिश्चितता और अस्थिरता का माहौल बन गया है। यह कोई चौंकाने वाली बात नहीं है, क्योंकि ट्रंप की चुनावी जीत के साथ ही विश्व में इस तरह की आशंका की चर्चा शुरू हो गई थी। अब राष्ट्रपति ट्रंप के टैरिफ़ लगाने के निर्णय ने पूरी दुनिया को असमंजस की स्थिति में डाल दिया है. पहले उन्होंने दुनिया के लगभग हर देश से आने वाले उत्पादों पर 10 प्रतिशत टैरिफ लगाया, फिर विभिन्न देशों के लिए इसे अलग-अलग रूप में इसे संशोधित किया और फिर चीन को छोड़कर शेष दुनिया के लिए 90 दिनों की अस्थायी राहत की घोषणा की है।
भारत के सामने कौन सी चुनौतियां उभरेगी?
चीन के लिए यह टैरिफ़ अब भी प्रभावी है और चीन भी इसका कड़ा जवाब दे रहा है. वहीं, बाक़ी देशों को भी दी गई 90 दिन की ये राहत स्थायी नहीं है. इसका मतलब है कि उन्हें इस दौरान अमेरिका के साथ अपने हितों को लेकर एक बेहतर समझौते की दिशा में पहल करनी होगी। अब सवाल उठता है कि ट्रंप की इन नीतियों से भारत के सामने कौन सी चुनौतियां उभरेगी और क्या इनमें भारत के लिए कुछ अवसर भी छिपे हैं? अमेरिका और चीन के बीच जारी इस व्यापारिक तनातनी के क्या मायने हैं और भारत को इसे किस नज़रिए से देखना चाहिए?
इसके साथ ही यह जानना भी ज़रूरी है कि यूरोपीय देशों में इन क़दमों को लेकर किस तरह की चिंताएं पैदा हो रही हैं, अमेरिका और चीन के बीच भारत किस तरह संतुलन बना सकता है और यह 90 दिन बाद की स्थिति किस ओर इशारा करती है?
टैरिफ़ को लेकर क्या क़दम?
अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप और चीन लगातार एक-दूसरे पर टैरिफ़ को लेकर वार-पलटवार कर रहे हैं. इसका नतीजा यह हुआ है कि दोनों देशों ने एक-दूसरे पर 100 फ़ीसदी से भी अधिक टैरिफ़ लगा दिए हैं। गुरुवार को अमेरिका ने चीन पर टैरिफ़ बढ़ाकर 145% कर दिया, जबकि अन्य देशों को 90 दिनों की अस्थायी छूट देते हुए रेसिप्रोकल टैरिफ़ को घटाकर समान रूप से 10 फ़ीसदी कर दिया। अब ऐसे में सवाल उठता है कि इन 90 दिनों में भारत टैरिफ़ को लेकर क्या क़दम उठा सकता है।
विदेश नीति और कूटनीतिक मामलों से संबंधित पत्रकार प्रकाश मेहरा ने कहते हैं, “भारत और अमेरिका का रिश्तों बेहद अनोखा है. लेकिन फिलहाल जो 90 दिनों की रोक का एलान हुआ है, उसका कोई बड़ा मतलब नहीं है। इसका सीधा संकेत है कि भारत और अमेरिका के बीच जो द्विपक्षीय व्यापार समझौते की बातचीत चल रही है, उसे अब बहुत तेज़ी से आगे बढ़ाना होगा इसका भारत पर असर काफी गंभीर हो सकता है. लेकिन यह देखा जाएगा कि व्यापार क़रार हम कितने अच्छे से पूरा करते हैं.”
प्रकाश मेहरा ने कहा, “यह ज़रूरी है कि यह व्यापार समझौता आम लोगों के बीच चर्चा का विषय बने और इस पर हस्ताक्षर सोच-समझकर किए जाएं, न कि राष्ट्रपति ट्रंप के दबाव में आकर।”
मंदी से कितना पड़ेगा असर?
भारत दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी और तेज़ी से बढ़ती अर्थव्यवस्था है। बावजूद इसके हालिया संरक्षणवादी व्यापार नीतियों ने इसे वैश्विक प्रतिस्पर्धा में पीछे कर दिया है। किसी भी देश में अगर मंदी आती है तो इसका असर विश्वभर में देखने को मिलता है. अब ट्रंप की नीतियों के कारण अगर मंदी आती है तो इसका भारत पर कितना असर पड़ेगा?
इस पर वरिष्ठ पत्रकार प्रकाश मेहरा ने कहा, “मंदी आती है तो वह सभी देशों के लिए नुक़सानदेह होती है. भारत को भी अपने उत्पाद अन्य देशों में बेचने होते हैं और अगर वैश्विक मंदी के कारण मांग घटती है, तो ज़ाहिर है कि भारत को भी नुक़सान उठाना पड़ेगा। चीन इस समय आर्थिक रूप से नाजुक स्थिति में है। अगर इस व्यापारिक संघर्ष में अमेरिका चीन को और कमज़ोर कर देता है, तो यह भारत के लिए लाभदायक हो सकता है. लेकिन अगर भारत चीन के सस्ते सामान के आयात को नहीं रोक पा रहा है, तो हमें अपनी रक्षा प्रणाली मज़बूत करनी होगी.”
मेहरा ने कहा, “आज चीन में भारत की तुलना में मज़दूरी की क़ीमतें ज़्यादा हो चुकी हैं. भारत के पास ज़्यादा कुशल कारीगर मौजूद हैं। ऐसे में अगर इन सबके बावजूद हम चीन के सामान से डरते हैं या उसके डंप किए गए माल से घबराते हैं, तो फिर हम वैश्विक स्तर पर कैसे प्रतिस्पर्धा करेंगे?”
टैरिफ का जवाब भारत कैसे देगा?
राष्ट्रपति ट्रंप ने हाल ही में अधिकांश देशों को टैरिफ़ के मामले में 90 दिनों की राहत दी है. लेकिन अगर 90 दिनों के बाद भारत और अमेरिका के बीच कोई सहमति नहीं बन पाई तो इसका असर भी देखने को मिल सकता है। चीन लगातार ट्रंप के टैरिफ़ का जवाब दे रहा है. अब सवाल उठता है कि भारत ट्रंप के टैरिफ़ का जवाब किस तरह दे सकता है।
इस पर वरिष्ठ पत्रकार प्रकाश मेहरा ने कहा, “डोनाल्ड ट्रंप और अमेरिका जिस तरह की भाषा का इस्तेमाल कर रहे हैं, वह कूटनीतिक दुनिया में अक्सर धौंस जमाना कहलाता है। चीन हो या भारत, हर देश अपने तरीके से इसका जवाब दे रहा है. लेकिन जब मामला ब्लैकमेलिंग तक पहुंच जाए, तो बाक़ी देशों को भी मज़बूती से जवाब देना चाहिए। शायद अब समय आ गया है कि भारत कोई ठोस व्यापार समझौता कर ले. साथ ही यह भी ज़रूरी है कि यह न लगे कि भारत किसी दबाव में झुक रहा है. जो भी बातचीत हो, वह दोनों पक्षों के लिए लाभकारी और सम्मानजनक होनी चाहिए।”