स्पेशल डेस्क/नई दिल्ली: भारत और पाकिस्तान के बीच अभी कई मोर्चों पर काफी कुछ होगा। हो सकता है, घटनाक्रम काफी तेजी से बदलता नजर आए। सबसे पहले सरकार ने जो कुछ बड़े फैसले किए हैं, उनका असर समझना जरूरी है। सवाल उठ रहे हैं कि सिंधु जल संधि से पीछे हटने का क्या अर्थ है और इसका क्या आर्थिक असर हो सकता है? दूसरा बड़ा सवाल है कि पाकिस्तान से व्यापार तो पहले ही न के बराबर था, तो अब इसके बंद हो जाने से भला क्या फर्क पड़ने वाला है? तीसरा सवाल यह है कि अगर युद्ध हुआ, तो उसकी लागत क्या होगी ? आइए एग्जीक्यूटिव एडिटर प्रकाश मेहरा के इस विशेष विश्लेषण से समझते हैं।
सिंधु जल संधि पाकिस्तान की जीवन-रेखा !
तीनों ही सवाल वाजिब हैं, लेकिन इनका जवाब इतना आसान नहीं है। सिंधु जल संधि के टूटने से पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था पर ज्यादा असर होगा। पंजाब का जो हिस्सा पाकिस्तान के हिस्से में गया है, वह सिंचाई के लिए इन्हीं नदियों पर निर्भर है। पाकिस्तान की लगभग 85 प्रतिशत पैदावार पंजाब में ही होती है। उसकी अर्थव्यवस्था का एक चौथाई हिस्सा आज भी खेती से आता है और देहाती इलाकों में 70 प्रतिशत आबादी खेती से ही रोजी-रोटी चलाती है। जमीन के भीतर का जल-स्तर लगातार गिरने की वजह से पाकिस्तान का भी बड़ा हिस्सा बारिश और इन नदियों के पानी के ही भरोसे है। सिंधु और उसकी सहायक नदियों का 80 प्रतिशत पानी पाकिस्तान जाता है। सही अर्थों में इसको पाकिस्तान की जीवन-रेखा कहा जा सकता है।
भारत-पाकिस्तान के बीच व्यापार बंद !
दूसरी तरफ, भारत और पाकिस्तान के बीच व्यापार बंद होने का मसला है। भारत ने वाघा-अटारी बॉर्डर बंद करने का एलान किया, तो पाकिस्तान ने भी ऐसा ही किया। सवाल है कि जब दोनों देशों के बीच व्यापार था ही नहीं, तो फर्क क्या पड़ता है? साल 2019 के पुलवामा हमले के बाद से ही भारत ने पाकिस्तान से आने वाले सामान पर 200 प्रतिशत की ड्यूटी लगा दी थी। परिणामस्वरूप, पाकिस्तान से जो आयात 2019 में करीब 55 करोड़ डॉलर का था, 2024 तक गिरकर मात्र 48 लाख डॉलर रह गया।
भारत का विदेश व्यापार 800 अरब डॉलर !
हालांकि, पाकिस्तान ने भी कश्मीर में अनुच्छेद 370 के खत्म होने के बाद भारत से व्यापार पर रोक लगाई थी, लेकिन जल्दी ही महंगाई की मार ने उसे कुछ जरूरी चीजों के आयात को खोलने पर मजूबर कर दिया। एक आर्थिक पोर्टल ने अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों के हवाले से बताया है कि 2024. में भारत से पाकिस्तान को निर्यात में 127 फीसदी का उछाल आया है। यह 53.09 करोड़ डॉलर से बढ़कर 121 करोड़ डॉलर हो गया है। 2020 के मुकाबले यह चार गुना से ज्यादा है। लेकिन निर्यातकों के संगठन ‘फियो’ का कहना है कि भारत का विदेश व्यापार 800 अरब डॉलर से ज्यादा का है और इसके सामने पाकिस्तान से होने वाला कारोबार 0.06 प्रतिशत भी नहीं है, यानी कहीं गिनती में भी नहीं आता।
दोनों देशों के लिए आर्थिक रूप से बहुत महंगा ?
डरपोक पाकिस्तान को भय…’चार दिन में युद्ध तय इसको लेकर विशेषज्ञ के तौर पर प्रकाश मेहरा कहते हैं “भारत-पाकिस्तान युद्ध दोनों देशों के लिए आर्थिक रूप से बहुत महंगा साबित होगा, लेकिन पाकिस्तान की कमजोर अर्थव्यवस्था को अपेक्षाकृत अधिक नुकसान होगा। युद्ध के कारण भारत का राष्ट्रीय वित्तीय घाटा 50% तक बढ़ सकता है, जो 2015-16 के 5.35 लाख करोड़ रुपये से बढ़कर 8 लाख करोड़ रुपये तक पहुंच सकता है। भारत की बड़ी अर्थव्यवस्था और संसाधन उसे कुछ हद तक नुकसान को सहने में मदद कर सकते हैं, लेकिन लंबे युद्ध या परमाणु युद्ध की स्थिति में दोनों देशों को अपूरणीय क्षति होगी। पर पाकिस्तान को सुधरने की आवश्यकता है”
सिर्फ जरूरी चीजों की आपूर्ति रुकेगी !
भारत इस व्यापार के बंद होने का झटका झेल सकता है, लेकिन इतिहास गवाह है कि पाकिस्तान के लिए बड़ी मुसीबत खड़ी होगी। न सिर्फ जरूरी चीजों की आपूर्ति रुकेगी, बल्कि उनकी अर्थव्यवस्था एकदम अपंग हो सकती है। गौर कीजिए, भारत से पाकिस्तान को फल, सब्जियां, दवाएं, फार्मा केमिकल्स और चीनी सबसे ज्यादा निर्यात होती हैं। इनके बिना काम चलाना उसके लिए बहुत मुश्किल होगा। हालांकि, फार्मा उत्पाद जीवनोपयोगी क्षेणी में आते हैं और इन पर अभी तक रोक लगाई नहीं गई है।
मासूम लोगों को जान गंवानी पड़ी !
लेकिन हालात जैसे हैं, इनमें क्या होगा, यह कहना मुश्किल है। इसी तरह, भारत के अस्पतालों में बहुत से पाकिस्तानी मरीज इलाज के लिए आते हैं और इस वक्त भी मौजूद हैं। इन जैसे न जाने कितने मरीजों के लिए भी जिंदगी की आस टूट सकती है। हालात अच्छे नहीं, बहुत तकलीफदेह हैं। पाकिस्तान के जिन आम लोगों को इसकी कीमत चुकानी पड़ेगी, उनके साथ सहानुभूति रखी जा सकती है, लेकिन पहलगाम में जिन मासूम लोगों को जान गंवानी पड़ी है, उन्हें भुलाया भी नहीं जा सकता।
सबसे बड़ा सवाल है, अब आगे क्या होगा ? सरकार क्या करेगी? क्या युद्ध की नौबत आ सकती है? यह सवाल इसीलिए, क्योंकि युद्ध की एक कीमत होती है, जो दोनों ही पक्षों को चुकानी पड़ती है। खासकर आज के वक्त में कोई युद्ध सिर्फ एक पक्ष को महंगा नहीं पड़ता। मगर फर्क इस बात से पड़ता है कि किसको कितनी कीमत चुकानी है और क्या वह इस हालत में है कि युद्ध के आर्थिक झटके को झेल सके ?
दुनिया में आर्थिक मंदी का खतरा !
खासकर इस वक्त यह सवाल महत्वपूर्ण है, क्योंकि पूरी दुनिया में आर्थिक मंदी का खतरा मंडरा रहा है। भारत हालांकि बाकी दुनिया के मुकाबले तेज विकास दिखाएगा, लेकिन यहां भी चिंताएं मौजूद हैं। अभी आईएमएफ और वर्ल्ड बैंक ने जीडीपी ग्रोथ का अनुमान कम किया है। साल 2019 में ही एसएसआरएन पर प्रकाशित एक रिसर्च पेपर में अनुमान लगाया गया था कि हर युद्ध का भारत और पाकिस्तान की जीडीपी पर क्या असर होता है और कितना वक्त इसकी भरपायी में जाता है।
भारत के जीडीपी में 0.5 प्रतिशत की गिरावट !
उस रिसर्च के अनुसार, 1971 की लड़ाई की वजह से भारत के जीडीपी में 0.5 प्रतिशत की गिरावट आई, जबकि पाकिस्तान के जीडीपी में 0.80 फीसदी की। यही नहीं, इस दौरान हुए नुकसान और आर्थिक विकास में गिरावट की भरपायी में भारत को छह साल का वक्त लगा, जबकि पाकिस्तान को साढ़े आठ साल।
एसएसआरएन में साया इसी रिपोर्ट में एक वित्तीय मॉडल पर अनुमान लगाए गए थे कि अगर 2019 या 2025 में दोनों देशों में युद्ध छिड़ा, तो इनकी आर्थिकी पर इसका क्या असर हो सकता है? रिपोर्ट के अनुसार, भारत का नुकसान 0.65 प्रतिशत व पाकिस्तान का 0.95 फीसदी होने और युद्ध की कीमत व असर की भरपायी में भारत को 7.5 साल व पाकिस्तान को 10 साल लगने का अनुमान लगाया गया था।
भारत के साथ लड़ाई के बारे में सोचना !
यहां यह भी याद करना जरूरी है कि 1971 की लड़ाई से पहले पाकिस्तान दक्षिण एशिया का सबसे अमीर देश था, क्योंकि उसकी प्रति व्यक्ति आय भारत, श्रीलंका और बांग्लादेश से ज्यादा थी, लेकिन उस जंग के बाद से उसकी हालत लगातार बिगड़ती चली गई और हाल ही में वह दिवालिया होते-होते बचा है। सिर्फ डेढ़ साल पहले पाकिस्तान में महंगाई दर 38.5 प्रतिशत पर पहुंच गई थी, जीडीपी बढ़ने के बजाय घटने लगी थी और व्याज दर 22 फीसदी, यानी आसमान पर चली गई थी। उसके पास सिर्फ 370 करोड़ डॉलर की विदेशी मुद्रा बची थी।
आईएमएफ, सऊदी अरब, यूएई और चीन की मदद से वह किसी तरह बचने में कामयाब हुआ। ऐसे में, भारत के साथ लड़ाई के बारे में सोचना भी पाकिस्तान के लिए अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारने जैसा होगा। फिर भी, अगर वह आतंकवादियों को शह देना बंद नहीं करता, तो इसका क्या मतलब हो सकता है?